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चक्र स - 49. वर्ष का अठारहवाँ इतवार

उपदेशक 1:2, 2:21-23; कलोसियों 3:1-5, 9-11; लूकस 12:13-21

(फादर मरिया स्टीफन)


एक बार तीन क़रीबी मित्र एक साथ काम ढूँढ़ने निकले। रास्ते में उन्हें एक ख़ज़ाना मिला। तीनों की दृष्टि उस ख़जाने पर एक साथ पड़ी। अतः तीनों ने ही उस पर अपना अपना हक़ समझा। उनमें से एक मित्र भोजन लेने चला गया। बाक़ी दोनों मित्रों ने उसे छल से मार डालकर ख़ज़ाना आपस में रखने की सोची। उसके लौटने पर उन्होंने ऐसा ही किया और उसके लाये भोजन को खाते ही स्वयं भी मर गये क्योंकि भोजन में विष था।

इतिहास साक्षी है कि कोई भी अमीर व्यक्ति अपना अस्तित्व और स्तर सुरक्षित नहीं रख पाया है। बल्कि ऐसे व्यक्ति का अन्त हमेशा दुखद हुआ है। प्रभु ऐसे व्यक्तियों को ‘‘मूर्ख’’ कहते हैं।

मनुष्य की इच्छा अधिक से अधिक पाने की होती है। जो अमीर है वे और अधिक अमीर बनना चाहते हैं। लेकिन जो दिल के धनी हैं वे इतिहास में यादगार स्थान बनाते हैं। उन्हें भुलाया नहीं जा सकता है। उदाहरण के लिये यूदस बहुत अमीर था। चाँदी के 30 सिक्कों के लिये उसने अपने गुरू को भी पकड़वाया। परंतु उसका अंत कितना दुखद हुआ। आत्महत्या के परिणामस्वरूप उसे आज किसी अच्छे रूप में याद नहीं किया जाता है। परंतु अन्य शिष्यों ने अपने प्रभु येसु मसीह के लिये संसार के सभी मोह बंधनों को तोड़कर मनुष्य के उत्थान के लिये प्रभु येसु द्वारा सिखाये गये ईश वचन को पूरे संसार में फैलाया तथा इतिहास में अविस्मरणीय स्थान बनाया। इन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता क्योंकि इन्हें धन समृद्धि का कोई मोह नहीं था।

यह सौ प्रतिशत स्वीकार्य है कि धन मनुष्य को मनुष्य के पास नहीं लाता है। वह मानव को मानवता के निकट नहीं लाता। अगर धन से मनुष्य एक दूसरे के निकट आ भी जाये, तो वह निकटता अस्थायी होती है। इसलिये प्रभु येसु कहते है कि ‘‘अपना ख़ज़ाना स्वर्ग में इकट्ठा करो जहाँ उसे कीड़े- मकोड़े न खा सके और न चोर उच्चके लूट सकें।

ईश्वर ने यह नहीं कहा कि धन मत कमाओ बल्कि ज़रूरत से अधिक धन इकट्ठा करना स्वयं को, दूसरों को यहां तक कि ईश्वर के राज्य को आघात पहुँचाने के बराबर है। यह एक सच्चाई है कि दुनिया के सब मनुष्यों को कई बार खिलाने के लिये खाद्य सामग्री होते हुए भी विकासशील देषों में कई लोग आज भी भूखे मरते हैं। दुनिया में इतनी सम्पत्ति है कि सब लोग सुखमय जीवन जी सकते हैं। परन्तु जब एक विशेष समुदाय या वर्ग इस सम्पत्ति को अपने ही पास रखना चाहता है तो कई बार लोगों को भूखे, प्यासे और बेघर रहना पड़ता है। हमारे समाज में उदारता की भावना एक प्रकार से अनुपस्थित है। प्रभु हमें दिल का धनी बनने का आह्वान देते हैं।

एक कमल का फूल जल में खिलकर भी जल से मोह नहीं रखता है। इस पर छोड़ा गया पानी फिसलकर नीचे गिर जाता है। यही कारण है इसे ईशचरण में स्थान मिलता है। दिल के धनी व्यक्ति ऐसे ही होते हैं, जो अपने कर्मों से मिली समृद्धि और प्रसिद्धि का मोह नहीं रखते।

