Smiley face

चक्र स - 53. वर्ष का बाईसवाँ इतवार

प्रवक्ता 3:17-18,20,28-29; इब्रानियों 12:18-19, 22-24अ; लूकस 1:7-14

(फादर लियो बाबू)


आज के पाठ हमें नम्र बनने की शिक्षा देते हैं। नम्रता और प्रज्ञा संतों के गुण हैं जो खीस्तीय जीवन का आधार है। ये वे गुण हैं जिन्हें प्रभु येसु ने उनसे सीखने के लिये कहा है। वे कहते हैं कि मुझसे सीखो क्योंकि मैं हृदय से नम्र और विनीत हूँ। उनमें दूसरे सभी सदगुण परिपूर्णता में विद्यमान थे। परन्तु उन्होंने उनकी अनदेखी करने के लिये नहीं कहा, अपितु ख्रीस्त के वे सारे गुण नम्रता की नींव पर ही विकसित किये जा सकते हैं। नम्रतारूपी जड़ पर दूसरे गुणों के पेड उगाये जा सकते हैं।

हम पूछ सकते हैं, ’’नम्रता क्या है?’’ और प्रभु येसु के अनुसार उसका क्या अर्थ है? नम्रता हमारी अपनी दृष्टि में स्वयं का सच्चा आंकलन है। हम जो कुछ हैं, जो कुछ हमारे पास है, वह सब ईश्वर का है। हम स्वयं अस्तित्व में नहीं आये हैं परन्तु ईश्वर ने हमें बनाया है। यदि हमने संसार की धन-सम्पत्ति और मान-सम्मान अर्जित किया है, तो वह इसलिये है कि हम ईश्वरीय प्रदत्त गुणों और वस्तुओं का उपयोग कर पाये हैं। दूसरे शब्दों में जो कुछ हमारे पास है और जो कुछ हम हैं उसके लिये हम ईश्वर के ऋणी हैं क्योंकि वह ऋण के रूप में हमें मिला है और इसलिये इनका श्रेय हम स्वयं को नहीं दे सकते, न ही उस पर गर्व कर सकते हैं।

पूर्व के रविवारों में भी हमने इब्रानियों के नाम पत्र से पढा है जहाँ संत पौलुस उन नवदीक्षित खीस्तीयों को सम्बोधित करते हैं जो अपने पुराने विधानों की ओर लौट जाने के प्रलोभन में पड जाते हैं। मेरे विचार से पवित्र कलीसिया आज भी हमारे अन्दर उस दुर्बलता को पाती है। इसलिये इस पाठ के द्वारा संत पौलुस यहूदियों को यह समझाते हैं कि जिन पुराने रीति-रिवाजों और कर्मकाण्ड को वे छोड चुके हैं, उनसे मसीही विश्वास कई गुणा श्रेष्ठ है। अतः उन्हें अपने पुराने मार्ग पर दुबारा नहीं लौटना चाहिए।

हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि खीस्तीय धर्म का आधार मानव जाति के प्रति ईश्वर का असीम प्रेम है। यहूदी भयवश ईश्वर की सेवा करते थे। सिनाई पर्वत के नीचे एकत्रित यहूदी उस समय भय से काँप रहे थे जब ईश्वर बादलों की गर्जन और बिजली के चमक के बीच पत्थरों की पाटियों पर दस नियम अंकित कर रहे थे और ईश्वर की उपस्थिति के कारण पर्वत धुँये से भरा जा रहा था। यहूदियों ने मूसा से निवेदन किया कि वे मूसा की बातें सुनेंगे और मानेंगे लेकिन ईश्वर उनसे सीधे बातें न करें, नहीं तो वे मर जायेंगे। यहूदी ईश्वर को हमारी तरह कभी भी नहीं पहचान पाये। उन दिनों ईश्वर ने नबियों और पवित्र ग्रंथों के लेखकों द्वारा अपने को प्रकट किया था, परन्तु पूर्ण रूप से स्वयं को प्रकाशित नहीं किया था। अब अपने पुत्र को हमारे बीच भेजकर उन्होंने अपने आप को पूर्ण रूप से प्रकट कर दिया है। इसलिये रविवार को हमारा एकत्रित होना भयवश नहीं बल्कि आनंदमयी होना चाहिये। ईश्वर ने हमारे प्रेम के खातिर शरीर धारण किया। परन्तु हमारी सीमित बुद्धि इस रहस्य को नहीं समझ पाती है कि ईश्वर के पुत्र ने अपने आप को इतना नम्र बना लिया कि हमारे समान बनने के लिये अपने आप को ईश्वरता और स्वर्ग की महिमा से खाली कर दिया।

