वर्ष का दसवाँ सप्ताह, इतवार - वर्ष A

पहला पाठ

ईश्वर नबी होशेआ के मुख से यहूदियों से शिकायत करता है कि वे अपने धर्माचरण में स्थिर नहीं हो पाते हैं। भोर के कोहरे तथा ओस की तरह उनकी भक्ति शीघ्र ही समाप्त हो जाती है।नबी होशेआ का ग्रंथ 6:3-6
"मैं बलिदान नहीं, बल्कि प्रेम चाहता हूँ।"

आओ ! हम प्रभु का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करें। उसका आगमन भोर की तरह निश्चित है। वह पृथ्वी को सींचने वाली हितकारी वर्षा की तरह हमारे पास आयेगा। हे एफ्राईम ! मैं तेरे लिए क्या करूँ? हे यूदा ! मैं तेरे लिए क्या करूँ? तेरा प्रेम भोर के कोहरे के समान है, ओस के समान, जो शीघ्र ही लुप्त हो जाता है। इसलिए मैंने नबियों द्वारा तुम्हें घायल किया। अपने मुख के शब्दों द्वारा तुम्हें मारा है। क्योंकि मैं बलिदान की अपेक्षा प्रेम, और होम की अपेक्षा ईश्वर का ज्ञान चाहता हूँ।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 49:1,8,12-15

अनुवाक्य : मैं धर्मियों को ईश्वर का मुक्ति-विधान दिखाऊँगा।

1. प्रभु सर्वेश्वर बोलता है; वह उदयाचल से अस्ताचल तक पृथ्वी के सब लोगों को सम्बोधित करता है। "मैं यज्ञों के कारण तुम पर दोष नहीं लगाता हूँ - तुम्हारे बलिदान तो सदा मेरे सामने रहते हैं।

2. यदि मैं भूखा भी होता, तो मैं तुम से नहीं कहता, क्योंकि पृथ्वी और उसकी सभी चीजें मेरी ही हैं। क्या तुम समझते हो कि मैं साँड़ों का मांस खाता अथवा बकरों का रक्त पीता हूँ?

3. ईश्वर को धन्यवाद का बलिदान चढ़ाओ और उसके लिए अपनी मन्नतें पूरी करो। यदि तुम संकट के समय मुझे पुकारोगे, तो मैं तेरा उद्धार करूँगा और तुम मेरा सम्मान करोगे।"

दूसरा पाठ

सन्त पौलुस इब्राहीम के आदर्श विश्वास की चरचा करते हैं। इब्राहीम और उनकी पत्नी सारा, दोनों बूढ़े हो चले थे; किन्तु उन्होंने ईश्वर की उस प्रतिज्ञा पर विश्वास किया कि उनके एक पुत्र होगा। हमें भी ईश्वर में विश्वास करना है। उसने येसु मसीह को मृतकों में से जिलाया और वह हमें भी पाप की मृत्यु से बचा सकता है।

रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 4:18-25

"उन्होंने अपने विश्वास द्वारा ईश्वर का सम्मान किया।"

इब्राहीम ने निराशाजनक परिस्थिति में भी आशा रख कर विश्वास किया और वह बहुत-से राष्ट्रों के पिता बन गये, जैसा कि उन से कहा गया था- तुम्हारे असंख्य वंशज होंगे। यद्यपि वह जानते थे कि मेरा शरीर अशक्त हो गया है उनकी अवस्था लगभग एक सौ वर्ष की थी और सारा बाँझ है, तो भी उनका विश्वास विचलित नहीं हुआ, उन्हें ईश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने अपने विश्वास की दृढ़ता द्वारा ईश्वर का सम्मान किया। उन्हें पक्का विश्वास था कि ईश्वर ने जिस बात की प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरा करने में समर्थ है। इस विश्वास के कारण ईश्वर ने उन्हें धार्मिक माना है। वह अपने विश्वास के कारण, धार्मिक माने गये धर्मग्रंथ का यह कथन न केवल इब्राहीम से, बल्कि हम से भी संबंध रखता है। हम भी विश्वास के कारण धार्मिक माने जायेंगे, यदि हम ईश्वर में विश्वास करेंगे जिसने हमारे प्रभु येसु को मृतकों में से जिलाया है। वही येसु हमारे अपराधों के कारण पकड़वा दिये गये और हमारी पापमुक्ति के लिए जी उठे।

प्रभु की वाणी।

जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया। जितनों ने उसे अपनाया उन सबों को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया है। अल्लेलूया !

सुसमाचार

येसुं अपने आचरण द्वारा पिता-परमेश्वर की दया प्रकट करते और नाकेदारों तथा तथाकथित पापियों के साथ भोजन करते हैं। यह फ़रीसियों को बुरा लगता है, किन्तु येसु सुस्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि वह पापियों को पश्चात्ताप के लिए बुलाने आये हैं।

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 9:9-13

“मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।"

येसु ने मत्ती नामक व्यक्ति को चुंगी-घर में बैठा हुआ देखा और उस से कहा, "मेरे पीछे चले जाओ", और वह उठ कर उनके पीछे हो लिया। किसी दिन येसु अपने शिष्यों के साथ मत्ती के घर में भोजन पर बैठे और बहुत-से नाकेदार और पापी आ कर उनके साथ भोजन करते थे। यह देख कर फ़रीसियों ने उनके शिष्यों से कहा, "तुम्हारे गुरु नाकेदारों और पापियों के साथ क्यों भोजन करते हैं?" येसु ने यह सुन कर उन से कहा, "नीरोगों को नहीं, रोगियों को वैद्य की जरूरत होती है। जा कर सीख लो कि इसका क्या अर्थ है - मैं बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूँ। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को पश्चात्ताप के लिए बुलाने आया हूँ।"

प्रभु का सुसमाचार।