धन्य कुँवारी मरियम का निष्कलंक हृदय - ऐच्छिक स्मरण

पेंतेकोस्त के उपरान्त दूसरे इतवार के बाद का शनिवार

📕पहला पाठ

नबी इसायस का ग्रंथ 61:9-11

“मैं प्रभु में प्रफुल्लित हो उठता हूँ।"

उनका वंश राष्ट्रों में प्रसिद्ध होगा और उनकी संतति का नाम देश-विदेश में फैल जायेगा। उन्हें देखने वाले सब के सब जान जायेंगे कि वे प्रभु की चुनी हुई प्रजा हैं। मैं प्रभु में प्रफुल्लित हो उठता हूँ, मेरा मन अपने ईश्वर में आनन्द मनाता है। जिस तरह वर पगड़ी बाँध कर और वधू गहने पहन कर सुशोभित होते हैं, उसी तरह प्रभु ने मुझे मुक्ति के वस्त्र पहनाये और मुझ पर धार्मिकता की चादर डाल दी है। जिस तरह पृथ्वी अपनी उपज उगाती है और बाग बीजों को अंकुरित करता है, उसी तरह प्रभु-ईश्वर सभी राष्ट्रों में धार्मिकता तथा भक्ति उत्पन्न करता है।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : 1 समूएल 2:1,4-8

अनुवाक्य : मेरा हृदय प्रभु के कारण आनन्दित हो उठता है।

1. मेरा हृदय प्रभु के कारण आनन्दित हो उठता है। मुझे अपने प्रभु से शक्ति मिली है और मैं अपने शत्रुओं का सामना कर सकता हूँ, क्योंकि तेरा सहारा मुझे उत्साह देता है।

2. शक्तिशालियों के धनुष टूट गये और जो दुर्बल थे, वे शक्तिसम्पन्न बन गये। जो धनी थे, वे रोटी के लिए मज़दूरी करते हैं और जो भूखे थे, वे सम्पन्न बन गये। जो बाँझ थी, यह सात बार प्रसव करती है और जो पुत्रवती थी, उसकी गोद खाली है।

3. प्रभु ही मारता और जिलाता है, वह मनुष्यों को अधोलोक पहुँचाता और वहाँ से निकालता है, प्रभु निर्धन और धनी बनाता है, वह मनुष्यों को नीचा दिखाता और उन्हें ऊँचा उठाता है।

4. वह दीन-हीन को धूल में से निकालता है और कूड़े पर बैठे हुए कंगाल को ऊपर उठा कर उसे रइसों की संगति में पहुँचाता है और सम्मान के आसन पर बैठाता है।

📒जयघोष

(अल्लेलूया, अल्लेलूया!) हे संत कुँवारी मरियम, आप धन्य हैं और सब प्रशंसा के योग्य! क्योंकि न्याया का सूर्य, मसीह, हमारा ईश्वर आप से उत्पन्न हुआ है। (अल्लेलूया)

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 2:41-51

"तुम्हारे पिता और मैं दुःखी हो कर तुम को ढूँढ़ते रहे।"

येसु के माता-पिता प्रति वर्ष पास्का पर्व के लिए येरुसालेम जाया करते थे। जब बालक बारह बरस का था, तो वे प्रथा के अनुसार पर्व के लिए येरुसालेम गये। पर्व समाप्त हुआ और वे लौट पड़े; परन्तु बालक येसु अपने माता-पिता के अनजान में येरुसालेम में रह गया। वे यह समझ रहे थे कि वह यात्रीदल के साथ है; इसलिए वे एक दिन की यात्रा पूरी करने के बाद ही उसे अपने कुटुम्बियों और परिचितों के बीच ढूँढ़ने लगे। उन्होंने उसे नहीं पाया और ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वे येरुसालेम लौटे। तीन दिनों के बाद उन्होंने येसु को मंदिर में शास्त्रियों के बीच बैठे, उनकी बातें सुनते और उन से प्रश्न करते पाया। सभी सुनने वाले उसकी बुद्धि और उसके उत्तरों पर चकित रह जाते थे। उसके माता-पिता उसे देख कर अचंभे में पड़ गये और उसकी माता ने उस से कहा, “बेटा! तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? देखो तो, तुम्हारे पिता और मैं दुःखी हो कर तुम को ढूँढ़ रहे थे।" उसने अपने माता-पिता से कहा, "मुझे ढूँढ़ने की क्या जरूरत थी! क्या आप यह नहीं जानते थे कि मैं निश्चय ही अपने पिता के घर में होऊँगा?" परन्तु येसु का यह कथन उनकी समझ में नहीं आया। येसु उनके साथ नाज़रेत गये और उनके अधीन रहे।

प्रभु का सुसमाचार।