कोलकत्ता की संत तेरेसा

📕पहला पाठ

नबी होशेआ का ग्रन्थ 2:14-15,19-20

"मैं तुम्हें सदा के लिए अपनाऊँगा।"

मैं उसे लुभा कर मरुभूमि को ले चलूँगा और उसे सान्त्वना दूँगा। वहाँ वह मुझे स्वीकार करेगी, जैसा कि उसने अपनी जवानी के दिनों में किया था उस समय, जब वह मिस्त्र से निकली थी। उस समय तुम मुझे 'अपना पति' कह कर पुकारोगी। तुम फिर कभी मुझे 'अपना बाल' कह कर नहीं पुकारोगी। यह प्रभु की वाणी है। मैं सदा के लिए तुम्हें अपनाऊँगा। मैं तुम्हें धर्म और विधि के अनुसार कोमलता और प्यार से अपनाऊँगा। मैं सच्ची निष्ठा से तुम्हें अपनाऊँगा और तुम प्रभु को जान जाओगी।

प्रभु की वाणी।

📙सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 25:31-46

“तुमने मेरे इन भाइयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया, वह तुमने मेरे लिए ही किया।”

येसु ने अपने शिष्यों से कहा, “जब मानव पुत्र सब स्वर्गदूतों के साथ अपनी महिमा सहित आयेगा, तो वह अपने महिमामय सिंहासन पर विराजमान होगा और सभी राष्ट्र उसके सम्मुख एकत्र किये जायेंगे। जिस तरह चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग करता है, उसी तरह वह लोगों को एक दूसरे से अलग कर देगा। वह भेड़ों को अपने दायें और बकरियों को अपने बायें खड़ा कर देगा।” “तब राजा अपने दायें के लोगों से कहेंगे, “मेरे पिता के कृपापात्रो ! आओ और उस राज्य के अधिकारी बनो, जो संसार के प्रारंभ से तुम लोगों के लिए तैयार किया गया है। क्योंकि मैं भूखा था और तुमने मुझे खिलाया; मैं प्यासा था और तुमने मुझे पिलाया; मैं परदेशी था और तुमने मुझे अपने यहाँ ठहराया; मैं नंगा था और तुमने मुझे पहनाया; मैं बीमार था और तुम मुझ से भेंट करने आये; मैं बन्दी था और तुम मुझ से मिलने आये। ' इस पर धर्मी उन से कहेंगे, प्रभु ! हमने कब आप को भूखा देखा और खिलाया? कब प्यासा देखा और पिलाया? हमने कब आप को परदेशी देखा और अपने यहाँ ठहराया? कब नंगा देखा और पहनाया? कब आप को बीमार अथवा बन्दी देखा और आप से मिलने आये? ' राजा उन्हें उत्तर देंगे, 'मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ - तुमने मेरे इन भाइयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया, वह तुमने मेरे लिए ही किया। तब वह अपने बायें के लोगों से कहेंगे, 'शापितो ! मुझ से दूर हट जाओ। उस अनन्त आग में जाओ, जो शैतान और उसके: दूतों के लिए तैयार की गयी है। क्योंकि मैं भूखा था और तुम लोगों ने मुझे नहीं खिलाया; मैं प्यासा था और तुमने मुझे नहीं पिलाया; मैं परदेशी था और तुमने मुझे अपने यहाँ नहीं ठहराया; मैं नंगा था और तुमने मुझे नहीं पहनाया; मैं बीमार और बन्दी थां और तुम मुझ से नहीं मिलने आये। ' इस पर वे भी उन से पूछेंगे, 'प्रभु ! हमने कब आप को भूखा, प्यासा, परदेशी, नंगा, बीमार या बन्दी देखा और आपकी सेवा नहीं की? ' तब राजा उन्हें यह उत्तर देंगे, 'मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ - जो कुछ तुमने मेरे छोटे-से-छोटे भाइयों में से किसी एक के लिए नहीं किया, वह तुमने मेरे लिए भी नहीं किया'। और ये अनन्त दण्ड भोगने जायेंगे, परन्तु धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।”

