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चक्र स -21. चालीसे का दूसरा इतवार

उत्पत्ति 15:5-12, 17-18; फिलिप्पियों 3:17-4:1 या 3:20-4:1; लूकस 9:28ब-36

फादर रोनाल्ड मेलकम वॉन


हम अपने जीवन में आश्वासन चाहते हैं। यदि हमें किसी से कोई आशा है तो उसका कारण हमारा पूर्व का संतोषप्रद अनुभव होगा। कई बार हम आशाहीन भी हो जाते हैं। इसका कारण भी हमारा पूर्व का कटु अनुभव होगा। बैंक जब ऋण देता है तो वह भी वापसी के आशा में गारंटी के रूप में कुछ भरोसेमंद आश्वासन चाहता है। इस प्रकार हम अपने जीवन में आश्वासन चाहते हैं कि कोई हमारे साथ है या जो हम कर रहे हैं वह सही दिशा में उठाये कदम है। आज के पहले पाठ में पिता इब्राहिम भी ईश्वर से उनकी प्रतिज्ञाओं के प्रति कुछ आश्वासन चाहते हैं। ईश्वर ने जो प्रतिज्ञा उन से की थी वह मानव दृष्टिकोण से लगभग असंभव प्रतीत होती है। ’’आकाश की और दृष्टि लगाओ और सम्भव हो, तो तारों की गिनती करो। ....तुम्हारी सन्तति इतनी ही बड़ी होगी।’’ इब्राहिम जो बुढा तथा निसंतान था किन्तु विश्वास का धनी था ईश्वर पर अविश्वास नहीं करता किन्तु केवल आश्वासन चाहता है जिसके बल पर वह प्रतिज्ञा के पूर्ण हो जाने तक विश्वासी तथा दृढ बना रहे। सृष्टिकर्ता ईश्वर जिनके लिये कुछ भी असंभव नहीं है इब्राहिम को आश्वासन के रूप में ’’धुँआती हुई अंगीठी तथा एक जलती हुई मशाल’’ के रूप में इब्राहिम के बलिदान के बीच से होकर गुजरते हैं।

ईश्वर अपने भक्तों को निराश नहीं करते और बाइबिल में अनेक स्थानों पर हम पाते हैं कि वे अपनी उपस्थिति तथा चिन्हों द्वारा उन्हें आश्वांवित कर उनकी हौसला अफजाई करते हैं। निर्गमन ग्रंथ में मूसा भी प्रभु से आश्वासन चाहते हैं। ’’यदि मैं सचमुच तेरा कृपापात्र हूँ, तो मुझे अपना मार्ग दिखला, जिससे मैं तुझे जान सकूँ और तेरा कृपापात्र बना रहूँ। ....हम यह कैसे जान सकेंगे कि मैं और तेरे ये लोग तेरे कृपापात्र हैं? यदि तू हमारे साथ नहीं चलता, तो मैं और तेरे ये लोग पृथ्वी के अन्य सब लोगों से कैसे विशिष्ट समझे जायेंगे?..., ’’मुझे अपनी महिमा दिखाने की कृपा कर।’ मैं अपनी सम्पूर्ण महिमा के साथ तुम्हारे सामने से निकल जाऊँगा और तुम पर अपना ’प्रभु’ नाम प्रकट करूँगा। मैं जिनके प्रति कृपालु हूँ, उन पर कृपा करूँगा और जिनके प्रति दयालू हूँ, उन पर दया करूँगा। .....तुम एक चट्टान पर खड़े हो सकते हो। और जब तक तुम्हारे सामने से मेरी महिमा नहीं निकल जायेगी, तब तक मैं तुम्हें चट्टान की दरार में रखूँगा और तुम्हारे सामने से निकलते समय अपने हाथ से तुम्हारी रक्षा करूँगा।’’ (देखिए निर्गमन 33:13-22) इस प्रकार ईश्वर मूसा को आश्वांवित करते तथा उसके मिशन को प्रमाणित भी करते हैं।

जब ईश्वर का दूत गिदओन से मिदयानियों से युद्ध पर जाने तथा उसे विजय का आश्वासन देता हैं तो गिदओन भी ईश्वर से आश्वासन चाहते हुये निवेदन करता है, ’’यदि मुझ पर आपकी कृपा दृष्टि हो, तो मुझे एक ऐसा चिन्ह दीजिए, जिससे मैं जान सकूँ कि आप ही मुझ से बोल रहे हैं। आप कृपया यहाँ से तब तक न जायें, जब तक मैं आपके पास न लौट आऊँ। मैं अपना चढ़ावा ले कर आऊँगा और आपके सामने रखूँगा।’’ .....प्रभु के दूत ने उस से कहा, ’’मांस और रोटियाँ वहाँ चट्टान पर रखो और उन पर शोरबा उँड़ेल दो’’। उसने यही किया। तब प्रभु के दूत ने अपने हाथ का डण्डा बढ़ा कर उसके सिरे से मांस और बेखमीर रोटियों को स्पर्श किया। इस पर चट्टान से आग निकली, जिसने मांस और बेखमीर रोटियों को भस्म कर दिया और प्रभु का दूत गिदओन की आँख से ओझल हो गया। तब गिदओन समझ गया कि वह प्रभु का दूत था और उसने कहा, ’’हाय! प्रभु-ईश्वर! मैंने प्रभु के दूत को आमने-सामने देखा है।’’ (देखिए न्यायकताओं 6:17-22)

