पौलुस ने लोगों से कहा, "मैं यहूदी हूँ। मेरा जन्म तो सिलिसिया के तारसुस नगर में हुआ था, किन्तु मेरा पालन-पोषण यहाँ, इस नगर में हुआ। गमालिएल के चरणों में बैठ कर मुझे पूर्वजों की संहिता की कट्टर व्याख्या के अनुसार शिक्षा-दीक्षा मिली। मैं ईश्वर का वैसा ही उत्साही उपासक बन गया, जैसे आप सब आज हैं। मैंने इस पन्थ को समाप्त कर देने के लिए इस पर घोर अत्याचार किया और इसके स्त्री-पुरुषों को बाँध बाँध कर बन्दीगृह में डाल दिया- प्रधानयाजक तथा समस्त महासभा मेरी इस बात के साक्षी हैं। उन्हीं से पत्र ले कर मैं दमिश्क के भाइयों के पास जा रहा था, जिससे वहाँ के लोगों को भी बाँध कर येरुसालेम ले आऊँ और दण्ड दिलाऊँ। जब मैं यात्रा करते-करते दमिश्क के पास पहुँचा, तो दोपहर के लगभग एकाएक आकाश से एक प्रचण्ड ज्योति मेरे चारों ओर चमक उठी। मैं भूमि पर गिर पड़ा और मुझे एक वाणी यह कहती हुई सुनाई दी, 'साऊल ! साऊल ! तुम मुझ पर क्यों अत्याचार करते हो?' मैंने उत्तर दिया, 'प्रभु ! आप कौन हैं?' उन्होंने मुझ से कहा, 'मैं येसु नाज़री हूँ, जिस पर तुम अत्याचार करते हो'। मेरे साथियों ने ज्योति तो देखी, किन्तु मुझ से बात करने वाले की आवाज नहीं सुनी। मैंने कहा, 'प्रभु ! मुझे क्या करना चाहिए?' प्रभु ने उत्तर दिया, 'उठो और दमिश्क जाओ। तुम्हें जो कुछ करना है, वह सब तुम्हें वहाँ बताया जायेगा।' उस ज्योति के तेज के कारण मैं देखने में असमर्थ हो गया था, इसलिए मेरे साथी हाथ पकड़ कर मुझे ले चले और इसी प्रकार मैं दमिश्क पहुँचा। वहाँ अनानियस नामक सज्जन मुझ से मिलने आये। वह संहिता पर चलने वाले भक्त और वहाँ रहने वाले यहूदियों में प्रतिष्ठित थे। उन्होंने मेरे पास खड़ा हो कर कहा, 'भाई साऊल ! दृष्टि प्राप्त कीजिए।' उसी क्षण मेरी आँखों की ज्योति लौट आयी और मैंने उन्हें देखा। तब उन्होंने कहा, 'हमारे पूर्वजों के ईश्वर ने आप को इसलिए चुना कि आप उसकी इच्छा जान लें, मसीह के दर्शन करें और उनके मुख की वाणी सुनें; क्योंकि आप को ईश्वर की ओर से सब मनुष्यों के सामने उन सब बातों का साक्ष्य देना है, जिन्हें आपने देखा और सुना है। अब आप देर क्यों करें? उठ कर बपतिस्मा ग्रहण कीजिए और उनके नाम की दुहाई दे कर अपने पापों से मुक्त हो जाइए'।"
प्रभु की वाणी।
साऊल पर अब भी प्रभु के शिष्यों को धमकाने तथा मार डालने की धुन सवार थी। उसने प्रधानयाजक के पास जा कर दमिश्क के सभागृहों के नाम पत्र माँगे, जिन में उसे यह अधिकार दिया गया कि यदि वह वहाँ नवीन पन्थ के अनुयायियों का पता लगाये, तो वह उन्हें वे पुरुष हों अथवा स्त्रियाँ बाँध कर येरुसालेम ले आये। जब वह यात्रा करते-करते दमिश्क के पास पहुँचा, तो एकाएक आकाश से एक ज्योति उसके चारों ओर चमक उठी। वह भूमि पर गिर पड़ा और उसे एक वाणी यह कहती हुई सुनाई दी, "साऊल ! साऊल ! तुम मुझ पर क्यों अत्याचार करते हो?" उसने कहा, "प्रभु ! आप कौन हैं? उत्तर मिला, "मैं येसु हूँ, जिस पर तुम अत्याचार करते हो। उठो और शहर जाओ। तुम्हें जो करना है, वह तुम्हें बताया जायेगा।" उसके साथ यात्रा करने वाले दंग रह गये। वे वाणी तो सुन रहे थे, किन्तु किसी को नहीं देख पा रहे थे। साऊल भूमि से उठा, किन्तु आँखें खोलने पर वह