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चक्र स - वर्ष का सोलहवाँ इतवार

उत्पत्ति 18:1-10; कलोसियों 1:24-28; लूकस 10:38-42

फादर फ्रांसिस स्करिया


प्रभु के चरणों में बैठ कर उनकी शिक्षा सुनना बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य होता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश डॉ. कुरियन जोसेफ़ रोज मिस्सा बलिदान में भाग लेते हैं। उनसे एक बार पूछा गया कि रोज मिस्सा बलिदान में भाग लेने के लिए आपको समय कहाँ से मिलता है। उन्होंने कहा कि मिस्सा बलिदान में भाग लिये बिना किसी दिन को शुरू करना मेरे लिए बहुत ही मुशकिल है। जब मैं मिस्सा बलिदान में भाग लेता हूँ तब प्रभु मुझे इतनी कृपा प्रदान करते हैं कि मेरे लिये विभिन्न कामों को करना बहुत ही सरल बन जाता है। प्रभु मेरी सहायता करते हैं। न्यायाधीश कुरियन जोसेफ अपने बच्चों से कहते हैं कि परीक्षा के दिन मिस्सा बलिदान में भाग लेना बहुत ही जरूरी है। मिस्सा बलिदान से प्राप्त कृपा के साथ आप परीक्षा सरलता से लिख सकते हैं क्योंकि पवित्र आत्मा जो सहायक है आपकी मदद करेंगे। कई लोग प्रार्थना में समय बिताना नहीं चाहते हैं। उनको लगता है कि वह समय की बरबादी है तथा उस समय उन्हें कुछ काम करना चाहिए।

आज के सुसमाचार में हम देखते हैं कि प्रभु येसु ने बेथानिया में मरथा, मरियम और लाज़रुस के घर में प्रवेश किया। तब मरथा सेवा-सत्कार के अनेक कार्यों में व्यस्त थी जबकि मरियम प्रभु के चरणों में बैठ कर उनके वचन सुन रही थी। मरथा को लगता है कि वही सही कार्य कर रही है और मरियम उसकी सहायता नही कर रही है। वह प्रभु के पास आकर शिकायत करती है, "प्रभु! क्या आप यह ठीक समझते हैं कि मेरी बहन ने सेवा-सत्कार का पूरा भार मुझ पर ही छोड़ दिया है? उस से कहिए कि वह मेरी सहायता करे।" प्रभु ने उत्तर दिया, "मरथा! मरथा! तुम बहुत-सी बातों के विषय में चिन्तित और व्यस्त हो; फिर भी एक ही बात आवश्यक है। मरियम ने सब से उत्तम भाग चुन लिया है; वह उस से नहीं लिया जायेगा।"

मरथा और मरियम दोनों प्रभु येसु से प्रेम करते हैं। वे दोनों अपने-अपने तरीके से येसु के प्रति अपने प्रेम को प्रकट करती हैं। मरथा येसु के सेवा-सत्कार लगी रहती है। मरियम येसु के प्रति प्रेम उनके साथ रह कर प्रकट करती है। मुझे लगता है कि फ़रक इस बात में है कि मरथा येसु के प्रति अपने प्यार को प्रकट करती है, जबकि मरियम येसु के प्यार को अनुभव करने का प्रयत्न करती है। जब हम इस बात को समझने लगेंगे, तब हमें पता चलेगा कि येसु ने क्यों कहा कि मरियम ने सब से उत्तम भाग चुन लिया है। प्रभु येसु के प्रेम में लीन होना बहुत ही महत्वपूर्ण अनुभव होता है।

इस संदर्भ में यूखारिस्तीय आराधना के महत्व को भी हम समझ सकते हैं। आराधना के समय हम प्रभु ईश्वर के प्यार में लीन हो जाते हैं। संत पापा योहन पौलुस द्वितीय कहते हैं, “यूखारिस्तीय आराधना मानवीय हृदय में दुनिया का सब से दयामय और मुक्तिदायक परिवर्तन है”।

अक्टूबर 20, 2016 को मिस्सा बलिदान के दौरान संत पापा फ्रांसिस ने कहा, “शांतिपूर्ण रूप से यूखारिस्तीय आराधना में भाग लेना प्रभु को जानने का तरीका है। अमेरिका के मशहूर महाधर्माध्यक्ष फ़ुल्टन जे. शीन अपने व्यस्त जीवन में रोज कम से कम एक घंटा पवित्र यूखारिस्त के सामने बिताते थे। कलकत्ता की संत तेरेसा का कहना है कि यूखारिस्तीय आराधना का समय इस दुनिया के हमारे जीवन का सर्वोत्तम समय है और उस समय हमारी आत्मा और शरीर को एक नयी स्फ़ूर्ति, नयी चेतना और नयी शक्ति प्राप्त होती है। जब आप क्रूसित येसु की तस्वीर पर दृष्टि डालते हैं, तब आपको पता चलता है कि येसु ने आपको कितना प्यार किया था। मगर जब हम पवित्र यूखारिस्त पर दृष्टि डालते है, तब हमें पता चलता है कि अब, इस क्षण में येसु हमको कितना प्यार करते हैं।

इसी प्रकार का अनुभव स्तोत्रकार का भी था। इसलिए वह कहता है, “हजार दिनों तक और कहीं रहने की अपेक्षा एक दिन तेरे प्रांगण में बिताना अच्छा है। दुष्टों के शिविरों में रहने की अपेक्षा ईश्वर के मन्दिर की सीढ़ियों पर खड़ा होना अच्छा है; क्योंकि ईश्वर हमारी रक्षा करता और हमें कृपा तथा गौरव प्रदान करता है। वह सन्मार्ग पर चलने वालों पर अपने वरदान बरसाता है।“ (स्तोत्र 84:11-12)


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