वर्ष का अट्ठारहवाँ सप्ताह, इतवार - वर्ष C

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📕पहला पाठ

मनुष्य कितनी बातों की चिन्ता करता रहता है। और उस से क्या लाभ है? मनुष्य जो कुछ एकत्र कर लेता है, क्या वह मरते समय वह सब अपने साथ ले जाता है? हमें येसु के परामर्श के अनुसार स्वर्ग में पूँजी एकत्र करनी चाहिए।

उपदेशक-ग्रंथ 1:2;2:21-23

"मनुष्य को अपने कठिन परिश्रम के बदले क्या मिलता है?"

उपदेशक कहता है, "व्यर्थ ही व्यर्थ; व्यर्थ ही व्यर्थ; सब कुछ व्यर्थ है। मनुष्य समझदारी, कौशल और सफलता से काम करने के बाद जो कुछ एकत्र कर लेता है, उसे वह सब ऐसे व्यक्ति के लिए छोड़ देना पड़ता है, जिसने उसके लिए कोई भी परिश्रम नहीं किया है। यह भी व्यर्थ है और बड़ा अन्याय भी। क्योंकि मनुष्य को कड़ी धूप में कठिन परिश्रम करने के बदले क्या मिलता है? जीवन भर का परिश्रम, भारी चिन्ता और रात के जागरण - यह सब भी व्यर्थ है"।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 89:3-6,12-14,17

अनुवाक्य : हे प्रभु ! तू पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारा आश्रय बना रहा।

1. तू मनुष्य को फिर मिट्टी में मिला कर कहता है, "हे मनुष्य की सन्तान ! लौट जाओ !" एक हजार वर्ष भी तुझे बीते कल की तरह लगते हैं, वे तेरी गिनती में रात के पहर के सदृश हैं।

2. तू मनुष्यों को इस तरह उठा ले जाता है जिस तरह सबेरा हो जाने पर स्वप्न मिट जाता है, जिस तरह घास प्रातःकाल उग कर लहलहाती है और संध्या तक मुरझा कर सूख जाती है।

3. हमें जीवन की क्षणभंगुरता सिखा, जिससे हम में सद्बुद्धि आये। हे प्रभु ! क्षमा कर। हम कब तक तेरी प्रतीक्षा करें?

4. तू अपने सेवकों पर दया कर। तू भोर को हमें अपना प्रेम दिखा, जिससे हम दिन भर आनन्द के गीत गा सकें। प्रभु की मधुर कृपा हम पर बनी रहे और हमारे सब कार्यों पर तेरी आशिष।

📘दूसरा पाठ

सन्त पौलुस कलोसियों से अनुरोध करते हैं कि वे पृथ्वी पर की नहीं, ऊपर की चीज़ों की चिन्ता किया करें। बपतिस्मा ग्रहण करने के बाद उनके जीवन का एक ही लक्ष्य रहा, अर्थात् मसीह का अनुकरण।

कलोसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 3:1-5,9-11

"आप लोग ऊपर की चीजें खोजते रहें, जहाँ मसीह विराजमान हैं।"

आप लोग मसीह के साथ ही जी उठे हैं, जो ईश्वर के दाहिने विराजमान हैं इसलिए ऊपर की चीजें खोजते रहें। आप पृथ्वी पर की नहीं, ऊपर की चीज़ों की चिन्ता किया करें। आप तो मर चुके हैं, आप का जीवन मसीह के साथ ईश्वर में छिपा हुआ है। मसीह ही आपका जीवन है। जब मसीह प्रकट होंगे, तब आप भी उनके साथ महिमान्वित हो कर प्रकट हो जायेंगे। इसलिए आप लोग अपने शरीर में इन बातों का दमन करें, जो पृथ्वी की हैं अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, कामुकता, विषयवासना और लोभ, जो मूर्तिपूजा के सदृश हैं। एक दूसरे से झूठ कभी नहीं बोलें। आप लोगों ने अपना पुराना स्वभाव और उसके कर्मों को उतार कर एक नया स्वभाव धारण किया। वह स्वभाव अपने सृष्टिकर्त्ता का प्रतिरूप बन कर नवीन हो जाता और सच्चाई के ज्ञान की ओर आगे बढ़ता है, जहाँ पहुँचकर कोई भेद नहीं रहता, जहाँ न युनानी है या यहूदी, न खतना है या ख़तना का अभाव, न बर्बर है, न स्कूती, न दास और न स्वतंत्र वहाँ केवल मसीह हैं, जो सब कुछ और सब में हैं।

प्रभु की वाणी।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ पहचानती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरा अनुसरण करती हैं"। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

येसु ने बहुत-से अवसरों पर धन के सदुपयोग का परामर्श दिया। यहाँ वह मूर्ख धनी के दृष्टान्त द्वारा धन की असारता की शिक्षा देते हैं। वह उन लोगों को भी मूर्ख बताते हैं जो अपने लिए धन एकत्र करते हैं, किन्तु ईश्वर की दृष्टि में धनी नहीं हैं।

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 12:13-21

"जो कुछ तूने इकट्ठा किया है, वह किसका होगा?"