कुछ नहीं देख सका। इसलिए वे हाथ पकड़ कर उसे दमिश्क ले चले। वह तीन दिनों तक अंधा बना रहा और वह न तो खाता और न पीता था। दमिश्क में अनानियस नामक एक शिष्य रहता था। प्रभु ने उसे दर्शन दे कर कहा, "अनानियस !" उसने उत्तर दिया, "प्रभु ! प्रस्तुत हूँ।" प्रभु ने उस से कहा, "तुरन्त सीधी नामक गली जाओ और यूदस के घर में साऊल तारसी का पता लगाओ। वह प्रार्थना कर रहा है।" साऊल ने दर्शन में देखा कि अनानियस नामक मनुष्य उसके पास आ कर उस पर हाथ रख रहा है, जिससे उसे दृष्टि प्राप्त हो जाये। अनानियस ने आपत्ति करते हुए कहा, "प्रभु ! मैंने अनेक लोगों से सुना है कि इस व्यक्ति ने येरुसालेम में आपके सन्तों पर कितना अंत्याचार किया। उसे महायाजकों से यह अधिकार मिला है कि वह यहाँ उन सबों को गिरफ्तार कर ले जो आपके नाम की दुहाई देते हैं।" प्रभु ने अनानियस से कहा, "जाओ। वह मेरा कृपापात्र है। वह गैरयहूदियों, राजाओं तथा इस्राएलियों में मेरे नाम का प्रचार करेगा। मैं स्वयं उसे बताऊँगा कि उसे मेरे नाम के कारण कितना कष्ट भोगना होगा।" तब अनानियस गया और उस घर के अन्दर आया। उसने साऊल पर हाथ रख दिये और कहा, "भाई साऊल ! प्रभु येसु आप को आते समय रास्ते में दिखाई दिये थे। उन्होंने मुझे भेजा है, जिससे आप को दृष्टि प्राप्त हो और आप पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जायें।" उसी क्षण ऐसा लग रहा था कि उसकी आँखों से छिलके गिर रहे हैं। उसे दृष्टि प्राप्त हो गयी और उसने तुरन्त बपतिस्मा ग्रहण किया। उसने भोजन किया और उसके शरीर में बल आया। साऊल कुछ समय तक दमिश्क के शिष्यों के साथ रहा। वह शीघ्र ही सभागृहों में येसु के विषय में प्रचार करने लगा कि वह ईश्वर के पुत्र हैं। सब सुनने वाले अचम्भे में पड़ कर कहते थे, "क्या यह वही नहीं है, जो येरुसालेम में इस नाम की दुहाई देने वालों को मिटाने का प्रयास करता था? क्या वह यहाँ इसलिए नहीं आया, कि वह उन्हें बाँध कर महायाजकों के पास ले जाये?" किन्तु साऊल का सामर्थ्य बढ़ता जा रहा था और में रहने वाले यहूदियों को असमंजस में डाल देता था।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : संसार के कोने-कोने में जा कर सारी सृष्टि को सुसमाचार सुनाओ। (अथवा : अल्लेलूया, अल्लेलूया!)
1. अल्लेलूया ! हे समस्त जातियो ! प्रभु की स्तुति करो। हे समस्त राष्ट्रो ! उसकी महिमा गाओ।
2. हमारे प्रति उसका प्रेम समर्थ है; उसकी सत्यप्रतिज्ञता सदा-सर्वदा बनी रहती है।
अल्लेलूया, अल्लेलूया ! मैंने तुम्हें संसार में से चुना है जिससे तुम जा कर फल उत्पन्न करो और तुम्हारा फल बना रहे। यह प्रभु का कहना है। अल्लेलूया !
येसु ने ग्यारहों को दिखाई दे कर उन से कहा, "संसार के कोने-कोने में जा कर सारी सृष्टि को सुसमाचार सुनाओ। जो विश्वास करेगा और बपतिस्मा ग्रहण करेगा, उसे मुक्ति मिलेगी; जो विश्वास नहीं करेगा, वह दोषी ठहराया जायेगा। विश्वास करने वाले ये चमत्कार दिखाया करेंगे। वे मेरा नाम ले कर अपदूतों को निकालेंगे, नवीन भाषाएँ बोलेंगे और साँपों को उठा लेंगे। यदि वे विष पियेंगे, तो उस से उन्हें कोई भी हानि नहीं होगी। वे रोगियों पर हाथ रखेंगे और रोगी स्वस्थ हो जायेंगे।"
प्रभु का सुसमाचार।