प्रभु का सुसमाचार।


h2>📚 मनन-चिंतन

आज माता कलीसिया हमारे समय की महान संत, ईश्वरीय प्रेम को प्रतिबिंबित करने वाली, कोलकोता की संत मदर तेरेसा को याद करती है। होशेआ 2:14-15; 19-20 से लिए हुए पहले पाठ में हम पाते हैं कि ईश्वर कहते हैं, “मैं उसे लुभा कर मरुभूमि को ले चलूँगा और उसे सान्त्वना दूँगा।” संत मदर तेरेसा ने अपने जीवन में यह अनुभव किया। पवित्र यूखरिस्तीय प्रभु उन्हें अपनी उपस्थिति में रखकर उन्हें शुद्ध किया और अपने समान बनाया। फल यह हुआ कि संत मदर तेरेसा जिस प्रभु का दर्शन पवित्र यूखारिस्त में पाती थी उसी सभु को जरुरतमंदों में देख पाई। मत्ति 25:31-46 से लिए हुए सुसमाचार में प्रभु येसु कहते हैं, “तुमने मेरे भाइयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया, वह तुमने मेरे लिए ही किया।” हम जरुरतमंदों के लिए जो भी करते हैं वह ईश्वरीय कार्य है या सामाजिक? दोनों में क्या फर्क है? फर्क यह है कि हम उस जरूरतमंद में प्रभु येसु को देख पा रहे हैं या नहीं! लेकिन यह कैसे संभव होगा? संत मदर तेरेसा के लिए यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि उन्होंने पवित्र यूखरिस्त में प्रभु येसु का दर्शन पायी! हमारे लिए भी यही रास्ता है! तो प्रश्न यह है – क्या मैं यह चाहता हूँ या नहीं!

- फ़ादर जॉर्ज मेरी क्लारेट


📚 REFLECTION

Today, the Mother Church remembers one of the greatest saints of our time, a reflection of God’s divine love – St. Mother Teresa of Calcutta. In the first reading taken from Hosea 2:14-15; 19-20, we hear God saying: “I will allure her, bring her into the wilderness, and speak tenderly to her.” St. Mother Teresa experienced this in her own life. The Eucharistic Lord kept her in His presence, purified her, and made her like Himself. As a result, the same Lord whom she encountered in the Holy Eucharist, she was able to see in the needy. In the Gospel taken from Matthew 25:31-46, the Lord Jesus says: “Whatever you did for one of these least brothers of mine, you did for me.” But here is a question: Whatever we do for the needy, is it merely a social act or a divine work? What is the difference? The difference lies in this: are we able to see the Lord Jesus in that needy person or not? And how is that possible? For St. Mother Teresa, it was possible because she saw the Lord Jesus in the Holy Eucharist! For us too, this is the only way. So the real question is – Do I truly desire this or not?

-Fr. George Mary Claret

📚 मनन-चिंतन - 2

हम सभी को अपनी मृत्यु और अंतिम न्याय की चिंता है। हम स्वर्ग में प्रवेश करना चाहते हैं। आज का सुसमाचार हमारे सामने अंतिम न्याय का मानदंड रखता है। येसु चाहते हैं कि हम यह जानें कि गरीबों, भूखों, प्यासों, वस्त्रहीनों, पीड़ितों, बीमारों, कैदियों, उपेक्षितों और परित्यक्त लोगों की देखभाल करने से हमें स्वर्ग में जगह मिल सकती है। ऐसा करने में विफलता हमें नरक में भेज सकती है। जबकि ईश्वर, संसार और मनुष्य स्वयं अथाह रहस्य बने हुए हैं, येसु चाहते हैं कि हम स्वर्ग के सरल मार्ग के बारे में बहुत स्पष्ट हों। इस मार्ग की सरलता यह है कि यह हर उस व्यक्ति की पहुंच में है जो अपने पड़ोसी के लिए कुछ त्याग करने को तैयार है। हो सकता है कि कोई ईश्वर के वचन की व्याख्या करने की सभी पहलुओं को न जानता हो, जटिल नियमों से परिचित न हो, फिर भी प्रेम के साधारण कृत्यों के द्वारा वह स्वर्ग में प्रवेश कर सकता है। मीकाह 6:8 में हम पढ़ते हैं, “मनुष्य! तुम को बताया गया है कि उचित क्या है और प्रभु तुम से क्या चाहता है। यह इतना ही है - न्यायपूर्ण व्यवहार, कोमल भक्ति और ईश्वर के सामने विनयपूर्ण आचरण।” कलकत्ता की संत तेरेसा ने जोर-शोर से और स्पष्ट रूप से प्रभु येसु की इस शिक्षा का प्रचार और अभ्यास किया। ईसाई धर्म दिमाग का धर्म नहीं है, बल्कि हृदय का धर्म है। आइए हम सभी मनुष्यों से प्रेम करने के लिए अपने हृदयों को खोलें और प्रत्येक जरूरतमंद का स्वागत करने की प्रवृत्ति का विस्तार करें।

