आगमन पुष्पांजलि प्रार्थनाएं

(Advent Wreath Prayers)

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(Following are the Prayers for the lighting of candles of the Advent wreath on the four Sundays of Advent. Hope, Peace, Joy and Love are the themes for the four Sundays. As the entrance procession reaches the altar, the Priest proclaims the Word of God given and recites the respective prayer before he lights the candle. Then he goes to the altar. The entrance hymn may be paused for this ritual.)

प्रस्तावना :- आगमन काल इंतज़ार का समय है। करीब दो हज़ार वर्ष पहले ईश्वर मनुष्य बन कर इस दुनिया में आये। तीन दशक मनुष्यों के बीच रहने के बाद उन्होंने अपना सार्वजनिक जीवन शुरू किया। लगभग तीन वर्षों के अपने सार्वजनिक जीवन में उन्होंने लोगों को स्वर्गराज्य के आगमन का सुसमाचार सुनाया और उसका अनुभव कराया। तत्पेश्चात् वे दुख भोग कर क्रूस पर मर कर तीसरे दिन जी उठे। चालीस दिन तक अपने शिष्यों को कई बार दर्शन देकर उन्होंने उन्हें पुनर्जीवित होने का प्रमाण दिया। फिर वे स्वर्ग में आरोहित किये गये। हम विश्वास करते हैं कि वे मानवजाति के न्यायकर्ता के रूप में संसार के अंत में फिर आयेंगे। हम उनके आगमन की प्रतीक्षा में अपना जीवन बिताते हैं। आगमन पुष्पांजलि इसी इंतज़ार का प्रतीक है। इन चार सफ़्ताहों में कलीसिया येसु के अग्रदूत संत योहन बपतिस्ता के संदेश पर मनन चिंतन करते हुए येसु को ग्रहण करने के लिए अपने आप को तैयार करती है।

आगमन का पहला इतवार

विषय :- आशा

ईशवचन :- स्तोत्र 42:2-4, 9 - “ईश्वर! जैसे हरिणी जलधारा के लिए तरसती है, वैसे मेरी आत्मा तेरे लिए तरसती है, मेरी आत्मा ईश्वर की, जीवन्त ईश्वर की प्यासी है। मैं कब जा कर ईश्वर के दर्शन करूँगा? दिन-रात मेरे आँसू ही मेरा भोजन है। लोग दिन भर यह कहते हुए मुझे छेड़ते हैं: "कहाँ है तुम्हारा ईश्वर?" ... दिन में मैं प्रभु की कृपा के लिए तरसता हूँ, रात को मैं अपने जीवन्त ईश्वर की स्तुति गाता हूँ।“

प्रार्थना:- हे प्रभु येसु, तू ही हमारी आशा है। जैसे हम आगमन काल में प्रवेश कर रहे हैं, तू हमारे हृदय में आशा जगा दे ताकि हम अपने जीवन को तेरे आगमन के लिए योग्य रीति से तैयार कर सकें तू जो पिता और पवित्र आत्मा के साथ युगानुयुग जीवित रहता और राज्य करता है। आमेन।

आगमन का दूसरा इतवार

विषय :- शांति

ईशवचन :- योहन 14:1,27 - “तुम्हारा जी घबराये नहीं। ईश्वर में विश्वास करो और मुझ में भी विश्वास करो! ... मैं तुम्हारे लिये शांति छोड जाता हूँ। अपनी शांति तुम्हें प्रदान करता हूँ। वह संसार की शांति-जैसी नहीं है। तुम्हारा जी घबराये नहीं। भीरु मत बनो।“

प्रार्थना :- हे प्रभु, तू शान्ति का राजा है। तेरे विषय में नबी इसायाह ने भविष्यवाणी की थी कि तू सदा के लिए शान्ति, न्याय और धार्मिकता का साम्राज्य स्थापित करेगा (इसायाह 9:6)। हम तुझ से विनती करते हैं कि हमें तेरी शांति का एहसास करा और हमारी घबराहट और बेचैनी दूर कर, तू जो पिता और पवित्र आत्मा के साथ युगानुयुग जीवित रहता और राज्य करता है। आमेन।

आगमन का तीसरा इतवार

विषय :- आनन्द

ईशवचन :- 1 योहन 1:1-4 - “हमारा विषय वह शब्द है, जो आदि से विद्यमान था। हमने उसे सुना है। हमने उसे अपनी आंखों से देखा है। हमने उसका अवलोकन किया और अपने हाथों से उसका स्पर्श किया है। वह शब्द जीवन है और यह जीवन प्रकट किया गया है। यह शाश्वत जीवन, जो पिता के यहाँ था और हम पर प्रकट किया गया है- हमने इसे देखा है, हम इसके विषय में साक्ष्य देते ओर तुम्हें इसका सन्देश सुनाते हैं। हमने जो देखा और सुना है, वही हम तुम लोगों को भी बताते हैं, जिससे तुम हमारे साथ पिता और उस के पुत्र ईसा मसीह के जीवन के सहभागी बनो। हम तुम्हें यह लिख रहे हैं, जिससे हम सबों का आनन्द परिपूर्ण हो जाये।“

प्रार्थना :- हे प्रभु येसु, तू चाहता है कि हम तेरे आनंद के भागी बनें और हमारा आनंद परिपूर्ण हो। तू हमारे दुख-दर्द को अपने ऊपर लेता और हमारे बोझ को हलका करता है। हमें यह वर दे कि तेरे आगमन से हमारे दुख आनन्द में बदल जाये, तू जो पिता और पवित्र आत्मा के साथ युगानुयुग जीवित रहता और राज्य करता है। आमेन।

आगमन का चौथा इतवार

विषय :- प्रेम

ईशवचन :- योहन 15:13-15 - “इस से बडा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिये अपने प्राण अर्पित कर दे। यदि तुम लोग मेरी आज्ञाओं का पालन करते हो, तो तुम मेरे मित्र हो। अब से मैं तुम्हें सेवक नहीं कहूँगा। सेवक नहीं जानता कि उसका स्वामी क्या करने वाला है। मैंने तुम्हें मित्र कहा है क्योंकि मैंने अपने पिता से जो कुछ सुना वह सब तुम्हें बता दिया है।

प्रार्थना :- हे प्रेमी येसु। तू प्रेम का स्रोत तथा परिपूर्णता है। हमारे दिलों में सबों के प्रति प्रेम भर दे ताकि हम तेरे समान शत्रुओं को भी प्यार कर सकें तथा उन्हें क्षमा कर स्वर्गिक पिता की सच्ची संतान बनें। तू जो पिता और पवित्र आत्मा के साथ युगानुयुग जीवित रहता और राज्य करता है। आमेन।


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