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चक्र स - 34. पास्का का छठवाँ इतवार

प्रेरित चरित 15:1-2, 22-29; प्रकाशना 21:10-14, 22-23; योहन 14:23-29

फादर डेन्नीस तिग्गा


प्रभु ईश्वर ने मूसा को दस नियम दिये और उनमें से पहला नियम सम्पूर्ण संहिता और हमारे जीवन के लिए सबसे बड़ी आज्ञा है। ‘‘ईसा ने उस से कहा, ‘अपने ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो। यह सब से बड़ी और पहली आज्ञा है’’’ (मत्ती 9:36)। हमारे जीवन में अशांति, तनाव, अधूरापन, असंतुष्टि इत्यादि का कारण यही है कि हम अपने जीवन में ईश्वर की सबसे बड़ी आज्ञा का पालन नहीं करते हैं। पुनरुत्थान के बाद प्रभु येसु ने पेत्रुस से तीन बार यह प्रश्न किया कि क्या तुम मुझे प्यार करते हो? (योहन 21:15-17)। आज प्रभु येसु हम सब से भी यही प्रश्न करते हैं कि क्या हम उन्हें प्यार करते हैं? अगर हम किसी ख्रीस्तीय से पूछे कि क्या आप येसु को प्यार करता है, तो उसका जवाब यही होगा - हाँ, मै करता हूँ या करती हूँ। परन्तु हमको यह कैसे मालूम हो जायेगा कि कौन प्रभु से सबसे अधिक या सच्चा प्रेम करता है। आज का वचन कहता है, ‘‘यदि कोई मुझे प्यार करेगा, तो वह मेरी शिक्षा पर चलेगा।’’ अगर हम किसी से अत्याधिक प्रेम करते हंत तो वह व्यक्ति हम से जो भी कहता है हम वही करते हैं - चाहे वह सही काम हो या बुरा। ठीक उसी प्रकार प्रभु की शिक्षा पर चलना यह दर्शाता है कि हम उनसे प्रेम करते हैं। प्रेम का प्रकटीकरण हमारे कार्यों द्वारा होता है। आज बहुत सारे लोग ख्रीस्तीय हैं, इसाई हैं, परन्तु क्या सभी ख्रीस्तीय प्रभु से प्रेम करते हैं? यह एक प्रश्न चिन्ह है। जो ख्रीस्तीय सचमुच में ईश्वर से प्रेम करते हैं, वह प्रेम उनके जीवन में, उनके व्यवहारों में प्रकट हो जाता है। क्योंकि येसु की दूसरी आज्ञा है ‘‘अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो।’’

हम सब येसु से प्रेम करते हैं - यह सत्य है परन्तु यह भी सत्य है कि हम दूसरी चीज़ो से भी प्रेम करते हैं। इसलिए जरुरत आने पर अपनी सुविधा के अनुसार हम कुछ शिक्षा का पालन करते हैं और कुछ का नही। अर्थात् हमारा प्रेम बटां हुआ है। प्रभु येसु कहते हैं, ‘‘कोई भी दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता। वह या तो एक से बैर और दूसरे से प्रेम करेगा, या एक का आदर और दूसरे का तिरस्कार करेगा’’ (मत्ती 6:24)। ‘‘जो अपने पिता या अपनी माता को मुझ से अधिक प्यार करता है, वह मेरे योग्य नहीं।’’(मत्ती 10:37)। हम प्रभु से प्रेम तो करते हैं परन्तु सम्पूर्ण दिल से प्रेम नहीं करते। इसलिए जब कभी हमारे जीवन में कुछ संकट, कठिनाई आती है तब हम विचलित हो जाते हैं। परन्तु प्रभु का वचन कहता है ‘‘यदि तुमने मेरी आज्ञाओं का पालन किया होता, तो तुम्हारी सुख-शांति नदी की तरह उमड़ती रहती और तुम्हारी धार्मिकता समुद्र की लहरों की तरह’’ (इसा0 48:18)।

आज के सुसमाचार के अनुसार प्रभु इस संसार से जाते जाते हमें दो और उपहार दे कर गये। पहला पवित्र आत्मा की प्रतिज्ञा और दूसरा अपनी शांति। पवित्र आत्मा का आगमन हम पेन्तेकोस्त के दिन पाते हैं जहाँ पर माँ मरियम के साथ शिष्यगण प्रार्थना कर रहे थे और पवित्र आत्मा उन पर उतरा (प्रे0 च0 2)। यह इस बात का साक्ष्य है कि प्रभु ईसा ने हमें इस संसार में अकेला नहीं छोड़ा है परंतु हमारे लिए एक सहायक प्रदान किया है जिससे हम इस आधुनिक संसार में भी उसके वचनों पर चल सकें और उनके कार्य को आगे बढ़ा सकें। पवित्र आत्मा की सहायता के बिना पवित्र जीवन बिताना असंभव है। इसके साथ साथ प्रभु येसु अपनी शांति हम सभी के लिए छोड़ कर जाते हैं। यह शांति इस संसार की शांति जैसी नहीं है, परंतु दिव्य शांति है जो किसी और से प्राप्त नहीं हो सकती। इस आधुनिक दुनिया में सब कोई शांति की खोज में है, बहुत लोगों के पास सब कुछ है परंतु शांति नहीं है। और यह शांति सिर्फ प्रभु ईसा से प्राप्त हो सकती है।

आज के वचनों के द्वारा ईसा अपने शिष्यों को उस दिन के लिए तैयार करते हैं जब वे शारीरिक रूप से इस संसार में नहीं रहेंगे। जिनको बाद में होने वाली घटना का ज्ञान न हो तो उनके लिए उस समय येसु का उन से दूर चले जाना जीवन का सबसे बड़ा झटका था और बहुत ही दुविधा भरा समय था। इसलिए प्रभु उन्हें आने वाले समय के लिए तैयार करते हैं।

प्रभु येसु अपने अनुयाइयों को लौकिक या भौतिक वस्तुओं पर आसक्त न रह कर उसके साथ गहराई पूर्ण रिश्ते में जुड़ने के लिए आमंत्रित करते हैं। अक्सर हम पुरानी चीजों को छोड़कर नयी चीजों को अपनाना नहीं चाहते जिससे हम पुराने जीवन में जीते रहते हैं और अपने वर्तमान को मृत्यु की ओर अग्रसर करते जाते हैं। आईये हम प्रभु ईसा के द्वारा हमारे जीवन में होने वाले पवित्र आत्मा के नये कार्य पर हम दृष्टि लगायें। प्रभु ईश्वर हम सबसे कहते हैं, ’’पिछली बातें भुला दो, पुरानी बातें जाने दो। देखो, मैं एक नया कार्य करने जा रहा हूँ। वह प्रारम्भ हो चुका है। क्या तुम उसे नहीं देखते?’’(इसा0 43:19)। आइए हम अपने जीवन में हमारे लिए ईश्वर की योजनाओं को समझने के लिए पवित्र आत्मा से सहायता माँगें।


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