- फ़ादर फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

All of us worry about our death and final judgement. We want to enter heaven. Today’s Gospel places before us the measuring rod for the final judgement. Jesus wants us to know that caring for the poor, the hungry, the thirsty, the naked, the suffering, the sick, the imprisoned, the marginalised and the abandoned can ensure us a place in heaven. Failure to do so can send us to hell. While God, the world and man himself remain unfathomable mysteries, Jesus wants us to be very clear about the simple way to heaven. The simplicity of this way is that it is within the reach of everyone who is willing to make some sacrifices for the sake of his neighbour. One may not know all the intricacies of interpreting the Word of God. One may not be familiar with the complex canon law. Yet through simple acts of love, one can enter heaven. In Micah 6:8 we read, “He has told you, O mortal, what is good; and what does the Lord require of you but to do justice, and to love kindness, and to walk humbly with your God?” St. Teresa of Calcutta loudly and clearly preached and practised this teaching of Jesus. Christianity is not a religion of the head, but of the heart. Let us open our hearts to love all human beings and extend our hands to welcome everyone in need.

-Fr. Francis Scaria

📚 मनन-चिंतन-3

येसु सभागृह में शिक्षा दे रहे थे और फरीसियों द्वारा निगरानी की जा रही थी कि क्या वे विश्राम दिवस के सख्त नियमों का पालन कर रहे है या नहीं। इस दौरान येसु ने एक सूखे हाथ वाले व्यक्ति को देखा। साथ ही साथ, येसु शास्त्रियों और फरीसियों के विचारों से भी अवगत थे। जब येसु का सामना उस किसी पीड़ित व्यक्ति के साथ होता है तो येसु करुणा से द्रवित हो उठते हैं और सूखे हाथ वाले उस व्यक्ति को चंगा करते हैं। येसु ने कर्मकांडों का पालन करने के बजाय करुणा को अधिक महत्व दिया। येसु हमें बताते है कि "वे इसलिए आये है कि हम जीवन पाएं, और परिपूर्ण जीवन"। हमें इस तथ्य को समझने की जरूरत है कि हम सभी को खुश नहीं रख सकते और हर कोई येसु के अनुयायियों के रूप में हमारे कार्यों से खुश नहीं होगा, लेकिन हमें इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि हम जरूरतमंद लोगों की ज़रूरत में कैसे मदद कर सकते हैं। उस सूखे हाथ वाले व्यक्ति के बारे में सोचें और येसु द्वारा चंगा किए जाने के बाद उसे कैसा लगा होगा। हमें अपने आप से यह पूछने की जरूरत है कि क्या हम अपने दैनिक जीवन में जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए अवसरों की तलाश करते हैं, या क्या हम खुद को अनुष्ठानों का पालन करने तक सीमित रखते हैं?

