विपिन तिग्गा

अगस्त 6 - येसु के रूपान्तरण का पर्व

पहला पाठ- दानिएल 7:9-10, 13-14; दूसरा पाठ - 1पेत्रुस 1: 16-19; सुसमाचार -मत्ती 17:1-9

फादर विपिन तिग्गा


आज हम प्रभु के रूपान्तरण की घटना का स्मरण कर रहे हैं। आज के सुसमाचार में प्रभु येसु पेत्रुस, याकूब और योहन को एक ऊँचे पर्वत पर एकांत में ले जाते हैं और उनके सामने प्रभु का रूपान्तरण हो जाता है।

आज का सुसमाचार इस प्रकार शुरू होता है – “छः दिन बाद ईसा ने पेत्रुस, याकूब और उसके भाई योहन को अपने साथ ले लिया और वह उन्हें एक ऊँचे पहाड़ पर एकान्त में ले चले।” यहाँ पर तुरन्त ही हमें यह प्रश्न करना चाहिए कि सुसमाचार के लेखक हम से छ: दिन की बात क्यों कहते हैं। इसका कारण यह है कि इस घटना के यानि येसु के रूपान्तरण के छ: दिन पहले जो घटना हुयी उस घटना से येसु के रूपान्तरण का कुछ संबंध है। हम छ: दिन पहले की घटना अध्याय 16 में पाते हैं। वहाँ पर हम देखते हैं कि येसु ने अपने शिष्यों से यह पूछा था कि तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ। इस पर प्रेरितों की ओर से पेत्रुस ने यह उत्तर दिया कि आप जीवन्त ईश्वर के पुत्र मसीह हैं। इस पर येसु ने उनको यह समझाया था कि उन्हें येरुसालेम जाना होगा; नेताओं, महायाजकों और शास्त्रियों की ओर से बहुत दुःख उठाना, मार डाला जाना और तीसरे दिन जी उठना होगा। यह सब सुन कर शिष्य विचलित हो गये।

शिष्य एक दुनियावी ताकत के साथ आने वाले एक मसीह का इंतज़ार कर रहे थे। वे एक दुख भोगने वाले, क्रूस पर मरने वाले मसीह को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। इस प्रकार उन्हें विचलित देख कर येसु उन के मनोबल तथा विश्वास को बढ़ाना चाहते थे। इसलिए वे बारहों में से तीन को चुन कर, जिनको आदिम कलीसिया में कलीसिया के स्तंब (गलातियों 2:9) माना जाता है, एक ऊँचे पहाड पर ले जाते हैं और उनके सामने येसु का रूपान्तरण होता है। वहाँ पर शिष्य येसु के स्वर्गिक महिमा की एक झलक देखते हैं।

इस रूपान्तरण के माध्यम से प्रभु येसु ने ईश्वर की महिमा को शिष्यों के सामने प्रकट किया तथा शिष्यों के विश्वास को दृढ बनाया। इस अनुभव ने उन्हें येसु के दुखभोग तथा पुनरुत्थान के समय विचलित न होने तथा अन्य शिष्यों की हिम्मत बढ़ाने में मदद की। शिष्यों ने इस दृढ़ विश्वास को लोगों के बीच बाँटा, प्रभु का सक्ष्य दिया। शिष्यों के दृढ़ विश्वास का प्रमाण हमें, पेत्रुस के दूसरे पत्र अध्याय 1:16-18 में पढ़ने को मिलता है – “जब हमने आप लोगों को अपने प्रभु ईसा मसीह के सामर्थ्य तथा पुनरागमन के विषय में बताया, तो हमने कपट-कल्पित कथाओं का सहारा नहीं लिया, बल्कि अपनी ही आंखों से उनका प्रताप उस समय देखा, जब उन्हें पिता-परमेश्वर के सम्मान तथा महिमा प्राप्त हुई और भव्य ऐश्वर्य में से उनके प्रति एक वाणी यह कहती हुई सुनाई पड़ी, ’’यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ।’’ जब हम पवित्र पर्वत पर उनके साथ थे, तो हमने स्वयं स्वर्ग से आती हुई यह वाणी सुनी।“”

इसी प्रकार संत योहन भी अपने अनुभव का साक्ष्य देते हैं। योहन अपने सुसमाचार के 1:14 में कहते हैं, ““शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया। हमने उसकी महिमा देखी। वह पिता के एकलौते की महिमा-जैसी है- अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण”।”

प्रभु के रूपान्तरण के बाद शिष्यों के जीवन में भी परिवर्तन आया। उनका कमजोर विश्वास दृढ़ हो गया, उन्होंने इसी बात का साक्ष्य लोगों को दिया और उनके विश्वास को भी दृढ़ बनाने के लिए निरंतर कार्य किये।

हमें भी शिष्यों की तरह येसु में अपने विश्वास को दृढ़ बनाना चाहिए तथा अपने जीवन को रूपांतरित करना चाहिए। हम भी हर दिन अपने जीवन में मुक्ति, शांति, ईश्वरीय प्रेम व कृपा पाने के लिए पर्वत पर चढ़ रहे हैं, हर दिन पर्वत पर चढ़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हमारे पर्वत-मार्ग में हमें कई प्रकार के कष्ट व बाधाओं का सामना प्रत्येक दिन करना पडता है। ये बाधायें हैं घमंड, ईर्ष्या, निराशा, स्वार्थ, लालच, दोषारोपण इत्याति अनेक प्रकार की बुराईयाँ जो हमारे पर्वत-मार्ग में रुकावट उत्पन्न करती हैं। इस कारण हम ईश्वरीय प्रेम, शांति और कृपा से वंचित रह जाते हैं। हमें अपने पापों, बुराईयों, कमजोरियों के लिए ईश्वर से क्षमा माँगना चाहिए, और अपनी आत्मा की मुक्ति के लिए कार्य करते हुए जीवन में आगे बढ़ना चाहिए। यह एक लंबी चढाई या आध्यात्मिक यात्रा है जिसमें हमें धैर्य, दृढ़ता, विश्वास की आवश्यकता है। जीवन की इस चढ़ाई में येसु के साथ की ज़रूरत है।


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