Johnson

चक्र स - वर्ष का उन्नीसवाँ इतवार

प्रज्ञा 18:6-9; इब्रानियों 11:1-2,18-19; या 11:1-2, 8-12; लूकस 12: 32-48 या 12:35-40

फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


नबी इसायाह के ग्रन्थ 44:24 द्वारा प्रभु हमसे कहते हैं, “जिसने तुम्हारा उद्धार किया और माता के गर्भ में गढ़ा है, वही प्रभु यह कहता है: मैं प्रभु हूँ। मैंने सब कुछ बनाया है...” हम चाहे ईश्वर में विश्वास करें या न करें लेकिन सच्चाई यही है कि प्रभु ईश्वर ने ही सब कुछ की श्रृष्टि की है। उसी के अधिकार में सब कुछ है और सब कुछ उसी का दिया हुआ है, हमारा जीवन, हमारा परिवार, विभिन्न वरदान आदि, सब कुछ प्रभु का ही दिया हुआ है। इसलिए वही हमारा प्रभु और स्वामी है और हम उसके सेवक मात्र हैं। हमारा अपना कुछ भी नहीं है, और इसलिए हमें हर पल, हर क्षण उसी के लिए जीना है, उसी की इच्छा पूरी करनी है। इस बात को बहुत कम लोग गम्भीरता से लेते हैं, और यही कारण है कि ऐसे लोग प्रभु से दूर भटक जाते हैं।

आज का सुसमाचार हमें इसी ओर इंगित करता है कि हम ईश्वर के सेवक मात्र हैं और जो कार्य हमें प्रभु ने सौंपा है उसे हमें पूर्ण ईमानदारी से पूरा करना है, और जो सेवक अपने कार्य में सजग और ईमानदार पाया जायेगा, प्रभु उसे उसका उचित फल देगा। आखिर एक आम इन्सान जो अपनी नौकरी करता है, अपने परिवार की देख-भाल करता है, हर इतवार गिरजा जाता है आदि, वह व्यक्ति कैसे ईश्वर का सेवक हुआ और उसे प्रभु ने क्या जिम्मेदारी सौंपी है, और प्रभु के आने पर किस सौंपी हुई जिम्मेदारी का मूल्यांकन किया जायेगा? ईश्वर ने हमें इस दुनिया में ज़रुर कुछ न कुछ योजना पूरी करने के लिए भेजा है। ईश्वर ने हमें भेजा है ताकि हम उसका साक्ष्य दें, उसकी महानता का बखान करें। इसी के लिए उसने हमें यह जीवन प्रदान किया है।

मान लीजिये एक साधारण सा व्यक्ति एक साधारण जीवन व्यतीत करता है। उस व्यक्ति का अपना परिवार है। वह परिवार उसे किसने उसे सौंपा है? उस व्यक्ति के बाल-बच्चे हैं, वे बच्चे किसका वरदान हैं? वह व्यक्ति कोई नौकरी करके अपनी रोजी-रोटी कमाता है, वह नौकरी किसकी कृपा से मिली है? अगर विश्वासी ह्रदय से इन सवालों का जवाब दें तो यह सब ईश्वर की देन है, वास्तव में हर सवाल का जवाब ही ईश्वर में है। जो व्यक्ति ईश्वर में विश्वास नहीं करता है, उसे अपने जीवन का उद्देश्य कभी भी समझ में नहीं आयेगा। जब हमारा प्रभु आयेगा तो इन सभी चीजों के आधार पर ही हमारा मूल्यांकन होगा।

अगर एक व्यक्ति को एक परिवार को सँभालने की जिम्मेदारी ईश्वर ने दी है, लेकिन वह ईमानदारी के साथ अपने परिवार के प्रति अपना कर्तव्य नहीं निभाता है तो क्या उसे वफादार सेवक कहा जा सकता है? एक माता-पिता अपने बच्चों के प्रति जो जिम्मेदारी है, जैसे उनका उचित रीति से लालन-पालन करना, उचित शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था करना, धर्म की शिक्षाओं को उनके ह्रदय में बोना आदि, जब इन जिम्मेदारियों को ईमानदारी से नहीं निभाएंगे तो क्या वे भले और ईमानदार सेवक कहला सकते हैं? एक पति अपनी पत्नी के प्रति वफादार नहीं है, या पत्नी अपना पति धर्म पूरी ईमानदारी से नहीं निभाती है तो क्या ऐसे पति-पत्नि भले और ईमानदार सेवक कहलाये जा सकते हैं? अगर बच्चे अपने माता-पिता का आदर नहीं करते, उनके प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते, अपने उज्जवल भविष्य के बारे में बड़ों की बातें नहीं मानते, तो क्या वे प्रभु के ईमानदार सेवक बन जायेंगे। एक नौकरी वाला व्यक्ति अपना काम ठीक से नहीं करता, उचित परिश्रम नहीं करता, काम करने के लिए घूष लेता है, भ्रष्टाचार करता है, तो क्या इस दुनिया का स्वामी उसे सज़ा नहीं देगा?

हम जीवन में चाहे जो कुछ भी हों, माता-पिता हों, बच्चे हों, विद्यार्थी हों, डाक्टर, इंजिनियर, सरकारी कर्मचारी, शिक्षक, नर्स, ड्राइवर, चपरासी कुछ भी हों, उसी जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाना ही हमारा कर्तव्य है, वही हमारे जीवन का उद्देश्य है, उसी के प्रति पूर्ण रूप से वफादार बने रहने में ही हमारे जीवन की सार्थकता है। अगर हम ऐसा करेंगे तो हमारा स्वामी चाहे जिस घड़ी आयेगा, हमें तैयार और सजग पायेगा। ईश्वर हमें भले, सजग, ईमानदार और वफादार सेवक बनने में मदद करे। आमेन।


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