अगस्त 29
संत योहन बपतिस्ता की शहादत, शहीद - अनिवार्य स्मरण

📕पहला पाठ

नबी येरेमियस का ग्रंथ 1:17-19

“जो कुछ मैं तुम को बताऊँ, वह सब उन्हें सुना दो। तुम उनके सामने भयभीत मत हो जाओ।”

अब तुम कमर कस कर तैयार हो जाओ। और जो कुछ मैं तुम को बताऊँ, वह सब उन्हें सुना दो। तुम उनके सामने भयभीत मत हो जाओ, नहीं तो मैं तुम को उनके सामने भयभीत बना दूँगा। देखो ! इस सारे देश के सामने, यूदा के राजाओं, इसके अमीरों, इसके याजकों और इसके सब निवासियों के सामने, मैं आज तुम को एक सुदृढ़ नगर के सदृश, लोहे के खंभे और काँसे की दीवाल की तरह खड़ा कर देता हूँ। वे तुम्हारे विरुद्ध लड़ेंगे, किन्तु तुम को हराने में असमर्थ होंगे; क्योंकि मैं तुम्हारी रक्षा करने के लिए तुम्हारे साथ रहूँगा। यह प्रभु का कहना है।”

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 70:1-5,15,17

अनुवाक्य : "मैं तेरे न्याय का बखान करूँगा।"

1. हे प्रभु! मैं तेरी शरण में आया हूँ। मुझे कभी निराश न होने दे। तू न्यायी है। तू मेरा उद्धार कर, तू मेरी सुन और मुझे बचा।

2. तू मेरे लिए आश्रय की चट्टान और रक्षा का शक्तिशाली गढ़ बन जा, क्योंकि तू ही मेरी चट्टान और मेरा गढ़ है। हे मेरे ईश्वर ! मुझे दुष्टों के हाथ से छुड़ा।

3. हे प्रभु ! तू ही है मेरा आसरा। मैं बचपन से तुझ पर ही भरोसा रखता हूँ। मैं जन्म से तुझ पर ही निर्भर रहा हूँ, माता के गर्भ से मुझे तेरा सहारा मिला है।

4. मैं प्रतिदिन तेरे न्याय और तेरी सहायता का बखान करूँगा । हे प्रभु ! मुझे बचपन से ही तेरी शिक्षा मिली है। मैं अब तक तेरे महान् कार्य घोषित करता रहा हूँ।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया! धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं - स्वर्गराज्य उन्हीं का है। अल्लेलूया!

📙सुसमाचार

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 6:17-29

"मैं चाहती हूँ कि आप मुझे इसी समय थाली में योहन बपतिस्ता का सिर दे दें।"

हेरोद ने अपने भाई फ़िलिप की पत्नी हेरोदियस के कारण योहन को गिरफ्तार किया और बन्दीगृह में बाँध रखा था; क्योंकि हेरोद ने हेरोदियस से विवाह किया था और योहन ने हेरोद से कहा था, "अपने भाई की पत्नी को रखना आपके लिए उचित नहीं है।" इसी से हेरोदियस योहन से बैर रखती थी और उसे मार डालना चाहती थी; किन्तु वह ऐसा नहीं कर पाती थी, क्योंकि हेरोद योहन को धर्मात्मा और सन्त जान कर उस पर श्रद्धा रखता और उसकी रक्षा करता था । हेरोद उसके उपदेश सुन कर बड़े असमंजस में पड़ जाता था; फिर भी वह उसकी बातें सुनना पसंद करता था। हेरोद के जन्म-दिवस पर हेरोदियस को एक सुअवसर मिला। उस उत्सव के उपलक्ष्य में हेरोद ने अपने दरबारियों, सेनापतियों और गलीलिया के रइसों को भोज दिया। उस अवसर पर हेरोदियस की बेटी ने अंदर आ कर नृत्य किया और हेरोद तथा उसके अतिथियों को मुग्ध कर दिया। राजा ने लड़की से कहा, "जो भी चाहो, मुझ से माँगो। मैं तुम्हें दे दूँगा," और उसने शपथ खा कर कहा, "जो भी माँगो, चाहे मेरा आधा राज्य ही क्यों न हो, मैं तुम्हें दे दूंगा।" लड़की ने बाहर जा कर अपनी माँ से पूछा, "मैं क्या माँगूँ?" उसने कहा, "योहन बपतिस्ता का सिर ?" वह तुरन्त राजा के पास दौड़ती हुई आयी और बोली, "मैं चाहती हूँ कि आप मुझे इसी समय थाली में योहन बपतिस्ता का सिर दे दें।" राजा को धक्का लगा। परन्तु अपनी शपथ और अतिथियों के कारण वह उसकी माँग अस्वीकार करना नहीं चाहता था। राजा ने तुरन्त जल्लाद को भेज कर योहन का सिर ले आने का आदेश दिया। जल्लाद ने जा कर बन्दीगृह में उसका सिर काट डाला और उसे थाली में ला कर लड़की को दे दिया और लड़की ने उसे अपनी माँ को दे दिया। जब योहन के शिष्यों को इसका पता चला, तो वे आ कर उसका शव ले गये और उन्होंने उसे क़ब्र में रख दिया।

प्रभु का सुसमाचार।