मैं देख ही रहा था कि सिंहासन रख दिये गये और एक वयोवृद्ध व्यक्ति बैठ गया। उसके वस्त्र हिम की तरह उज्ज्वल थे और उसके सिर के केश निर्मल ऊन की तरह। उसका सिंहासन ज्वालाओं का समूह था और सिंहासन के पहिये, धधकती अग्नि। उसके सामने से आग की धारा बह रही थी। सहस्रों उसकी सेवा कर रहे थे, लाखों उसके सामने खड़े थे। न्याय की कार्यवाही प्रारम्भ हो रही थी और पुस्तकें खोल दी गयी थीं। मैं रात का दृश्य देख रहा था। और देखो! आकाश के बादलों पर मानव पुत्र जैसा कोई आया। वह वयोवृद्ध के यहाँ पहुँचा और उसके सामने लाया गया। उसे प्रभुत्व, सम्मान तथा राजत्व दिया गया। सभी देश, राष्ट्र और भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी उसकी सेवा करेंगे। उसका प्रभुत्व अनन्त है, वह सदा ही बना रहेगा, उसके राज्य का कभी विनाश नहीं होगा।
प्रभु की वाणी।अनुवाक्य : प्रभु समस्त पृथ्वी पर सर्वोच्च राजा है।
1. प्रभु राज्य करता है। पृथ्वी प्रफुल्लित हो जाये, असंख्य द्वीप आनन्द मनायें। अन्धकारमय बादल उसके चारों ओर मँडराते हैं। उसका सिंहासन सत्य और न्याय पर आधारित है।
2. पृथ्वी के अधिपति के आगमन पर पर्वत मोम की तरह पिघलते हैं। आकाश प्रभु का न्याय घोषित करता है। सभी राष्ट्र उसकी महिमा देखते हैं।
3. क्योंकि तू ही प्रभु है। तू ही समस्त पृथ्वी पर सर्वोच्च है, तू ही सभी देवमूर्तियों से महान् है।
जब हमने आप लोगों को अपने प्रभु येसु मसीह के सामर्थ्य तथा पुनरागमन के विषय में बताया तो हमने मनगढ़न्त कथाओं का सहारा नहीं लिया, बल्कि हमने अपनी ही आँखों से उनका प्रताप उस समय देखा है, जब उन्हें पिता-परमेश्वर से सम्मान तथा महिमा प्राप्त हुई और भव्य ऐश्वर्य में से उनके प्रति एक वाणी यह कहती हुई सुनाई पड़ी, "यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ।" जब हम पवित्र पर्वत पर उनके साथ थे, तो हमने स्वयं स्वर्ग से आती हुई यह वाणी सुनी थी। इस घटना द्वारा नबियों की वाणी हमारे लिए और भी विश्वसनीय सिद्ध हुई। इस पर ध्यान देने में आप लोगों का कल्याण है, क्योंकि जब तक पौ नहीं फटती और आपके हृदयों में प्रभात का तारा उदित नहीं होता, तब तक नबियों की वाणी अँधेरे में चमकते हुए दीपक के सदृश है।
प्रभु की वाणी।
अल्लेलूया, अल्लेलूया! यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ। इसकी सुनो। अल्लेलूया!
