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चक्र स -राख-बुधवार

योएल 2:12-18; 2 कुरिन्थियों 5:20-6:2; मत्ती का सुसमाचार ‍6:1-6,16-18

फादर फ्रांसिस स्करिया

किसी स्कूल के कई बच्चे बीमार हो रहे थे। इसका कारण यह पाया गया कि उस स्कूल के पीने के पानी की टंकी में समय के चलते बहुत गन्दगी थी। उस पानी को पीने से बच्चे बीमार हो रहे थे। हम जानते हैं कि पानी की टंकियों को समय-समय पर साफ़ करना ज़रूरी है। मशीनों के अच्छे कामकाज के लिए यह जरूरी है कि हम समय-समय पर कुछ तरल पदार्थ (lubricant) का इस्तेमाल करें। हमारे शारीरिक जीवन के लिए यह ज़रूरी है कि हम प्रतिदिन नहायें-धोयें। इसी प्रकार हमारे आध्यात्मिक जीवन के लिए यह ज़रूरी है कि हम समय-समय पर निश्चल हो कर अपने जीवन की बढ़ती गंदगी को साफ कर अपने जीवन को नवीन बनायें।

इसी सिध्दान्त को अपनाते हुए कलीसिया की पूजन-विधि में हम चालीसा काल को प्रमुख स्थान देते हैं। आज, राख बुधवार के दिन हम चालीसा-काल में प्रवेश कर रहे हैं। यह पश्चात्ताप तथा मनपरिवर्तन का समय होता है। इसलिए आज के पहले पाठ में संत पौलुस अनुरोध करते हैं, “हम मसीह के नाम पर आप से यह विनती करते हैं कि आप लोग ईश्वर से मेल कर लें।” ईश्वर से मुलाकात करने के लिए हमें पवित्र बनना चाहिए। नबी यिरमियाह के ग्रन्थ के अध्याय 26 में हम देखते हैं कि नबी येरूसालेम के मंदिर के फाटक पर खडे हो कर मंदिर में प्रवेश करने वाले लोगों से कहते हैं, “अपना आचरण सुधारो” (यिरमियाह 26:13)।

प्रभु ईश्वर से मुलाकात करने के लिए, उनकी कृपाओं के योग्य बनने के लिए हमें अपना आचरण सुधारना होगा। संत योहन बपतिस्ता का भी यही सन्देश था। आज की पूजन-विधि में पुरोहित हमारे माथे पर राख लगा कर हम को याद दिलाते हैं कि हम मिट्टी हैं और मिट्टी में मिल जायेंगे। उत्पत्ति 2:7 में पवित्र वचन कहता है, “प्रभु ने धरती की मिट्टी से मनुष्य को गढ़ा और उसके नथनों में प्राणवायु फूँक दी। इस प्रकार मनुष्य एक सजीव सत्व बन गया।” हमारा यह शरीर मिट्टी से बना हुआ है और मिट्टी में वापस जायेगा। हमारी मृत्यु के बाद हमारा शरीर गाढ़ दिया जायेगा और कुछ ही दिनों में वह उस धरती की मिट्टी में मिल जायेगा जिससे उसे बनाया गया। लेकिन जीवन की क्षणभंगुरता के बारे में याद दिलाने के साथ-साथ आज की धर्मविधि हमें यह याद करने हेतु विवश करती है कि हमारी सृष्टि करते समय ईश्वर ने हमारे नथनों में प्राणवायु फूँक कर हम में से हरेक व्यक्ति को एक आत्मा प्रदान की जो अनन्त है। इसलिए लातीनी पूजन-विधि की ’मृतकों की स्मृति की अवतरणिका’ हमें याद दिलाती है मृत्यु हमारे जीवन का विनाश नहीं, बल्कि विकास है। इसलिए चालीसा काल में हम से आशा की जाती है कि हम शरीर से कहीं अधिक आत्मा पर ध्यान दें।

