बहुत-से लोग विश्वासी बन कर प्रभु के पास लौट आये। येरुसालेम की कलीसिया ने उन बातों की चरचा सुनी और उसने बरनाबस को आंताखिया भेजा। जब बरनाबस ने यहाँ पहुँच कर ईश्वरीय अनुग्रह का प्रभाव देखा, तो वह आनन्दित हो उठा। उसने सबों से अनुरोध किया कि वे सारे हृदय से प्रभु के प्रति ईमानदार बने रहें, क्योंकि वह भला मनुष्य था और पवित्र आत्मा तथा विश्वास से परिपूर्ण था। इस प्रकार बहुत-से लोग प्रभु के शिष्यों में सम्मिलित हो गये। इसके बाद बरनाबस पौलुस की खोज में तारसुस चला गया और उसका पता लगा कर उसे आंताखिया ले आया। दोनों एक पूरे वर्ष तक वहाँ की कलीसिया के यहाँ ठहर कर बहुत-से लोगों को शिक्षा देते रहे। आंताखिया में शिष्यों को पहले पहल 'मसीही' नाम मिला। आंताखिया की कलीसिया में कई नबी और शिक्षक थे - जैसे बरनाबस, सिमोन जो नीगेर कहलाता था, लुसियुस किरीनी, राजा हेरोद का दूध-भाई मनाहेन और साऊल। वे किसी दिन उपवास करते हुए प्रभु की उपासना कर रहे थे कि पवित्र आत्मा ने कहा, “मैंने बरनाबस तथा साऊल को एक विशेष कार्य के लिए निर्दिष्ट किया है। उन्हें मेरे लिए अलग कर दो।" इसलिए उपवास तथा प्रार्थना समाप्त करने के बाद उन्होंने बरनाबस तथा साऊल पर हाथ रखे और उन्हें जाने की अनुमति दे दी।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु ने सभी राष्ट्रों के लिए अपना मुक्ति-विधान प्रकट किया है।
1. प्रभु के आदर में नया गीत गाओ; क्योंकि उसने अपूर्व कार्य किये हैं। उसके दाहिने हाथ और उसकी पवित्र भुजा ने हमारा उद्धार किया है।
2. प्रभु ने अपना मुक्ति-विधान प्रकट किया और सभी राष्ट्रों को अपना न्याय दिखाया है। उसने अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान रख कर इस्राएल के घराने की सुध ली है।
3. पृथ्वी के कोने-कोने में हमारे ईश्वर का मुक्ति-विधान प्रकट हुआ है। समस्त पृथ्वी आनन्द मनाये और ईश्वर की स्तुति करे।
4. वीणा बजा कर प्रभु के आदर में भजन गा कर सुनाओ, तुरही और नरसिंघा बजा कर अपने प्रभु-ईश्वर का जयकार करो।
अल्लेलूया, अल्लेलूया! हे ईश्वर! हम तेरी स्तुति करते और तुझे प्रभु कहते हैं। हे प्रभु! प्रेरितों की महिमामय मंडली तुझे धन्य कहती है। अल्लेलूया!
येसु ने अपने प्रेरितों से कहा, "राह चलते यह उपदेश दिया करो स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है। रोगियों को चंगा करो, मुरदों को जिलाओ, कोढ़ियों को शुद्ध करो, नरकदूतों को निकालो। तुम्हें मुफ़्त में मिला है, मुफ़्त में दे दो। अपने फेंटे में सोना, चाँदी या पैसा नहीं रखो; रास्ते के लिए न झोली, न दो कुरते, न जूते, न लाठी ले जाओ; क्योंकि मज़दूर को भांजन का अधिकार है। किसी नगर या गाँव में पहुँचने पर एक सम्मानित व्यक्ति का पता लगा लो और नगर से विदा होने तक उसी के यहाँ ठहरो। उसके घर में प्रवेश करते समय उसे शांति की आशिष दो। यदि वह घर योग्य होगा, तो तुम्हारी शांति उस पर उतरेगी; यदि वह घर योग्य नहीं होगा, तो तुम्हारी शांति तुम्हारे पास लौट आयेगी।"
प्रभु का सुसमाचार।