Johnson

चक्र स - वर्ष का चौबीसवाँ इतवार

निर्गमन 32:7-11, 13-14; 1 तिमथी 1:12-17; लूकस 15:1-32 या 15:1-10

फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


अभी कुछ दिन पहले ही हमने महान महिला सन्त मोनिका का पर्व मनाया है। उनका प्रार्थनामय जीवन करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है। जब उनका विवाह एक गैर-ख्रीस्तीय परिवार में हुआ था तो अपने ख्रीस्तीय विश्वास एवं मूल्यों को बनाये रखना उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। वे अपने विधर्मी पति की आत्मा को विनाश से बचाना चाहती थी, इसलिए खूब प्रार्थना करती रहती थी। बाद में अपने बेटे अगस्तीन को भी सही रास्ते पर आगे बढ़ाना चाहती थी। लेकिन जब उनका पुत्र अध्ययन के लिए सांसारिक वातावरण में पड़ा तो उसी में संलग्न हो गया और अंधकार में भटककर खो गया। लेकिन उसकी माँ ने हिम्मत नहीं हारी बल्कि वह रो-रो कर घंटों अपने पति व अपने पुत्र के लिए लगातार प्रार्थना करती थी। और एक दिन उसकी सच्ची प्रार्थनाओं के फलस्वरूप उसके पति का मन परिवर्तन हुआ और उसने ख्रीस्त को स्वीकार किया। कड़ी तपस्या और वर्षों की आंसुओं भरी प्रार्थना के बाद उसके बेटे अगस्तीन का भी जीवन बदला और न केवल उसने प्रभु ख्रीस्त को अपनाया बल्कि अपना जीवन भी ईश्वर की सेवा में समर्पित कर दिया। बाद में वही भटका हुआ पुत्र पुरोहित बना, विद्वान बिशप बना और सन्त भी बना। उसकी माँ के लिए इससे बढ़कर और कोई ख़ुशी नहीं कि उसका पापी बेटा पश्चाताप कर एक सन्त बना। वह मृत्यु से पूर्व बताती है – “अब मुझे इस दुनिया की किसी ख़ुशी की ज़रूरत नहीं है, मैंने जितना माँगा उससे ज्यादा पाया।” उनके लिए यही सबसे बड़ी ख़ुशी थी कि उनका पुत्र प्रभु की पवित्र वेदी पर उन्हें याद कर सकता है। अगर एक सांसारिक माँ को अपने पुत्र के वापस ईश्वरीय रास्ते पर आने की इतनी ख़ुशी होती है, तो हमारे स्वर्गीय पिता को पापियों के वापस लौटने पर कितना आनन्द होगा?

सन्त लूकस के सुसमाचार के 15वें अध्याय में हमें तीन उदाहरण मिलते हैं- भटकी हुई भेड़ का दृष्टान्त, खोये हुए सिक्के का दृष्टान्त और खोये हुए पुत्र का दृष्टान्त। ये तीनों ही दृष्टान्त यही सन्देश देते हैं कि हमारे वापस लौटने पर पिता ईश्वर को अपार आनंद होता है। किसी वस्तु के खोकर वापस मिलने के आनंद की सीमा उस वस्तु के मूल्य पर निर्भर करती है। जैसा उसका मूल्य होगा वैसा ही उसके पाने पर ख़ुशी होगी। उदाहरण के लिए अगर किसी के सौ रूपये खो जाएँ और बाद में वो वापस मिल जाएँ तो ज़रूर बहुत ख़ुशी होगी लेकिन यदि किसी की सोने की अंगूठी खो जाये और बड़ी परेशानी के बाद मिल जाये तो उसकी ख़ुशी कहीं अधिक होगी क्योंकि अंगूठी की कीमत सौ रूपये से बहुत अधिक है। एक पश्चातापी मनुष्य के लिये स्वर्ग में इसलिये आनंद मनाया जायेगा क्योंकि हममें से प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर की नज़रों में बहुत कीमती है। प्रभु कहते हैं – “तुम मेरी दृष्टि में मूल्यवान हो और महत्व रखते हो। मैं तुम्हें प्यार करता हूँ...” (इसायस 43:4)। प्रभु का यह प्यार अस्थाई या अल्पकालिक नहीं है; बल्कि अनन्त है। आखिर हम प्रभु की दृष्टि में इतने मूल्यवान क्यों हैं?

एक बच्चा जब कक्षा में खूब मेहनत करता है, एक चित्र बनाता है, धीरे-धीरे पूरे धैर्य के साथ वह घंटों उसमें मेहनत करता है, रंग भरता, उसे सजाता-सँवारता है, और उसका वह चित्र जब बनकर तैयार हो जाता है, तो उसे बहुत ख़ुशी और गर्व होता है। जब लोग उसे देखकर उसकी प्रशंसा करते हैं तो उसे बहुत आनंद होता है क्योंकि वह उसकी अपनी रचना है, उसे उसने खुद बनाया है। अब कल्पना कीजिए कि संसार के महान चित्रकार ने हममें से प्रत्येक व्यक्ति को अपने हाथों से बनाया है, अपने पूरे मन से बनाया है, प्रेम से बनाया है। हम स्तोत्र-ग्रन्थकार के साथ गा सकते हैं- “मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ- मेरा निर्माण अपूर्व है।.. जब मैं अदृश्य में बन रहा था, जब में गर्भ के अंधकार में गढ़ा जा रहा था, तो तूने मेरी हड्डियों को बढ़ते देखा...” (स्तोत्र 139:14-15)। उसने पल-पल हमारा ख्याल रखा। “माता के गर्भ में रचने से पहले ही मैंने तुम को जान लिया।” (येर० 1:5)। “मैंने तुम्हें अपनी हथेलियों पर अंकित किया है।” (इसयास 49:16)।

यदि हम प्रभु की इतनी अमूल्य रचना हैं, और यदि यह अमूल्य रचना पाप के कारण प्रभु से विमुख हो जाये, प्रभु से दूर चली जाये तो प्रभु को कितना दुःख होगा ! क्या हमारा रचनाकार चाहता है कि उसकी अपने हाथों से बनायीं हुई यह सुन्दर रचना व्यर्थ ही नष्ट हो जाये? उसने अपने स्वर्गदूतों को हमारी रक्षा के लिए लगाया है, हमारे दूत स्वर्ग में निरन्तर हमारे लिये प्रार्थना करते हैं। जब हम गलत रास्ते को, पाप के रास्ते को छोड़कर वापस प्रभु के पास आते हैं तो ज़रूर स्वर्ग में अपार आनंद मनाया जायेगा। क्या मैं अपने गलत और पापमय जीवन के द्वारा अपने सृष्टिकर्ता ईश्वर को दुखी तो नहीं कर रहा हूँ? क्या मैं भी स्वर्ग में आनंद मनाने का कारण बन सकता हूँ?


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Praise the Lord!