येसु ने पेत्रुस, याकूब और उसके भाई योहन को अपने साथ ले लिया और वह उन्हें एक ऊँचे पहाड़ पर एकांत में ले चले। उनके सामने ही प्रभु का रूपान्तरण हो गया। उनका मुखमंडल सूर्य की तरह दमक उठा और उनके वस्त्र प्रकाश के समान उज्ज्वल हो गये। शिष्यों को मूसा और एलियस उनके साथ बातचीत करते दिखाई दिये। तब पेत्रुस ने येसु से कहा, " गुरुवर! यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है। आप चाहें, तो मैं यहाँ तीन तम्बू खड़ा कर दूँगा एक आपके लिए, एक मूसा और एक एलियस के लिए।" वह बोल ही रहा था कि उन पर एक चमकीला बादल छा गया और उस बादल में से यह वाणी सुनाई पड़ी, "यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ; इसकी सुनो।" यह वाणी सुन कर वे मुँह के बल गिर पड़े और बहुत डर गये। तब येसु ने पास आ कर उनका स्पर्श किया और कहा, "उठ जाओ, डरो मत।" उन्होंने आँखें ऊपर उठायीं, तो उन्हें येसु के सिवा और कोई नहीं दिखाई पड़ा। येसु ने पहाड़ से उतरते समय उन्हें यह आदेश दिया, "जब तक मानव पुत्र मृतकों में से न जी उठे, तब तक तुम लोग किसी से भी इस दर्शन की चर्चा नहीं करना।"
प्रभु का सुसमाचार।
येसु ने पेत्रुस, याकूब और योहन को अपने साथ ले लिया और वह उन्हें एक ऊँचे पहाड़ पर एकांत में ले चले। उनके सामने ही येसु का रूपान्तरण हो गया। उनके वस्त्र ऐसे चमकीले और उजले हो गये कि दुनिया का कोई धोबी उन्हें इतना उजला नहीं कर सकता। शिष्यों को एलियस और मूसा दिखाई दिये - वे येसु के साथ बात-चीत कर रहे थे। उस समय पेत्रुस ने येसु से कहा, "गुरुवर! यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है! हम यहाँ तीन तम्बू खड़ा कर दें एक आपके लिए, एक मूसा और एक एलियस के लिए।" उसे पता नहीं था कि वह क्या कह रहा है। वह बोल ही रहा था कि बादल आ कर उन पर छा गया और उस बादल में से यह वाणी सुनाई दी, "यह मेरा प्रिय पुत्र है। इसकी सुनो।" इसके तुरन्त बाद जब शिष्य अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ाने लगे, तो उन्हें येसु के सिवा और कोई नहीं दिखाई पड़ा। येसु ने पहाड़ से उतरते समय उन्हें आदेश दिया कि जब तक मानव पुत्र मृतकों में से न जी उठे, तब तक तुम लोगों ने जो देखा है, इसकी चरचा किसी से भी नहीं करना। उन्होंने येसु की यह बात मान ली, परन्तु वे आपस में विचार-विमर्श करते थे कि 'मृतकों में से जी उठने' का क्या अर्थ हो सकता है।
प्रभु का सुसमाचार।
येसु पेत्रुस, योहन और याकूब को अपने साथ ले गये और प्रार्थना करने के लिए एक पहाड़ पर चढ़े। प्रार्थना करते समय येसु के मुखमंडल का रूपान्तरण हो गया और उनके वस्त्र विद्युत की तरह उज्ज्वल हो कर जगमगाने लगे। दो पुरुष उनके साथ बात-चीत कर रहे थे। वे मूसा और एलियस थे, जो महिमा सहित प्रकट हो कर येरुसालेम में होने वाली उनकी मृत्यु के विषय में बातें कर रहे थे। पेत्रुस और उनके साथी, जो ऊँघ रहे थे, अब पूरी तरह जाग गये। उन्होंने येसु की महिमा को और उनके साथ उन दो पुरुषों को देखा। वे विदा हो ही रहे थे कि पेत्रुस ने येसु से कहा, "गुरुवर! यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है! हम तीन तम्बू खड़ा कर दें एक आपके लिए, एक मूसा और एक एलियस के लिए।" उसे पता नहीं था कि वह क्या कह रहा है। वह बोल ही रहा था कि बादल आ कर उन पर छा गया और वे बादल से घिर जाने के कारण भयभीत हो गये। बादल में से यह वाणी सुनाई पड़ी, "यह मेरा परमप्रिय पुत्र है। इसकी सुनो।" वाणी समाप्त होने पर येसु अकेले ही रह गये। शिष्य इस सम्बन्ध चुप रहे और उन्होंने जो देखा था, उस विषय पर वे उन दिनों किसी से कुछ भी नहीं बोले।
प्रभु का सुसमाचार।
इस संसार में हम किस की बात अधिक सुनते है? अपने माता-पिता की, या अपने गुरूजनों की, या अपने आदर्श व्यक्तियों की या अपने दोस्तो की, या स्वयं की। पिता ईश्वर प्रभु येसु के रूपान्तरण के समय बहुत ही महत्वपूर्ण बात कहते है, ‘‘यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्यन्त प्रसन्न हूॅ; इसकी सुनो।’’ जब कभी हम इस संसार के दुविधाओं में फस जायें या हमें समझ में ना आये कि क्या करना है तब हमेशा हमें हमारे पिता ईश्वर की यह बात को याद रखना चाहिए कि हम प्रभु येसु की सुनें क्योकि वही हमारा मुक्तिदाता और ईश्वर है और उन्ही के द्वारा हमारा उद्धार हो सकता है।