भीड़ में से किसी ने येसु से कहा, "गुरुवर ! मेरे भाई से कहिए कि वह मेरे लिए पैतृक सम्पत्ति का बँटवारा कर दे"। उन्होंने उसे उत्तर दिया, "अरे भई, किसने मुझे तुम्हारा पंच या बँटवारा करने वाला नियुक्त किया है?" तब येसु ने उन से कहा, "सावधान रहो और हर प्रकार के लोभ से बचे रहो। क्योंकि किसी के पास कितनी ही संपत्ति क्यों न हो, उस संपत्ति से उसके जीवन की रक्षा नहीं होती"। फिर येसु ने उन को यह दृष्टान्त सुनाया, "किसी धनवान् की जमीन में बहुत फ़सल हुई थी। वह अपने मन में इस प्रकार विचार करने लगा, 'मैं क्या करूँ? मेरे यहाँ जगह नहीं रही, जहाँ अपनी फ़सल रख दूँ'। तब उसने कहा, 'मैं यह करूँगा। अपने भण्डारों को तोड़ कर उन से और बड़े भण्डार बनवाऊँगा, उन में अपनी सारी उपज और अपना माल इकट्ठा करूँगा, और अपनी आत्मा से कहूँगा- अरे भई, तुम्हारे पास बरसों के लिए बहुत-सा माल इकट्ठा है; इसलिए विश्राम करो, खाओ-पियो और मौज उड़ाओ'। परन्तु ईश्वर ने उस से कहा, 'ऐ मूर्ख, इसी रात तेरे प्राण तुझ से ले लिये जायेंगे और जो कुछ तूने इकट्ठा किया है, वह अब किसका होगा?' यही दशा उसकी होती है जो अपने लिए तो धन एकत्र करता है, किन्तु ईश्वर की दृष्टि में धनी नहीं है।"

प्रभु का सुसमाचार।

📚 मनन-चिंतन -3

आज के पहले पाठ के संदेश को पढ़कर ऐसा लगता है कि हमें जीवन में कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि सब कुछ व्यर्थ है। हमारी मेहनत के फल का आनंद हमारे बाद कोई और लेगा। लेकिन मान लीजिए कि हमारी मृत्यु ना हो, हम अमर हो जाएँ तो क्या फिर भी हमारी कमाई और मेहनत व्यर्थ होगी? लेकिन मृत्यु तो अटल सत्य है, एक न एक दिन सभी को मरना है। लेकिन समस्या यह कि हम इस अटल सत्य को जानते हुए भी भुला देते हैं, और हम ऐसे जीते हैं जैसे कि हम अमर हों। जन्म से लेकर आख़िरी साँस तक हमें हमारा परिवार और हमारा समाज यही सिखाता है कि हमें जीवन में कुछ करना है, बड़ा व्यक्ति बनना है, धन-दौलत कमानी है। इसके लिए अच्छी शिक्षा दिलवायी जाती है, तरह-तरह की प्रतियोगी परीक्षाओं को पास करना पड़ता है, तब कहीं जाकर नौकरी मिलती है, हम कुछ बन पाते हैं। फिर भी हमारी कमाई हमें कम लगती है और हम उससे भी बेहतर नौकरी ढूँढते हैं, ज़्यादा पैसे बचाने की कोशिश करते हैं। इस पूरी भाग-दौड़ में हम यह भूल जाते हैं कि जो साँसें हम ले रहे हैं वो हमें ईश्वर की हुई हैं, जो जीवन हम जी रहे हैं वो उसी का दिया हुआ है। सारी सृष्टि उसी की मर्ज़ी से चलती है। जब वो चाहे हमें अपने पास बुला ले, तो फिर हमारी मेहनत का फल, हमारी कमाई हमारे किस काम आएगी? लेकिन अगर हम अपने जीवन में ईश्वर को भी सहभागी बनाते हुए चलें तो शायद नजारा और नज़रिया बदल सकता है। अगर हम अपने परिश्रम के फल का इस प्रकार उपयोग करें कि वह हमारी मृत्यु के बाद भी वह हमारे काम आए तो कैसा हो? अगर हम अपनी धन-दौलत का कुछ भाग भले कार्यों के लिए लगाएँ, जरूरतमंदों की सेवा में लगाएँ तो उसका फल हमारी मृत्यु के बाद हमारे लिए पुरस्कार बन जाएगा। हो सकता है अपने धन-दौलत को हम प्रत्यक्ष रूप से ईश्वर की सेवा में ना लगाएँ लेकिन ईश्वर हर किसी के अंदर निवास करता है तो ज़रूर उनकी सेवा भी ईश्वर की ही सेवा होगी। जो धन या जीवन ईश्वर के लिए नहीं लगाया ज़रूर वह व्यर्थ ही व्यर्थ है।

फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर)

📚 REFLECTION


JAfter reading the message from today’s first reading, it may seem as though there is no need to do anything in life, because everything is ultimately meaningless. The fruit of our hard work will be enjoyed by someone else after us. But suppose we never died — that we became immortal — would our earnings and efforts still be meaningless? Yet death is an unchangeable truth. Everyone has to face it one day. The problem is that even though we know this undeniable truth, we forget it, and live as if we are immortal. From birth to our final breath, our families and society teach us that we must "do something" in life — become someone important, earn wealth and success. For this, we’re given a good education, we go through various competitive exams, and only then do we find a job and become something. Even then, our income feels insufficient, so we search for better jobs and try to save even more money. In all this running around, we forget that the very breath we take is a gift from God, and the life we are living has also been given by Him. The entire creation moves according to His will. If He wishes to call us back to Himself, then of what use will our earnings and hard work be? But if we choose to walk through life making God a participant in it, perhaps both our perspective and our view of life would change. What if we use the fruits of our labor in such a way that they benefit us even after our death? What if we dedicate a portion of our wealth to good works, to serving those in need? Then the fruits of such actions will become a reward for us even after death. It may be that we do not directly use our wealth in God’s service — but God dwells within every human being. Therefore, serving others is indeed serving God. Any wealth or life that is not used for God is surely meaningless.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior)

📚 मनन-चिंतन - 2

संपत्ति के बिना एक जीवन

मूर्ख धनी का दृष्टांत के दो प्रारूप हैं। सबसे पहले हमें अपना जीवन धन के संचय के लिए समर्पित नहीं करना है। दूसरा तथ्य यह है कि, धन को अधिक मात्रा में एकत्र करना कोई ईश्वर का आशीर्वाद नहीं है। हम दूसरों के जीवन में एक आशीष बनकर धन्य हैं और हम ईश्वर के राज्य का निर्माण करने के लिए धन्य है। स्तोत्रकार कहता है कि, यदि हमारा धन बढ़ता है, तो हमें उस पर अपना मन नहीं लगाना चाहिये। वचन कहता है अपनी वृद्धि के पहले फल के साथ ईश्वर का सम्मान करो।

- फादर अल्फ्रेड डिसूजा


📚 REFLECTION

A Life without Possessions

The meaning of Parable of the Rich Fool is twofold. First, we are not to devote our lives to the accumulation of wealth. The second is the fact that we are not blessed by God to hoard our wealth to ourselves. We are blessed to be a blessing in the lives of others and we are blessed to build the kingdom of God. The Psalmist says that if our riches increase, we are not to set our hearts upon them (Psalm 62:10). The Bible says that the one who gives freely grows all the richer (Proverbs 11:24). Finally, the Bible says we are to honour God with the first fruits of our increase (Proverbs 3:9–10). The point is clear: if we honour God with what He has given us, He will bless us with more so that we can honour Him with more. So, if God has blessed you with material wealth “set not your heart on it” and “be rich towards God”.

