जनवरी 26
सन्त तिमथी एवं तीतुस, धर्माध्यक्ष - अनिवार्य स्मरण-दिवस

📕पहला पाठ

तिमथी के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र 1:1-8

"मुझे तुम्हारा निष्कपट विश्वास याद है।"

यह पत्र प्रिय पुत्र तिमथी के नाम उस पौलुस की ओर से है, जिसे ईश्वर ने इस बात का प्रचार करने के लिए येसु मसीह का प्रेरित चुना है कि उसने हमें जीवन प्रदान करने की जो प्रतिज्ञा की थी, वह येसु में पूरी हो गयी है। पिता-परमेश्वर और हमारे प्रभु येसु मसीह तुम्हें अनुग्रह, दया तथा शांति प्रदान करें। मैं अपने पूर्वजों की तरह शुद्ध अंतःकरण से ईश्वर की सेवा करता हूँ और उसे धन्यवाद देता हुआ निरन्तर रात-दिन तुम्हें अपनी प्रार्थनाओं में याद करता हूँ। जब मुझे तुम्हारे आँसुओं का स्मरण आता है तो तुम से फिर गिलने की तीव्र अभिलाषा हो जाती है, जिससे मेरा आनन्द परिपूर्ण हो जाये। तब मुझे तुम्हारा निष्कपट विश्वास सहज ही याद आता है। वह विश्वास पहले तुम्हारी नानी लोइस तथा तुम्हारी माता युनिस में विद्यमान था और मुझे निश्चय है। अब तुम में भी विद्यमान है। मैं तुम से अनुरोध करता हूँ कि तुम ईश्वरीय वरदान की वह ज्वाला प्रज्वलित बनाये रखो, जो मेरे हाथों के आरोपण से तुम में विद्यमानं है। ईश्वर ने हमें भीरुता का नहीं, बल्कि सामर्थ्य, प्रेम तथा आत्मसंयम का मनोभाव प्रदान किया है। तुम न तो हमारे प्रभु का साक्ष्य देने में लजाओ और न मुझ से, जो उनके लिए बन्दी हूँ, बल्कि ईश्वर के सामर्थ्य पर भरोसा रख कर तुम मेरे साथ सुसमाचार के लिए कष्ट सहते जाओ।

प्रभु की वाणी।

📕वैकल्पिक पहला पाठ

तीतुस के नाम सन्त पौलुस का पत्र 1:1-5

“एक ही विश्वास में सहभागिता के नाते सच्चे पुत्र तीतुस के नाम।"

यह पत्र, एक ही विश्वास में सहभागिता के नाते सच्चे पुत्र तीतुस के नाम, पौलुस की ओर से है, जो ईश्वर का दास तथा येसु मसीह का प्रेरित है, ताकि वह ईश्वर के कृपापात्रों को विश्वास, सच्ची भक्ति का ज्ञान तथा अनन्त जीवन की आशा दिलाये । सत्यवादी ईश्वर ने अनादि काल से इस जीवन की प्रतिज्ञा की थी। अब, उपयुक्त समय में उसका अभिप्राय उस संदेश द्वारा स्पष्ट कर दिया गया है, जिसका प्रचार हमारे मुक्तिदाता ईश्वर ने मुझे सौंपा है। पिता-परमेश्वर और हमारे मुक्तिदाता येसु मसीह तुम्हें अनुग्रह तथा शांति प्रदान करें। मैंने तुम्हें इसलिए क्रेत में रहने दिया कि तुम वहाँ कलीसिया का संगठन पूरा कर दो और मेरे अनुदेश के अनुसार प्रत्येक नगर में पुरोहितों को नियुक्त करो ।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 95:1-3,7-8,10

अनुवाक्य : सभी लोगों को प्रभु के अपूर्व कार्यों का गीत सुनाओ।

1. प्रभु के आदर में नया गीत गाओ। समस्त पृथ्वी! प्रभु का भजन सुनाओ। भजन गाते हुए प्रभु का नाम धन्य कहो।

2. दिन-प्रतिदिन उसका मुक्ति-विधान घोषित करते जाओ। सभी राष्ट्रों में उसकी महिमा का बखान करो। सभी लोगों को उसके अपूर्व कार्यों का गीत सुनाओ।

3. पृथ्वी की सभी जातियो! प्रभु की महिमा तथा शक्ति का बखान करो। उसके नाम की महिमा का गीत सुनाओ।

4. राष्ट्रों को यह घोषित करो प्रभु ही राजा है। उसी ने पृथ्वी का आधार सुदृढ़ बना दिया। वह न्यायपूर्वक सभी लोगों का विचार करेगा।

📒जयघोष

(अल्लेलूया, अल्लेलूया !) प्रभु ने मुझे दरिद्रों को सुसमाचार सुनाने और बंदियों को मुक्ति का संदेश देने भेजा है,(अल्लेलूया !)

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 10:1-9

"फ़सल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं।"

प्रभु ने अन्य बहत्तर शिष्य नियुक्त किये और जिस-जिस नगर और गाँव में वह जाने वाले थे, वहाँ दो-दो करके उन्हें अपने आगे भेजा। उन्होंने उन से कहा, "फ़सल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं; इसलिए फ़सल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे। जाओ, मैं तुम्हें भेड़ियों के बीच भेड़ों की तरह भेजता हूँ। तुम न थैली, न झोली और न जूते ले जाओ और रास्ते में किसी को नमस्कार मत करो। जिस घर में प्रवेश करते हो, सब से पहले यह कहो, 'इस घर को शांति' ! यदि वहाँ शांति के योग्य कोई होगा, तो तुम्हारी शांति उस पर ठहरेगी, नहीं तो वह तुम्हारे पास लौट आयेगी। उसी घर में ठहरे रहो और उनके पास जो हो, वही खाओ-पियो; क्योंकि मज़दूर को मज़दूरी का अधिकार है। घर पर घर बदलते न रहो। जिस नगर में प्रवेश करते हो और वे तुम्हारा स्वागत करें, तो जो कुछ तुम्हें परोसा जाये, वही खा लो। वहाँ के रोगियों को चंगा करो और उन से कहो, 'ईश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ गया है'।"

प्रभु का सुसमाचार।