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चक्र स - 27. पुण्य शुक्रवार

इसायाह 52:13-53:12; इब्रानियों 4:14-16;5:7-9; योहन 18:1-19:42

(फादर फ्रांसिस स्करिया)


पाँच ही दिन पहले हमने खजूर इतवार मनाया था। लागों ने प्रभु को राजा कहकर पुकारा, उनका जय जयकार किया, उनके रास्ते पर उन्होंने कपडे बिछाये। आज वही प्रभु क्रूस पर नंगे मर रहे हैं। वे ही लोग जोर-जोर से पुकार कर कह रहे हैं, ”उसे क्रूस दीजिए“। क्रूस पर दुःख सहकर प्रभु दुःख तकलीफ सहने का खीस्तीय अर्थ हमें समझाते हैं। खीस्तीय दृष्टि से कष्ट प्रभु के दुखभोग के सहभागी बनने का साधन है। इसी कारण कष्ट सहना पुण्यप्रद माना जाता है।

कष्ट खीस्तीय जीवन का अनिवार्य अंग है। वह हमें दुनियावी जीवन की कमियों की याद दिलाता है। प्रभु अपनी प्राणपीड़ा से हमारी पीड़ाओं को मिटाते हैं। वे पूरा बोझ अपने ऊपर ले लेते हैं। वे कहते हैं, ”थके, माँदे और बोझ से दबे हुए लोगों तुम सब मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूँगा“। हम में से कई लोग शॉर्टकट (shortcut) चाहते हैं। हम में से ज्यादातर लोग खजूर इतवार के तुरन्त बाद पास्का पर्व मनाना चाहते हैं। लोग पढ़ाई करके परीक्षा देने के बजाय सीधे ही प्रथम श्रेणी का प्रमाणपत्र पाना चाहते हैं। विवाह की तैयारी के कार्यक्रम में शामिल हुये बिना विवाह संस्कार ग्रहण करना चाहते हैं। ड्राइविंग की परीक्षा दिये बिना ही ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करना चाहते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि दुःख और कष्ट के द्वारा ही हम विजयी बन सकते हैं।

प्रभु की पीड़ा उनके मानवजाति के प्रति प्यार का प्रतीक और प्रमाण है। उन्होंने कहा था, ”इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपने प्राण अर्पित कर दे“ (योहन 15:13)। सन्त पौलुस कहते हैं, ”धार्मिक मनुष्य के लिए शायद ही कोई अपने प्राण अर्पित करे। फिर भी हो सकता है कि भले मनुष्य के लिए कोई मरने को तैयार हो जाये, किन्तु हम पापी ही थे, जब मसीह हमारे लिए मर गये थे। इस से ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया है’’ (रोमियों 5:7-8)। इसी प्रकार सन्त योहन अपने सुसमाचार में येसु की प्राण पीड़ा का ज़िक्र करते हुए कहते हैं, ”वे अपनों को, जो इस संसार में थे, प्यार करते आये थे और अब अपने प्रेम का सबसे बड़ा प्रमाण देने वाले थे’’ (योहन 13:1)।

इस असीम प्यार के कारण ही वे अपने पिता से प्रार्थना करते हुए कहते हैं, ”हे पिता! इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं“ (लूकस 23:34)। यह मनन् चिन्तन का विषय है कि वे किसके लिए क्षमा माँग रहे थे- उस जनता के लिए जिसने उन्हें पकड़वाया, उस पिलातुस के लिए जिसने अपने हाथ धोकर, अपनी जिम्मेदारी को भूलकर लोगों को उनके साथ मनमानी करने दी और उन सैनिकों के लिए जिन्होंने निर्दयतापूर्वक उन्हें घसीटकर कलवारी पहाड़ी पर ले जाकर क्रूस पर चढ़ाया। मेरे और आपके लिए भी उन्होंने अपने पिता से क्षमा-याचना की क्योंकि प्रभु येसु आज भी जीवित है और हम अपने कुकर्मों से उनकी निन्दा करते रहते हैं। आइए हम दृढ़संकल्प करें कि पश्चात्ताप करके प्रभु की क्षमा के योग्य बनेंगे।

