वर्ष का पन्द्रहवाँ सप्ताह, इतवार - वर्ष A

पहला पाठ

नबी इसायस प्रभु की वाणी के सामर्थ्य का वर्णन करते हैं। जिस तरह पानी भूमि को उपजाऊ बनाता है, उसी तरह ईश्वर की वाणी मनुष्य के हृदय में आध्यात्मिक फल उत्पन्न करती है। हमें अच्छी भूमि की तरह प्रभु की वाणी ग्रहण कर प्रचुर फल उत्पन्न करना चाहिए।

नबी इसायस का ग्रंथ 55:10-11

"पानी भूमि को उपजाऊ बनाता है।"

प्रभु यह कहता है, "जिस तरह पानी और बर्फ आकाश से उतर कर भूमि सींचे बित्ता, उसे उपजाऊ बनाये और हरियाली से ढके बिना, वहाँ नहीं लौटते, जिससे भूमि बीज बोने वाले को बीज और खाने वाले को अनाज दे सके; उसी तरह मेरी वाणी मेरे मुख से निकल कर व्यर्थ ही मेरे पास नहीं लौटती। जो मैं चाहता था, वह उसे कर डालती है और मेरा उद्देश्य पूरा करने के बाद ही वह मेरे पास लौट आती है"।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 46:10-14

अनुवाक्य : कुछ बीज अच्छी भूमि में गिरे वे उग कर सौ-गुना फल लाये।

1. तू पृथ्वी की सुधि लेता है, तू उसे सींचता और उपज से भर देता है। ईश्वर की नदियाँ उमड़ती और पृथ्वी को उपजाऊ बना देती हैं।

2. तू जोती हुई भूमि सींचता है, उसे बराबर करता, पानी बरसा कर नरम बनाता और उसके अंकुरों को आशिष देता है - इस प्रकार तू भूमि का संभरण करता है।

3. तू वर्ष भर वरदान देता रहता है, तेरी प्रजा की भूमि उपजाऊ है, मरुभूमि के चरागाह हरे-भरे हैं।

4. पहाड़ियों में आनन्द के गीत गूंजते रहते हैं, चरागाह भेड़-बकरियों से भरे हैं, घाटियाँ अनाज की फसल से ढकी हुई हैं, और आनन्द तथा उल्लास के गीत गाती हैं।

दूसरा पाठ

सन्त पौलुस बारम्बार अपने पत्रों में उस महिमा की चरचा करते हैं, जो मसीह के दिन हम में, हमारे पुनर्जीवित शरीर में प्रकट होने वाली है। उस महिमा की तुलना में वर्तमान जीवन का दुःख और कष्ट नगण्य है।

रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 8:18-23

"समस्त सृष्टि उत्कंठा से उस दिन की प्रतीक्षा कर रही है जब ईश्वर के पुत्र प्रकट हो जायेंगे।"

मैं समझता हूँ कि जो महिमा हम में प्रकट होने को है, उसकी तुलना में इस समय का दुःख नगण्य है। क्योंकि समस्त सृष्टि उत्कंठा से उस दिन की प्रतीक्षा कर रही है, जब ईश्वर के पुत्र प्रकट हो जायेंगे। यह सृष्टि तो इस संसार की असारता के अधीन हो गयी है- अपनी इच्छा से नहीं, बल्कि उसकी इच्छा से जिसने उसे अधीन बना दिया है किन्तु यह आशा भी बनी रही कि वह असारता की दासता से मुक्त हो जायेगी और ईश्वर के पुत्रों की महिमामय स्वतंत्रता की सहभागी बनेगी। हम जानते हैं कि समस्त सृष्टि अब तक मानो प्रसव पीड़ा में कराहती रही है। और सृष्टि ही नहीं, हम भी भीतर ही भीतर कराहते हैं। हमें तो पवित्र आत्मा के पहले कृपादान मिल चुके हैं, किन्तु हम ईश्वर की सन्तान होने के नाते अपने शरीर की मुक्ति की राह देख रहे हैं।

प्रभु की वाणी।

जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! यदि कोई मुझे प्यार करेगा, तो वह मेरी शिक्षा पर चलेगा। मेरा पिता उसे प्यार करेगा और हम उसके पास आ कर उस में निवास करेंगे । अल्लेलूया !

