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चक्र स - 42. वर्ष का ग्यारहवाँ इतवार

2 समूएल 12:7-10,13; गलातियों 2:16,19-21; लूकस 7:36-8:3 या 7:36-50

(फादर फ्रांसिस स्करिया)


दाऊद इस्राएल के सबसे शक्तिशाली राजा थे। ईश्वर ने उन्हें साऊल के हाथ से बचाया और हर प्रकार की सहायता प्रदान की। लेकिन दाऊद ईश्वर के बताए हुए मार्ग से भटक जाते हैं और प्रभु का तिरस्कार करते हैं। उन्होंने अपने सैनिक ऊरीया की पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया और इस के लिए वे ऊरीया को मार डालते हैं। ईश्वर नातान को दाऊद के पास भेजकर एक दृष्टान्त द्वारा उन्हें अपने पापों की कठोरता का एहसास कराते हैं। दाऊद ने व्यभिचार और हत्या के घोर अपराध किये थे। उन्होंने एक विवाहित से उसकी पत्नी छीन ली और उसे मारा डाला। बाइबिल में दिया गया विवरण पढ़कर हमें यह ज्ञात होता है कि दाऊद का अपराध बहुत ही कठोर था। लेकिन दाऊद की महानता इसमें है कि उन्होंने अपना पाप तुरन्त ही स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा, ’’मैंने प्रभु के विरुद्ध पाप किया है’’। ईश्वर उन्हें पापों की क्षमा तो प्रदान करते हैं, परन्तु उन्हें इसकी सजा तो भोगनी पड़ती है। उनके पाप में उत्पन्न पुत्र की मृत्यु होती है। दाऊद का पश्चाताप उन्हें पुनः प्रभु की दृष्टी में मान्यता प्रदान करता है। दाऊद का जीवन हमें यह सिखाता है कि हमें हमेशा प्रलोभनों से सतर्क रहना चाहिए। प्रलोभन किसी के भी जीवन में आ सकता है। जो कोई ईश्वर को भूल जाता है, वह गिर सकता है और उसका पतन बहुत दयनीय होगा। फिर भी किसी भी पापी को प्रभु के पास अनुतापपूर्ण हृदय से प्रभु के पास लौटने का मौका है। प्रभु गिरे हुये को उठाते है और पश्चातापी को पुनः वापस लाते है।

आज का सुसमाचार पापिनी स्त्री की प्रभु से मुलाकात का विवरण प्रस्तुत करता है। इस विवरण में एक तरफ अपने को धर्मी माननेवाला फ़रीसी सिमोन के हृदय में छुपी बुराई को प्रभु हमारे सामने लाते हैं तो दूसरी तरफ पापिनी स्त्री का पापमुक्त करानेवाला पश्चाताप प्रकट होता है।

संत लूकस के सुसमाचार में हम प्रभु येसु को कई बार भोजन पर बैठे पाते है। भोजनों के अवसरों पर प्रभु अपनी शिक्षा प्रदान करते है। ज्यादातर फ़रीसी लोग येसु के खिलाफ थे। यहाँ यह एक प्रकार का विरोधाभास ही है कि फ़रीसी सिमोन ने प्रभु को निमंत्रण दिया। लेकिन जब प्रभु आते है, तो सिमोन यहूदियों की परम्परा के अनुसार उनका सेवासत्कार नहीं करता है। प्रभु को पैर धोने के लिए पानी नहीं दिया, उनके कंधे पर हाथ रखकर उन्हें शांति का चुम्बन नहीं दिया, उनके सिर पर तेल नहीं लगाया। उसने प्रभु के प्रति प्यार दिखाने में कंजूसी की। लेकिन पापिनी स्त्री ने अत्याधिक प्यार दिखाते हुए अपने आसुओं से उनके पैर धोये और अपने केषों से पोंछे। वह प्रभु के पैर चूमती रही और उनके पैरों पर इत्र लगाया।

इस प्रकार सुसमाचार का लेखक फ़रीसी सिमोन और पापिनी स्त्री को आमने-सामने कर देता है। विश्वासी लोगों को यह चयन करना है कि उन्हें किस प्रकार का व्यवहार अपनाना चाहिए।

हम सब पापी है। परन्तु जब हम विनम्रता से अपने पापों को दाऊद या पापिनी स्त्री के समान स्वीकार करते है, तब हम प्रभु की क्षमा का अनुभव करने लगते हैं। परन्तु अगर हम फ़रीसी सिमोन के समान प्रभु से दूर रहते हैं तो प्रभु से पापों की क्षमा प्राप्त करना असंभव है।


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