वर्ष का नौवाँ इतवार - वर्ष B

पहला पाठ

शनिवार को यहूदी लोग विश्राम-दिवस मनाते थे इसका उल्लेख सुसमाचार में बारम्बार किया गया है। ईश्वर ने मूसा द्वारा विश्राम-दिवस के विषय में जो आदेश दिया था, वह अब पढ़ कर सुनाया जायेगा।
विधि-विवरण ग्रंथ 5:12-15
"याद रखो कि तुम मिस्त्र देश में दास के रूप में रहते थे।"

प्रभु यह कहता है, "विश्राम-दिवस के नियम का पालन करो और उसे पवित्र रखो, जैसा कि तुम्हारे प्रभु-ईश्वर ने तुम्हें आदेश दिया है। तुम छह दिन परिश्रम करते हुए अपना सारा काम-काज करो, किन्तु सातवाँ दिन तुम्हारे प्रभु-ईश्वर के सम्मान का विश्राम-दिवस है। उस दिन न तो तुम कोई काम करो, न तुम्हारा पुत्र या पुत्री, न तुम्हारा दास या दासी, न तुम्हारा बैल, न तुम्हारा गधा या कोई पशु और न तुम्हारे यहाँ रहने वाला परदेशी। इस प्रकार तुम्हारा दास और तुम्हारी दासी तुम्हारी तरह विश्राम कर सकेंगे। याद रखो कि तुम मिस्त्र देश में दास के रूप में रहते थे और तुम्हारा प्रभु-ईश्वर हाथ बढ़ा कर, अपने भुजबल से, तुम को वहाँ से निकाल लाया है। यही कारण है कि तुम्हारे प्रभु-ईश्वर ने तुम्हें विश्राम-दिवस मनाने का आदेश दिया है"।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 80:3-8,10-11

अनुवाक्य : हमारे शक्तिशाली ईश्वर का जयकार करो।

1. नया गीत गाओ, डफली बजाओ, सुरीली वीणा तथा तान पूरा सुनाओ, पूर्णिमा के दिन, हमारे उत्सव के दिन, नये मास की तुरही बजाओ।

2. यह तो इस्स्राएल का विधान है, याकूब के ईश्वर का आदेश है। जब वह मिस्र के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ, तो उसने यूसुफ के लिए यह नियम बनाया।

3. मैंने एक अपरिचित वाणी को यह कहते सुना, "मैंने तुम्हारे कन्धों पर से भार उतारा और तुम को बेगार से छुड़ाया। तुम्हारे संकट में मेरी दुहाई दी और मैंने तुम्हारा उद्धार किया।

4. तुम लोगों के बीच कोई पराया देवता न हो, तुम किसी पराये देवता की आराधना मत करो। मैं ही तुम्हारा प्रभु-ईश्वर हूँ, मैं ही तुम्हें मिस्र से निकाल लाया"।

दूसरा पाठ

सन्त पौलुस हमें याद दिलाते हैं कि हम में, हमारे नश्वर शरीर में येसु का जीवन प्रत्यक्ष हो गया है। हम अपनी दुःख-तकलीफ में येसु के दुःखभोग का अनुभव करते हैं। हम किसी दिन उनके पुनरुत्थान की महिमा के सहभागी होंगे, इसलिए हम कभी हार नहीं मानते।

कुरिंथियों के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र 4:6-11

“येसु का जीवन हमारे नश्वर शरीर में प्रत्यक्ष हो गया है।"

