Smiley face

चक्र स -18. वर्ष का छटवाँ इतवार

यिरमियाह 17:5-8; 1 कुरिन्थियों 15:12, 16-20; लूकस 6:17, 20-26

(फादर लैन्सी फेर्नान्डिस)


स्वामी विवेकानंद शिकागो में होने वाली धर्म संसद में भाग लेने के लिये अमेरिका जा रहे थे। उनकी इस यात्रा के लिये टिकट खरीद कर दिया गया था लेकिन उनके ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। समुद्र पार उस अंजान देश में उन्हें लेने कोई नहीं आने वाला था। वह अमेरिका में किसी को भी नहीं जानते थे। लेकिन वह जानते थे कि सर्वशक्तिशाली ईश्वर जिसने सदैव उनका ख्याल रखा है इस सुदूर देश में भी, जहाँ वह उनको ले जा रहा था, उनको अकेला नहीं छोड़ेगा। विवेकानंद इन्ही विचारों में खोये अपने हृदय के अंतरतम में ईश्वर से बातचीत में मग्न थे। उसी समय एक सहयात्री ने उनसे पूछा ‘‘आप अमेरिका क्यों जा रहे हैं?’’ ‘‘मैं शिकागो शहर में होने वाली धर्म संसद में भाग लेने जा रहा हूॅं’’, विवेकानंद ने उत्तर दिया। उस व्यक्ति ने पुनः पूछा ‘‘मैं शिकागो का रहने वाला हूँ, क्या मैं जान सकता हूँ कि आप शिकागो में कहाँ रुकेंगे।’’ इस पर विवेकानन्द ने उत्तर दिया ‘‘मैं नहीं जानता, हो सकता है मैं आपके यहाँ रुकूँ। ये शब्द जो बच्चों जैसी सरलता में बोले गये थे, सीधे उस व्यक्ति के दिल में उतर गये और वह बोल उठा ‘‘यह मेरे लिये खुशी की बात होगी कि आप जैसा कोई मेरे यहाँ रुकें। मैं आपके प्रवास को अत्यधिक सुविधायुक्त बनाने का प्रयास करूँगा। ’’

हम में से अधिकांश लोग ईश्वर में अपना भरोसा रखने को तैयार एवं उत्सुक हैं लेकिन केवल एक सीमा तक। आज के पाठ भी इसी संदेश से भरे हैं, हमसे आशा करते हैं कि हम इस कृपा को अपने ऊपर उतरने दें। शब्द जरूर कठोर और भेदी है लेकिन फिर भी निर्मल एवं जीवनदायक हैं। ‘‘धन्य है वह जो ईश्वर पर भरोसा रखता है, जिसका विश्वास ईश्वर में है।’’ हम अपने परिवार एवं बच्चों की जरूरतें पूरी करने के लिये दिन-रात मेहनत करते हैं। हम अपनी तथा अपने प्रिय व्यक्तियों के जीवन को सुविधाजनक बनाने के लिये अपनी सारी ऊर्जा खर्च करते हैं। फिर भी हम ईश्वर को कितना मौका देते हैं? धर्मग्रंथ कहता है, ‘‘धिक्कार उस मनुष्य को, जो मनुष्य पर भरोसा रखता है, जो निरे मनुष्य का सहारा लेता है।’’ फिर भी हम सब यही करते हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति ईश्वर में तब तक विश्वास नहीं करता जबतक कि वह आपरेशन कक्ष में नहीं जा रहा हो, तब सर्जन अनायस ही कह उठता है ‘ईश्वर पर विश्वास रखे और सब कुछ ठीक हो जायेगा।’ हर माह के शुरू में जब पैसा रहता है तब हमारी आने वाले दिनों के लिये बहुत विस्तृत योजनाएं होती हैं। उस समय हमें ईश्वर में विश्वास की बात याद नहीं आती है। ऐसा केवल महीने के अंत में होता है जब किसी के लिये दवाई खरीदना हो या बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के खर्च निकल आते हैं, तब जाकर हमें ईश्वर में विश्वास की बात याद आती है।

नबी मूर्ख नहीं है जब वह कहता है ‘‘धन्य है वह मनुष्य, जो प्रभु पर भरोसा रखता है, जो प्रभु का सहारा लेता है!’’ जब एक बच्चा सुबह उठता है तो उसे कैसे मालूम है कि नाश्ते की टेबिल लग चुकी है; कि लंच बॉक्स तैयार है; कि कपड़े तैयार हैं? मुझे कैसे मालूम कि मेरी माँ उठ चुकी है और भली चंगी है? किसी को कैसे मालूम कि उसकी पत्नी खुश और ठीक है? हम चीजों को हल्के ढ़ंग से लेते हैं। हम अपने पर अधिक विश्वास रखते हैं। हम अक्सर ऐसा सोचते हैं कि मैं सुबह उठकर यह करूँगा, वो करूँगा। हम अपनी योजनाओं को रूप देते समय शायद ही ईश्वर के उन शक्तिशाली हाथों की याद रखते हैं जिनके बिना हमारी योजनाएं कागज तक ही सीमित रह जायेगी।

हम अपने स्वास्थ्य, अपने बैंक की जमाराशी, अपने गुण एंव प्रमाणिकता पर भरोसा रखते हैं। ईश्वर को भूल जाते हैं। क्या यही कारण नहीं है जिसके लिये नबी आज हमें याद दिलाते हुये कहते है ‘‘धन्य है वह जो ईश्वर पर भरोसा रखते हैं।’’ ऐसा हमारे लिये और भी जरूरी है क्योंकि हम स्वर्गराज्य के सदस्य हैं। इसलिये प्रभु भी कहते है ‘‘धन्य हैं वे जो निर्धन हैं स्वर्गराज उन्हीं का है।’’ धन्यता इस बात में निहित है कि हम दिन-रात जीवन एवं मृत्यु दोनों में ईश्वर पर विश्वास करें। धन्यता इस बात में निहित है कि हमें हमेशा यह याद रहे कि हमारे जीवन में ईश्वर का राज्य आ चुका है और जो कुछ भी हम कहते और योजना बनाते हैं उसकी देखरेख ईश्वर करंेगे। स्वर्गराज्य जीवित ईश्वर और उसके जीवंत लोगों का राज्य है।


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Praise the Lord!