आज की दुनिया में लोग प्रेम को नहीं, बल्कि लाभ-हानि के गुणा भाग को प्राथमिकता देते हैं। हम यही सोचते रहते हैं कि हमें दूसरों से क्या फायदा मिल सकता है, क्या लाभ मिल सकता है? जब हम एक कुष्ट रोगी के हाथ में एक रुपये का सिक्का दूर से डाल देते हैं, तो हम सोचते हैं कि हम ने कुछ अच्छा कार्य किया हैं। लेकिन यह केवल अंकगणित मात्र है। हमारे हिसाब के अनुसार हमने एक रुपये का पुण्य कार्य किया हैं परन्तु प्यार पैसे की जगह हाथ देता है, हाथ मिलाता है। सच्चे प्यार में बलिदान निहित हैं बलिदान प्यार का प्रमाण है और आत्म बलिदान सबसे बड़ा प्रमाण है। इसलिए सन्त पौलुस कुरिन्थियों को लिखते हुए कहते हैं, ”मैं भले ही अपनी सारी संपत्ति दान कर दूँ और अपना शरीर भस्म होने के लिए अर्पित करूँ; किन्तु यदि मुझमें प्रेम का अभाव है, तो इस से मुझे कुछ भी लाभ नहीं“ (1 कुरिन्थियों 13,3)।

प्रभु येसु क्रूस पर मरते-मरते कहते हैं, ”सब कुछ पूरा हो चुका है“। अदृश्य ईश्वर के प्यार को मानव को दर्शाने का जो कार्य परम पिता ने उन्हें सौंप दिया था, उसे उन्होंने पूरा किया। क्रूस प्रभु के प्यार और बलिदान का चरम बिन्दु है। येरूसालेम में वे पकडे़ जायेंगे और मार डाले जायेंगे- यह जानकर भी प्रभु आगे बढ़ते हैं क्योंकि वह प्रेम का रास्ता था।

सन् 1973, नवम्बर 15 तारीख को कोलकाता के पास दुर्गापुर के एक स्कूल में एक भयानक घटना घटी। विद्यार्थियों ने किसी बात को लेकर हड़ताल की घोषणा की। उपद्रवकारियों ने स्कूल की चल-अचल सम्पत्ति को काफी नुकसान पहुँचाया। सभी अध्यापक और अन्य कर्मचारी भाग गये। लेकिन स्कूल के प्रधानाध्यापक श्री दासगुप्ता ने यह कहकर कि, ‘‘यह मेरा स्कूल है और इसकी रक्षा करना मेरा कर्त्तव्य है’’ भागने से इंकार कर दिया। हिंसाकारियों ने उन्हें पकड़कर एक कमरे में बन्द कर दिया और खिड़की से अंदर पेट्रोल डालकर आग लगा दी। वे जल कर मर गये। प्यार और ईमानदारी की कीमत! प्रभु भी मरने से डरते नहीं हैं। जब कुछ फ़रीसी लोग उनके पास जाकर यह कहते है कि वे वहाँ से चले जायें क्योंकि राजा हेरोद उन्हें मार डालने के लिए ढूंढ़ रहे हैं, तो प्रभु निडर होकर कहते हैं, ”जाकर उस लोमड़ी से कहो- मैं आज और कल नरकदूतों को निकालता और रोगियों को चंगा करता हूँ और तीसरे दिन मेरा कार्य समापन तक पहुँचा दिया जायेगा। आज, कल और परसों मुझे यात्रा करनी है।“

पुण्यशुक्रवार का यह त्योहार हमारे सामने एक चुनौती रखता है- ‘‘प्यार की कीमत जानकर भी प्यार करना’’। हम में अधिकत्तर लोग छोटे-छोटे क्रूस अपने शरीर पर धारण करते हैं। हम उसे अपनी धार्मिक पहचान मानते हैं। लेकिन हमारी वास्तविक पहचान बलिदान भरे जीवन में है। हमारा जीवन रास्ता ही क्रूस मार्ग है। आइए हम ईश्वर से कृपा माँगे कि वे हमें धीरज और शक्ति प्रदान करें ताकि हम अपने दैनिक जीवन के क्रूस को सहर्ष स्वीकार करें।


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Praise the Lord!