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चक्र स - 34. पास्का का छठवाँ इतवार

प्रेरित चरित 15:1-2, 22-29; प्रकाशना 21:10-14, 22-23; योहन 14:23-29

(फादर मेलविन चुल्लिकल)


आज के सुसमाचार में प्रभु येसु हमें दो बातें कहते हैं। वे हमें एक सहायक अर्थात पवित्र आत्मा प्रदान करेंगे और शांति प्रदान करेंगे।

संत योहन के सुसमाचार अध्याय 14 वाक्य 16 में हम पढ़ते हैं, ’‘मैं पिता से प्रार्थना करूँगा और वह तुम्हें एक दूसरा सहायक प्रदान करेगा जो सदा तुम्हारे साथ रहेगा।’’ यहाँ पर पवित्र आत्मा को दूसरा सहायक बताया गया है। तो फिर पहला सहायक कौन है? पहला सहायक स्वयं प्रभु येसु खीस्त हैं। पिता के पास हमारा एक सहायक विद्यमान हैं अर्थात धर्मात्मा ईसा मसीह (1 योहन 2:1)। येसु खीस्त हमारे लिए एक सहायक हैं क्योंकि उन्होंने हमें ईश्वरीय प्यार की गहराईयों को समझाया और ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता बताया।

यहूदी लोगों की परंपरा के अनुसार ईश्वर महान है तथा उसकी आराधना वे बहुत भक्ति भाव से करते थे। ईश्वर के प्रति उनका आदर इतना ज़्यादा था कि वे उनका नाम लेने से भी डरते थे। लेकिन प्रभु येसु ने उनके सामने ईश्वर का एक दूसरा चित्र प्रस्तुत किया- पापियों को प्यार करने वाला ईश्वर, करुणा और दया में विद्यमान ईश्वर, निर्बलों को सहारा देने वाला ईश्वर। इन सब विशेषणों को प्रकट करने के लिए उन्होंने ईश्वर को ’अब्बा’ कह कर पुकारना सिखाया। उन्होंने लोगो को यह भी समझाया कि ईश्वर का प्रेम उनकी सोच के परे है।

दूसरे सहायक पवित्र आत्मा भी हमारी मदद करेंगे। येसु ने अपने शिष्यों से कहा ’‘वह पवित्र आत्मा तुम्हें सब कुछ समझा देगा। मैंने जो कुछ बताया, वह उसका स्मरण दिलायेगा।’’ यह दोनों बहुत महत्वपूर्ण बातें हैं। हमारा आचरण ठीक करने के लिए हमें येसु द्वारा बतायी गयी बातों को समझना चाहिए और साथ ही साथ उनका स्मरण करते रहना चाहिए। अगर ईशवचन को हम अपने कामकाज़ में प्रदर्शित करते हैं तो हम कभी गलत रास्ते पर नही जायेंगे।

एक सेमिनरी में ब्रदर लोगों की परीक्षा लिख रहें थे। परीक्षक पुरोहित ने उनसे कहा, ’’एक घंटे की परीक्षा है; पहला आधा घंटा आप लोग पवित्र आत्मा के बारे में लिखिये और दूसरा आधा घंटा शैतान के बारे में’’। उन में से एक ब्रदर उनसठ मिनिटों तक पवित्र आत्मा के बारे में लिखता गया और आखि़री एक मिनिट में उसने ऐफ़ेसियों के नाम संत पौलुस के पत्र से एक वाक्य लिखा ‘’शैतान को अवसर नहीं देना चाहिए’’ (ऐफ़ेसियों 4:27)। पवित्र आत्मा हमेशा हमारे संरक्षक बने रहेंगे।

आज के सुसमाचार के अनुसार पवित्र आत्मा के वरदान के अलावा प्रभु येसु हमें शांति प्रदान करते हैं। ज्यादातर लोग सोचते हैं, शांति का मतलब है युद्ध का न होना। लेकिन हम जानते हैं कि जिस राज्य में युद्ध नहीं है वहाँ पर भी लोग कभी-कभी अशांति महसूस करते हैं। आज कल शांति पाने के लिए लोग विभिन्न सांसारिक चीज़ों की मदद लेते हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि पैसे से शांति मिलती है। लेकिन हम जानते हैं कि विदे्शों के धनी लोग शांति पाने के लिए भारत आते हैं। उनके पास पैसे की कमी नहीं है। अगर पैसा उन्हें शांति देता है तो उन्हें यहाँ आने की ज़रूरत ही क्या हैं? कुछ लोग शांति पाने के लिए शराब का सहारा लेते हैं लेकिन जब शराब का नशा उतर जाता है तो उन्हें इस बात का एहसास होता है कि वे कितने गलत थे। वास्तव में शराब के नशे में वह शांति और अशांति का अंतर भी नहीं समझ पाता है।

येसु द्वारा हमें मिलने वाली शांति इनमें से कुछ अलग है। वह शाश्वत और स्थिर है। उस शांति को कठिनाईयों से गुज़रते हुए भी हम दिल में महसूस करते हैं। उसे हम ज़िन्दगी के आँधी-तूफान के बीच में भी हृदय में अनुभव करते हैं। वह हमें अच्छे-अच्छे काम करने के लिए प्रेरणा देती है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम जीवन में हमे्शा खु्श रहेंगे। हमें कठिनाईयों का सामना करना पडे़गा, दुःख तकलीफें झेलनी पड़ेगी, फिर भी हमारे दिल के अंतरतम में हम शांति महसूस करेंगे। आदि खीस्तीय समुदाय इसका एक उत्तम नमूना है। जब अत्याचारियों ने खीस्तीय लोगों के हाथ पैर खम्भे से बाँधकर चारों तरफ़ आग लगायी, सिहों के गड्ढें में उन्हें फेंक दिया और उनपर विभिन्न प्रकार के अत्याचार किये तो अपने प्रभु और गुरुवर का नमूना स्वीकार करते हुए खीस्तीय भाई-बहिनों ने शांति भाव से सब कुछ सहन किया। यहाँ तक की मृत्यु को भी ईश्वर की स्तुति करते हुए अपनायी। उन्होंने कभी किसी से शिकायत भी नहीं की। यह था ईश्वरीय शांति का अनुभव, येसु की शांति की विशेषता। जब इस शांति का अनुभव होता है, तब बाहरी समस्याओं या संकटों से हमारा दिल कभी घबरायेगा नहीं।

आइए आज हम पवित्र आत्मा और शांति के वरदान के लिए प्रार्थना करें ताकि हम येसु द्वारा बताये गये मार्ग पर चल सकें और उनके द्वारा प्रदान की गयी शाश्वत शांति अपने दिल में महसूस कर सकें।


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