- फादर रोनाल्ड वाँन


📚 REFLECTION

Jesus was teaching in the synagogue and he was being watched by the Pharisees to see if he is obeying the strict rules of the Sabbath. During this time Jesus saw a man with a withered hand. At the same time Jesus was also aware of the thoughts of the scribes and Pharisees. However, when faced with someone who is suffering, Jesus is moved by compassion and cures the man with a withered hand. Jesus places more importance on compassion rather than following rituals. Jesus tells us that “he has come that we may have life and have it more abundantly”.

We need to realise the fact that we cannot keep everyone happy. And not everyone will be happy with our actions as followers of Jesus, but we need to focus on how we can help our fellow people in need. Think of the man with the withered hand and how he would have felt after he was cured by Jesus. We need to ask ourselves that in our daily lives, do we seek out opportunities to help those in need, or do we limit ourselves to following rituals?

-Fr. Ronald Vaughan

📚 मनन-चिंतन - 4

आज हम ईश्वर के प्रेम की प्रतिमूर्ति व करुणा की माँ कलकत्ता की संत मदर तरेसा का पर्व मना रहे हैं। संत मत्ती 25:31-46 को मैंने बचपन से आज तक कितनी ही बार पढ़ा और सुना है, पर हर बार जब मैं इसे पढता हूँ, प्रभु का वचन मुझे चुनौती देता हैं - "तुमने मेरे इन भाइयों में से किसी एक के लिए, चाहे वो कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ भी किया, वह तुमने मेरे लिए ही किया " मदर टेरेसा ने अपने जीवन में प्रभु के इन वचनों को न केवल पढ़ा और मनन-चिंतन किया जैसा कि हम किया करते हैं, पर उन्होंने इन वचनों को अपने कार्यों में परिणित कर दिया, उन्होंने इन वचनों का अपने कार्यों में अनुवाद कर दिया। उन्होंने सचमुच में हर इंसान में येसु को देखा। विशेषकर के दुखित, पीड़ित, व लाचार लोगों में। उनका एक कथन मुझे बहुत प्रेरित करता है - "सबों में येसु को देखें , और सबों के लिए येसु बनें।" याने किसी भी व्यक्ति से बात-व्यव्हार करते समय मैं इस ख्याल में रहूं कि सामने वाला व्यक्ति येसु है और यदि वह येसु है तो मैं उनके साथ कैसा बर्ताव करूँगा, मैं उनसे कैसे पेश आऊंगा? और मेरी और से, मेरी हर परिस्तिथि में यही सोचूं कि यदि मैं येसु होता तो दूसरों के लिए इस परिस्थिति में क्या करता? यदि यह नजरिया हम सब अपना लें तो आज हम सारे ख्रीस्तीय अपने-अपने क्षेत्रों में येसु की जीवित मौजूदगी के पर्याय बन जायेंगे, जैसा की मदर तेरेसा ने किया और हमारे लिए एक मिसाल कायम की। आज वो हमारे लिए प्रार्थना कर रही है और हमारा आह्वान कर रही है कि हम उन राहों पर येसु के पीछे चलें जिनपर चलकर उन्होंने संत का मुकुट हासिल किया है।

- फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

Today we are celebrating the feast of St. Mother Teresa, of Calcutta, the mother of compassion and the symbol of God's love. From childhood until today how many times I have read and heard saint Matthew 25: 31-46. But every time I read it, the words of God challenge me Truly I tell you, just as you did it to one of the least of these who are members of my family, you did it to me.”(Mt. 2540) Mother Teresa not only read and meditated these words of the Lord in her life as we do, but she translated these words into her work. She truly saw Jesus in every human being especially, among the grieved, sorrowful, afflicted, and helpless people. One of his statements inspires me a lot - "See Jesus in everyone and be Jesus to everyone." ie. While dealing with any person, I keep in mind that the person in front me is Jesus so how should I treat him knowing that he is Jesus. From my part, in every circumstance I would think that if I were Jesus, what would I act and behave with any individual in a given situation. If all of us put on this attitude, then today all Christians will become tantamount of the living presence of Jesus wherever we are as Mother Teresa did and set an example for us. Today she is praying for us and is asking us to follow Jesus on the paths on which she walked and achieved the crown of sainthood.

-Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)