✍फादर डेन्नीस तिग्गाTo whom do we listen more in this world? To our parents, to our teachers, to our role models, or our friends, or to oneself. At the time of transfiguration of Lord Jesus, God, the Father says a very important thing, “This is my beloved Son with him I am well pleased; listen to him. Whenever we get caught in the dilemmas of this world or we do not understand what to do then we should always remember what God the Father said- that we should listen to Lord Jesus because he is our Savior and God and through him we can be saved.
✍ -Fr. Dennis Tigga
आज हम प्रभु येसु के ताबोर पर्वत पर रूपांतरण का पर्व मानते हैं। तीन शिष्यों - पेत्रुस, याकूब और योहन को ताबोर पर्वत पर ईश्वरीय उपस्थिति वाला अनुभव बहुत अच्छा लगा। वे आत्मविभोर हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि वहीं ऐसे सुखद अनुभव में ही रह जायें। पेत्रुस प्रभु से कहते हैं कि हम यहीं रह जायें। आप कहे तो तीन तम्बूओं की व्यस्था कर दूं। वे वहां बहुत सुरक्षित व आरामदायक महसूस कर रहे थे। वे पहाड के नीचे जाकर जीवन की सच्चाई से रूबरू होना नहीं कहते थे। प्रभु पेत्रुस के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया नहीं देते। प्रभु उन्हें लेकर सीधे पहाड के नीचे की ओर चल देते हैं। और उन्हें अपने दुःखभोग मरण एवं पुररूत्थान के बारे में बतलाते हैं। प्रभु यह नहीं चाहते थे कि वे उस ईश्वरीय अनुभव में ही खोए रहें बल्कि जीवन की सच्चाई से भी रूबरू हों।
आज प्रभु हम सबसे यही आह्वान करते हैं कि हम हमारे दैनिक जीवन के क्रूस से दूर न भागें। जिस प्रकार से प्रभु ने उसे अपने जीवन में स्वीकार किया हम भी उसे स्वीकार करें। हमारे जीवन में भी हम कई बार व्यक्तिगत प्रार्थनाओं में मिस्सा बलिदान में, तीर्थ स्थानों में या फिर आध्यात्मिक साधनाओं (रिट्रीट) आदि में कई प्रकार के ईश्वरीय आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करते हैं। हमें उसी माहौल में रहना अच्छा लगता है। पर हमें यह याद रहे कि प्रभु हमें ऐसे अनुभव इसलिए देते हैं कि हम हमारे इस दुनियाई जीवन की समाप्ति के बाद इसे परिपूर्णता में प्राप्त करें। ये उस स्वर्गीय आनन्द व शांति का एक अंश मात्र है जिसे ईश्वर हमें भरपूरी से देने वाले हैं। उस भरपूर ईश्वरीय अनुभव को प्राप्त करने के लिए हमें पहाड से नीचे उतरकर जीवन की सच्चाई से रूबरू होते हुए, शैतान और उसकी ताकतों से लडते हुए, सब प्रकार के प्रलोभनों व बुराईयों पर विजय पाते हुए प्राप्त करना होगा। इसलिए हम हमारे जीवन में प्रभु के लिए समय निकालें। प्रभु के साथ लीन होकर अपने जीवन की कठानिईयों व चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त शक्ति व कृपा हासिल करें। तथा उस कृपा के साथ हम प्रभु येसु के समान जीवन में आए हर क्रूस को गले लगाते हुए उनका अनुसरण करें। तभी हमें उनके ही समान मुक्ति का मुकूट हासिल होगा।
✍फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांतToday, we celebrate the feast of the transfiguration of the Lord Jesus on Mount Tabor. The three disciples - Peter, James and John - enjoyed the experience of the divine presence on Mount Tabor. They become self-absorbed and they feel that they should remain there only in such a pleasant experience. Peter tells the Lord that we should stay there. If you say, I will arrange three tents. They felt very safe and comfortable there. But Jesus didn’t react to what he said and took them down the hill and foretold his passion, death and resurrection. The Lord did not want him to be lost in that divine experience but He wants them to o face the reality of life also.
