प्रभु यह कहता है, मैं उपयुक्त समय में तुम्हारी सुनूँगा, मैं कल्याण के दिन तुम्हारी सहायता करूँगा। मैंने तुम को बनाया है और अपने विधान की प्रजा नियुक्त किया है। मैं भूमि का उद्धार करूँगा और तुम्हें उजाड़ प्रदेशों में बसाऊँगा। मैं बन्दियों से यह कहूँगा, “मुक्त हो जाओ!” और अंधकार में रहने वालों से "सामने आओ”। वे मार्गों के किनारे चरेंगे और उन्हें उजाड़ स्थानों में चारा मिलेगा। उन्हें फिर कभी न तो भूख लगेगी और न प्यास, उन्हें न तो लू से कष्ट होगा और न धूप से, क्योंकि जो उन्हें प्यार करता है, वह उनका पथप्रदर्शन करेगा और उन्हें उमड़ते हुए जलस्रोतों तक ले चलेगा। मैं पर्वतों में रास्ता निकालूँगा और मार्गों को समतल बना दूँगा। देखो, कुछ लोग दूर से आ रहे हैं, कुछ उत्तर से, कुछ पश्चिम से और कुछ सिनिम के देश से। आकाश जयकार करे! पृथ्वी उललसित हो और पर्वत आनन्द के गीत गायें! क्योंकि प्रभु अपनी प्रजा को सान्त्वना देता है और अपने दीन-हीन लोगों पर दया करता है। सियोन यह कह रहा था, “प्रभु ने मुझे छोड़ दिया है। प्रभु ने मुझे भुला दिया है।” क्या स्त्री अपना दुधमुँहाँ बच्चा भुला सकती है? क्या वह अपनी गोद के पुत्र पर तरस नहीं खायेगी? यदि वह भुला भी दे, तो भी मैं तुम्हें कभी नहीं भुलाउँगा।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु दया और प्रेम से परिपूर्ण है।
प्रभु दया और अनुकम्पा से परिपूर्ण है, वह सहनशील और अत्यन्त प्रेममय है। वह सबों का कल्याण करता है, वह अपनी सारी सृष्टि पर दया करता है।
2. प्रभु अपनी सब प्रतिज्ञाएँ पूरी करता है। उसके समस्त कार्य उसके प्रेम से पूर्ण हैं। प्रभु निर्बल को सँभालता और झुके हुए को सीधा करता है।
3. प्रभु जो कुछ करता है, अच्छा ही करता है। वह जो कुछ करता है, प्रेम से करता है। वह उन सबों के निकट है, जो उसका नाम लेते हैं, जो सच्चे हृदय से उस से विनती करते हैं।
प्रभु कहते हैं, “पुनरुत्थान और जीवन मैं हूँ। जो मुझ में विश्वास करता है, वह कभी नहीं मरेगा।”
येसु ने यहूदियों से कहा, “मेरा पिता अब तक काम कर रहा है और मैं भी काम कर रहा हूँ।'” अब यहूदियों का उन्हें मार डालने का निश्चय और भी दृढ़ हो गया, क्योंकि वह न केवल विश्राम-दिवस का नियम तोड़ते थे, बल्कि ईश्वर को अपना निजी पिता कह कर ईश्वर के बराबर होने का दावा करते थे। येसु ने उस से कहा, “मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ - पुत्र स्वयं अपने से कुछ भी नहीं कर सकता। वह केवल वही कर सकता है, जो पिता को करते देखता है। जो कुछ पिता करता है, वही पुत्र भी करता है; क्योंकि पिता पुत्र को प्यार करता है और वह स्वयं जो कुछ करता है, उसे पुत्र को दिखाता है। वह उसे और महान् कार्य दिखायेगा, जिन्हें देख कर तुम लोग अचंभे में पड़ जाओगे। जिस तरह पिता मृतकों को उठाता और जिला देता है, उसी तरह पुत्र भी जिसे चाहता है, उसे जीवन प्रदान करता है। पिता तो किसी का न्याय नहीं करता। उसने न्याय करने का पूरा अधिकार पुत्र को दे दिया है, जिससे सब लोग जैसे पिता का आदर करते हैं, वैसे ही पुत्र का भी आदर करें। जो पुत्र का आदर नहीं करता, वह पिता का, जिसने पुत्र को भेजा है, आदर नहीं करता।” “मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ - जो मेरी शिक्षा सुनता है और जिसने मुझे भेजा है, उस में विश्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है। वह दोषी नहीं ठहराया जायेगा। वह तो मरण को पार कर जीवन में प्रवेश कर चुका है।” “मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ - वह समय आ रहा है, आ ही गया है, जब मृतक ईश्वर के पुत्र की वाणी सुनेंगे और जो सुनेंगे, उन्हें जीवन प्राप्त होगा। जिस तरह पिता स्वयं जीवन का