मत्ती 15:13 में प्रभु येसु कहते हैं, “जो पौधा मेरे स्वर्गिक पिता ने नहीं रोपा है, वह उखाड़ा जायेगा।” मत्ती 13:24-30 में प्रभु हमें बताते हैं जिस खेत में प्रभु ईश्वर पवित्र वचन के अच्छे बीज बोते हैं, उस में जब लोग सो जाते हैं तब शैतान जंगली बीज बो कर चला जाता है। विश्वासी लोग पवित्र वचन सुनते और संस्कारों में भाग लेते रहते हैं। फिर भी हमारे जीवन में हम कई बार “सो जाते हैं”, अर्थात हम आध्यात्मिक रीति से सतर्क नहीं रह पाते हैं। ऐसे अवसरों में कुछ बुराईयाँ हमारे अन्दर प्रवेश करती हैं और कभी-कभी जड़ भी पकड़ लेती है। चालीसा-काल ऐसी सब बुराईयों को उखाड़ कर फेंकने का समय है, ऐसे सब पौधों को जिन्हें हमारे स्वर्गिक पिता ने नहीं रोंपा है, उखाड़ कर फ़ेंकने का समय है। अगर हम इस प्रक्रिया को नहीं अपनायेंगे, तो हम अपने ईश्वर की कृपाओं से वंचित रह जायेंगे। यिरमियाह 4:14 में पवित्र वचन कहता है, “येरुसालेम! अपने हृदय से बुराई निकाल दे, जिससे तू बच सके! तेरे बुरे विचार तुझ से कब निकलेंगे?”

पवित्र वचन हमारे अन्दर पश्चात्ताप उत्पन्न करता है। दक्षिण भारत के एक शहर में राजू नाम का एक कुख्यात ड़ाकू रहता है। वह ’काला सांप’ नाम से जाना जाता था। एक दिन एक बडी रकम की चोरी में वह पकडा गया। लेकिन उसने अपना जुर्म कबूल नहीं किया। पुलिसवालों ने उसे बहुत मारा और लॉकअप में डाल दिया। कुछ देर बाद थानेदार को उस पर तरस आया क्योंकि उसने सुबह से कुछ भी नहीं खाया था। उन्होंने एक पुलिसकर्मी से कहा कि उसे दो-तीन समोसे खिला दो। उसने उसे समोसे ला दिये। कुछ देर बार लोकअप से राजू के जोर-जोर से रोने की आवाज सुनायी दी। थानेदार और पुलिसकर्मी वहाँ पहुच गये। थानेदार ने उससे पूछा, “राजू, तुम्हें क्या हो गया?” राजू ने कहा, मैं बहुत बडा पापी हूँ। मैंने आज और पहले भी बहुत बुरे कार्य किये। मैंने कई बार चोरी की, आज भी मैंने चोरी की। मैंने कई बार लोगों चोट पहुँचायी, तंग किया। मुझे सजा दिला दो।“ थानेदार ने पूछा, “यह तुम्हें क्या हुआ; हमने तुम्हें बहुत बार पकडा और मारा। आज भी हमने तुम्हें बहुत मारा, फ़िर भी तुमने कभी तुम्हारा जुर्म स्वीकार नहीं किया। अब तुम्हें क्या हो गया?” उसने कहा, “पुलिसवाले ने मुझे समोसे ला दिये। मैं ने उसे खाया। फिर मैंने उस कागज़ को देखा जिसमें वह समोसे बाँध कर लाया था। उस कागज़ पर बाइबिल के कुछ वाक्य लिखे हुए थे। उन वचनों ने मेरे हृदय को छेदा। अब मुझे मेरे पापों का एहसास है। मुझे आप लोगों से और ईश्वर से माफ़ी माँगना चाहिए।” उसी दिन उस का जीवन बदल गया। अब वह ईश्वर की सेवा में लोगों को सुसमाचार सुनाता रहता है। जो ईश्वर के करीब आता है, जो ईशवचन सुनता है और जो ईश्वर का अनुभव करता है, उसे अपने पापों पर पश्चात्ताप महसूस होता है और उसका जीवन बदलने लगता है।

नबी इसायाह के द्वारा प्रभु हमें विश्वास दिलाते हैं कि वे हम पर दया करेंगे। वे कहते हैं, “याकूब! इस बात पर विचार करो। इस्राएल! तुम मेरे सेवक हो। इस बात पर विचार करो। मैंने तुम को गढ़ा और अपना सेवक बनाया। इस्राएल! तुम मेरे साथ विश्वासघात नहीं करोगे। मैंने बादल की तरह तुम्हारे अपराध, कोहरे की तरह तुम्हारे पाप मिटा दिये। मेरे पास लौटो, क्योंकि मैं तुम्हारा उद्धारक हूँ।“ (इसायाह 44:21-22) आईए हम पश्चात्तापपूर्ण हृदय से तथा अपने जीवन में बदलाव लाने के दृढ़संकल्प के साथ आज की धर्म-विधि में भाग ले कर चालीसा काल में प्रवेश करें।


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