Today, Lord, calls upon all of us not to run away from the crosses of our daily lives. In our lives too, we sometimes have a variety of divine spiritual experience in personal prayers, in Holy Mass, in places of pilgrimage or in spiritual retreats, etc. We love being in that environment. But we must remember that the Lord gives us such experiences so that we can have it in its fullness after the end of our earthly life. It is just a fraction of the heavenly joy and peace that God is going to give us in abundance. In order to have that full divine experience, we have to come down from the mountain and face the reality of life, fighting Satan and his forces, overcoming all kinds of temptations and evil. So let us give time to the Lord in our lives. Get engrossed with GOD and gain enough strength and grace to face the difficulties and challenges of your life. And with that grace, let us embrace every cross that comes in our life, like Lord Jesus and follow Him. Only then will we get the crown of salvation.
✍ -Fr. Preetam Vasuniya
आज पवित्र कैथोलिक कलीसिया प्रभु के रूपान्तरण का त्योहार मना रही है। उस पहाड़ के ऊपर रूपान्तरण के दौरान येसु ने अपने अस्तित्व के मूल स्वरूप को प्रकट किया। उनके तीन शिष्यों, पेत्रूस, याकूब और योहन की उपस्थिति में उनकी महिमान्वित रूपांतरण हो गई। विशेष रूप से शिष्यों के लिए यह जानना आवश्यक था कि येसु ईश्वर हैं और इसलिए उनका रूपांतरण पहाड़ पर हुआ। इस रूपान्तरण के माध्यम से स्वर्ग और येसु के स्वभाव की कुछ झलक शिष्यों के सामने प्रकट हुई जिससे वे मजबूत हो गए,उनको ताकत मिल गई और विशेष रूप से येसु के पुनरुत्थान के बाद वे इस घटना को याद करेंगे और अधिक दृढ़ता से गवाही देंगे कि येसु वास्तव में ईश्वर और उद्धारकर्ता हैं न कि केवल एक साधारण इंसान। चूँकि हम रूपांतरण का पर्व मनाते हैं, इस पर्व से हमें क्या सीख मिलता है? इस पर्व से हमें याद दिलाया जाता है कि हम ईश्वर की संतान हैं और हमें येसु की तरह बदलने का आह्वान किया गया है। चूँकि हम इस पृथ्वी पर रहते हैं इसलिए हमें स्वर्ग की ओर देखने की आवश्यकता है क्योंकि स्वर्ग ही हमारा असली घर है। संत पौलुस हमें रोमियों को लिखे पत्र में बताते हैं,(12:2) “आप इस संसार के अनुकूल न बनें, बल्कि बस कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें। इस प्रकार आप जान जायेंगे कि ईश्वर क्या चाहता है और उसकी दृष्टि में क्या भला, सुग्राह्य तथा सर्वोत्तम है”। इसलिए हमसे कहा जाता है कि हम स्वयं को, अपने मन को, अपनी सोच को, अपने बात व्यवहार को और जीवन जीने के तरीके को बदलें।
✍ - ब्रदर नमित तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Dear brothers and sisters, today the holy Catholic Church celebrates the feast of the transfiguration of the Lord. During the transfiguration Jesus revealed the original self of his being, his divinity. He was glorified in the presence of his disciples - Peter, James and John. It was necessary especially for the disciples to know that Jesus is God and so he was transfigured on the mountain. Through the transfiguration some glimpse of heaven and the nature of Jesus were revealed to the disciples. So they are confirmed, they are made strong. They would remember this event always and testify more strongly that Jesus is really God and savior not only a true human being. As we celebrate the feast of transfiguration what do we get from this feast? We are reminded that we are the children of God and are called to be transformed like Jesus. As we live in this Earth we need to look up to the heaven because heaven is our destiny. St. Paul tells us in the Letter to the Romans 12:2, “Be transformed by the renewal of your mind that you may prove what is the will of God, what is good and acceptable and perfect.” So we are told to transform ourselves, our mind, our thinking, our behaviour and way of living.
