वर्ष का उन्नीसवाँ सप्ताह, इतवार - वर्ष C

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📕पहला पाठ

यहाँ उस रात की चरचा है, जब यहूदी लोग मूसा के नेतृत्व में मिस्त्र देश की दासता से मुक्त हो गये थे और प्रतिज्ञात देश की ओर आगे बढ़ते गये।

प्रज्ञा-ग्रंथ 18:6-9

"तूने हमारे शत्रुओं को दण्ड दिया और हमें अपने पास बुला कर गौरवान्वित किया है।"

उस रात के विषय में हमारे पूर्वजों को पहले से इसलिए बताया गया था, जिससे वे यह जान कर हिम्मत बाँधें, कि हमने किस प्रकार की शपथों पर विश्वास किया है। तेरी प्रजा धर्मियों की रक्षा तथा अपने शत्रुओं के विनाश की प्रतीक्षा करती थी। और तूने हमारे शत्रुओं को दण्ड दिया और हमें अपने पास बुला कर गौरवान्वित किया है। धर्मियों की भक्त सन्तान ने छिप कर बलि चढ़ायी और एकमत हो कर यह पवित्र प्रतिज्ञा की कि सन्त लोग साथ रह कर भलाई और बुराई, दोनों समान रूप से भोगेंगे। और इसके बाद वे पूर्वजों के भजन गाने लगे।

प्रभु की वाणी।

📖भजन :स्तोत्र 32:1-12,18-20,23

अनुवाक्य: धन्य हैं वे लोग, जिन्हें प्रभु ने अपनी प्रजा बना लिया है।

1. धर्मियो ! प्रभु में आनन्द मनाओ। स्तुतिगान करना भक्तों के लिए उचित है। धन्य हैं वे लोग, जिनका ईश्वर प्रभु है, जिन्हें प्रभु ने अपनी प्रजा बना लिया है।

2. प्रभु की कृपादृष्टि अपने भक्तों पर बनी रहती है, उन पर जो उसके प्रेम से यह आशा करते हैं कि वह उन्हें मृत्यु से बचायेगा और अकाल के समय उनका पोषण करेगा।

3. हम प्रभु की राह देखते रहते हैं, वही हमारा उद्धारक और रक्षक है। हे प्रभु ! तेरा प्रेम हम पर बना रहे। तुझ पर ही हमारा भरोसा है।

📘दूसरा पाठ

दुःख-तकलीफ और विपत्ति के समय हमारा विश्वास डाँवाडोल हो जा सकता है। उस समय हम इब्राहीम जैसे लोगों को याद करें, जो कठिन परिस्थितियों में अपने विश्वास में दृढ़ रहे।

इब्रानियों के नाम पत्र 11:1-2,8-19

[ कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है ]
"इब्राहीम उस नगर की प्रतीक्षा में था, जिसका स्थपति और निर्माता ईश्वर है।"

विश्वास उन बातों की स्थिर प्रतीक्षा है, जिनकी हम आशा करते हैं और उन वस्तुओं के अस्तित्व के विषय में दृढ़ धारणा है, जिन्हें हम नहीं देखते। विश्वास के कारण हमारे पूर्वज ईश्वर के कृपापात्र बन गये। इब्राहीम ने विश्वास के कारण ईश्वर का बुलावा स्वीकार किया और यह न जानते हुए भी कि मैं कहाँ जा रहा हूँ, उसने उस देश के लिए प्रस्थान किया, जिसका वह उत्तराधिकारी बनने वाला था। विश्वास के कारण वह परदेशी की तरह प्रतिज्ञात देश में बस गया और वहाँ इसहाक तथा याकूब के साथ, जो एक ही प्रतिज्ञा के उत्तराधिकारी थे, तम्बुओं में रहने लगा। इब्राहीम ने ऐसा किया, क्योंकि वह उस बसे हुए नगर की प्रतीक्षा में था जिसका वास्तुकार तथा निर्माता ईश्वर है। विश्वास के कारण ही सारा, उमर ढल जाने पर भी, गर्भवती हो सकी, क्योंकि उसका विचार यह था कि जिसने प्रतिज्ञा की है, वह सच्चा है। और इसलिए एक मरणासन्न व्यक्ति से वह सन्तति उत्पन्न हुई, जो आकाश के तारों की तरह असंख्य है और सागर-तट के बालू के कणों की तरह अगणित।

