मई 14 - सन्त मथियस, प्रेरित - पर्व

📕पहला पाठ

प्रेरित-चरित 1:15-17,20-26

"चिट्ठी मथियस के नाम निकली और उसकी गिनती ग्यारह प्रेरितों के साथ होने लगी।"

पेत्रुस भाइयों के बीच खड़े हो गये। वहाँ लगभग एक सौ बीस व्यक्ति एकत्र थे। पेत्रुस ने कहा, "भाइयो! यह अनिवार्य था कि धर्मग्रंथ की वह भविष्यवाणी पूरी हो जाये, जिसे पवित्र आत्मा ने दाऊद के मुख से यूदस के विषय में कहा था। वह येसु को गिरफ्तार करने वालों का अगुआ बन गया था। यूदस हम लोगों में से एक और धर्मसेवा में हमारा साथी था। स्तोत्र-संहिता में यह लिखा है कोई दूसरा उसका पद ग्रहण करे। उचित है कि जितने समय तक प्रभु येसु हमारे बीच रहे, अर्थात् योहन के बपतिस्मा से ले कर प्रभु के स्वर्गारोहण तक जो लोग बराबर हमारे साथ थे, उन में से एक हमारे साथ प्रभु के पुनरुत्थान का साक्षी बन जाये।" इस पर उन्होंने दो व्यक्तियों को प्रस्तुत किया - यूसुफ़ को, जो बरसबा कहलाता था और जिसका दूसरा नाम युस्तुस था, और मथियस को। तब उन्होंने इस प्रकार प्रार्थना की, "हे प्रभु! तू सब का हृदय जानता है। यह प्रकट कर कि इन दोनों में से तूने किस को चुना है, ताकि वह धर्मसेवा तथा प्रेरिताई में वह पद ग्रहण करे जिस से पतित हो कर यूदस अपने स्थान में चला गया।" उन्होंने चिट्ठी डाली। चिट्ठी मथियस के नाम निकली और उसकी गिनती ग्यारह प्रेरितों के साथ होने लगी।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 112:1-8

अनुवाक्य : प्रभु उन्हें अपनी प्रजा के शासकों के साथ बैठाता है। अल्लेलूया! (अथवा : अल्लेलूया!

1. प्रभु के सेवको! स्तुति करो! प्रभु के नाम की स्तुति करो। धन्य है प्रभु का नाम, अभी और अनन्त काल तक!

2. सूर्योदय से ले कर सूर्यास्त तक प्रभु के नाम की स्तुति हो। प्रभु सभी राष्ट्रों का शासक है। उसकी महिमा आकाश से भी ऊँची है।

3. हमारे प्रभु-ईश्वर के सदृश कौन? वह उच्च सिंहासन पर विराजमान हो कर स्वर्ग और पृथ्वी, दोनों पर दृष्टि रखता है।

4. वह धूल में से दीनों को तथा कूड़े पर से दरिद्रों को ऊपर उठाता है। वह उन्हें शासकों के साथ बैठाता है, अपनी प्रजा के शासकों के साथ ही।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया! प्रभु कहते हैं, "मैंने तुम्हें चुना है, जिससे तुम जा कर फल उत्पन्न करो और तुम्हारा फल बना रहे।" अल्लेलूया!

📙सुसमाचार

योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 15:9-17

“मैं अब से तुम्हें सेवक नहीं कहूँगा। मैं तुम्हें मित्र कहूँगा।"

येसु ने अपने शिष्यों से कहा, "पिता ने जैसे मुझे प्यार किया है, वैसे मैंने भी तुम लोगों को प्यार किया है। तुम मेरे प्रेम में दृढ़ बने रहो। यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे, तो मेरे प्रेम में दृढ़ बने रहोगे; मैंने भी अपने पिता की आज्ञाओं का पालन किया है और उसके प्रेम में दृढ़ बना रहता हूँ। मैंने तुम लोगों से ये बातें कही हैं, जिससे तुम मेरे आनन्द के भागी बनो और तुम्हारा आनन्द परिपूर्ण हो। यह मेरी आज्ञा है मैंने जैसे तुम लोगों को प्यार किया है, वैसे तुम भी एक दूसरे को प्यार करो। अपने मित्रों के लिए अपने प्राण अर्पित करने से बड़ा किसी का प्रेम नहीं। यदि तुम लोग मेरी आज्ञाओं का पालन करते हो, तो तुम मेरे मित्र हो। अब से मैं तुम्हें सेवक नहीं कहूँगा। सेवक नहीं जानता कि उसका स्वामी क्या करने वाला है। मैंने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैंने अपने पिता से जो कुछ सुना है, वह सब तुम्हें बता दिया है। तुमने मुझे नहीं चुना है, बल्कि मैंने तुम्हें चुना और नियुक्त किया है, जिससे तुम जा कर फल उत्पन्न करो और तुम्हारा फल बना रहे। तब तुम मेरा नाम ले कर पिता से जो कुछ माँगोगे, वह तुम्हें वही प्रदान करेगा। मैं तुम लोगों को यह आज्ञा देता हूँ- एक दूसरे को प्यार करो।”

प्रभु का सुसमाचार।