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चक्र स -22. चालीसा का तीसरा इतवार

निर्गमन 3:1-8अ,13-15; 1 कुरुन्थियों 10:1-6,10-12; लूकस 13:1-9

(फादर एब्रहाम वी.पी.)


आज के पहले पाठ में हम ने सुना कि कैसे मूसा को ईश्वरीय दर्षन मिलता है। मूसा भेंडें़ चराया करता था। एक दिन होरेब पर्वत के पास भेंड़ें चराते समय उसने देखा कि एक झाड़ी में तो आग लगी थी किन्तु वह भस्म नहीं हो रही थी। यह न केवल एक अजीब सी बात है बल्कि प्रकृति के नियम के परे है। इसलिए उसका ध्यान से निरीक्षण करने के लिए मूसा झाड़ी के पास पहुँचा। तुरन्त ईश्वर उसे रोकते हुए कहते हैं कि पास मत आओ, पैरों से जूते उतार दो, क्योंकि तुम जहाँ खडे़ हो, वह पवित्र भूमि है।

हम ईश्वर को पवित्र मानते हैं । ईश्वर इसलिए पवित्र है कि वे इस दुनिया के नियमों से परे हैं और उन में किसी भी प्रकार की त्रुटियाँ नहीं हैं। उनकी महानता इतनी है कि किसी भी मनुष्य के लिए उनके निकट एक सीमा से ज्यादा जाना सम्भव नहीं है। आज का पहला पाठ इस सत्य को हमें स्पष्ट रूप से समझाता है।

जब यहूदी लोग मिस्र देश से मूसा की अगुवाई में मुक्त होकर प्रतिज्ञात देश की ओर यात्रा कर रहे थे, तब ईश्वर ने उनकी आँखों के सामने कई प्रकार के अद्भूत कार्य करके दिखाये थे। ईश्वर ने उन्हें अनोखी रीति से लाल सागर पार करवाया। ईश्वर ने उन्हें बादल के माध्यम से मार्ग दिखाया। उन लोगों को ईश्वर ने स्वर्ग से मन्ना खिलाया और चट्टान से पानी पिलाया इत्यादि। ये ईश्वर द्वारा दिखाये गये अद्भूत और अनोखे कार्य हैं। ये सब के सब दुनिया की शक्तियों से काफी परे हैं। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि ये सब करने वाले ईश्वर भी इस दुनिया की शक्तियों से परे हैं। इसलिए आज का दूसरा पाठ ऐसा करने वाले ईश्वर को पवित्रतम कहता है।

ऐसे पवित्रतम ईश्वर नये विधान में मानव जन्म लेते हैं, और प्रभु येसु ही वह ईश्वर हैं। प्रभु येसु अपने जीवन में भी प्रकृति के नियमों से परे काफी कुछ करके अपने आप को पवित्र साबित करते हैं और उन कार्यों को हम चमत्कार कहते हैं। येसु अपने इस सांसारिक जीवन द्वारा ईश्वरीय पवित्रता की दो परिभाषा दे डालते हैं। पहला, ईश्वर इसलिए पवित्र हैं कि वे सब नियमों या चीजों से परे हैं। दूसरा, ईश्वर इसलिए पवित्र हैं कि वे पापों एवं अन्य दोषों से दूर हैं।

येसु पवित्र हैं और इसका सबूत देते हुए सन्त योहन के अनुसार सुसमाचार में अध्याय 8, वाक्य संख्या 46 में वे पूछते हैं कि तुम में से कौन मुझ पर पाप का दोष लगा सकता है?

ईश्वर से जुड़ी हुयी सब वस्तु पवित्र हैं। क्योंकि वे सब के सब दूसरी चीजों से अलग की गयी हैं तथा ईश्वर के लिए समर्पित की गयी हैं। ईश्वर के लिए निर्माण किये गये गिरजाघर, वेदी, पूजा में प्रयोग किये जा रहे पात्र इत्यादि सब पवित्र हैं।

हरेक ईसाई भी पवित्र है। क्योंकि वे भी दूसरों से अलग किये गये लोग हैं और वे सब के सब प्रभु येसु की सम्पत्ति हैं। इसलिए संत पेत्रुस अपने पहले पत्र के अध्याय 2, वाक्य 9 में कहते हंे कि आप लोग चुने हुए वंश, राजकीय याजक-वर्ग, पवित्र राष्ट्र तथा ईश्वर की निजी प्रजा हैं, जिससे आप उसके महान् कार्यों का बखान करें ।

यदि एक पेड़ फल नहीं देता है तो उसका कारण कुछ भी हो सकता है। पेड़ खराब हो सकता है या वातावरण अनुकूल नहीं हो सकता है। एक व्यक्ति अपनी ही दाखबारी में लगी एक अंजीर के पेड़ में फल ढूँढता है लेकिन उसे कुछ भी मिला नहीं। इसलिए वह दाखबारी के माली से उस पेड़ को काट डालने का आदेश देता है। दाखबारी के माली की सोच कुछ और थी। माली अंजीर के पेड़ की इस निष्फलता के कारण का साफ-साफ पता करने के लिए तथा उसपर अमल करने के लिए अपने स्वामी से एक वर्ष का समय माँगता है। उनका मानना है पेड़ के चारों ओर खोदकर खाद देकर देख लें। यदि एक साल में फल देता है तो ठीक है, नहीं तो उसे काट सकतें हैं। इसी दृष्टान्त को येसु आज के सुसमाचार में हमें सुनवाते हैं।

हरेक बप्तिस्मा पाने वाला व्यक्ति प्रभु येसु द्वारा चुना गया पवित्र पेड़ हैं। इसलिए यह स्वाभाविक है कि येसु हम से पवित्र फल की अपेक्षा करें। यदि हम उस पवित्र फल को उत्पन्न नहीं कर पाते हैं, तो इसका कारण हम हैं या फिर हमें ऐसा कुछ अनुकूल वातावरण नहीं मिला है।

पवित्र फल उत्पन्न करने का वातावरण तो हमें कलीसिया एवं संस्कारों के माध्यम से हमेशा भरपूर मिलता रहता है। इस से यह बात स्पष्ट है कि हमारी निष्फलता का कारण हम में ही है। यह हमारी ही कमी है। इस कमी को दूर करने के लिए हमारे सामने पूरा चालीसा काल है। हम अपने पापों एवं गुनाहों पर पष्चाताप करके ईश्वर और दूसरों से क्षमा याचना करके अपने आप को षुद्ध करें ताकि हम पवित्र बनकर ईश्वर के समक्ष आ सकें।

हम विश्वासियों से यह अपेक्षा की जाती है कि अपने ही भले कार्यों द्वारा ज़िन्दगी में पवित्र फल उत्पन्न करते जायें जो दूसरों के दुःख को दूर करके उनके जीवन में खुषीयाँ ला सकें। यदि हम में कोई कमी है जिसके कारण हम में अनुकूल फल नहीं होते तो उसे दूर करने केलिए ईश्वर हमारे लिए अनेक अवसर प्रदान करते हैं। मिस्सा बलिदान उन कमियों को दूर करने के लिए न केवल एक माध्यम है बल्कि एक प्रतीक भी।


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