[ प्रतिज्ञा का फल पाये बिना, ये सब विश्वास करते हुए मर गये। उन्होंने उसे दूर से देखा और उसका स्वागत किया। वे अपने को पृथ्वी पर परदेशी तथा प्रवासी मानते थे। जो इस तरह की बातें कहते हैं, वे यह स्पष्ट कर देते हैं कि वे स्वदेश की खोज में लगे रहते हैं। वे उस देश की बात नहीं सोचते थे, जहाँ से वे चले गये थे; क्योंकि वे वहाँ लौट सकते थे। वे तो एक उत्तम स्वदेश अर्थात् स्वर्ग की खोज में लगे हुए थे। उन्नीसवाँ सप्ताह इतवार इसलिए ईश्वर उन लोगों का ईश्वर कहलाने से नहीं लजाता; उसने तो उनके लिए एक नगर का निर्माण किया है। जब ईश्वर इब्राहीम की परीक्षा ले रहा था, तब विश्वास के कारण उसने इसहाक को अर्पित किया। वह अपने एकलौते पुत्र को बलि चढ़ाने तैयार हो गया था, यद्यपि उसे यह प्रतिज्ञा की गयी थी कि इसहाक से तेरा वंश चलेगा। इब्राहीम का विचार यह था कि ईश्वर मृतकों को भी जिला सकता है। यह भविष्य के लिए प्रतीक था।]

प्रभु की वाणी।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ। मुझ से हो कर गये बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता"। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

किसी भी समय हमारे जीवन का अन्त हो सकता है। हमें अपने सभी कार्यों का लेखा देना पड़ेगा। इसलिए हमें उन लोगों के सदृश बन जाना है, जो अपने स्वामी की राह देखते रहते हैं। हम येसु का यह कथन याद रखें - "धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी आने पर जागता हुआ पायेगा?"

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 12:32-48

[ कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है ]
"तुम लोग तैयार रहो।"

येसु ने अपने शिष्यों से कहा,

["छोटे झुण्ड ! डरो मत, क्योंकि तुम्हारे पिता ने तुम्हें राज्य देने की कृपा की है। "अपनी सम्पत्ति बेच दो और दान कर दो। अपने लिए ऐसी थैलियाँ तैयार करो जो कभी छीजती नहीं। स्वर्ग में एक अक्षय पूँजी जमा करो। वहाँ न तो चोर पहुँचता है और न कीड़े खा जाते हैं; क्योंकि जहाँ तुम्हारा पूँजी है, वहाँ तुम्हारा हृदय भी रहेगा।]

"तुम्हारी कमर कसी रहे और तुम्हारे दीपक जलते रहें। तुम उन लोगों के सदृश बन जाओ जो अपने स्वामी की राह देखते रहते हैं कि वह बारात से कब लौटेगा, ताकि जब स्वामी आ कर द्वार खटखटाये तो तुरन्त ही उसके लिए द्वार खोल दें। धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी आने पर जागता हुआ पायेगा ! मैं तुम से सच कहता हूँ: वह अपनी कमर कसेगा, उन्हें भोजन के लिए बैठायेगा और एक-एक को खाना परोसेगा। और धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी रात के दूसरे या तीसरे पहर आने पर इसी प्रकार जागता हुआ पायेगा ! यह अच्छी तरह समझ लो - यदि घर के स्वामी को मालूम होता कि चोर किस घड़ी आयेगा, तो वह अपने घर में सेंध लगने नहीं देता। तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी तुम उसके आने की नहीं सोचते, उसी घड़ी मानव पुत्र आयेगा।"

