वर्ष का नौवाँ इतवार - वर्ष A

पहला पाठ

ईश्वर मूसा द्वारा इस्स्राएलियों को समझाता है कि उन्हें भलाई और बुराई में से एक को चुनना है। यदि वे भलाई को चुनेंगे, तो उन्हें आशीर्वाद मिलेगा और यदि बुराई को, तो उन्हें अभिशाप दिया जायेगा। हर मनुष्य को दोनों में से एक को चुनना पड़ता है।

विधि-विवरण ग्रंथ 11:18,26-28

“देखो, मैं आज तुम्हारे सामने आशीर्वाद तथा अभिशाप, दोनों रख रहा हूँ।"

मूसा ने यहूदियों से कहा, "तुम लोग मेरे ये शब्द हृदय और आत्मा में रख लो। उन्हें निशानी के तौर पर अपने हाथ में और शिरोबंध की तरह अपने मस्तक पर बाँधे रखो। “देखो ! आज मैं तुम लोगों के सामने आशीर्वाद तथा अभिशाप, दोनों रख रहा हूँ। प्रभु की जो आज्ञाएँ मैं आज तुम्हारे सामने रख रहा हूँ, यदि तुम उनका पालन करोगे, तो तुम्हें आशीर्वाद प्राप्त होगा। यदि तुम अपने प्रभु-ईश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं करोगे और जो मार्ग मैं आज तुम्हें बता रहा हूँ, उसे छोड़ कर उन अन्य देवताओं के अनुयायी बन जाओगे, जिन्हें तुम अब तक नहीं जानते, तो तुम्हें अभिशाप दिया जायेगा"।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 30:2-4,17,25

अनुवाक्य : हे प्रभु ! मेरे लिए आश्रय की चट्टान बन जा !

1. हे प्रभु ! मैं तेरी शरण में आया हूँ। मुझे कभी निराश नहीं होने दे। तू सत्यप्रतिज्ञ है, मेरा उद्धार कर। मेरी सुन और मुझे शीघ्र ही छुड़ाने की कृपा कर।

2. तू मेरे लिए आश्रय की चट्टान और रक्षा का शक्तिशाली गढ़ बन जा, क्योंकि तू ही मेरी चट्टान है और मेरा गढ़। अपने नाम के हेतु तू मेरा पथप्रदर्शन कर।

3. अपने सेवक पर दयादृष्टि कर। तू दयासागर है, मुझे बचाने की कृपा कर। जो प्रभु पर भरोसा रखते हैं, वे सब के सब साहसपूर्वक ढाढ़स रखें।

दूसरा पाठ

सन्त पौलुस रोम के निवासियों को समझाते हैं कि यहूदी संहिता का पालन करने से नहीं, बल्कि विश्वास करने से मुक्ति प्राप्त होती है। ईश्वर भेदभाव नहीं रखता। वह सभी मनुष्यों को मुक्ति देना चाहता है।

रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 3:21-25,28

"संहिता के कर्मकाण्ड द्वारा नहीं, बल्कि विश्वास द्वारा मनुष्य पापमुक्त हो जाता है।"

ईश्वर का मुक्ति-विधान, जिसके विषय में मूसा की संहिता और नबियों ने साक्ष्य दिया था, अब संहिता से स्वतंत्र रूप में प्रकट किया गया है। यह मुक्ति येसु मसीह में विश्वास करने से प्राप्त होती है। अब भेदभाव नहीं रहा यह मुक्ति उन सबों के लिए है, जो विश्वास करते हैं। क्योंकि सबों ने पाप किया और सब ईश्वर की महिमा से वंचित किये गये हैं। ईश्वर की कृपा से सबों को मुफ़्त में पापमुक्ति का वरदान मिला है; क्योंकि येसु मसीह ने सबों का उद्धार किया है। ईश्वर ने चाहा कि येसु अपना रक्त बहा कर पाप का प्रायश्चित करे और हम विश्वास द्वारा उसका फल प्राप्त करें। इस प्रकार हम देखते हैं कि संहिता के कर्मकाण्ड द्वारा नहीं, बल्कि विश्वास द्वारा मनुष्य पापमुक्त हो जाता है।

जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! धन्य हैं वह राजा, जो प्रभु के नाम पर आते हैं। स्वर्ग में शांति ! सर्वोच्च स्वर्ग में महिमा ! अल्लेलूया !

सुसमाचार

हम तभी मुक्ति प्राप्त कर सकेंगे, जब हम येसु की शिक्षा स्वीकार करने के बाद, उसके अनुसार जीवन बितायेंगे। चट्टान पर अपना घर बनवाने वाले मनुष्य की तरह वही समझदार है, जो येसु की बातें सुनता और उन पर चलता है।

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 7:21-27

"चट्टान पर और बालू पर बनाया हुआ घर।"

येसु ने अपने शिष्यों से कहा, "जो लोग मुझे 'हे प्रभु! हे प्रभु!" कह कर पुकारते हैं, उन में से सब के सब स्वर्गराज्य में प्रवेश नहीं करेंगे। जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही स्वर्गराज्य में प्रवेश करेगा। उस दिन बहुत-से लोग मुझ से कहेंगे, हे प्रभु ! क्या हमने आपका नाम ले कर भविश्यवाणी नहीं की? आपका नाम ले कर अपदूतों को नहीं निकाला? आपका नाम ले कर बहुत-से चमत्कार नहीं दिखाये? तब मैं उन्हें साफ़-साफ़ बता दूँगा, 'मैंने तुम लोगों को कभी नहीं जाना; रे कुकर्मियो ! मुझ से दूर हटो'। "जो मेरी ये बातें सुनता है और उन पर चलता है, वह उस समझदार मनुष्य के सदृश है, जिसने चट्टान पर अपना घर बनवाया। पानी बरसा, नदियों में बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। तब भी वह घर नहीं ढहा, क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गयी थी।" "जो मेरी ये बातें सुनता है, किन्तु उन पर नहीं चलता, वह उस मूर्ख के सदृश है, जिसने बालू पर अपना घर बनवाया। पानी बरसा, नदियों में बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और' उस घर से टकरायीं। वह घर ढह गया और उसका सर्वनाश हो गया।"

प्रभु का सुसमाचार।