18 अक्टूबर
सन्त लूकस, सुसमाचार-लेखक – पर्व

📕पहला पाठ

तिमथी के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र 4: 10-17

"केवल लूकस मेरे साथ है।"

देमास इस संसार की ओर आकर्षित हो गया और वह मुझे छोड़ कर थेसलनीके चला गया। क्रेसेन्स गलातिया चला गया और तीतुस, दलमातिया। केवल लूकस मेरे साथ है। मारकुस को अपने साथ ले कर आओ, क्योंकि मुझे सेवा कार्य में उस से बहुत सहायता मिलती है। मैंने तुखिकुस को एफेसस भेजा। आते समय लबादा, जिसे मैंने त्रोआस में कारपुस के यहाँ छोड़ दिया था, और पुस्तकें, विशेष कर चर्मपत्र लेते आओ। सिकन्दर सुनार ने मेरे साथ बहुत अन्याय किया है। प्रभु उस को इसका फल देगा। तुम भी उस से सावधान रहो, क्योंकि उसने हमारी शिक्षा का बहुत विरोध किया। जब मुझे पहली बार कचहरी में अपनी सफ़ाई देनी पड़ी, तो किसी ने मेरा साथ नहीं दिया सबों ने मुझे छोड़ दिया। आशा है, उन्हें इसका लेखा देना नहीं पड़ेगा। परन्तु प्रभु ने मेरी सहायता की और मुझे बल प्रदान किया, जिससे मैं सुसमाचार का प्रचार कर सकूँ और सभी राष्ट्र उसे सुन सकें।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 44:11-12,14-17

अनुवाक्य : हे प्रभु ! तेरे भक्त तेरे राज्य की महिमा का बखान करते हैं।

1. हे प्रभु ! तेरी सारी सृष्टि तेरा धन्यवाद करे; तेरे भक्त तुझे धन्य कहें। वे तेरे राज्य की महिमा गायें और तेरे सामर्थ्य का बखान करें।

2. जिससे सभी मनुष्य तेरे महान् कार्य और तेरे राज्य की अपार महिमा जान जायें । तेरे राज्य का कभी अन्त नहीं होगा। तेरा शासन पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहेगा।

3. प्रभु जो कुछ करता है, अच्छा ही करता है। वह जो कुछ करता है, प्रेम से करता है। वह उन सबों के निकट है, जो उसका नाम लेते हैं, जो सच्चे हृदय से उस से विनती करते हैं।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! मैंने तुम्हें चुना और नियुक्त किया है, जिससे तुम जा कर फल उत्पन्न करो और तुम्हारा फल बना रहे। यह प्रभु का कहना है। अल्लेलूया!

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 10:1-9

"फ़सल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं।"

प्रभु ने अन्य बहत्तर शिष्य नियुक्त किये और जिस-जिस नगर और गाँव में वह स्वयं जाने वाले थे, वहाँ दो-दो करके उन्हें अपने आगे भेजा। उन्होंने उन से कहा, "फ़सल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं; इसलिए फ़सल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे। जाओ, मैं तुम्हें भेड़ियों के बीच भेड़ों की तरह भेजता हूँ। तुम न थैली, न झोली और न जूते ले जाओ और रास्ते में किसी को नमस्कार मत करो । जिस घर में प्रवेश करते हो, सब से पहले यह कहो, 'इस घर को शांति!' यदि वहाँ शांति के योग्य कोई होगा, तो तुम्हारी शांति उस पर ठहरेगी, नहीं तो वह तुम्हारे पास लौट आयेगी। उसी घर में ठहरे रहो और जो उनके पास हो, वही खाओ-पियो; क्योंकि मज़दूर को मज़दूरी का अधिकार है। घर पर घर बदलते न रहो। जिस नगर में प्रवेश करते हो और वे तुम्हारा स्वागत करें, तो जो कुछ तुम्हें परोसा जाये, वही खा लो। वहाँ के रोगियों को चंगा करो और उन से कहो, 'ईश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ गया है'।"

प्रभु का सुसमाचार।