Preetam

माँ मरियम क्रूस के नीचे

(फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत)


ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों, आज के मनन चिंतन का जो विषय है, वह प्रभु येसु और माँ मरियम का एक बहुत ही सुंदर चित्रण हमारे सामने प्रकट करता है। क्रूस के नीचे माँ मरियम। जब मैं उस दर्दनाक दृश्य पर मनन चिंतन करता हूँ, तो रूह काँप उठती है। एक ओर जहाँ जिंदगी व मौत के बीच आकाश और धरती के बीच, एक बेटा असहाय दुःख सहता हुआ सूली पर लटका हुआ है, वहीं दूसरी ओर एक माँ अपना दिल हथेली पर रखकर अपने कलेजे के टूकडे को तडप-तडप के मरते हुए देख रही है। सोचो क्या हालत हो रही होगी उस माँ की क्या बिता होगा उसके दिल पे।

पर माता मरियम अपने सारे दुखों को बडे ही संयम व धैर्य के साथ सह लेती है। उनके इस दुःखित चेहरे पर मनन चिंतन करना हमें हमारे जीवन के दुःखों की याद दिलाता है। माँ मरियम हमारे जीवन में आने वाले दुःखों को सही मायने में समझने में हमारी मदद करती है। धर्मी सिमोन ने इस आगामी दुःखों के बारे में पहले से ही आगाह कर दिया था। यह कह कर कि एक तलवार तुम्हारे हृदय को आर पार भेदेगी। दसअसल दुःखों की यह तलवार स्वर्गदूत के संदेश याने माँ के गर्भवती होने से लेकर लगातार माँ के सामने उनके ईर्द गीर्द मंडराती रही उन्हें चुभती रही। कुँवारी के गर्भ में बच्चा होना यानी मौत को बुलावा देना था। ऐसी लडकियों को पत्थरों से मार डाले जाने का कानून था। पर माँ ईश्वर के इस बुलावे को स्वीकार करती है। आज जहाँ हम maternity leave की बात करते हैं वहीं माँ मरियम गर्भ में अपने षिषु को लेकर नाज़रेथ से बेतलेहेम की यात्री करती है। फिर बेटे को जन्म देने के लिए जोसफ के साथ दर-दर की ठोकरें खाती है। एक घर भी नसीब नहीं हुआ उन्हें अपने पहलौटे को जन्म देने के लिए जानवारों के बीच उस अत्यंत ही गरीबी की हालत में उन्होंने प्रभु को जन्म दिया। जन्म के बाद जब उन्हें थोडे आराम की ज़रूरत थी तब स्वर्गदूत के कहने पर वहाँ से हेरोद के भय से उन्हें मिश्र देश को भागना पडा। 12 साल की उम्र फिर उनका लाडला येरूसलेम मंदिर में खो जाता है। जब उनका समय पूरा हुआ तो प्रभु ने अपना सार्वजनिक जीवन 30 साल की उम्र में प्रारम्भ किया। वे घर छोडकर चले जाते थे, दिन-दिन भर लोगों के साथ उन्हें उपदेश देते रोगियों को चंगा करते, पहाडों पर प्रार्थना करते व स्वर्ग राज्य की घोषणा करते थे। कई लोगों ने सोचा कि वे पागल हो गये हैं तो माँ फिर जब वो भारी क्रूस उठाकर कलवारी की ओर जा रहे थे माँ उस राह पर उनके साथ थी। आँखों ही आँखों में माँ बेटे की बात होती है। बेटा कहता है माँ ईश्वर की यही ईच्छा है मुझे इसे पूरा करना ही होगा। और माँ कहती है जा बेटे आगे बढ मैं इस दुःखमय यात्रा तू अकेला नहीं है मैं तेरे साथ हूँ। वहाँ कलवारी तक मैं तेरे अंतिम सांस लेने तक मैं तेरी बगल में खडी रहूँगी। तू अपने स्वर्गीय पिता की ईच्छा को पूरा कर और इस दुनिया के मुक्ति कार्य को सम्पन्न कर। और जब कलवारी पहाडी की चोटी पर अन्य नारियों व प्रिय षिष्य योहन के साथ जब माँ मरियम वहाँ खडी थी तो दुःखों की वह तलवार जो जिंदगी भर उन्हें चोटिल करती आ रही थी अब उनके हृदय को आर-पार भेद देती है। माँ पर दुःखों का पहाड टूट पडता है।

पर माँ इन सब से विचलित नहीं होती है वह तो अपने बेटे के दुःखों में दुःख सहती हुई वहाँ उन्हें अपनी उपस्थिति से सांत्वना देती हुई खडी रहती है। तब प्रभु एक महान घोषणा करते हैं वहाँ सुली पर से। ‘‘यह तुम्हारी माँ है और माँ से कहता है ये तुम्हारे बच्चे हैं। जाते-जाते वो हमें न केवल पापों की मुक्ति दे गया परन्तु उस मुक्ति को प्राप्त करने के लिए एक सहयाक के रूप में अपनी माँ को दे गया। कह गया कि हे माँ जिस प्रकार से तूने मेरे सुःख दुःख में निरंतर मेरा साथ दिया मेरे अंतिम पलों में भी जैसे तू मेरे साथ रही। वैसे ही ये तेरे बेटे-बेटियाँ है इन्हें भी संभालना, इनके सुख-दुख में भी तू इनके साथ रहना। बेतलेहेम की गौषाला में माँ मरियम ने अपने बेटे को सारी दुनिया के लिए दिया था। और आज कलवारी पर वही बेटा अपनी माँ को हमारे लिए दे रहा है, कह रहा है ये तुम्हारी माँ है। कितना सुंदर व कितना महान है ख्रीस्त में प्यारे भाईयों और बहनों माँ-बेटे का दुनिया के लिए ये उपहार।

जब प्रभु ने माता मरियम को संत योहन यह कर दिया कि यह तुम्हारी माँ है तब वचन आगे कहता है कि तब से उस षिष्य ने माता मरियम को अपने यहाँ, अपने घर में स्थान दिया। आईये हम भी हमारी उस माँ को हमारे परिवारों में, हमारे घरों में स्थान दें। माँ हमारे साथ रहकर हमें प्रभु येसु के करीब जाने, उनकी राहों पर चलने व उनके वचनों को सुनते हुए हमारे जीवन व आचरण द्वारा पिता की ईच्छा को पूरा करना सिखलाएगी।


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