एस्तेर ने मृत्यु के भय से पीड़ित हो कर प्रभु की शरण ली और यह कहते हुए प्रभु, इस्राएल के ईश्वर से प्रार्थना की, “हे मेरे प्रभु ! तू ही हमारा राजा है। मुझ एकाकिनी की सहायता कर। तुझे छोड़ कर मेरा कोई सहारा नहीं। मैं हथेली पर जान रखने जा रही हूँ। मुझे बचपन से ही अपने जाति-बन्धुओं से यह शिक्षा मिली है कि तूने सब राष्ट्रों में से इस्राएल को, उनके सब पूर्वजों में से हमारे पुरखों को, अपनी चिरस्थायी प्रजा के रूप में अपनाया है और उन से जो-जो प्रतिज्ञा की थी, उसे पूरा करता रहा है। हे प्रभु ! हमें याद कर। हमारी विपत्ति के समय हम पर दयादृष्टि कर। हे प्रभु ! सर्वोच्च और सर्वाधिकार-सम्पन्न ईश्वर ! मुझे साहस प्रदान कर। मैं सिंह के सामने उपस्थित होने जा रही हूँ। मेरे मुख में उपयुक्त शब्द रख और उसके हृदय में हमारे शत्रु का बैर उत्पन्न कर, जिससे हमारा शत्रु अपने समर्थकों के साथ नष्ट हो जाये।” “हे प्रभु ! अपने हाथ से हमारी रक्षा कर और मुझे सहायता दे। हे प्रभु, तू सब कुछ जानता है - तुझे छोड़ कर मेरा कोई सहारा नहीं।”
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : जिस दिन मैंने तुझे पुकारा उसी दिन तूने मेरी सुनी और मुझे आत्मबल प्रदान किया।
1. हे प्रभु ! मैं सारे हृदय से तुझे धन्यवाद देता हूँ ; क्योंकि तूने मेरी सुनी है। मैं स्वर्गदूतों के सामने तेरा गुणगान करूँगा और तेरे पवित्र मंदिर को दण्डवत् करूँगा।
2. तेरे अपूर्व प्रेम और सत्यप्रतिज्ञता के कारण मैं तुझे धन्यवाद देता रहूँगा। जिस दिन मैंने तुझे पुकारा, उसी दिन तूने मेरी सुनी और मुझे आत्मबल प्रदान किया।
3. तूने हाथ बढ़ा कर मुझे बचा लिया है। तेरा दाहिना हाथ मेरी रक्षा करता रहता है। हे प्रभु ! तेरा प्रेम चिरस्थायी है। अपनी सृष्टि को सुरक्षित रखने की कृपा कर।
हे ईश्वर ! मेरा हृदय फिर शुद्ध कर और मुक्ति का आनन्द मुझे फिर प्रदान कर।
येसु ने अपने शिष्यों से कहा,’‘माँगो और तुम्हें दिया जायेगा; दूँढ़ो और तुम्हें मिल जायेगा; खटखटाओ और तुम्हारे लिए खोला हार क्योंकि जो माँगता है, उसे दिया जाता है; जो ढूँढ़ता है, उसे मिल जाता है और जो खटखयता है, उसके लिए खोला जाता है। “यदि तुम्हारा पुत्र तुम से रोटी माँगे, तो तुम में ऐसा कौन है जो उसे पत्थर देगा अथवा मछली माँगे, तो उसे साँप देगा? बुरे होने पर भी यदि तुम लोग अपने बच्चों को सहज ही अच्छी चीजें देते हो, तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता माँगने वालों को अच्छी चीजें क्यों नहीं देगा? '' “दूसरों से अपने साथ जैसा व्यवहार चाहते हो, तुम भी उनके साथ वैसा ही किया करो। यही संहिता और नबियों की शिक्षा है।
प्रभु का सुसमाचार।
प्रार्थना में बहुत ही शक्ति होती है। प्रार्थना के द्वारा बहुत से असंभव काम भी संभव हैं। प्रार्थना के द्वारा हम सब-कुछ प्रभु से मांग सकते हैं। हमारी प्रार्थना मे विश्वास का होना अति आवश्यक हैं। ऐस्तर अपनी पीड़ा एवं भय के समय, प्रभु ईश्वर से प्रार्थना करती है। वह प्रभु से साहस एवं बल की मांग करती है, और उसकी प्रार्थना स्वीकार की जाती हैं।
सुसमाचार में प्रभु येसु शिष्यों से कहते हैं, ‘‘मांगो और तुम्हें दिया जायेगा; ढूंढो और तुम्हें मिल जायेगा; खटखटाओं और तुम्हारे लिए खोला जायेगा।’’ आज हमें पुरी शक्ति से प्रभु से मांगने की जरूरत हैं। ऐस्तर की भांति हम भी प्रभु से प्रार्थना करें, न केवल स्वयं के लिए बल्कि हमारे समाज के सारे लोगों के लिए, जिन्हें प्रभु की कृपा की जरूरत हैं। संत याकूब अपने पत्र 1:6 में हमें समझाते हैं कि हमें विश्वास के साथ सन्देह किये बिना माँगना चाहिए।
✍ - फादर साइमन मोहता (इंदौर धर्मप्रांत)
There is great power in prayer. Many impossible things are made possible through prayer. We can ask everything from the Lord through prayer. It is very important to have faith in our prayers. Esther prays to the Lord God in her time of pain and fear. She asks the Lord for courage and strength, and her prayer is granted.