कलीसिया की प्रमुख शिक्षा यही है कि हम जिस समृद्धि को अपनी कहते हैं वह हमारी नहीं है। सब दूसरों का है। वे गलत हैं जो दूसरों का धन छीनते हैं और अपना अधिकार जताते हैं क्योंकि वह धन उनका भी नहीं है, सब दूसरों का है और जो दूसरों का है उसके पीछे हम अपना जीवन क्यों व्यर्थ गवाँ रहे हैं?

उदाहरण के लिये क्या आप सोच सकते हैं कि इस समय में भी एक ख्रीस्तीय धर्माध्यक्ष ने अपना बिशप निवास का त्याग किया? परंतु ऐसा हुआ है। अमेरिका के एक धर्मप्रान्त के धर्माध्यक्ष केन्निथ ने बहुत ही चुनौतीपूर्ण निर्णय लेकर हमारे प्रभु येसु का आमंत्रण स्वीकार किया। ये शायद एकमात्र धर्माध्यक्ष हुये, वह भी इस ज़माने में, जिन्होंने मारकुस के सुसमाचार (अध्याय 10:21) का अनुसरण कर दिखाया, जिसके अनुसार प्रभु येसु ने कहा कि ‘‘जाओ, अपना सब कुछ बेचकर ग़रीबों को दे दो और स्वर्ग में तुम्हारे लिये पूँजी रखी रहेगी। तब आकर मेरा अनुसरण करो’’। उन्होंने अपना बिशप निवास ही बेच दिया और मात्र एक छोटा सा ऑफिस रखा जो धर्मप्रान्त के दैनिक कार्यो को संचालित करने के लिये पर्याप्त था। बिशप केन्निथ एक पल्ली से दूसरे पल्ली जाकर अपने भोजन तथा ठहरने की व्यवस्था के साथ पुरोहितों से आत्मीयता बाँटते तथा पल्ली की समस्याओं से अवगत होते थे। यूखारिस्त समारोह में उनके सहायक बनते थे। कभी अस्पतालों में जाकर रोगियों की सेवा करते थे। यहाँ तक कि पल्ली पुरोहित के वार्षिक अवकाश पर जाने की स्थिति में वे स्वयं पल्ली पुरोहित का कार्य संचालित करते थे।

आज का पहला पाठ भी यही समझाता है कि कुछ पाने के लिये हम अपना संपूर्ण ज्ञान, चेतना, शक्ति लगा देते हैं, परंतु पाने के बाद वह हमारा नहीं होता। वह तो किसी और के लिये होता है जिसने उसे प्राप्त करने के लिये कोई प्रयास नहीं किया। क्या वह प्राप्ति आपके लिये तुच्छ नहीं है?

आज के सुसमाचार में भी प्रभु येसु ने ऐसे व्यक्ति को तुच्छ कहा है। ऐसा व्यक्ति संसार के सभी सुख प्राप्त कर ले परंतु अपनी आत्मा ही खो दे तो उसे क्या लाभ हुआ? ‘‘हर ख्रीस्तीय को अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनते हुए आगे बढ़ना है।’’

दूसरे पाठ में संत पौलुस यही चाहते हैं कि हम अपना दिल स्वर्ग की चीज़ों में लगायें और आदि ख्रीस्तीयों ने भी यही किया था। उन्होंने अपनी सम्पत्ति एक दूसरे में बाँट दी थी इसलिये उनमें न कोई अमीर था, न ही कोई ग़रीब। इस स्थिति में उन्होंने यूखारिस्त मनाया, उसका आनन्द उठाया और इस विश्वास का साक्ष्य देने के लिये अपने प्राण भी दिये।

अगर हम भी उनके समान जीवन बितायेंगे तो हमारी भी यह अनुभूति होगी कि हमारी जीवन यात्रा केवल धरती पर निर्मित घर नहीं है। दरअसल हमें ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना है। अतः हम अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनते हुये आगे बढ़ें।


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