Francis Scaria

चक्र स - 26. पुण्य गुरुवार

निर्गमन 12:1-8,11-14; 1 कुरिन्थियों 11:23-26; योहन 13:1-15

(फादर फ्रांसिस स्करिया)


आज का दिन कई कारणों से एक ख्रीस्तीय विश्वासी के लिए महत्वपूर्ण है।

1. यूखारिस्तीय संस्कार का दिन :- Francis Scaria यहूदी लोग पास्का भोजन के समय इश्वर द्वारा उन्हें मिस्र देश से छुडाये जाने की याद करते थे। परन्तु येसु ने अपने शिष्यों को पास्का समारोह को एक नये दृष्टिकोण से देखने और समझने का अह्वान किया। उन्होंने रोटी अपने हाथ में ले कर उसे अपना शरीर घोषित किया और दाखरस को अपना रक्त। इस प्रकार उन्होंने हमारे लिए यूखारिस्तीय संस्कार की स्थापना की।

2. पुरोहिताई का दिन :- अंतिम भोजन के समय प्रभु येसु ने पुरोहिताई संस्कार की भी स्थापना की। जब उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “यह मेरी स्मृति में किया करो’’ (लूकस 22:19) तब वे उन्हें नय विधान के याजक घोषित कर रहे थे। कलीसिया के लिए, कलीसिया से संयुक्त होकर और कलीसिया की ओर से यूखारिस्तीय बलिदान चढ़ाना पुरोहितों के महत्वपूर्ण कर्तव्यों में एक है।

3. प्रेम का दिन :- संत योहन बताते हैं, “ईसा जानते थे कि मेरी घडी आ गयी है और मुझे यह संसार छोडकर पिता के पास जाना है। वे अपनों को, जो इस संसार में थे, प्यार करते आये थे और अब अपने प्रेम का सब से बडा प्रमाण देने वाले थे।” आज के दिन प्रभु येसु हमें अपने “प्रेम का सबसे बडा प्रमाण” देते हैं। जिसे हम प्यार करते हैं, उसके साथ हम ज़्यादा से ज़्यादा समय बिताना चाहते हैं। जब प्रभु येसु अपने आप को इस धरती के जीवन के अंतिम चरण में पाते हैं, तो वे अपने शिष्यों का साथ छोड़ना नहीं चाहते हैं, बल्कि उनके साथ ही रहना चाहते हैं। इसी के लिए वे यूखारिस्त की स्थापना करते हैं। यूखारिस्त हमारे लिए येसु के प्रेम का सब से बड़ा प्रमाण है। दुनिया भर के प्रकोशों में उपस्थित रह कर प्रभु येसु हम में से हरेक व्यक्ति से कहते हैं, “मैं तुझे प्यार करता हूँ, तुझे हमेशा प्यार करता रहूँगा और तुझे मेरे प्यार का एहसास कराने के लिए ही मैं यहाँ उपस्थित रहता हूँ”। जब हम उडाऊ पुत्र के समान पाप के द्वारा येसु की संगति छोड़ कर उन से बहुत दूर चले जाते हैं, तब भी वापस पाने पर वे हम में से हरेक से कहते हैं, “मैं तुझे प्यार करता हूँ और तुझे हमेशा प्यार करता रहूँगा”। प्रभु येसु कहते हैं, “तुम मुझ में रहो और मैं तुम में रहूँगा।” (योहन 15:4) इस से हमें क्या फ़ायदा है, यह भी प्रभु हमें बताते हैं, “जो मुझ में रहता है और मैं जिसमें रहता हूँ वही फलता है” (योहन 15:5) यह कितना बड़ा प्रेम है! येसु के प्रति अपने प्यार को प्रकट करते हुए एमाऊस जाने वाले शिष्य येसु से आग्रह करते हैं, “हमारे साथ रह जाइए। साँझ हो रही है और अब दिन ढल चुका है”।

4. सेवा का दिन :- अंतिम भोज के समय प्रभु येसु ने अपने शिष्यों के पैर धोये। तत्पश्चात्‍ वे उन से कहते हैं, “तुम मुझे गुरु और प्रभु कहते हो और ठीक ही कहते हो, क्योंकि मैं वही हूँ। इसलिये यदि मैं - तुम्हारे प्रभु और गुरु - ने तुम्हारे पैर धोये है तो तुम्हें भी एक दूसरे के पैर धोने चाहिये। मैंने तुम्हें उदाहरण दिया है, जिससे जैसा मैंने तुम्हारे साथ किया वैसा ही तुम भी किया करो।“ योहन 13:13-15) प्रभु ने पहले से ही उन से कहा था, “मानव पुत्र भी अपनी सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने तथा बहुतों के उद्धार के लिए अपने प्राण देने आया है।” (मत्ती 20:28) सुसमाचारीय सेवा की विशेषता यह है कि यह दुनिया की सेवा से भिन्न है। दुनिया में छोटे बडों की सेवा करते हैं। बल्कि सुसमाचारीय सेवा में हमें एक दूसरे की सेवा करनी है। हमें बडे और छोटे दोनों की सेवा करनी है। अगर प्रभु येसु की शिक्षा के अनुसार दुनिया में सभी लोग दूसरों की सेवा करने लगते हैं, दुनिया कितनी बदलेगी! क्या यह दुनिया में पनपने वाली हर बुराई का अन्त नहीं होगा? सब का आदर और सबकी सेवा – यही है ख्रीस्तीय शिक्षा।