✍ -Bro. Namit Tigga (Bhopal Archdiocese)
इस संसार में हम किस की बात अधिक सुनते है? अपने माता-पिता की, या अपने गुरूजनों की, या अपने आदर्श व्यक्तियों की या अपने दोस्तो की, या स्वयं की। पिता ईश्वर प्रभु येसु के रूपान्तरण के समय बहुत ही महत्वपूर्ण बात कहते है, ‘‘यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्यन्त प्रसन्न हूॅ; इसकी सुनो।’’ जब कभी हम इस संसार के दुविधाओं में फस जायें या हमें समझ में ना आये कि क्या करना है तब हमेशा हमें हमारे पिता ईश्वर की यह बात को याद रखना चाहिए कि हम प्रभु येसु की सुनें क्योकि वही हमारा मुक्तिदाता और ईश्वर है और उन्ही के द्वारा हमारा उद्धार हो सकता है।
✍फादर डेन्नीस तिग्गाTo whom do we listen more in this world? To our parents, to our teachers, to our role models, or our friends, or to oneself. At the time of transfiguration of Lord Jesus, God, the Father says a very important thing, “This is my beloved Son with him I am well pleased; listen to him. Whenever we get caught in the dilemmas of this world or we do not understand what to do then we should always remember what God the Father said- that we should listen to Lord Jesus because he is our Savior and God and through him we can be saved.
✍ -Fr. Dennis Tigga
आज हम प्रभु येसु के ताबोर पर्वत पर रूपांतरण का पर्व मानते हैं। तीन शिष्यों - पेत्रुस, याकूब और योहन को ताबोर पर्वत पर ईश्वरीय उपस्थिति वाला अनुभव बहुत अच्छा लगा। वे आत्मविभोर हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि वहीं ऐसे सुखद अनुभव में ही रह जायें। पेत्रुस प्रभु से कहते हैं कि हम यहीं रह जायें। आप कहे तो तीन तम्बूओं की व्यस्था कर दूं। वे वहां बहुत सुरक्षित व आरामदायक महसूस कर रहे थे। वे पहाड के नीचे जाकर जीवन की सच्चाई से रूबरू होना नहीं कहते थे। प्रभु पेत्रुस के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया नहीं देते। प्रभु उन्हें लेकर सीधे पहाड के नीचे की ओर चल देते हैं। और उन्हें अपने दुःखभोग मरण एवं पुररूत्थान के बारे में बतलाते हैं। प्रभु यह नहीं चाहते थे कि वे उस ईश्वरीय अनुभव में ही खोए रहें बल्कि जीवन की सच्चाई से भी रूबरू हों।
आज प्रभु हम सबसे यही आह्वान करते हैं कि हम हमारे दैनिक जीवन के क्रूस से दूर न भागें। जिस प्रकार से प्रभु ने उसे अपने जीवन में स्वीकार किया हम भी उसे स्वीकार करें। हमारे जीवन में भी हम कई बार व्यक्तिगत प्रार्थनाओं में मिस्सा बलिदान में, तीर्थ स्थानों में या फिर आध्यात्मिक साधनाओं (रिट्रीट) आदि में कई प्रकार के ईश्वरीय आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करते हैं। हमें उसी माहौल में रहना अच्छा लगता है। पर हमें यह याद रहे कि प्रभु हमें ऐसे अनुभव इसलिए देते हैं कि हम हमारे इस दुनियाई जीवन की समाप्ति के बाद इसे परिपूर्णता में प्राप्त करें। ये उस स्वर्गीय आनन्द व शांति का एक अंश मात्र है जिसे ईश्वर हमें भरपूरी से देने वाले हैं। उस भरपूर ईश्वरीय अनुभव को प्राप्त करने के लिए हमें पहाड से नीचे उतरकर जीवन की सच्चाई से रूबरू होते हुए, शैतान और उसकी ताकतों से लडते हुए, सब प्रकार के प्रलोभनों व बुराईयों पर विजय पाते हुए प्राप्त करना होगा। इसलिए हम हमारे जीवन में प्रभु के लिए समय निकालें। प्रभु के साथ लीन होकर अपने जीवन की कठानिईयों व चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त शक्ति व कृपा हासिल करें। तथा उस कृपा के साथ हम प्रभु येसु के समान जीवन में आए हर क्रूस को गले लगाते हुए उनका अनुसरण करें। तभी हमें उनके ही समान मुक्ति का मुकूट हासिल होगा।