ईश्वर ने आदेश दिया था कि अन्धकार में प्रकाश हो जाये। उसी ने हमारे हृदयों को अपनी ज्योति से आलोकित कर दिया है, जिससे हम ईश्वर की वह महिमा जान जायें, जो मसीह के मुखमण्डल में चमकती है। यह अमूल्य निधि हम मिट्टी के पात्रों में रखी रहती है, जिससे यह स्पष्ट हो जाये कि यह अलौकिक सामर्थ्य हमारा अपना नहीं, बल्कि ईश्वर का है। हम कष्टों से घिरे रहते हैं, परन्तु कभी हार नहीं मानते। हम परेशान हो जाते हैं, परन्तु कभी निराश नहीं होते। हम पर अत्याचार किया जाता है, परन्तु हम अपने को परित्यक्त नहीं पाते। हम को पछाड़ दिया जाता है, परन्तु हम नष्ट नहीं हो जाते। हम हर समय अपने शरीर में येसु के दुःखभोग तथा मृत्यु का अनुभव करते हैं, जिससे येसु का जीवन भी हमारे शरीर में प्रत्यक्ष हो जाये। जीते जी हमें येसु के कारण निरन्तर मृत्यु का सामना करना पड़ता है, जिससे येसु का जीवन भी हमारे नश्वर शरीर में प्रत्यक्ष हो जाये।

प्रभु की वाणी।

जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया। जितनों ने उसे अपनाया उन सबों को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया है। अल्लेलूया !

सुसमाचार

येसु के समय तक विश्राम-दिवस के नियम बहुत बढ़ गये थे। हर प्रकार का काम मना किया जाने लगा था। उदाहरणार्थ - आग जलाना, बालें तोड़ना, बीमारी का इलाज करना, यात्रा करना, कोई भी चीज उठा कर ले जाना। येसु ने विश्राम-दिवस की संकीर्ण व्याख्या का खंडन किया और बारम्बार विश्राम-दिवस को लोगों को चंगा किया।

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 2:23-3:6

"मानव पुत्र विश्राम-दिवस का भी स्वामी है।"

येसु किसी विश्राम के दिन गेहूँ के खेतों से हो कर जा रहे थे। उनके शिष्य राह चलते बालें तोड़ने लगे। फ़रीसियों ने येसु से कहा, "देखिए, जो काम विश्राम के दिन मना है, ये वही क्यों कर रहे हैं?" येसु ने उन्हें उत्तर दिया, "क्या तुम लोगों ने कभी यह नहीं पढ़ा कि जब दाऊद और उसके साथी भूखे थे और खाने को उनके पास कुछ नहीं था, तो दाऊद ने क्या किया? उसने महायाजक अबियाथार के समय ईश-मंदिर में प्रवेश कर भेंट की रोटियों को खाया और अपने साथियों को भी खिलाया। याजकों को छोड़ किसी और को उन्हें खाने की आज्ञा तो नहीं थी"। येसु ने उन से कहा, "विश्राम-दिवस मनुष्य के लिए बना है, न कि मनुष्य विश्राम-दिवस के लिए; इसलिए मानव पुत्र विश्राम-दिवस का भी स्वामी है।" किसी दूसरे अवसर पर येसु ने सभागृह में प्रवेश किया। वहाँ एक मनुष्य था, जिसका हाथ सूख गया था। वे इस बात की ताक में थे कि येसु कहीं विश्राम के दिन उसे चंगा करें और हम उन पर दोष लगा सकें। येसु ने सूखे हाथ वाले से कहा, "बीच में खड़े हो जाओ"। तब येसु ने उन से पूछा, "विश्राम के दिन भलाई करना उचित है अथवा बुराई, जान बचाना अथवा मार डालना"? वे मौन रहे। उनके हृदय की कठोरता देख कर येसु को दुःख हुआ और उन्होंने उन पर क्रोधभरी दृष्टि दौड़ा कर उस मनुष्य से कहा, "अपना हाथ बढ़ाओ"। उसने ऐसा ही किया और उसका हाथ चंगा हो गया। इस पर फरीसी बाहर निकल कर तुरन्त हेरोदियों के साथ येसु के विरुद्ध परामर्श करने लगे कि हम किस तरह उनका सर्वनाश करें।

प्रभु का सुसमाचार।