-Fr. Alfred D’Souza

मनन-चिंतन - 3

आज के पाठों पर अगर हम गहराई से मनन-चिंतन करें तो ये बहुतों के ह्रदय में खटकने वाले पाठ हैं। विशेष रूप। से आज के पहले पाठ और सुसमाचार का सन्देश हमें हिलाकर रख देता है। मनुष्य अपने आप को पूर्ण बनाने के लिये शुरू से ही बहुत मेहनत करता है। जब बच्चे का जन्म होता है तो उसके माता-पिता चाहते हैं कि उसकी परवरिश सर्वश्रेष्ठ तरीके से हो। अच्छे से अच्छे और महँगे से महँगे स्कूल में उसका दाखिला करायेंगे। उसके लिए बचपन में ही यह फ़ैसला हो जाता है कि बड़ा होकर उनका बेटा या उनकी बेटी क्या बनेगी। स्कूल के कार्य-कलाप के अलावा और भी तरह-तरह के क्लासें जैसे डांस, कराटे, संगीत, कला इत्यादि का भी कोर्स करवाते हैं। इतना ही नहीं रेगुलर कोचिंग भी भेजते हैं। और आजकल कोचिंग वाले इतवार के दिन भी क्लास लगाते हैं, और उतना ही नहीं इतवार के दिन ही विशेष टेस्ट होता है। माता-पिता भी चाहते हैं कि उनका बच्चा जितना हो सके आगे बढ़े, जितना हो सके उतना ज्ञान ग्रहण करे, इसके चाहे उन्हें कितना भी कष्ट उठाना पड़े और कितने भी त्याग करने पड़ें। आखिर ज़माना ही कम्पटीशन का है। और इसलिए वे अक्सर भूल जाते हैं कि इतवार का दिन प्रभु का दिन है, प्रभु के लिए है।

आगे चलकर वही बच्चा अपने माता-पिता को हर चीज में पीछे छोड़ देता है, ज्ञान में, आत्मविश्वास में, सम्मान में, आर्थिक दशा में। और माता-पिता को अपने बच्चों से ‘पिछड़ने’ पर गर्व होता है। उनको लगता है कि अगर उनके बच्चे ने कुछ हासिल कर लिया तो उनकी साधना सफल हुई। लेकिन ऐसे में कोई “उपेदशक ग्रन्थ” के शब्दों में उनसे कहे ““व्यर्थ ही व्यर्थ; व्यर्थ ही व्यर्थ; सब कुछ व्यर्थ है”।” (उपदेशक 1:2) या फिर सुसमाचार के शब्दों में उनसे कहे “”मूर्ख! इसी रात तेरे प्राण तुझसे ले लिये जायेंगे, और तूने जो इकठ्ठा किया है, वह अब किसका होगा?”” (लूकस 12:20)। उन जैसे माता-पिता के लिए प्रभु के ये वचन ज़रूर खटकेंगे, ह्रदय में ज़रूर चुभेंगे। आखिर कौन अपने जीवनभर की तपस्या और त्याग को व्यर्थ जाने देगा?

मनुष्य का स्वभाव यही है कि वह इस जीवन को जितना हो सके महान बनाना चाहता है। अधिक से अधिक सुविधाएँ जुटाना चाहता है, और मनुष्य के इस स्वभाव को समझने के लिए बहुत से विचारकों ने अपने विचार रखे और अध्ययन किया है और इसे समझाने की कोशिश की है, लेकिन कोई भी, मनुष्य के इस स्वभाव को यथोचित रूप से नहीं समझा पाया है। पवित्र बाइबिल हमें समझाती है कि ईश्वर ने हमें अपने प्रतिरूप में बनाया है, (उत्पत्ति 1:27), और पाप के कारण हमने ईश्वर की उस छवि को धूमिल कर लिया है। तो हमारे जीवन का जो मुख्य उद्देश्य होना चाहिए वो यह कि हम उन्हें ईश्वर के प्रतिरूप में बनायें। वास्तव में हमारे हर प्रयास, हर साधना, हर तपस्या का उद्देश्य यही होना चाहिए। लेकिन जब हमारा उद्देश्य इसे छोड़कर संसारिकता में आगे बढ़ना हो जाता है, तो हम भटक जाते हैं, और ऐसी स्तिथि में अगर यह कहा जाये कि हम जो भी कर रहे हैं, वह व्यर्थ है, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि हमारा वास्तविक जीवन सांसारिक जीवन नहीं बल्कि स्वर्गीय जीवन है। सांसारिक जीवन अस्थाई है। (देखें मत्ती 6:19)।

बप्तिस्मा के द्वारा हमारा नया जन्म हुआ है और इसलिए हम संसार से अलग हैं (देखें योहन 15:19)। प्रभु येसु ने हमें संसार में से चुन लिया है। और अगर हमें अपने जीवन को सार्थक बनाना है तो स्वर्गीय चीजों की खोज में लगे रहना है, पृथ्वी पर की नहीं। (कलोसियों 3:2)। कोई भी व्यक्ति अगर अपना जीवन ईश्वर के लिए, दूसरों की सेवा के लिए जीता है उसका जीवन कभी व्यर्थ नहीं जाता, अनेकों संतों का जीवन इस बात का जीता-जागता उदाहरण है। हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि ईश्वर हमें सार्थक जीवन जीने में मदद करे और आशीष प्रदान करे। आमेन.

-फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)