स्रोत है, उसी तरह उसने पुत्र को भी जीवन का स्रोत बना दिया और उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है; क्योंकि वह मानव पुत्र हैं।” “इस पर आश्चर्य न करो। वह समय आ रहा है, जब वे सब, जो कब्रों में हैं, उसकी वाणी सुन कर निकल आयेंगे। सत्कर्मी जोवन के लिए पुनर्जीवित हो जायेंगे और कुकर्मी नरकदण्ड के लिए। मैं स्वयं अपने से कुछ भी नहीं कर सकता। मैं जो सुनता हूँ, उसी के अनुसार निर्णय देता हूँ और मेरा निर्णय न्यायसंगत है; क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, बल्कि जिसने मुझे भेजा है, उसकी इच्छा पूरी करना चाहता हूँ।”
प्रभु का सुसमाचार।
हमारा ईश्वर मनुष्यों के बीच रहने वाला ईश्वर है। वह अपने लोगों को कभी नहीं त्यागता है। वह एम्मानुएल है वह अपने लोगों के बीच निवास करता है। यही बात हम आज के पहले पाठ में ईश्वर का अपनी प्रजा के प्रति अटूट प्रेम के बारे में पाते हैं तथा सुसमाचार पिता ईश्वर और प्रभु येसु के अटूट संबंध के बारे में बताता है। कभी-कभी जब हम दुःख और परेशानी में रहते हैं उस समय लगता है कि ईश्वर हमारी प्रार्थनाओं को नहीं सुनता है, उसने हमें त्याग दिया है । यह एक ऐसा समय रहता है जब ईश्वर हमें किसी बड़े कार्य के लिये तैयार करता है इसलिये हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिये। ईश्वर हमें कभी नहीं त्यागते हैं और न ही भूलते हैं बल्कि वे जानते हैं कि हमारे लिये क्या सही है और कौन सा समय उपयुक्त है क्योंकि प्रभु कहता है मैं उपयुक्त समय में तुम्हारी सुनुँगा, मैं कल्याण के दिन तुम्हारी सहायता करुँगा‘‘ (‘‘इसायाह 49:8)।
सुसमाचार में हम पढ़ते हैं जब प्रभु येसु कहते हैं कि मैं और पिता एक हैं तो यहूदी लोग येसु को मार डालना चाहते हैं क्योंकि वो सोचते हैं कि येसु ईशनिन्दा कर रहे हैं। यहूदी धर्म में ईश निंदा करने वालों के लिये बहुत ही कठोर दण्ड का प्रावधान था। इसका जिक्र हमें लेवी ग्रन्थ 24:15-16 में मिलता है, इस आधार पर ईशनिन्दक को पत्थरों से मार डाला जाता था। प्रभु येसु पुराने विधान से पूरी तरह वाकिफ थे इसके बावजूद उसने ईश्वर को अपना पिता कहना नहीं छोड़ा क्योंकि वह वास्तव में वही थे। प्रभु येसु यहूदियों को दृढ़तापूर्वक जवाब देते हुये कहते हैं कि ‘‘मैं उसे जानता हूँ । यदि मैं कहता कि मैं उसे नहीं जानता तो मैं तुम्हारी तरह झूठा बन जाता। किन्तु मैं उसे जानता हूँ और उसकी शिक्षा पर चलता हूँ‘‘ । प्रभु येसु अपने पिता को बहुत ही करीबी से जानते थे उसी ने हमें पिता से अवगत कराया है।
बच्चों के जीवन में माता-पिता का आपस में संबंध कैसा है इसका विशेष प्रभाव पड़ता है अगर घर में अपशब्द बोले जाते हैं, अक्सर लड़ाई झगड़ा होता है, शराब पीते हैं स्वभाविक है बच्चे भी यही सीखते हैं। इसके विपरीत यदि उसी घर में दैनिक प्रार्थना होती है, अनुशासन है, एक-दूसरे का आदर और सम्मान किया जाता है, बच्चे भी उन्ही सदगुणों को सीखते हैं , अपनाते हैं। इसलिये हम हर सम्भव कोशिश करें हमारे घरों में हमारा संबंध प्रेममय हो। प्रभु येसु जिस तरह पिता ईश्वर से जुड़े हैं उसी तरह हम भी प्रभु येसु से तथा एक-दूसरे से जुडे़ रहें।
✍ - फादर संजय परस्ते (इन्दौर धर्मप्रान्त)
Our God is a loving and caring God who walks and moves with people. He never abandons his people. He is Emmanuel the one who dwells among his people. His unfathomable love for his people is expressed in the first reading today. The Gospel shows the unbreakable relationship between God the Father and Lord Jesus. Sometimes when we are in pain and trouble, we feel that God does not listen to our prayers, he has abandoned us.
