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चक्र स - प्रभु का स्वर्गारोहण

प्रेरित चरित 1:1-11; एफ़ेसियों 1:17-23; लूकस 24:46-53

फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)


मनन-चिंतन

स्वर्गारोहण का पर्व अपने आप में एक खास पर्व है जिस दिन हमारे मुक्तिदाता प्रभु येसु ख्रीस्त अपना मुक्तिकार्य सम्पन्न कर इस संसार से आरोहित कर लिये जाते हैं। स्वर्गारोहण की बात जब आती है तब यहूदियों के ब्रह्माण्ड शास्त्र को समझना गौरतलब है। यहूदियों के मतानुसार तीन लोक होते हैं - पृथ्वी लोक, स्वर्गलोक और अधोलोक। प्रभु येसु के स्वार्गारोहण के संदर्भ में इन तीनों लोकों को एक अलग-अलग अस्तित्व में देखते हुए यह कहना उचित नहीं होगा कि येसु इस लोक को पूरी तरह छोडकर दूसरे लोक में चले गये। और यूं कहें कि अपने स्वर्गारोहण के बाद प्रभु येसु इस दुनिया में अपनी अनुपस्थिति छोड गये। नहीं, येसु के स्वर्गारोहण के समय कुछ हट कर और विशेष कार्य सम्पन्न होता है। उनका पुनरूत्थान, स्वर्गारोहण और पवित्र आत्मा का प्रेरितों पर उतरना ये तीनों घटनायें एक दूसरे से बेहद जुडी हुई हैं। पुनरूत्थान के बाद प्रभु येसु का शरीर रूपान्तरित हो जाता है। जो है तो शरीर पर उसे साधारण मानवीय ऑंखें पहचान नहीं पाती। वे उन्हें कोई आत्मा समझ बैठते हैं। तब वे उनके सामने भूनी हुई मछली का एक टुकडा खाते हैं और उनकी ऑंखों का भ्रम दूर करते हैं। (संत लूकस 24:36-42)। जैसे उनका वह शरीर जो योहन 1:14 के अनुसार कुँवारी के गर्भ में देह धारण करता है वह अब रूपान्तरित होकर एक पुनरूत्थित शरीर बन जाता है। अपने स्वर्गारोहण में वैसे ही येसु इस दुनिया की वास्तविकता को स्वर्गीक वास्तविकता में तब्दील कर देते हैं। अपने ’पिता हमारे’की प्रार्थना में प्रभु येसु इसी की कामना करते हुए कहते हैं - हे पिता तेरा राज्य इस धरती पर आये। तो हमारी मुक्ति का अर्थ इस पापमय संसार से छुटकारा पाकर कहीं दूसरे लोक में बच भागना नहीं, पर ईश्वर द्वारा हमारे इस संसार को एक नया रूप देना है, उनका राज्य हमारे बीच स्थापित करना है। जैसा कि स्तोत्रकार स्तोत्र 57:12 में कहता है - समस्त पृथ्वी पर तेरी महिमा प्रकट हो। इसे समझने के लिए हमें पेंतेकोस्त के दिन जो होता है उसपर ध्यान देना ज़रूरी है। ये दोनों घटनायें याने प्रभु का स्वर्गारोहण और पवित्र आत्मा का उतरना एक दूसरे से घनिष्टता से जुडी हुई है। इन दोनों घटनाओं में, येसु दुनिया से स्वर्ग जाते हैं और स्वर्ग से पवित्र आत्मा नीचे आता है। तो येसु मसीह का स्वर्गारोहण इस लोक से किसी अन्य लोक में जाना नहीं परन्तु दुनियाई वास्तविकता को स्वर्गिक वास्तविकता में परिवर्तित करना है। यह स्वर्ग और पृथ्वी का मिलन है। यहॉं पृथ्वी का स्वर्ग के द्वारा रूपान्तरण होता है। स्वर्गिक शक्ति दुनिया को रूपान्तरित करती है।

दोनों स्वर्गारोहण और पेंतेकोस्त में येसु मसीह के शरीर का ही रूपान्तरण होता है। आज के पहले पाठ में संत पौलुस कलोसियों 1:24 में कहते हैं कि कलीसिया मसीह का शरीर और उनकी परिपूर्णता है। मसीह सब कुछ, सब तरह से पूर्णता तक पहुँचा देते हैं। यदि कलीसिया मसीह का शरीर है तो पेंतेकोस्त के दिन कलीसिया रूपी मसीह के शरीर को मसीह ने अपना आत्मा भेज कर परिपूर्णता प्रदान की है। इससे हमको यह समझ में आता है कि येसु अपने स्वर्गारोहण के द्वारा कलीसिया को रूपान्तरित करते हैं, पवित्र करते हैं, परिपूर्ण करते हैं और एक नया रूप देते हैं। वे धरती पर की कलीसिया को स्वर्गिक कलीसिया से जोडते हैं। जिसे पवित्र मिस्सा बलिदान की अवतरणिका में पुरोहित व्यक्त करते हुये कहते हैं कि हम स्वर्ग के समस्त दूतगणों के स्वर में अपना स्वर मिलाते हुए तेरा गुणगान करते और गाते हैं - पवित्र, पवित्र, पवित्र प्रभु विश्वमंडल के ईश्वर...।

प्रभु येसु का स्वर्गारोहण इस प्रकार से उनके धरती छोडकर जाने को नहीं परन्तु उनके द्वारा इस कलीसिया को स्वर्गिक कलीसिया से जोडने की एक कडी है। और हर एक विश्वासी के लिए एक आह्वान है कि हमें येसु के इस कार्य को अपने जीवन में आगे बढाते रहना है। हमें स्वर्ग और धरती को एक साथ लाने या जोडने के येसु के मिशन को आगे बढाना है। तब हम भी एक दिन प्रभु येसु के समान अपने पुनरूत्थित शरीर में सर्वशक्तिमान के स्वर्गिक सिंहासन के सामने खडे होकर उनकी महिमा के दर्शन करेंगे। आमेन।


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