यद्यपि वह ईश्वर थे फिर भी हम पतित मानव के लिये अपार कष्ट सहा और बाधाओं से संघर्ष किया। कितनों ने उनका विरोध किया और उन्हें मार डालना चाहा और उन्हें विक्षिप्त और अपदूतग्रस्त कहा। परन्तु ये पीडायें भी उन्हें अपने परम पिता द्वारा सौंपे गये हमारे मुक्ति के कार्य को पूर्ण करने में विचलित नहीं कर पायी। सम्पूर्ण आज्ञाकारिता द्वारा उन्होंने हम अवज्ञाकारी मानवों का ईश्वर से मेल कराया और हमारे मानव स्वभाव को धारण करके हमें अपनी ईश्वरता का भागी बना दिया।

आज के सुसमाचार में फरीसियों पर कटाक्ष किया गया है। परन्तु इसके द्वारा हमारे लिये एक सबक भी है। इसलिये इसे पवित्र सुसमाचार से नहीं हटाया गया है। वस्तुतः हम भोज में निमंत्रण देने वाले मेज़बान का निरादर नहीं करते। परन्तु इस दृष्टांत में प्रभु येसु मेज़बान और उसके मेहमानों की कठोर आलोचना करते हैं। फरीसियों के व्यवहार से प्रतीत होता है कि प्रभु येसु उस भोज के विशिष्ठ अतिथि थे और दूसरे सम्मानित नेता और प्रतिष्ठित लोग अपने सामाजिक मान के दिखावे के लिए उनके करीब रहने का प्रयास कर रहे थे। धनियों और प्रभावशाली व्यक्तियों के दबाव में न्याय और परोपकार के पक्ष में खडे होना मुश्किल जान पडता है। परन्तु प्रभु येसु ने किसी की परवाह न करते हुए साहसपूर्वक अपना मेज़बान करने वाले परिवार को भी फटकारा।

उसी प्रकार येसु का अनुकरण करने वाला घमण्डी शिष्य आलोचनात्मक है। ईश्वर के पुत्र ने मनुष्य स्वाभाव धारण करने हेतु अपने आप को बहुत नीचे उतारा। उन्होंने बेदलेहेम के गुमनाम गॉंव में गौशाले की चरनी में जन्म लिया। छोटे से गॉंव में उनका पालन-पोषण हुआ। रोजी-रोटी कमाने के लिये बढई का काम किया। एक अपराधी की तरह दो चोरों के बीच क्रूस पर ठोंके जा कर मारे गये। दूसरों के कब्र में दफनाये गये। ’’मुझसे सीखो क्योंकि मैं हृदय से नम्र और विनीत हूँ’’ को चरितार्थ करने के लिये इससे अधिक वे और क्या कर सकते थे ?

पिछले रविवार के सुसमाचार में प्रभु येसु ने हमें संकरे मार्ग पर चलने के लिये कहा और चेतावनी दी कि घमण्ड से फूले लोग संकरे द्वार में प्रवेश नहीं कर पायेंगे। उसी चेतावनी को वे आज दूसरे रूप में दुहरा रहे हैं। जो सच्चे हृदय से दीन-हीन हैं केवल वे ही ईश्वर के भोज के निमंत्रण को स्वीकार कर पाते हैं परन्तु घमण्डी उसे इंकार करते हैं। दृष्टांत के माध्यम से प्रभु येसु धार्मिक नेताओं को तुच्छ स्थानों पर विराजमान होकर मेज़बान का ध्यान आकर्षित कर उनसे सम्मान प्राप्त करने के लिये उन्हें निम्न स्थानों पर बैठने के लिये नहीं कह रहे थे अपितु उन्हें समझा रहे हैं कि हृदय की सच्ची नम्रता और अपने कुछ नहीं होने के एहसास के बिना वे ईश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर पायेंगे। घमंडियों को न सिर्फ भोज में आखिरी स्थान मिलेगा, बल्कि उन्हें भोज से अपमानपूर्वक बाहर भी भेजा जा सकता है।