5. विनम्रता का दिन :- येसु स्वयं ईश्वर है। वे अपनी ईश्वरीय गरिमा को छोड़ कर हमारे लिए अपने आप को दीन हीन बनाते हैं। अंतिम भोजन के समय उन्होंने एक दास के समान “भोजन पर से उठकर अपने कपडे उतारे और कमर में अंगोछा बाँध लिया। तब वे परात में पानी भरकर अपने शिष्यों के पैर धोने और कमर में बँधें अँगोछे से उन्हें पोछने लगे” (योहन 13:4-5) प्रभु चाहते हैं कि हम विनम्रता के इस गुण को अपनायें। वे कहते हैं, “मुझ से सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ” (मत्ती 11:29)

6. हमारे अपराधों की माफ़ी का दिन :- पैर धोते समय संत पेत्रुस येसु को अपने पैर धोने से मना करते हैं, तो येसु उनसे कहते हैं, “यदि मैं तुम्हारे पैर नहीं धोऊँगा, तो तुम्हारा मेरे साथ कोई सम्बन्ध नहीं रह जायेगा। इस पर सिमोन पेत्रुस ने उन से कहा, “प्रभु! तो मेरे पैर ही नहीं, मेरे हाथ और सिर भी धोइए”। (योहन 13:8-9) हम पापी मनुष्य आध्यात्मिक रीती से अपने आप को शुध्द नहीं कर सकते हैं। वे ही हमारे अपराधों को धोकर हमें शुध्द कर सकते हैं। जब कभी हम पाप स्वीकार करते हैं, तब हम प्रभु को हमारे पापमय पैरों को धोने देते हैं। सुसमाचार पढ़ने के बाद याजक धीमी आवाज़ में कहते हैं, “सुसमाचार के वचन मेरे पापों को मिटा दे”। इसायाह 6 में हम देखते हैं कि प्रभु के दर्शन पाकर नबी इसायाह अपने आप को अशुध्द पाते हैं। वे कहने लगते हैं, “हाय! हाय! मैं नष्ट हुआ; क्योंकि मैं तो अशुद्ध होंठों वाला मनुष्य हूँ और अशुद्ध होंठों वाले मनुष्यों को बीच रहता हूँ और मैंने विश्वमण्डल के प्रभु, राजाधिराज को अपनी आँखों से देखा।” एक सेराफ़ीम उड़ कर नबी के पास आया। उसके हाथ में एक अंगार था, जिसे उसने चिमटे से वेदी पर से ले लिया था। उस से उनका मुँह छू कर उसने कहा, “देखिए, अंगार ने आपके होंठों का स्पर्श किया है। आपका पाप दूर हो गया और आपका अधर्म मिट गया है।“ (इसायाह 6:5-7) प्रभु के भोज में भाग लेने के लिए हमें अपने पापों और अपराधों से छुटकारा पाना अनिवार्य है। संत पौलुस इस सच्चाई को दर्शाते हुए कहते हैं, “जो अयोग्य रीति से वह रोटी खाता या प्रभु का प्याला पीता है, वह प्रभु के शरीर और रक़्त के विरुद्ध अपराध करता है। अपने अन्तःकरण की परीक्षा करने के बाद ही मनुष्य वह रोटी खाये और वह प्याला पिये। जो प्रभु का शरीर पहचाने बिना खाता और पीता है, वह अपनी ही दण्डाज्ञा खाता और पीता है। यही कारण है कि आप में बहुत-से लोग रोगी और दुर्बल हैं और कुछ लोग मर गये हैं। (1 कुरिन्थियों 11:27-30)

7. क्षमा का दिन :- येसु को मालूम था कि उनके शिष्य उनके दुखभोग और मृत्यु के समय उन्हें छोड़ कर भाग जायेंगे, उनमें से एक उन्हें पकड़वायेगा और दूसरा उन्हें अस्वीकार करेगा। फिर भी उन्होंने अपने सभी शिष्यों को अपने साथ भोजन पर बैठाया और उन सब के पैर धोये तथा उन सब के लिए यूखारिस्तीय बलिदान की स्थापना भी की। इस प्रकार अंतिम भोजन प्रभु येसु की क्षमा का बहुत बडा प्रमाण बनता है। प्रभु का यह दृष्टिकोण अनुकरणीय है। दूसरों को क्षमा करते बिना हम यूखारिस्तीय बलिदान में भाग नहीं ले सकते हैं। प्रभु सिखाते हैं, “जब तुम वेदी पर अपनी भेंट चढ़ा रहे हो और तुम्हें वहाँ याद आये कि मेरे भाई को मुझ से कोई शिकायत है, तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ कर पहले अपने भाई से मेल करने जाओ और तब आ कर अपनी भेंट चढ़ाओ।” (मत्ती 5:23-24)

आईए, हम इस पर्व की विशेषताओं को याद करते हुर आज की पूजन-विधि में भक्तिभाव से भाग लें।


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Praise the Lord!