वर्ष का ग्यारहवाँ इतवार - वर्ष C

पहला पाठ

दाऊद ने ऊरिया हित्ती को मरवा डाला। और उसकी पत्नी से विवाह किया। इस पर ईश्वर ने नबी नातान को दाऊद के पास भेजा और उन्होंने दाऊद के पाप की निन्दा की। दाऊद ने पश्चात्ताप किया और ईश्वर ने उसे क्षमा प्रदान की। येसु ने भी पश्चात्तापी पापिनी स्त्री को क्षमा प्रदान की।

समूएल का दूसरा ग्रंथ 12:7-10,13

"प्रभु ने तुम्हारा पाप क्षमा कर दिया। तुम नहीं मरोगे।"

नातान ने दाऊद से कहा, "प्रभु, इस्राएल का राजा यह कहता है - मैंने तुम्हारा अभिषेक इस्राएल के राजा के रूप में किया। मैंने तुम को साऊल के हाथ से बचा लिया। मैंने तुम्हें तुम्हारे स्वामी का घर और उसकी पत्नियों को दे दिया। मैंने इस्स्राएल तथा यूदा का घराना भी दिया और यदि यह पर्याप्त नहीं तो मैं तुम को और भी देने के लिए तैयार हूँ। तो, क्यों तुमने प्रभु का तिरस्कार किया और ऐसा कार्य कर डाला जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है? तुमने ऊरिया हित्ती को तलवार से मरवा डाला और उसकी पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया है। तुमने उसे अम्मोनियों की तलवार से मारा है। इसलिए अब से तलवार तुम्हारे घर से कभी दूर नहीं होगी, क्योंकि तुमने मेरा तिरस्कार किया और ऊरिया हित्ती की पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया"। दाऊद ने नातान से कहा, "मैंने प्रभु के विरुद्ध पाप किया है"। इस पर नातान ने दाऊद से कहा, "प्रभु ने तुम्हारा पाप क्षमा कर दिया। तुम नहीं मरोगे"।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 31:1-2,5,7,11

अनुवाक्य : हे प्रभु ! मेरा पाप क्षमा कर।

1. धन्य है वह, जिसका अपराध क्षमा हुआ है, जिसका पाप मिट गया है। धन्य है वह, जिसे ईश्वर दोषी नहीं मानता और जिसका मन निष्कपट है।

2. मैंने अपना अपराध स्वीकार किया, मैंने अपना दोष नहीं छिपाया। मैंने कहा, "मैं प्रभु के सामने अपना अपराध स्वीकार करूंगा"। तब तूने मेरा पाप क्षमा किया।

3. हे प्रभु ! तू मेरा आश्रय है, तू मुझे संकट से बचाता और मुझे मुक्ति के गीत गाने देता है।

4. हे धर्मियो ! प्रभु में आनन्द मनाओ। हे प्रभु-भक्तो ! उल्लसित हो कर आनन्द के गीत गाओ।

दूसरा पाठ

कुछ लोगों ने गलातियों से कहा था कि मूसा की संहिता के नियमों का पालन अनिवार्य है। इसलिए संत पौलुस उन्हें समझाते हैं कि मसीह में विश्वास करने से हमें पाप से मुक्ति मिलती है।

गलातियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 2:16,19-21

"मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझ में जीवित हैं।"

हम जानते हैं कि संहिता के कर्मकाण्ड द्वारा नहीं, बल्कि येसु मसीह में विश्वास द्वारा मनुष्य पापमुक्त हो जाता है। इसलिए हमने येसु मसीह में विश्वास किया, जिससे संहिता के कर्मकाण्ड द्वारा नहीं, बल्कि मसीह में विश्वास द्वारा हमें पाप से मुक्ति मिल जाये; क्योंकि कर्मकाण्ड द्वारा किसी को भी पापमुक्ति नहीं मिलती। संहिता के अनुसार मैं संहिता की दृष्टि में मर गया हूँ, जिससे मैं ईश्वर के लिए जी सकूँ। मैं मसीह के साथ क्रूस पर मर गया हूँ, मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझ में जीवित हैं। अब मैं अपने शरीर में जो जीवन जीता हूँ, उसका एकमात्र प्रेरणा-श्रोत है ईश्वर के पुत्र में विश्वास, जिसने मुझे प्यार किया और मेरे लिए अपने को अर्पित किया है। मैं ईश्वर के अनुग्रह का तिरस्कार नहीं कर सकता यदि संहिता द्वारा पापमुक्ति मिल सकती है, तो मसीह व्यर्थ ही मरे।

प्रभु की वाणी।

जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! हे प्रभु! हमें सद्बुद्धि प्रदान कर जिससे हम तेरे पुत्र की शिक्षा ग्रहण करें। अल्लेलूया !