प्रभु येसु के उपदेश सुनने के बावजूद कई विष्वासी पुराने फरीसियों की तरह घमण्डी और अहंकारी बने हुए हैं जो ईश्वर को धन्यवाद देते हैं क्योंकि वे दूसरों की तरह बुरे नहीं हैं, वे पापियों के सम्पर्क से दूर रहते हैं, जब किसी बुराई की चर्चा होती है तो वे अपने कान बंद कर लेते हैं, आदि। हमारे हरेक के अन्दर घमण्ड का एक बीज रहता है जो स्वाभाविक रूप से हमें दुसरों की दृष्टि में स्वयं को उँचा उठाना चाहता है, विशेष रूप से हमारे पडोसियों से ऊपर। घमण्ड के इस बीज पर हमें नियंत्रण रखना अनिवार्य है और उसे कदापि बढने नहीं देना है। हमारे मन और शरीर के सभी उपहार हमें वरदान स्वरूप ईश्वर से प्राप्त हुए हैं और हमारा यह कर्तव्य है कि हम उनका सदुपयोग करें और उसके लिये ईश्वर के प्रति कृतज्ञ बने रहें। यदि दूसरों को हमसे अच्छे वरदान मिले हैं तो उसके लिये भी हम ईश्वर को धन्यवाद दें क्योंकि वह व्यक्ति हमसे बेहतर तरीके से उस वरदान का उपयोग कर सकता है, इसलिये उसे वह वरदान दिया गया है। हमारे पास जो है वह काफी है। जो वरदान हमें प्राप्त नहीं हुए है उसके लिये हम न कुडकुडायें और न ही उनका आंकलन करें।

ईश्वर से प्राप्त वरदानों को हम पडोसियों की सहायता करने में उपयोग करें, जो आत्मिक रूप् से दुर्बल हैं, जो अंधे और लंगडे हैं, उनकी सहायता करें न कि उनके बुराईयों को देखकर उनसे दूर भागें। तभी हम धर्मियों के पुनरुत्थान के दिन पुरुस्कार के हकदार होंगे। यहॉं स्मरण कराना उचित होगा कि रविवारीय पूजा पद्धति ख्रीस्त का भोज है, जिसे प्रभु येसु ने स्वयं तैयार किया है और इस स्वर्गीय भोज में शामिल होने के लिये केवल हृदय के नम्र लोगों को ही निमंत्रण मिला है। इसलिए हर पवित्र मिस्सा बलिदान में भाग लेने के पूर्व हम अपने को दीन-हीन बना लें।

हर पवित्र मिस्सा बलिदान की पूजा पद्धति में प्रभु येसु हमें उन्हीं शब्दों द्वारा आमंत्रित करते हैं जिन्हें उन्होंने शिष्यों के पैर धोते समय कहा था- मैंने तुम्हें उदाहरण दिया है, जो कुछ मैंने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी दूसरों के साथ वैसा ही किया करो। यही कारण है हर बलिदान के पूर्व कलीसिया हमारे पाप को स्वीकार करने के लिये कहती है, हमें ईश्वर से और हमारे भाई-बहनों से मेल करने का कहती है.

हर पवित्र मिस्सा बलिदान हमारे भाई-बहनों की सेवा करने के लिये प्रेरणादायक हो। हर बलिदान के बाद हमें पडोसियों की सेवा और ईश्वर की इच्छा पूरी करने की प्रतिज्ञा के साथ घर जाना चाहिए। भय से दूसरों की सेवा करना गुलामी है। प्रभु येसु के खातिर सेवा सच्चा आनंद और अनंत जीवन प्रदान करती है। हम प्रभु येसु से प्रार्थना करें कि जिन्होंने हमें ख्रीस्तीय होने के लिए बुलाया है वे हमें इतना नम्र बनायें कि हम अपने पडोसियों और ज़रूरतमंदों की सहायता कर सकें और हमें भरपूर आशिष दें कि हम दूसरों के लिये उनके साक्षी और प्रेरणा स्रोत बन सकें।


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!