✍फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांतToday, we celebrate the feast of the transfiguration of the Lord Jesus on Mount Tabor. The three disciples - Peter, James and John - enjoyed the experience of the divine presence on Mount Tabor. They become self-absorbed and they feel that they should remain there only in such a pleasant experience. Peter tells the Lord that we should stay there. If you say, I will arrange three tents. They felt very safe and comfortable there. But Jesus didn’t react to what he said and took them down the hill and foretold his passion, death and resurrection. The Lord did not want him to be lost in that divine experience but He wants them to o face the reality of life also.
Today, Lord, calls upon all of us not to run away from the crosses of our daily lives. In our lives too, we sometimes have a variety of divine spiritual experience in personal prayers, in Holy Mass, in places of pilgrimage or in spiritual retreats, etc. We love being in that environment. But we must remember that the Lord gives us such experiences so that we can have it in its fullness after the end of our earthly life. It is just a fraction of the heavenly joy and peace that God is going to give us in abundance. In order to have that full divine experience, we have to come down from the mountain and face the reality of life, fighting Satan and his forces, overcoming all kinds of temptations and evil. So let us give time to the Lord in our lives. Get engrossed with GOD and gain enough strength and grace to face the difficulties and challenges of your life. And with that grace, let us embrace every cross that comes in our life, like Lord Jesus and follow Him. Only then will we get the crown of salvation.
✍ -Fr. Preetam Vasuniya
यह महान दिन उस विशेष क्षण का जश्न मनाता है जब मसीह के तीन शिष्यों ने मसीह की दिव्य महिमा की झलक देखी। पेत्रुस, याकूब और योहन ने मसीह को देखा कि वह वास्तव में कौन है - न केवल एक भविष्यद्वक्ता, या कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक व्यक्तियों में से एक, बल्कि ईश्वर है। येसु मसीह का आश्चर्यजनक रहस्यमय घटना, जो कि ईश्वर है, जिसे कलीसिया आज मनाती है। चेहरे की तेज चमक ईश्वर के सबसे करीबी लोगों की विशेषता है। जब मूसा विधान की पाटीयो को दोनों हाथो में लिये हुए सिनई पर्वत से उतरा, तो उसके मुख का रंग इस कारण से चमक उठा, कि उसने ईश्वर से बातें की। इसी तरह, हम सभी के पास अपने जीवन में रूपांतरित होने और ईश्वर के साथ एक घनिष्ठ संबंध प्राप्त करने का अवसर है। इसलिए, हम सभी के पास ईश्वर के निकटतम लोगों के दृश्य संकेतों को प्रकट करने का अवसर है।
✍ - फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.
