वर्ष का ग्यारहवाँ इतवार - वर्ष B

पहला पाठ

नबी एजेकिएल यह शिक्षा देते हैं, कि ईश्वर जो कुछ करना चाहता है, वह उसे निश्चय ही पूरा करता है। शानदार देवदार के दृष्टान्त में इस्राएल के एक महान् राजा अर्थात् मसीह की प्रतिज्ञा है, जो दाऊद के वंश में उत्पन्न होगा।

नबी एजेकिएल का ग्रंथ 17:22-24

"मैं नीचे वृक्ष को ऊँचा बना देता हूँ।"

प्रभु-ईश्वर यह कहता है, "मैं देवदार की फुनगी से, उसकी ऊँची-ऊँची शाखाओं से एक टहनी काटूंगा। उसे मैं स्वयं एक ऊँचे पहाड़ पर लगाऊँगा, उसे मैं इस्स्राएल के पहाड़ पर लगाऊँगा। "उस में डालियाँ निकल आयेंगी। वह फल उत्पन्न करेगा और एक शानदार देवदार बन जायेगा। नाना प्रकार के पक्षी उसके नीचे आ जायेंगे; वे उसकी डालियों की छाया में बसेरा करेंगे। और मैदान के सभी पेड़ जान लेंगे कि मैं प्रभु, ऊँचे वृक्ष को नीचा बना देता हूँ, और नीचे वृक्ष को ऊँचा। मैं हरे वृक्ष को सूखा बना देता हूँ और सूखे वृक्ष को हरा। मैं प्रभु, जो कह चुका हूँ, उसे पूरा कर देता हूँ।"

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 91:2-3,13-16

अनुवाक्य : प्रभु को धन्यवाद देना अच्छा है।

1. प्रभु को धन्यवाद देना अच्छा है। हे सर्वोच्च ! तेरे नाम का गाना, प्रातः तेरे प्रेम का और रात को तेरी सत्यप्रतिज्ञता का बखान करना अच्छा है।

2. धर्मी खजूर की तरह फलेंगे-फूलेंगे, और लेबानोन के देवदार की तरह बढ़ेंगे। वे प्रभु के मंदिर में रोपित हो कर हमारे ईश्वर के प्रांगण में फलेंगे-फूलेंगे।

3. वे लम्बी आयु तक फल उत्पन्न करते रहेंगे। वे रसदार और हरे-भरे बने रहेंगे, जिससे वे यह घोषित करते रहें-प्रभु सच्चा है, वह मेरी चट्टान है, उस में कुछ भी कपट नहीं।

दूसरा पाठ

मानव जीवन का रहस्य वही समझ पाता है, जो विश्वास करता है। विश्वास द्वारा हम समझ पाते हैं कि हमें कहाँ जाना है और वहाँ जाने के लिए किस रास्ते पर चलना है। हमें ईश्वर की इच्छा पूरी करनी चाहिए।

कुरिंथियों के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र 5:6-10

"हम चाहे घर में हों, चाहे परदेश में, हमारी एकमात्र अभिलाषा यह है कि हम प्रभु को अच्छे लगें।"

हम सदा ही ईश्वर पर भरोसा रखते हैं। हम यह जानते हैं कि हम जब तक इस शरीर में हैं, तब तक हम प्रभु से दूर, परदेश में निवास करते हैं; क्योंकि हम आँखों देखी बातों पर नहीं, बल्कि विश्वास पर चलते हैं। हमें तो ईश्वर पर पूरा भरोसा है। हम शरीर का घर छोड़ कर प्रभु के यहाँ बस जाना अधिक पसन्द करते हैं। इसलिए हम चाहे घर में हों चाहे परदेश में, हमारी एकमात्र अभिलाषा यह है कि हम प्रभु को अच्छे लगें क्योंकि हम सबों को मसीह के न्यायासन के सामने पेश किया जायेगा। प्रत्येक ने शरीर में रहते समय जो कुछ किया है, चाहे भलाई या बुराई, उसे उसका बदला चुकाया जायेगा।

प्रभु की वाणी।

जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! हे प्रभु ! बोल, तेरा दास सुन रहा है। तेरे ही शब्दों में अनन्त जीवन का संदेश है। अल्लेलूया !

सुसमाचार

ईश्वर का वचन भूमि में बोये हुए बीज के सदृश है। वह हमारे सहयोग से हम में धीरे-धीरे बढ़ता जाता है और निश्चय ही अच्छा फल उत्पन्न करेगा। हमें धैर्य और आशा के साथ उसके विकास में सहयोग देना चाहिए।

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 4:26-34

"वह सब से छोटा दाना है और वह सब पौधों से बड़ा हो जाता है।"

येसु ने लोगों से कहा, "ईश्वर का राज्य उस मनुष्य के सदृश है, जो भूमि में बीज बोता है। वह रात को सोने जाता और सुबह उठता है। बीज उगता है और बढ़ता जाता है, हालाँकि उसे यह पता नहीं कि यह कैसे हो रहा है। भूमि अपने आप फसल पैदा करती है – पहले अंकुर, फिर बाल, और बाद में पूरा दाना। फसल तैयार होते ही वह हँसिया चलाने लगता है क्योंकि कटनी का समय आ गया है"। येसु ने कहा, "हम ईश्वर के राज्य की तुलना किस से करें? हम किस दृष्टान्त द्वारा उसका निरूपण करें? वह राई के दाने के सदृश है। मिट्टी में बोये जाते समय वह दुनिया भर का सब से छोटा दाना है; परन्तु बाद में बढ़ते-बढ़ते वह सब पौधों से बड़ा हो जाता है और उस में इतनी बड़ी-बड़ी डालियाँ निकल आती हैं कि आकाश के पंछी उसकी छाया में बसेरा कर सकते हैं"। वह इस प्रकार के बहुत-से दृष्टान्तों द्वारा लोगों को उनकी समझ के अनुसार सुसमाचार सुनाते थे। वह बिना दृष्टान्त के लोगों से कुछ नहीं कहते थे, लेकिन एकान्त में वह अपने शिष्यों को सब बातें समझाते थे।

प्रभु का सुसमाचार।