सुसमाचार

बोने वाले के दृष्टान्त से यह स्पष्ट हो जाता है कि येसु द्वारा बोया हुआ ईश्वर का वचनरूपी बीज तभी प्रचुर फल उत्पन्न करता है, जब मनुष्य उस वचन को अच्छी भूमि की तरह ग्रहण करता है।

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 13:1-23

[कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है]
"बोने वाला बीज बोने निकला ।"

येसु घर से निकल कर समुद्र के किनारे जा बैठे । उनके पास इतनी बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी कि वह नाव पर चढ़ कर बैठ गये और सारी भीड़ तट पर बनी रही । वह दृष्टान्तों द्वारा उन्हें बहुत-सी बातें समझाने लगे। उन्होने कहा, "सुनो ! कोई बोने वाला बीज बोने निकला । बोते-बोते कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे और आकाश के पक्षियों ने आ कर उन्हें चुग लिया। कुछ बीज पथरीली भूमि पर गिरे, जहाँ उन्हें अधिक मिट्टी नहीं मिली। वे जल्दी ही उग गये, क्योंकि उनकी मिट्टी गहरी नहीं थी। सूरज चढ़ने पर वे झुलस गये और जड़ न होने के कारण सूख गये। कुछ बीज काँटों में गिरे और काँटों ने बढ़ कर उन्हें दबा दिया। कुछ बीज अच्छी भूमि में गिरे और फल लाये कुछ तीस-गुना, कुछ साठ-गुना और कुछ सौ-गुना। जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले" ।

[ येसु के शिष्यों ने आ कर उन से कहा, "आप क्यों लोगों को दृष्टान्तों में शिक्षा देते हैं?" उन्होंने उत्तर दिया, "यह इसलिए है कि स्वर्गराज्य का भेद जानने का वरदान तुम्हें दिया गया है, उन लोगों को नहीं। क्योंकि जिसके पास कुछ है, उसी को और दिया जायेगा और उसके पास बहुत हो जायेगा। लेकिन जिसके पास कुछ नहीं है, उस से वह भी ले लिया जायेगा, जो उसके पास है। मैं उन्हें दृष्टान्तों में शिक्षा देता हूँ क्योंकि वे देखते हुए भी नहीं देखते और सुनते हुए भी न तो सुनते और न समझते हैं। इसायस की यह भविष्यवाणी उन लोगों पर पूरी उतरती है तुम सुनते रहोगे परन्तु नहीं समझोगे; तुम देखते रहोगे परन्तु तुम्हें नहीं दीखेगा। क्योंकि इन लोगों की बुद्धि मारी गयी है; ये कानों से सुनना नहीं चाहते; इन्होंने अपनी आँखों को बन्द कर लिया है। कहीं ऐसा न हो कि ये आँखों से देख लें, कानों से सुन लें, बुद्धि से समझ लें, मेरी ओर लौट आयें और मैं उन्हें भला-चंगा कर दूँ। परन्तु धन्य हैं तुम्हारी आँखें, क्योंकि वे देखती हैं और धन्य हैं तुम्हारे कान, क्योंकि वे सुनते हैं। मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ - तुम जो बातें देख रहे हो उन्हें कितने ही नबी और धर्मात्मा देखना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उनको देखा नहीं और तुम जो बातें सुन रहे हो उन्हें वे सुनना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उनको सुना नहीं। "अब तुम लोग बोने वाले का दृष्टान्त सुनो। यदि कोई राज्य का वचन सुनता है लेकिन समझता नहीं, तब जो उसके मन में बोया गया था, उसे शैतान आ कर ले जाता है: यह वह है, जो रास्ते के किनारे बोया गया है। जो पथरीली भूमि में बोया गया है: यह वह है, जो वचन सुनते ही प्रसन्नता से ग्रहण करता है; परन्तु उस में जड़ नहीं है और वह थोड़े ही दिन दृढ़ रहता है। वचन के कारण संकट या अत्याचार आ पड़ने पर वह तुरन्त विचलित हो जाता है। जो काँटों में बोया गया है: यह वह है जो वचन सुनता है, परन्तु संसार की चिन्ता और धन का मोह वचन को दबा देता है और वह फल नहीं लाता। जो अच्छी भूमि में बोया गया है: यह वह है जो वचन सुनता और समझता है और फल लाता है कोई सौ-गुना, कोई साठ-गुना और कोई तीस-गुना"।]

प्रभु का सुसमाचार।