जुलाई 25 - सन्त याकूब, प्रेरित – पर्व

📕पहला पाठ

कुरिंथियों के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र 4:7-15

"हम हर समय अपने शरीर में येसु की मृत्यु का अनुभव करते हैं।"

वह अमूल्य निधि हम मिट्टी के पात्रों में रखी रहती हैं, जिससे यह स्पष्ट हो जाये कि वह अलौकिक सामर्थ्य हमारा अपना नहीं, बल्कि ईश्वर का है। हम कष्टों से घिरे रहते हैं, परन्तु कभी हार नहीं मानते। हम परेशान हो जाते हैं, परन्तु कभी निराश नहीं होते। हम पर अत्याचार किया जाता है, परन्तु हम नष्ट नहीं हो जाते। हम को पछाड़ दिया जाता है, परन्तु हम नष्ट नहीं हो जाते। हम हर समय अपने शरीर में येसु के दुःखभोग तथा मृत्यु का अनुभव करते हैं, जिससे येसु का जीवन भी हमारे शरीर में प्रत्यक्ष हो जाये। जीते जी हमें येसु के कारण निरन्तर मृत्यु का सामना करना पड़ता है, जिससे येसु का जीवन भी हमारे नश्वर शरीर में प्रत्यक्ष हो जाये। - इस प्रकार हम में मृत्यु क्रियाशील है और आप लोगों में जीवन। धर्मग्रंथ कहता है मैंने विश्वास किया और इसलिए मैं बोला। हम विश्वास के उसी मनोभाव से प्रेरित हैं। हम विश्वास करते हैं और इसलिए हम बोलते हैं। हम जानते हैं कि जिसने प्रभु येसु को पुनर्जीवित किया है, वही येसु के साथ हम को भी पुनर्जीवित कर देगा और आप लोगों के साथ हम को भी अपने पास रख लेगा। सब कुछ आप लोगों के लिए हो रहा है, ताकि जिस प्रकार कृपा बहुतों में बढ़ती जाती है, उसी प्रकार ईश्वर की महिमा के लिए धन्यवाद की प्रार्थना करने वालों की संख्या भी बढ़ती जाये।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 125

अनुवाक्य : जो रोते हुए बीज बोते हैं, वे गाते हुए लुनते हैं।

1. प्रभु जब सियोन के निर्वासितों को वापस ले आया, तो हमें लगा कि हम स्वप्न देख रहे हैं। हमारे मुख पर हँसी खिल उठी और हम आनन्द के गीत गाने लगे।

2. गैर-यहूदी आपस में यह कहते थे, "प्रभु ने उनके लिए अपूर्व कार्य किये हैं।" उसने वास्तव में हमारे लिए अपूर्व कार्य किये और हम अत्यन्त आनन्दित हो उठे।

3. हे प्रभु! मरुभूमि की नदियों की तरह हमारे निर्वासितों को वापस ले आ। जो रोते हुए बीज बोते हैं, वे गाते हुए लुनते हैं।

4. जो बीज ले कर चले गये थे, जो रोते हुए चले गये थे, वे पूले लिये लौट रहे हैं, वे गाते हुए लौट रहे हैं।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया! प्रभु कहते हैं, "मैंने तुम्हें चुना, जिससे तुम जा कर फल उत्पन्न करो और तुम्हारा फल बना रहे।" अल्लेलूया!

📙सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 20:20-28

"तुम मेरा प्याला पिओगे।"

ज़ेबेदी के पुत्रों की माता अपने पुत्रों के साथ येसु के पास आयी और उसने दण्डवत् करके उन से एक निवेदन करना चाहा। येसु ने उस से कहा, "क्या चाहती हो?" उसने उत्तर दिया, " ये मेरे दो बेटे हैं; आप आज्ञा दीजिए कि आपके राज्य में एक आपके दायें बैठे और एक आपके बायें।” येसु ने उन से कहा, "तुम नहीं जानते कि क्या माँग रहे हो। जो प्याला मैं पीने वाला हूँ क्या तुम उसे पी सकते हो?" उन्होंने उत्तर दिया, "हम पी सकते हैं।" इस पर येसु ने उन से कहा, "मेरा प्याला तो तुम पिओगे, किन्तु तुम्हें अपने दायें या बायें बैठने देने का अधिकार मेरा नहीं है; वे स्थान उन लोगों के लिए हैं, जिनके लिए मेरे पिता ने उन्हें तैयार किया है।" जब दस प्रेरितों को यह मालूम हुआ, तो वे दोनों भाइयों पर क्रुद्ध हो गये। येसु ने अपने शिष्यों को अपने पास बुला कर कहा, "तुम जानते हो कि संसार के अधिपति अपनी प्रजा पर निरंकुश शासन करते हैं और सत्ताधारी लोगों पर अधिकार जताते हैं। तुम में ऐसी बात नहीं होगी। जो तुम लोगों में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने और जो तुम में प्रधान होना चाहे, वह तुम्हारा दास बने; क्योंकि मानव पुत्र भी अपनी सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने तथा बहुतों के उद्धार के लिए अपने प्राण देने आया है।"

प्रभु का सुसमाचार।