[ पेत्रुस ने उन से कहा, "प्रभु ! क्या आप यह दृष्टान्त हमारे लिए ही कहते हैं या सबों के लिए?" प्रभु ने कहा, "कौन ऐसा ईमानदार और बुद्धिमान् कारिन्दा है, जिसे उसका स्वामी अपने नौकर-चाकरों पर नियुक्त करेगा ताकि वह समय पर उन्हें रसद बाँटा करे? धन्य है वह सेवक, जिसका स्वामी आने पर उस को ऐसा करता हुआ पायेगा। मैं तुम से कहे देता हूँ, वह उसे अपनी सारी सम्पत्ति पर नियुक्त करेगा। पर यदि वह सेवक अपने मन में कहे, 'मेरा स्वामी आने में देर करता है' और वह दास-दासियों को पीटने, खाने-पीने और नशेबाजी करने लगे, तो उस सेवक का स्वामी ऐसे दिन आयेगा, जब वह उसकी प्रतीक्षा नहीं कर रहा होगा और ऐसी घड़ी, जिसे वह नहीं जान पायेगा। तो स्वामी उस सेवक को कोड़े लगवायेगा और विश्वासघातियों का दण्ड देगा। "अपने स्वामी की इच्छा जान कर भी जिस सेवक ने कुछ तैयार नहीं किया है और न उसकी इच्छा के अनुसार काम किया है, वह बहुत मार खायेगा। जिसने अनजाने ही मार खाने का काम किया है, वह थोड़ा मार खायेगा। जिसे बहुत दिया गया है, उस से बहुत माँगा जायेगा और जिसे बहुत सौंपा गया है, उस से अधिक माँगा जायेगा।"]

प्रभु का सुसमाचार।



📚 मनन-चिंतन -3

जो सदैव अपने जीवन में ईश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए तत्पर रहते हैं, उनके लिए ईश्वर क्या पुरस्कार देगा? जो प्रभु येसु के नाम की ख़ातिर अत्याचार सहते हैं, उसके बदले में उन्हें क्या मिलेगा? जो कठिनाइयों और परेशानियों के बावजूद सत्य की राह पर डटे रहते हैं, उनका अंत क्या होगा? कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब आज का समारोह हमें प्रदान करता है। हमें प्रभु ने अपनी प्रिय प्रजा के रूप में चुना और स्वीकार किया है। इसी का सर्वप्रथम उदाहरण हम इब्राहिम में देखते हैं। प्रभु ने उन्हें चुना और बुलाया। उसने इब्राहिम को अपना सब कुछ छोड़कर, अपना घर, परिवार, खेत-खलिहान, सगे-सम्बन्धी सबको छोड़कर एक नयी शुरुआत करने के लिए बुलाया। इब्राहिम ने प्रभु की वाणी को सुना और पूरा किया। उसने प्रभु की प्रतिज्ञा पर भरोसा किया, और अपने जीवन में ईश्वर की इच्छा पूरी की। अपने विश्वास में अडिग बने रहने के लिए उन्हें कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा। लेकिन उस सब का परिणाम यह हुआ कि प्रभु ने उसे राष्ट्रों का पिता बनाया। प्रभु जब हमें अपनी प्रजा बना लेते हैं, तो ईश्वर के चुने हुए भक्त होने के नाते हमारे भी कुछ कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ हैं। हमें प्रभु ने चुन लिया और मुक्त किया लेकिन क्या हम उसके योग्य जीवन जीते हैं? आज के सुसमाचार में प्रभु हमें हर पल अपने स्वामी से मिलने के लिए तैयार रहने का अहवाहन करते हैं। हमें नहीं मालूम कि किस घड़ी हमारे स्वामी के साथ हमारा आमना-सामना हो जाए, और किस घड़ी स्वामी हमसे हमारी ज़िम्मेदारी का लेखा-जोखा लेने लगें। हम ये ना सोचें कि हम तो ईश्वर की चुनी हुई प्रजा हैं, हम तो स्वर्गराज्य के उत्तराधिकारी हैं, हम तो प्रभु के राज्य में प्रवेश करेंगे ही। लेकिन अगर हम उचित रूप से तैयारी नहीं करते हैं, सावधान नहीं रहते हैं, जागते नहीं रहते हैं तो शायद ना तो हम स्वर्गराज्य के उत्तराधिकारी रहेंगे और ना शायद हमें स्वर्गराज्य में प्रवेश मिलेगा। क्या मैं सावधान और जागते रहने वाला सेवक हूँ?

फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर)

📚 REFLECTION


What reward will God give to those who are always eager to fulfill His will in their lives? What will those who suffer persecution for the name of Jesus receive in return? What will be the ultimate fate of those who remain steadfast on the path of truth despite hardships and difficulties? Today’s celebration provides answers to such questions. The Lord has chosen and accepted us as His beloved people. The first example of this is seen in Abraham. The Lord chose and called him. He called Abraham to leave behind everything — his home, family, fields, and relatives — and to begin a new journey. Abraham listened to the voice of the Lord and obeyed. He trusted God’s promise and fulfilled God’s will in his life. To remain firm in his faith, he had to endure many difficult trials. But the result was that the Lord made him the father of nations. When the Lord makes us His people, as chosen devotees of God, we also have certain duties and responsibilities. The Lord has chosen and freed us—but do we live lives worthy of Him? In today’s Gospel, the Lord calls us to always be ready to meet our Master at any moment. We do not know the hour when we will stand before the Master, or when He will ask us to account for our responsibilities. We must not think, “We are God’s chosen people, heirs of the Kingdom of Heaven, and we will surely enter the Lord’s kingdom.” But if we do not prepare properly, stay alert, and remain awake, we might neither be heirs of the Kingdom nor be granted entry into Heaven. Am I a vigilant and watchful servant?

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior)

📚 मनन-चिंतन - 2

सुसमाचार में येसु आने वाले न्याय के दिन के लिए तैयार रहने का निर्देश देता है। हमें उस लालची अमीर की तरह नहीं बनना है जो अपनी सारे उपज को बाँटने के बजाय भण्डार में रखने की योजना बनाता है। बल्कि, हमें अपने धन जरूरतमंदों के साथ बांटना है। आने वाले न्याय के दिन के लिए तैयार रहने का दूसरा प्रमुख तरीका सतर्क रहना है।अच्छे सेवक के तीन विशिष्ट लक्षण होते हैं। १) तैयारी- "कपड़े पहनकर तैयार रहना" २) रखरखाव- "दीपक जला कर" ३) अपेक्षा- "स्वामी के लौटने की प्रतीक्षा करता है।" तो प्रश्न यह है कि हम प्रभु के आगमन की तैयारी कैसे कर सकते हैं? हम हमेशा जागते हुए नहीं, बल्कि हमेशा वफादार रहकर तैयारी कर सकते हैं। दूसरा पाठ यात्रा की बात करता है।यह यात्रा हमारे जीवन शैली, गुणवत्ता और दिशा के बारे में है। इसमें हमारा हर अनुभव शामिल है और उस अनुभव के प्रति, हमारी प्रतिक्रिया भी। प्यार और सेवा में जिया गया एक वफादार जीवन ही हमारी असली संपत्ति है।

- फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.


📚 REFLECTION

In the gospel Jesus instructs on how to be ready for the coming judgment. We are not to be like the greedy rich man who plans to store his great harvest in barns rather than share it. We are, rather, to share our wealth with those in need. The other major way to be ready for the coming judgment is to be watchful. There are three distinct characteristics of the good servant. a) Preparation- “dressed and ready” b) maintenance- “keeps the lamp burning” c) expectation- “waits for the master to return.” The question, then, is how can we prepare for the Lord’s coming? We can prepare, not by being always awake, but by being always faithful. The second reading speaks of journey. This journey is about the style and quality and direction of our living. It includes every experience we will have and how we respond to each one. A faithful life lived in love and service is our real wealth.

-Fr. Snjay Kujur SVD

📚 मनन-चिंतन - 3

नबी इसायाह के ग्रन्थ 44:24 द्वारा प्रभु हमसे कहते हैं, “जिसने तुम्हारा उद्धार किया और माता के गर्भ में गढ़ा है, वही प्रभु यह कहता है: मैं प्रभु हूँ। मैंने सब कुछ बनाया है...” हम चाहे ईश्वर में विश्वास करें या न करें लेकिन सच्चाई यही है कि प्रभु ईश्वर ने ही सब कुछ की श्रृष्टि की है। उसी के अधिकार में सब कुछ है और सब कुछ उसी का दिया हुआ है, हमारा जीवन, हमारा परिवार, विभिन्न वरदान आदि, सब कुछ प्रभु का ही दिया हुआ है। इसलिए वही हमारा प्रभु और स्वामी है और हम उसके सेवक मात्र हैं। हमारा अपना कुछ भी नहीं है, और इसलिए हमें हर पल, हर क्षण उसी के लिए जीना है, उसी की इच्छा पूरी करनी है। इस बात को बहुत कम लोग गम्भीरता से लेते हैं, और यही कारण है कि ऐसे लोग प्रभु से दूर भटक जाते हैं।