सुसमाचार

फ़रीसी अपने को धर्मी समझ कर पापिनी स्त्री का तिरस्कार करता है और येसु के नबी होने में संदेह करता है, क्योंकि येसु पापिनी को अपने पैर छूने देते हैं। येसु उस स्त्री के पापों के विषय में जानते हैं और यह भी जानते हैं कि वह पश्चात्ताप करती है। इसलिए वह उसे क्षमा प्रदान करते हैं। येसु ने तो कहा था मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 7:36-8:3

[ कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है]
"उसके बहुत-से पाप क्षमा हुए हैं, क्योंकि उसने बहुत प्यार दिखाया है।"

किसी फ़रीसी ने येसु को अपने यहाँ भोजन करने का निमंत्रण दिया। वह उस फ़रीसी के घर आ कर भोजन करने बैठे। नगर की एक पापिनी स्त्री यह जान गयी कि येसु फ़रीसी के घर भोजन कर रहे हैं। वह संगमरमर के पात्र में इत्र ले कर आयी और रोती हुई येसु के चरणों के पास खड़ी हो गयी। उसके आँसू उनके चरण भिगोने लगे; इसलिए उसने उन्हें अपने केशों से पोंछ लिया और उनके चरणों को चूम-चूम कर उन पर इत्र लगा दिया। वह फ़रीसी, जिसने येसु को निमंत्रण दिया था, यह देख कर मन-ही-मन कहने लगा, "यह आदमी यदि नबी होता तो जरूर जान जाता कि जो स्त्री इसे छू रही है, वह कौन और कैसी है; वह तो पापिनी है"। परन्तु येसु ने उससे कहा, "सिमोन, मुझे तुम से कुछ कहना है"। उसने उत्तर दिया, "गुरुवर ! कहिए"। "किसी महाजन के दो कर्जदार थे। एक पाँच सौ दीनार का श्रृणी था, और दूसरा, पचास का। उनके पास कर्ज़ अदा करने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए महाजन ने दोनों को माफ़ कर दिया। उन दोनों में से कौन उसे अधिक प्यार करेगा?" सिमोन ने उत्तर दिया, "मेरी समझ में तो वही, जिसका अधिक ऋण माफ़ हुआ"। येसु ने उस से कहा, "तुम्हारा निर्णय सही है"। तब उन्होंने उस स्त्री की ओर फिर कर सिमोन से कहा, "इस स्त्री को देखते हो? मैं तुम्हारे घर आया, तुमने मुझे पैरों के लिए पानी नहीं दिया; पर इसने मेरे पैर अपने आँसूओं से धोये और अपने केशों से पोंछे। तुमने मेरा चुम्बन नहीं किया, परन्तु यह जब से भीतर आयी है, यह मेरे पैर चूमती है। तुमने मेरे सिर में तेल नहीं लगाया, पर इसने मेरे पैरों पर इत्र लगाया है। इसलिए मैं तुझ से कहता हूँ, इसके बहुत-से पाप क्षमा हो गये हैं, क्योंकि इसने बहुत प्यार दिखाया है। पर जिसे कम क्षमा किया गया, वह कम प्यार दिखाता है।" तब येसु ने उस स्त्री से कहा, "तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं"। साथ भोजन करने वाले मन-ही-मन कहने लगे, "यह कौन है, जो पापों के भी क्षमा करता है?" पर येसु ने उस स्त्री से कहा, "तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है। शांति ग्रहण कर जाओ"।

[ इसके बाद येसु नगर-नगर और गाँव-गाँव घूम कर उपदेश देते और ईश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाते रहे। बारह प्रेरित उनके साथ थे और कुछ स्त्रियाँ भी, जो दुष्ट आत्माओं और रोगों से मुक्त की गयी थीं: मरिया, जिसका उपनाम मगदलेना था और जिस से सात अपदूत निकले थे; हेरोद के भंडारी खूसा की पत्नी योहन्ना; सुसन्ना और अनेक दूसरी स्त्रियाँ भी, जो अपनी सम्पत्ति से येसु और उनके शिष्यों का सेवा-सत्कार करती थीं।]

प्रभु का सुसमाचार।