This great day celebrates the privileged moment when three of Christ’s disciples glimpsed Christ’s divine glory. Peter, James, and John saw Christ for who he really and truly is-not just a prophet, or one of many important historical figures, but God. The surprising revelation of Jesus Christ, who is God, is what the Church celebrates today. The bright radiance and shining of the face is also a characteristic of those closest to God. When Moses came down from Mount Sinai with the two tables of the testimony in his hand, the skin of his face shone because he had been talking with God. In like manner, we all have the opportunity to be transfigured in our lives and to acquire a close relationship with God. So, too, we all have the opportunity to manifest the visible signs of those closest to God.
✍ -Fr. Snjay Kujur SVD
आज माता कलिसिया प्रभु येसु के रूपांतरण का पर्व मनाती है। प्रभु येसु अपने तीन सबसे प्रिय शिष्यों को अपने साथ एक ऊँचे पहाड़ पर ले जाते हैं, और वहाँ उनकी उपस्थिति में उनका रूपांतरण हो जाता है। नबी मूसा और एलियस आकर उनसे चर्चा करते हैं और अंत में पिता ईश्वर की वाणी यह कहते हुए सुनाई देती है, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ, इसकी सुनो।”
यह घटना प्रभु येसु के मानव जीवन की बहुत महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। हालाँकि प्रभु येसु के जीवन की सारी घटनायें महत्वपूर्ण थी क्योंकि सब कुछ पिता ईश्वर की इच्छा और योजना के अनुसार ही था, लेकिन कुछ घटनाएँ जैसे प्रभु येसु का बपतिस्मा, चालीस दिन और चालीस रात का उपवास, रूपांतरण, येरूसलेम में प्रवेश, गेथसेमनी बारी में प्रभु येसु की प्राण-पीड़ा आदि बहुत महत्वपूर्ण घटनाएँ हैं जो क्रूस के बलिदान की ओर इंगित करती हैं।
प्रभु येसु का इस दुनिया में आने का उद्देश्य क्रूस पर अपने आप को बलिदान करना और संसार को मुक्ति प्रदान करना था। यह बहुत पीड़ादायी होने वाला था, और यहाँ हम देखते हैं कि पिता ईश्वर अपने पुत्र के प्रति अपने प्रेम को प्रकट करते हैं, जो प्रभु येसु को शक्ति और साहस प्रदान करता है। ईश्वर हममें से सभी को प्यार करते हैं। जब हम मुश्किलों और चुनौतियों का सामना करते हैं, तो हमें अपने आंतरिक पर्वत पर चढ़ना है, और अपने स्वर्गीय पिता की वाणी को सुनना है, “तू मेरा प्रिय पुत्र है, तू मेरी प्रिय पुत्री है, मैं तुझसे अत्यन्त प्रसन्न हूँ।” पिता ईश्वर की वह वाणी हमें भी प्रभु येसु की तरह रूपांतरित कर देगी। आमेन।
✍ - फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today we celebrate the Feast of the Transfiguration of the Lord. Jesus took his three very close disciples to a high mountain and there he was transfigured. Prophets Moses and Elijah come to discuss with Jesus and at the end voice of God the Father is heard saying, “this is my beloved son, with whom I am well pleased, Listen to him.”
This is among most important events of Jesus’ human life. Although all the events in Jesus’ life were important because everything was planned and according to God’s will, but some events like Baptism of Jesus, Fasting for forty days and forty nights, Transfiguration, Triumphal Entry into Jerusalem, Agony in the garden etc are very important events leading to the ultimate sacrifice on the Cross.
The purpose of Jesus’ coming was to sacrifice himself on the cross and make salvation available to all. This process was going to be painful, perhaps most painful of all the events in Jesus’ life and here Father acknowledges his love for his Son, that certainly gives strength to Jesus. God loves each one of us. When we are faced with difficulties and challenges, we need to go to our inner mountain and hear the voice of the Father. That would certainly transfigure us. Amen.
✍ -Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)