उपदेशक कहता है, "व्यर्थ ही व्यर्थ; व्यर्थ ही व्यर्थ; सब कुछ व्यर्थ है। मनुष्य समझदारी, कौशल और सफलता से काम करने के बाद जो कुछ एकत्र कर लेता है, उसे वह सब ऐसे व्यक्ति के लिए छोड़ देना पड़ता है, जिसने उसके लिए कोई भी परिश्रम नहीं किया है। यह भी व्यर्थ है और बड़ा अन्याय भी। क्योंकि मनुष्य को कड़ी धूप में कठिन परिश्रम करने के बदले क्या मिलता है? जीवन भर का परिश्रम, भारी चिन्ता और रात के जागरण - यह सब भी व्यर्थ है"।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु ! तू पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारा आश्रय बना रहा।
1. तू मनुष्य को फिर मिट्टी में मिला कर कहता है, "हे मनुष्य की सन्तान ! लौट जाओ !" एक हजार वर्ष भी तुझे बीते कल की तरह लगते हैं, वे तेरी गिनती में रात के पहर के सदृश हैं।
2. तू मनुष्यों को इस तरह उठा ले जाता है जिस तरह सबेरा हो जाने पर स्वप्न मिट जाता है, जिस तरह घास प्रातःकाल उग कर लहलहाती है और संध्या तक मुरझा कर सूख जाती है।
3. हमें जीवन की क्षणभंगुरता सिखा, जिससे हम में सद्बुद्धि आये। हे प्रभु ! क्षमा कर। हम कब तक तेरी प्रतीक्षा करें?
4. तू अपने सेवकों पर दया कर। तू भोर को हमें अपना प्रेम दिखा, जिससे हम दिन भर आनन्द के गीत गा सकें। प्रभु की मधुर कृपा हम पर बनी रहे और हमारे सब कार्यों पर तेरी आशिष।
आप लोग मसीह के साथ ही जी उठे हैं, जो ईश्वर के दाहिने विराजमान हैं इसलिए ऊपर की चीजें खोजते रहें। आप पृथ्वी पर की नहीं, ऊपर की चीज़ों की चिन्ता किया करें। आप तो मर चुके हैं, आप का जीवन मसीह के साथ ईश्वर में छिपा हुआ है। मसीह ही आपका जीवन है। जब मसीह प्रकट होंगे, तब आप भी उनके साथ महिमान्वित हो कर प्रकट हो जायेंगे। इसलिए आप लोग अपने शरीर में इन बातों का दमन करें, जो पृथ्वी की हैं अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, कामुकता, विषयवासना और लोभ, जो मूर्तिपूजा के सदृश हैं। एक दूसरे से झूठ कभी नहीं बोलें। आप लोगों ने अपना पुराना स्वभाव और उसके कर्मों को उतार कर एक नया स्वभाव धारण किया। वह स्वभाव अपने सृष्टिकर्त्ता का प्रतिरूप बन कर नवीन हो जाता और सच्चाई के ज्ञान की ओर आगे बढ़ता है, जहाँ पहुँचकर कोई भेद नहीं रहता, जहाँ न युनानी है या यहूदी, न खतना है या ख़तना का अभाव, न बर्बर है, न स्कूती, न दास और न स्वतंत्र वहाँ केवल मसीह हैं, जो सब कुछ और सब में हैं।
प्रभु की वाणी।
अल्लेलूया, अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ पहचानती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरा अनुसरण करती हैं"। अल्लेलूया !
भीड़ में से किसी ने येसु से कहा, "गुरुवर ! मेरे भाई से कहिए कि वह मेरे लिए पैतृक सम्पत्ति का बँटवारा कर दे"। उन्होंने उसे उत्तर दिया, "अरे भई, किसने मुझे तुम्हारा पंच या बँटवारा करने वाला नियुक्त किया है?" तब येसु ने उन से कहा, "सावधान रहो और हर प्रकार के लोभ से बचे रहो। क्योंकि किसी के पास कितनी ही संपत्ति क्यों न हो, उस संपत्ति से उसके जीवन की रक्षा नहीं होती"। फिर येसु ने उन को यह दृष्टान्त सुनाया, "किसी धनवान् की जमीन में बहुत फ़सल हुई थी। वह अपने मन में इस प्रकार विचार करने लगा, 'मैं क्या करूँ? मेरे यहाँ जगह नहीं रही, जहाँ अपनी फ़सल रख दूँ'। तब उसने कहा, 'मैं यह करूँगा। अपने भण्डारों को तोड़ कर उन से और बड़े भण्डार बनवाऊँगा, उन में अपनी सारी उपज और अपना माल इकट्ठा करूँगा, और अपनी आत्मा से कहूँगा- अरे भई, तुम्हारे पास बरसों के लिए बहुत-सा माल इकट्ठा है; इसलिए विश्राम करो, खाओ-पियो और मौज उड़ाओ'। परन्तु ईश्वर ने उस से कहा, 'ऐ मूर्ख, इसी रात तेरे प्राण तुझ से ले लिये जायेंगे और जो कुछ तूने इकट्ठा किया है, वह अब किसका होगा?' यही दशा उसकी होती है जो अपने लिए तो धन एकत्र करता है, किन्तु ईश्वर की दृष्टि में धनी नहीं है।"
प्रभु का सुसमाचार।