This is a time when God prepares us for some greater responsibilities, so we should not lose courage. God never gives up on us, neither does he abandons nor forgets but He knows what is right for us and what is the right time. The Lord says: ‘In a time of favour I have answered you, on a day of salvation I have helped you; I have kept you and given you as a covenant to the people’ (Isaiah 49.8) .
In the Gospel we read when Jesus says ‘I and the Father are one’, the Jews want to kill Jesus because they think that Jesus is blaspheming. In Judaism, there was a provision of very stringent punishment for those who blasphemed. We find mention of this in Leviticus 24:15-16. On this basis, the blasphemer was supposed to be stoned to death. Jesus was fully aware of the Old Testament; In spite of this he did not stop calling God his father because He knew who really, he was. Lord Jesus firmly answers the Jews and says, "I know him. If I say that I do not know him, then I would become a liar like you. But I know him and follow his teachings. Lord Jesus knew his father very closely, we have come to know the Father through Him.
The relationship between parents has a special impact on the lives of children. If abusive words are used at home, there are frequent fights, people consume alcohol, then it is natural that children also learn the same. On the contrary, if daily prayers are conducted in the same house, there is discipline, elders are respected and honoured, the children also learn and adopt the same virtues. Hence, we should make every effort to have a loving relationship in our homes. As our Lord Jesus is connected to God the Father, in the same way we should also remain connected to Lord Jesus and to one another.
✍ -Fr. Sanjay Paraste
प्रभु येसु ने ईश्वर को अपना पिता कहा। यह यहूदियों को मंजूर नहीं था। वे ईश्वर को सर्वोच्च मानते थे जिन्होंने सब कुछ बनाया और सब कुछ संरक्षित किया। उनके लिए, ईश्वर अद्वितीय और परिपूर्ण है। वह सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वव्यापी है। जब एक बढ़ई के पुत्र येसु ने ईश्वर के पुत्र होने का दावा किया, तो वे इसे स्वीकार नहीं कर सके। वे येसु, नाज़रत के उनके परिवार और उनके साथियों से बहुत परिचित थे। येसु ने न केवल ईश्वर के पुत्र होने का दावा किया, बल्कि उनके बराबर होने का भी - समान कार्य करने और समान अधिकार रखने का दावा किया। येसु पिता का प्रतिबिंब और छवि है। वे निरंतर संचार और सहभागिता में हैं। सामान्य यहूदियों के लिए इस तथ्य को समझना और स्वीकार करना आसान नहीं था। ईश्वर की सहायता के बिना, हम येसु के व्यक्तित्व को नहीं समझ सकते। जब पेत्रुस ने कहा, "तू जीवन्त ईश्वर का पुत्र, मसीह है" (मत्ती 16:16), येसु ने कहा, "यह तुम्हें मांस और रक्त ने नहीं, परन्तु मेरे स्वर्गीय पिता ने तुझ पर प्रकट किया है" (मत्ती 16:17) ) ऐसा ज्ञान स्वयं ईश्वर से ही प्राप्त होता है। आइए हम येसु को जानने और प्रेम करने के लिए ईश्वरीय सहायता प्राप्त करें।
✍ - फादर फ्रांसिस स्करिया
Jesus called God his own Father. This was not acceptable to the Jews. They considered God to be the Supreme Being who created everything and preserves everything. For them, God is absolute, unique and perfect. He is omnipotent, omniscient and omnipresent. When Jesus, the son of a carpenter, claimed to be his son, they could not accept it. They were too familiar with Jesus, his family in Nazareth and his companions. Jesus not only claimed to be his son, but also equal to him – doing the same works and having the same authority. Jesus is the reflection and image of the Father. They are in constant communication and communion. It was not easy for the ordinary Jews to understand and accept this fact. Without assistance from God, we cannot understand the personality of Jesus. When Peter said, “You are the Messiah, the Son of the Living God” (Mt 16:16), Jesus said, “For flesh and blood has not revealed this to you, but my Father in heaven” (Mt 16:17). Such a knowledge comes from God himself. Let us seek divine assistance to know and love Jesus.
✍ -Fr. Francis Scaria