मैं, योहन, ने एक अन्य दूत को पूर्व से ऊपर उठते देखा। जीवन्त ईश्वर की मुहर उसके पास थी और उसने उन चार दूतों से, जिन्हें पृथ्वी और समुद्र को उजाड़ने का अधिकार मिला था, पुकार कर कहा, "जब तक हम अपने ईश्वर के दासों के मस्तक पर मुहर न लगायें तब तक तुम न तो पृथ्वी को उजाड़ो, न समुद्र को और न वृक्षों को ही।" और मैंने मुहर लगे लोगों की संख्या सुनी - यह एक लाख चौवालीस हज़ार थी और वे इस्राएलियों के सभी वंशों में से थे। इसके बाद मैंने सभी प्रजातियों, वंशों, राष्ट्रों और भाषाओं का एक ऐसा विशाल जनसमूह देखा, जिसकी गिनती कोई भी नहीं कर सकता। वे उजले वस्त्र पहने तथा हाथ में खजूर की डालियाँ लिये सिंहासन तथा मेमने के सामने खड़े थे और ऊँचे स्वर से पुकार कर कह रहे थे, "सिंहासन पर विराजमान हमारे ईश्वर और मेमने की जय!" तब सिंहासन के चारों ओर खड़े स्वर्गदूत, वयोवृद्ध और चार प्राणी, सब के सब सिंहासन के सामने मुँह के बल गिर पड़े और यह कह कर ईश्वर की उपासना करने लगे, "आमेन ! हमारे ईश्वर को अनन्त काल तक - स्तुति, महिमा, प्रज्ञा, धन्यवाद, सम्मान, सामर्थ्य और शक्ति। आमेन।" वयोवृद्धों में से एक ने मुझ से कहा, "ये उजले वस्त्र पहने कौन हैं और कहाँ से आये हैं?" मैंने उत्तर दिया, "महोदय, आप ही जानते हैं।" और उसने मुझ से कहा, "ये वे लोग हैं, जो महासंकट में से निकल कर आये हैं। उन्होंने मेमने के रक्त में अपने वस्त्र धो कर उजले कर लिये हैं।"
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु ! ये हैं वे लोग जो तेरे दर्शनों के लिए तरसते हैं।
1. पृथ्वी और जो कुछ उस में है, संसार और उसके निवासी - यह सब प्रभु का है। क्योंकि उसी ने समुद्र पर उसकी नींव डाली है, प्रभु ने जल पर उसे स्थापित किया है।
2. प्रभु के पर्वत पर कौन चढ़ेगा ? उसके मंदिर में कौन रह पायेगा ? वही, जिसके हाथ निर्दोष हैं, जिसका हृदय निर्मल है, जिसका मन असार संसार में नहीं रमता ।
3. उसी को प्रभु की आशिष प्राप्त होगी, वही अपने मुक्तिदाता ईश्वर से पुरस्कार पायेगा। वह उन लोगों के सदृश है, जो प्रभु की खोज में लगे रहते हैं, जो याकूब के ईश्वर के दर्शनों के लिए तरसते हैं।
पिता ने हमें कितना प्यार किया है ! हम ईश्वर की सन्तान कहलाते हैं और हम वास्तव में वही हैं। संसार हमें नहीं पहचानता, क्योंकि उसने ईश्वर को नहीं पहचाना है। प्यारे भाइयो ! हम तो ईश्वर की सन्तान बन गये हैं, किन्तु यह अभी प्रकट नहीं हुआ कि हम क्या बन जायेंगे। हम इतना ही जानते हैं जब ईश्वर का पुत्र प्रकट हो जायेगा, तो हम उसके सदृश बन जायेंगे; क्योंकि हम उसे वैसा ही देखेंगे, जैसा कि वह वास्तव में है। जो उस से ऐसी आशा करता है, उसे वैसा ही शुद्ध बनना चाहिए, जैसा कि वह शुद्ध है।
प्रभु की वाणी है।
अल्लेलूया, अल्लेलूया! प्रभु कहते हैं, "थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगो! तुम सब के सब मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।" अल्लेलूया!
येसु यह विशाल जनसमूह देख कर पहाड़ी पर चढ़े और बैठ गये। उनके शिष्य उनके पास आये और वह यह कह कर उन्हें शिक्षा देने लगे, "धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं स्वर्गराज्य उन्हीं का है। धन्य हैं वे, जो नम्र हैं उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा। धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, उन्हें सान्त्वना मिलेगी। धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, वे तृप्त किये जायेंगे। धन्य हैं वे, जो दयालु हैं, उन पर दया की जायेगी। धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल है, वे ईश्वर के दर्शन करेंगे। धन्य हैं वे, जो मेल कराते हैं, वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे। धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं, स्वर्गराज्य उन्हीं का है। धन्य हो तुम, जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अंत्याचार करते और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं। खुश हो और आनन्द मनाओ - स्वर्ग में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा।"
प्रभु का सुसमाचार।