आज का सुसमाचार हमें इसी ओर इंगित करता है कि हम ईश्वर के सेवक मात्र हैं और जो कार्य हमें प्रभु ने सौंपा है उसे हमें पूर्ण ईमानदारी से पूरा करना है, और जो सेवक अपने कार्य में सजग और ईमानदार पाया जायेगा, प्रभु उसे उसका उचित फल देगा। आखिर एक आम इन्सान जो अपनी नौकरी करता है, अपने परिवार की देख-भाल करता है, हर इतवार गिरजा जाता है आदि, वह व्यक्ति कैसे ईश्वर का सेवक हुआ और उसे प्रभु ने क्या जिम्मेदारी सौंपी है, और प्रभु के आने पर किस सौंपी हुई जिम्मेदारी का मूल्यांकन किया जायेगा? ईश्वर ने हमें इस दुनिया में ज़रुर कुछ न कुछ योजना पूरी करने के लिए भेजा है। ईश्वर ने हमें भेजा है ताकि हम उसका साक्ष्य दें, उसकी महानता का बखान करें। इसी के लिए उसने हमें यह जीवन प्रदान किया है।

मान लीजिये एक साधारण सा व्यक्ति एक साधारण जीवन व्यतीत करता है। उस व्यक्ति का अपना परिवार है। वह परिवार उसे किसने उसे सौंपा है? उस व्यक्ति के बाल-बच्चे हैं, वे बच्चे किसका वरदान हैं? वह व्यक्ति कोई नौकरी करके अपनी रोजी-रोटी कमाता है, वह नौकरी किसकी कृपा से मिली है? अगर विश्वासी ह्रदय से इन सवालों का जवाब दें तो यह सब ईश्वर की देन है, वास्तव में हर सवाल का जवाब ही ईश्वर में है। जो व्यक्ति ईश्वर में विश्वास नहीं करता है, उसे अपने जीवन का उद्देश्य कभी भी समझ में नहीं आयेगा। जब हमारा प्रभु आयेगा तो इन सभी चीजों के आधार पर ही हमारा मूल्यांकन होगा।

अगर एक व्यक्ति को एक परिवार को सँभालने की जिम्मेदारी ईश्वर ने दी है, लेकिन वह ईमानदारी के साथ अपने परिवार के प्रति अपना कर्तव्य नहीं निभाता है तो क्या उसे वफादार सेवक कहा जा सकता है? एक माता-पिता अपने बच्चों के प्रति जो जिम्मेदारी है, जैसे उनका उचित रीति से लालन-पालन करना, उचित शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था करना, धर्म की शिक्षाओं को उनके ह्रदय में बोना आदि, जब इन जिम्मेदारियों को ईमानदारी से नहीं निभाएंगे तो क्या वे भले और ईमानदार सेवक कहला सकते हैं? एक पति अपनी पत्नी के प्रति वफादार नहीं है, या पत्नी अपना पति धर्म पूरी ईमानदारी से नहीं निभाती है तो क्या ऐसे पति-पत्नि भले और ईमानदार सेवक कहलाये जा सकते हैं? अगर बच्चे अपने माता-पिता का आदर नहीं करते, उनके प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते, अपने उज्जवल भविष्य के बारे में बड़ों की बातें नहीं मानते, तो क्या वे प्रभु के ईमानदार सेवक बन जायेंगे। एक नौकरी वाला व्यक्ति अपना काम ठीक से नहीं करता, उचित परिश्रम नहीं करता, काम करने के लिए घूष लेता है, भ्रष्टाचार करता है, तो क्या इस दुनिया का स्वामी उसे सज़ा नहीं देगा?

हम जीवन में चाहे जो कुछ भी हों, माता-पिता हों, बच्चे हों, विद्यार्थी हों, डाक्टर, इंजिनियर, सरकारी कर्मचारी, शिक्षक, नर्स, ड्राइवर, चपरासी कुछ भी हों, उसी जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाना ही हमारा कर्तव्य है, वही हमारे जीवन का उद्देश्य है, उसी के प्रति पूर्ण रूप से वफादार बने रहने में ही हमारे जीवन की सार्थकता है। अगर हम ऐसा करेंगे तो हमारा स्वामी चाहे जिस घड़ी आयेगा, हमें तैयार और सजग पायेगा। ईश्वर हमें भले, सजग, ईमानदार और वफादार सेवक बनने में मदद करे। आमेन।

-फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)