प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : वह महाप्रतापी राजा कौन हैं? प्रभु ही वह महाप्रतापी राजा हैं।
1. ऐ फाटको! मेहराब ऊपर करो! ऐ प्राचीन द्वारो! ऊँचे हो जाओ! महाप्रतापी राजा को प्रवेश करने दो!
2. वह महाप्रतापी राजा कौन हैं? प्रभु ही वह महाप्रतापी राजा है- समर्थ, शक्तिशाली और पराक्रमी।
3. ऐ फाटको! मेहराब ऊपर करो! ऐ प्राचीन द्वारो! ऊँचे हो जाओ! महाप्रतापी राजा को प्रवेश करने दो!
4. वह महाप्रतापी राजा कौन हैं? वह महाप्रतापी राजा विश्वमंडल के प्रभु हैं।
परिवार के सभी सदस्यों का रक्त-मांस एक ही होता है, इसलिए येसु भी हमारी ही तरह मनुष्य बन गये जिससे वह, अपनी मृत्यु द्वारा, मृत्यु पर अधिकार रखने वाले शैतान को परास्त करें और मृत्यु के भय से दासता में जीवन बिताने वाले मनुष्यों को मुक्त कर दें। वह स्वर्गदूतों की नहीं, बल्कि इब्राहीम के वंशजों की सुध लेते हैं। इसलिए यह आवश्यक था कि वह सभी बातों में अपने भाइयों के सदृश बन जायें, जिससे वह ईश्वर-संबंधी बातों में मनुष्यों के दयालु और ईमानदार महायाजक के रूप में उनके पापों का प्रायश्चित्त कर सकें। उनकी परीक्षा ली गयी है और उन्होंने स्वयं दुःख भोगा है, इसलिए वह परीक्षा में दुःख भोगने वालों की सहायता कर सकते हैं।
<>प्रभु की वाणी।
अल्लेलूया, अल्लेलूया! गैरयहूदियों के लिए ज्योति और तेरी प्रजा इस्राएल का गौरव। अल्लेलूया!
जब मूसा की संहिता के अनुसार शुद्धीकरण का दिन आया, तब वे बालक को प्रभु को अर्पित करने के लिए येरुसालेम ले गये; जैसा प्रभु की संहिता में लिखा है। हर पहलौठा बेटा प्रभु को अर्पित किया जाये और इसलिए भी कि वे प्रभु की संहिता के अनुसार पंडुकों का एक जोड़ा या कपोत के दो बच्चे बलिदान में चढ़ायें। उस समय येरुसालेम में सिमेयोन नामक एक धर्मी तथा भक्त पुरुष रहता था; वह इस्राएल की सान्त्वना की प्रतीक्षा में था और पवित्र आत्मा उस पर छाया रहता था। उसे पवित्र आत्मा से यह सूचना मिली थी कि वह प्रभु के मसीह को देखे बिना नहीं मरेगा। वह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से मंदिर आया। माता-पिता शिशु येसु के लिए संहिता की रीतियाँ पूरी करने जब उसे भीतर लाये, तो सिमेयोन ने येसु को अपनी गोद में ले लिया और ईश्वर की स्तुति करते हुए कहा, "हे प्रभु, अब तू अपने वचन के अनुसार अपने दास को शांति के साथ विदा कर; क्योंकि मेरी आँखों ने उस मुक्ति को देखा है, जिसे तूने सब राष्ट्रों के लिए प्रस्तुत किया है। यह गैरयहूदियों के प्रबोधन के लिए ज्योति है और तेरी प्रजा इस्राएल का गौरव।"
[बालक के विषय में ये बातें सुन कर उसके माता-पिता अचम्भे में पड़ गये । सिमेयोन ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उसकी माता मरियम से यह कहा, "देखिए, इस बालक के कारण इस्स्राएल में बहुतों का पतन और उत्थान होगा। यह एक चिह्न है जिसका विरोध किया जायेगा, जिससे बहुत-से हृदयों के विचार प्रकट हो जायें और एक तलवार आपके हृदय को आर-पार बेधेगी।" अन्ना नामक एक नबिया थी, जो असेर-वंशी फ़नुएल की बेटी थी। वह बहुत बूढ़ी हो चली थी। वह विवाह के बाद केवल सात बरस तक अपने पति के साथ रह कर विधवा हो गयी थी और अब चौरासी बरस की थी। वह मंदिर से बाहर नहीं जाती थी और उपवास तथा प्रार्थना करते हुए रात-दिन ईश्वर की उपासना में लगी रहती थी। वह उसी घड़ी आ कर प्रभु की स्तुति करने लगी और जो लोग येरुसालेम की मुक्ति की प्रतीक्षा में थे, वह उन सबों को उस बालक के विषय में बताया करती थी। प्रभु की संहिता के अनुसार सब कुछ पूरा कर लेने के बाद वे गलीलिया - अपनी नगरी नाज़रेत - लौट गये। वह बालक बढ़ता गया; उस में बल तथा बुद्धि का विकास होता गया और उस पर ईश्वर का अनुग्रह बना रहा।]
प्रभु का सुसमाचार।