नबी एलियाह शक्तिशाली तथा साहसिक नबी थे। उन्होंने ईश्वर के लिए लोगों के सामने निडर होकर गवाही दी तथा चमत्कारिक कार्य किये। किन्तु एक मोड पर वे थक-हार जाते हैं। वे ईज़ेबेल की मौत की धमकी से डरकर भयभीत हो जाते हैं। ’’इस से एलियाह भयभीत हो गया और अपने प्राण बचाने के लिय यूदा के बएर-शेबा भाग गया। वहाँ उसने अपने सेवक को छोड़ दिया और वह मरुभूमि में एक दिन का रास्ता तय कर एक झाड़ी के नीचे बैठ गया और यह कह कर मौत के लिए प्रार्थना करने लगा, ‘‘प्रभु! बहुत हुआ। मुझे उठा ले, क्योंकि मैं अपने पुरखों से अच्छा नहीं हूँ।’’ (1 राजाओं 19:3-4)

किन्तु ईश्वर अपने सेवक को नहीं भूलता है। वे स्वर्गदूत को भेज कर उन्हें ढाढस बंधाते हुये कहते हैं, ‘‘उठिए और खाइए, नहीं तो रास्ता आपके लिए अधिक लम्बा हो जायेगा’’। एलियाह भोजन कर चालीस दिन और चालीस रात चल कर ईश्वर के पर्वत होरेब पहुँचा। वहॉ पर उसे अंत में ईश्वर के दर्शन हुये। “....तब प्रभु उसके सामने से हो कर आगे बढ़ा। प्रभु के आगे-आगे एक प्रचण्ड आँधी चली - पहाड़ फट गये और चट्टानें टूट गयीं, किन्तु प्रभु आँधी में नहीं था। आँधी के बाद भूकम्प हुआ, किन्तु प्रभु भूकम्प में नहीं था। भूकम्प के बाद अग्नि दिखाई पड़ी, किन्तु प्रभु अग्नि में नहीं था। अग्नि के बाद मन्द समीर की सरसराहट सुनाई पड़ी। एलियाह ने यह सुनकर अपना मुँह चादर से ढक लिया और वह बाहर निकल कर गुफा के द्वार पर खड़ा हो गया। तब उसे एक वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी, “एलियाह! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?“ (1 राजाओं 19:1-13) इस प्रकार ईश्वर के दर्शन पाकर एलियाह पुनः उत्साहित हो जाता है।

इस प्रकार ईश्वर दाऊद, मनोअह (देखिए न्यायकर्ताओं 13:2-23), दानिएल (दानिएल 14:37-39), स्तेफनुस (प्रेरित चरित 7:55-60), संत पौलुस (2 कुरिन्थियों 12:1-10) सुलेमान (1 राजाओं 3:5-12) आदि अनेकानेक भक्तों को अपनी उपस्थिति या चिन्ह द्वारा आश्वासन एवं सहायता प्रदान करता है। आज का सुसमाचार भी येसु तथा उनके शिष्यों पेत्रुस, योहन और याकूब के लिए भावी दुखःभोग के होने तथा उस दौरान साहसी एवं विश्वासी बने रहने का आश्वासन था। पिता परमेश्वर येसु को अपना प्रिय पुत्र घोषित कर उन्हें भी आश्वासन देते हैं तथा येसु इस दृश्य के द्वारा अपने इन तीन शिष्यों को भविष्य के दुःखभोग तथा कू्रसमरण से उदास एवं हताश नहीं होने के लिए आश्वांवित करते हैं।

हमारे जीवन में भी कठिन अवसर आते हैं। ऐसे मौको पर हम निराश एवं हताश हो उठते हैं। हम भी आशा और दिलासे के लिए इधर-उधर देखते हैं। हमारा विश्वास भी शायद हिल जाता है। हमें पवित्र बाइबिल में दिये इन उदाहरणों से सीखना चाहिये तथा ईश्वर से उसके संरक्षण, सानिध्य तथा सामिप्य की गुहार लगाना चाहिये। ईश्वर हमें कभी भी निराश नहीं करेंगे। बाइबिल के आदर्शों एवं उदाहरणों के अनुसार ईश्वर हमें उनकी उपस्थिति की कृपा प्रदान करेंगे। यह प्रभु का वचन है जो कहता है “उनके दुहाई देने से पहले ही, मैं उन्हें उत्तर दूँगा; उनकी प्रार्थना पूरी होने से पहले ही, मैं उसे स्वीकार करूँगा।“ (इसायाह 65:24)


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