वर्ष का तेरहवाँ सप्ताह, इतवार – वर्ष A

पहला पाठ

मेहमानों और विशेष कर ईश्वर-भक्तों का स्वागत करना पुण्य का काम है। शूनेम की धनी महिला नबी एलिसय का सत्कार किया करती थी और इसी कारण ईश्वर ने उसे एक पुत्र की माता बनने का वरदान दिया।

राजाओं का दूसरा ग्रंथ 4:8-11,14-16

"यह एक ईश्वर-भक्त सन्त हैं। वह यहाँ विश्राम करें।"

एलिसय किसी दिन शूनेम हो कर जा रहे थे। वहाँ की एक धनी महिला ने उस से अनुरोध किया कि वह उसके यहाँ भोजन करे। इसके बाद, जब-जब उसे वहाँ हो कर जाना था, तो वह उसके यहाँ भोजन करता था। उसने अपने पति से कहा, "मुझे विश्वास है कि जो हमारे यहाँ भोजन करने आया करते हैं, वह एक ईश्वर-भक्त सन्त हैं। हम छत पर एक छोटा-सा कमरा बनवायें। हम उस में पलंग, मेज़, कुरसी और दीपक रख दें - जब वह हमारे यहाँ आयेंगे तो उस में विश्राम करेंगे"। एलिसय किसी दिन आया, और छत पर चढ़ कर वहाँ सो गया। एलिसय ने कहा, "मैं उस महिला के लिए क्या कर सकता हूँ?" उसके नौकर गेहजी ने उत्तर दिया, "उसके कोई पुत्र नहीं है और उसका पति बूढ़ा है"। एलिसय ने कहा, "उसे बुलाओ"। उसने उसे बुलाया और वह द्वार पर खड़ी हो गयी। तब एलिसय ने कहा, "अगले वर्ष, इसी समय तुम्हारी गोद में पुत्र होगा।"

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 88:2-3,16-19

अनुवाक्य : हे प्रभु ! मैं सदा ही तेरी कृपा का गीत गाता रहूँगा।

1. हे प्रभु ! मैं सदा ही तेरी कृपा का गीत गाता रहूँगा। मैं पीढ़ी-दर-पीढ़ी तेरी सत्यप्रतिज्ञता घोषित करता रहूँगा। तूने कहा, “मेरी कृपा सदा ही बनी रहेगी। मेरी सत्यप्रतिज्ञता आकाश की तरह चिरस्थायी है"।

2. धन्य है वह प्रजा, जो ऐसे राजा का स्वागत करती है, जो तेरे मुखमण्डल की ज्योति में चलती है, जो तेरे नाम पर प्रतिदिन आनन्द मनाती और तेरे न्याय पर गौरव करती है।

3. हे प्रभु ! तू ही उसका बल और गौरव है, तेरी कृपा से हमारा सामर्थ्य बढ़ता है। क्योंकि प्रभु ही हमारी रक्षा करता है। इस्राएल का परमपावन ईश्वर हमारे राजा को सँभालता है।

दूसरा पाठ

सन्त पौलुस का विचार है कि बपतिस्मा ग्रहण करते समय हम मसीह के साथ दफ़नाये जाते हैं और जिस तरह मसीह मृतकों में से जी उठे हैं, उसी तरह हमें भी एक नया जीवन जीना चाहिए।

रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 6:3-4,8-11

"हम मसीह की मृत्यु का बपतिस्मा ग्रहण कर उनके साथ इसलिए दफ़नाये गये हैं कि हम भी एक नया जीवन अपनायें।"

आप लोगों को यह शिक्षा मिली कि येसु मसीह का जो बपतिस्मा हम सबों को मिला है, वह उनकी मृत्यु का बपतिस्मा है। हम उनकी मृत्यु का बपतिस्मा ग्रहण कर उनके साथ इसलिए दफ़नाये गये हैं कि जिस तरह मसीह पिता के सामर्थ्य से मृतकों में से जी उठे हैं, उसी तरह हम भी एक नया जीवन जीयें। हमें विश्वास है कि यदि हम मसीह के साथ मर गये हैं, तो हम उन्हीं के जीवन के भी भागी होंगे। क्योंकि हम जानते हैं कि मसीह मृतकों में से जी उठ कर फिर कभी नहीं मरेंगे। अब मृत्यु का उन पर कोई वश नहीं। वह पाप का हिसाब चुकाने के लिए एक बार मर गये और अब वह ईश्वर के लिए ही जीते हैं। आप लोग भी अपने को ऐसा ही समझिए - पाप के लिए मरा हुआ और येसु मसीह में ईश्वर के लिए जीवित।

प्रभु की वाणी।

जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ पहचानती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरा अनुसरण करती हैं।" अल्लेलूया !

सुसमाचार

येसु हमें यह शिक्षा देते हैं कि ईश्वर की सेवा करने के लिए हमें अपने निकट सम्बन्धियों से भी अलग हो जाने के लिए तैयार होना चाहिए। येसु के शिष्य को अपना क्रूस उठा कर अपने प्रभु का अनुसरण करना चाहिए।

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 10:37-42

"जो अपना क्रूस उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरे योग्य नहीं। जो तुम्हारा स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है।"

येसु ने बारह प्रेरितों से कहा, "जो अपने पिता या अपनी माता को मुझ से अधिक प्यार करता है, वह मेरे योग्य नहीं। जो अपने पुत्र या अपनी पुत्री को मुझ से अधिक प्यार करता है, वह मेरे योग्य नहीं। जो अपना क्रूस उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरे योग्य नहीं जिसने अपना जीवन सुरक्षित रखा है, वह उसे खो देगा और जिसने मेरे कारण अपना जीवन खो दिया है, वह उसे सुरक्षित रख सकेगा। "जो तुम्हारा स्वागत करता है, वह मेरा ही स्वागत करता है और जो मेरा स्वागत करता है, वह उसी का स्वागत करता है, जिसने मुझ भेजा है। जो नबी का इसलिए स्वागत करता है कि वह नबी है, वह नबी का पुरस्कार पायेगा और जो धर्मी का इसलिए स्वागत करता है कि वह धर्मी है, वह धर्मी का पुरस्कार पायेगा। "जो कोई इन छोटों में से किसी को एक प्याला ठंढा पानी भर इसलिए पिला दे कि वह मेरा शिष्य है, तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वह अपने पुरस्कार से वंचित नहीं रहेगा।"

प्रभु का सुसमाचार।