In the Gospel the Lord Jesus tells the disciples, “Ask and it will be given to you; seek and you shall find; Knock and it will be opened to you.” Today we need to ask the Lord with all our might. Like Esther, let us also pray to the Lord, not only for ourselves but for all the people in our society who need the grace of the Lord. Saint James explains to us in his letter 1:6 that we should ask in faith without doubting.
✍ -Fr. Simon Mohta (Indore Diocese)
आज के बाइबिल पाठ के अंत में, येसु हमें एक सुनहरा नियम देते हैं जब वे कहते हैं, "दूसरों से अपने प्रति जैसा व्यवहार चाहते हो, तुम भी उनके प्रति वैसा ही किया करो।" फिर वे इसे संहिता और नबियों की शिक्षा के सार के रूप में प्रस्तुत करते हैं। हम जानते हैं कि जो लोग हमें सच्चे दिल से प्यार करते हैं वे हमारी भलाई चाहते हैं और वही करते हैं, जो हमारे लिए अच्छा है। वे हमें नुकसान पहुंचाना नहीं चाहेंगे। एक प्यार करने वाला पिता हमेशा अपने बच्चों को अच्छी चीजें देना चाहेगा। येसु अपने स्वर्गिक पिता की तुलना सांसारिक पिताओं से करते हैं और अपने स्वर्गिक पिता को संसार के पिताओं से कहीं अधिक प्यारे, दयामय प्रस्तुत करते हैं। येसु कहते हैं, "बुरे होने पर भी यदि तुम लोग अपने बच्चों को सहज ही अच्छी चीजें देते हो, तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता माँगने वालों को अच्छी चीजें क्यों नहीं देगा?" चूँकि ईश्वर हम से प्रेम करते हैं, वे हमें अच्छी वस्तुएँ बहुतायत में देते हैं। इसलिए, हम आत्मविश्वास से माँग सकते हैं, खोज सकते हैं और खटखटा सकते हैं। वे हमें निराश नहीं करेंगे। स्तोत्र 34:18-19 में हम पढ़ते हैं, "प्रभु दुहाई देने वालों की सुनता और उन्हें हर प्रकार के संकट से मुक्त करता है। प्रभु दुःखियों से दूर नहीं है। जिनका मन टूट गया, प्रभु उन्हें संभालता है।”
✍ - फादर फ्रांसिस स्करिया
At the end of today’s biblical passage, Jesus gives us the golden rule which says, “In everything do to others as you would have them do to you”. He then refers to it as the essence of the law and the prophets. We know that those who sincerely love us wish good for us and do whatever is good for us. They would not like to harm us. A loving father would always like to give his children good things. Jesus compares the Heavenly Father to the earthly fathers who are loving. Jesus says, “If you then, who are evil, know how to give good gifts to your children, how much more will your Father in heaven give good things to those who ask him”! Since God loves us, he gives us good things in abundance. Therefore, we can confidently ask, seek and knock. He will not disappoint us. In Ps 34:18-19 we read, “The Lord is near to the brokenhearted, and saves the crushed in spirit. Many are the afflictions of the righteous, but the Lord rescues them from them all.”
✍ -Fr. Francis Scaria
येसु हमें पिता ईश्वर के पुत्र-पुत्रियों के विशेषाधिकारों और वरदानों का उपयोग करने के लिये निमंत्रण देते हैं। वे हमें आश्वासन देते हैं कि हम अपने प्रयासों में सफल होंगे। सर्वप्रथम वे कहते हैं कि हमें मांगना चाहिये। जब हम ईश्वर से कुछ मांगते हैं तो वास्तव में हम उनमें अपने विश्वास एवं आशा को अभिव्यक्त करते हैं। इसके बाद वे चाहते हैं कि हम मांगने की स्थिति से ढूंढने की अवस्था में आये। ढूंढना हमारे कार्यों एवं प्रयासों की निशानी है। जब हम ढूंढते हैं तो हेम वास्तव में गतिशील रहते हैं। जब हम इस ढूंढने के कार्य को करते हैं तो उसे उत्साह और आशा के साथ खोजते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि ईश्वर हमें सफल बनायेगा। खटखटाना निरंतरता का प्रतीक है। हो सकता है कि हमें मांगते तथा खोजते हुये शायद सफलता देर से मिले किन्तु येसु आश्वासन देते हैं कि अवसरों के द्वार अवश्य ही खोले जायेंगे। इस आश्वासन का कारण यह है कि ईश्वर हमारा पिता है। जब सांसारिक पिता अपने बच्चों को अच्छी चीजें देना जानते हैं तो हमारा स्वर्गिक पिता हमें क्यों नहीं उत्तम वस्तुयें एवं वरदान प्रदान करेगा।
✍ - फादर रोनाल्ड वाँन
Jesus invites us to exercise the gift or privilege of being the sons and daughters of God. He assures us of being successful in our endeavours. First, he tells us to ask. Asking God is a sign of faith and hope in him. We can only go to the person from whom we can expect something. Secondly, he wants us to move from asking to searching. Searching is doing. While we search, we do it with enthusiasm and hope; for we are sure of successes. Knocking is persistence. There can be a time we need to hang on longer than usual with the problems and situations. But Jesus assures us that the doors of opportunity will be opened. The Lord explains the reasons for this assurance. If our earthly fathers know how to give good things to us then how much more our heavenly father would bless us with greater things and gifts.
✍ -Fr. Ronald Vaughan