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चक्र स - 38. पेन्तेकोस्त का इतवार (दिन की मिस्सा)

प्रेरित-चरित 2:1-11; रोमियों 8:8-17; योहन 14:14-16, 23ब-26

(फादर लियो बाबू)


हमारे जीवन में पवित्र आत्मा की भूमिका क्यों है? दूसरे शब्दों में पूछे तो आपके अनुसार पवित्र आत्मा को हमारे जीवन में कौन सी भूमिका निभानी चाहिए? वह हमेशा हमारे जीवन में रहते हैं और सदैव सक्रिय हैं। परन्तु क्या वास्तव में हम उनकी उपस्थिति से वाक़िफ हैं? क्या हम उनकी उपस्थिति का अनुभव हमारे जीवन में करते हैं?

आज हम पेन्तेकोस्त का पर्व मना रहे हैं। इस पर्व को मनाने का एक कारण यह भी है कि इस दिन हम पवित्र आत्मा के बारे में अधिक जानें, समझें और हमारे जीवन में उनकी भूमिका की महत्ता का एहसास करें। आज की पूजन-विधि के तीनों पाठ हमारी इस कोशिष में सहायक हैं। प्रत्येक पाठ हमें पवित्र आत्मा के बारे में महत्वपूर्ण बातें समझाता है। संत लूकस के सुसमाचार और प्रेरित चरित लिखने का उद्देश्य यह बताया जाता है कि खीस्तीय धर्म सर्व भौमिक है। जो प्यार खीस्तीय धर्म हमारी मुक्ति के लिए हमें देता है वह हर जगह, हर किसी के लिए और हर युग के लिए है। लेकिन उस मुक्तिदायक प्यार को फैलानेवाला, कर्ता या कारण पवित्रात्मा ही है।

सन्त लूकस के सुसमाचार में हमें इसका उदाहरण मिलता है। विशेषकर हम प्रारंभिक कलीसिया के इतिहास में पवित्रात्मा की शक्ति का वर्णन पाते हैं। आज की पूजन-विधि का पहला पाठ इसमें सबसे महत्वपूर्ण है। अपने पहले दर्शन से ही पवित्रात्मा पूरे विश्वासी समुदाय के द्वारा समस्त मानवजाती के लिए शुभ-संदेश लाता है।

सन्त लूकस के अनुसार पेन्तेकोस्त का यह अनुभव कलीसिया की विधिक्त शुरूआत है तथा पवित्रात्मा के सहयोग से पूरे संसार में यह शुभ संदेश सुनाने का समर्पण है। परन्तु जैसे संत पेत्रुस अपने पहले संबोधन में कहते हैं कि प्रभु के मुक्तिप्रद मरण से ही हमें पवित्र आत्मा प्राप्त होता है। पवित्रात्मा प्रभु येसु के मुक्तिदायक प्यार को हमारे पास लाता है। जो प्रभु येसु में विश्वास करते हैं, उन सबकी आत्मा का यह वरदान मिलता है। यदि हम वास्तव में कहें कि हम प्रभु येसु में विश्वास करते हैं तो इससे हमें मालूम होता है कि पवित्रात्मा हम में कार्यरत है। जैसा ही संत पौलुस कुरिन्थियों को लिखते हुए कहते हैं कि पवित्रात्मा को छोड़कर कोई भी यह नहीं कह सकता है कि येसु ही प्रभु है (1 कुरि 12:3)।

खीस्तीय होने के नाते हमें आत्मा के इस विश्वास को फैलाना है। यदि हम ऎसा कर पाते हैं तो यह निश्चित है कि हम पर पेन्तेकोस्त का अगमन हुआ है।

संत पौलुस के कुरिन्थियों के नाम के पत्र में हम मुख्य रूप से पवित्रात्मा के दो गुणों को देखते हैं। सबसे पहला गुण यह है कि पवित्रात्मा विश्वासियों पर विशेष वरदान बरसाता है। इनमें से कुछ वरदान असाधरण होते हैं जैसे कि विभिन्न भाषाएं बोलना आदि। परन्तु पवित्रात्मा के अधिक्तर वरदान सामान्य होते हैं जिनका सम्बन्ध हमारे दैनिक जीवन से हैं, जैसे कि पढ़ना, शिक्षा देना, सहायता करना, दूसरो की सेवा करना आदि। कहने का तात्पर्य यह है कि खीस्तीय होने के नाते हम जे भी भलाई के कार्य करते हैं उनके द्वारा पवित्रात्मा हम में क्रियाशील है। यह उसका वरदान है। पवित्रात्मा के वरदान को पहचानने की सबसे बड़ा पैमाना यह है कि हमारे कार्य दूसरों की भलाई के लिए हाना चाहिए। पवित्रात्मा के वरदान किसी समूह विशेष के लिए नहीं परन्तु उन सबों के लिए है जो विश्वास करते हैं और उनके अनुसार कार्य करते हैं। इसलिए संत पौलूस कहते हैं कि सबसे महान वरदान प्यार है।

पवित्रात्मा का दूसरा महत्वपूर्ण गुण एकता प्रदान करने की शक्ति है। वह लोगों में एकता प्रदान करता है। हम सब एक ही शरीर और एक ही आत्मा का बप्तिस्मा ग्रहण करते हैं। दुनिया के सभी खीस्त विश्वासियों में अलग अलग वरदान होते हुए भी हम सब एक ही शरीर - अर्थात प्रभु के अंग हैं। हमें उस एकता में बांधने वाली शक्ति पवित्रात्मा है।

आज का सुसमाचार हमें बताता है कि पवित्रात्मा हमारे पापों की क्षमा देता है। पवित्रात्मा ही प्रेरितों और उनके उतराधिकारियों का पापों को क्षमा प्रदान करने की शक्ति प्रदान करता है। जब कभी हम एक दूसरे को क्षमा करते हैं, हम आत्मा की शक्ति से ही यह कार्य सम्पन्न करते हैं। हमारा विश्वास कितना भी कमजोर क्यों न हो, हमारे सेवा-कार्य कितने ही छोटे और नगन्य कयों न हो, यदि हम दूसरों से जुडे रहते हैं, उन्हे क्षमा करते हैं जो हमें दुख देते हैं तो हमें यह समझना चाहिए कि पवित्रात्मा हमारे अन्दर विधायमान है और हम सब में कार्यरत है।

आज हम पेंन्तेकोस्त का पर्व मनाते हुए आनंदित है क्योंकि पवित्रात्मा हमारे दुखों में हमारी निराशा में हमें सहायता और सान्तवना देता है। वह हमें हमारे अन्दर की सभी बुराइयों से शुद करता और हमें एकता में बांध रखता है। वह हमारे अन्दर नवजीवन का संचार करता और हमें प्रेरणा देता है। ऐसे आत्मा से सहायता मांगने, उसकी शरण में जाने से हम न हिचकिचाए, क्योंकि वह किसी का गुलाम नहीं, वह किसी विशेष वर्ग, समूह के लिए नहीं वरन हम सबों के लिए हैं। उसी आत्मा से हम नित्य प्रार्थना करें विशेषकर आज के दिन कि वह हमारे दिलों में सदैव निवास करे और हमारे जीवन में क्रियाशील रहे व हमारे जीवन का संचालन करें। आमेन।


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