वर्ष का बीसवाँ सप्ताह, इतवार - वर्ष B

📕पहला पाठ

इस पाठ में प्रज्ञा का मानवीकरण हुआ है। उसने एक घर बनाया और उस में एक भोज की तैयारी की। तब उसने बुद्धिहीन लोगों को अपने यहाँ भोजन करने और अपनी शिक्षा सुनने बुलाया। प्रज्ञा मसीह का प्रतीक है, जो हमें स्वर्ग की रोटी खिलाते हैं।

सूक्ति-ग्रंथ 9:1-6

"मेरी रोटी खा लो और वह अंगूरी पियो, जिसे मैंने तुम्हारे लिए तैयार किया है।"

प्रज्ञा ने अपने लिए एक घर बनाया है। उसने सात खंभे खड़े कर दिये हैं; उसने अपने जानवरों को मारा, अपनी अंगूरी तैयार की और अपनी मेज सजा दी है। उसने अपनी दासियों को भेजा है और नगर की ऊँचाइयों पर यह घोषित किया - "जो भोला-भाला है, वह इधर आ जाये"। जो बुद्धिहीन है, उस से वह कहती है- "आओ ! मेरी रोटी खा लो और वह अंगूरी पियो, जो मैंने तैयार की है। अपनी मूर्खता छोड़ दो और जीते रहोगे; बुद्धिमानी के सीधे मार्ग पर आगे बढ़ते जाओ"।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 33:2-3,10-15

अनुवाक्य : परख कर देखो कि प्रभु कितना भला है।

1. मैं सदा ही प्रभु को धन्य कहूँगा, मेरा कंठ निरन्तर उसकी स्तुति करता रहेगा। मेरी आत्मा प्रभु पर गौरव करेगी। विनम्र, सुन कर, आनन्दित हो उठेंगे।

2. प्रभु के भक्तो ! प्रभु पर श्रद्धा रखो। श्रद्धालु भक्तों को किसी बात की कमी नहीं। शक्तिशाली दरिद्र बन कर भूखे रहते हैं। किन्तु प्रभु की खोज में लगने वालों का घर भरापूरा है।

3. हे मेरे पुत्रो ! आओ और मेरी बात सुनो ! मैं तुम्हें प्रभु की श्रद्धा सिखाऊँगा। तुम में से कौन भरपूर जीवन, लम्बी आयु और सुख-शांति चाहता है?

4. तो तुम न तो अपनी जीभ को बुराई बोलने दो और न अपने ओठों को कपटपूर्ण बातें। बुराई से दूर रहो, भलाई करो और शांति के मार्ग पर आगे बढ़ते जाओ।

📘दूसरा पाठ

विश्वासियों को ईश्वर की शिक्षा मिली है। उन्हें मालूम हो गया है कि ईश्वर की इच्छा क्या है, अतः इसके अनुसार चल कर उन्हें सब समय और सर्वत्र, विशेष रूप से मंदिर में, ईश्वर को वरदानों के लिए धन्यवाद देना चाहिए।

एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 5:15-20

"प्रभु की इच्छा क्या है, उसे पहचान लीजिए।"

अपने आचरण का पूरा-पूरा ध्यान रखिए। मूर्खी की तरह नहीं, बल्कि बुद्धिमानी की तरह चल कर वर्त्तमान समय से पूरा लाभ उठाइए, क्योंकि ये दिन बुरे हैं। आप लोग नासमझ न बनिए, परन्तु प्रभु की इच्छा क्या है उसे पहचानिए। अंगूरी पी कर मतवाले नहीं बनिए, क्योंकि इस से विषय-वासना उत्पन्न होती है। परन्तु पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाइए। मिल कर भजन, स्तोत्र और आध्यात्मिक गीत गाइए; पूरे हृदय से प्रभु के आदर में गाते-बजाते रहिए। हमारे प्रभु येसु मसीह के नाम पर सब समय, सब कुछ के लिए, पिता-परमेश्वर को धन्यवाद देते रहिए।

प्रभु की वाणी।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! हे प्रभु ! तेरी शिक्षा ही सत्य है। हमें सत्य की सेवा में समर्पित कर। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

यहूदियों को मरुभूमि में जो मन्ना मिला था, वह येसु द्वारा प्रदत्त परमप्रसाद का प्रतीक था। उस परमप्रसाद द्वारा वह हमें अनन्त जीवन प्रदान करते हैं। में येसु के इस कथन पर पूरा विश्वास करना चाहिए। "जो यह रोटी खायेगा, वह अनन्त काल तक जीवित रहेगा"।

योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 6:51-58

"मेरा मांस सच्चा भोजन है और मेरा रक्त सच्चा पेय।"

येसु ने लोगों से कहा, "स्वर्ग से उतरी हुई वह जीवन्त रोटी मैं हूँ। यदि कोई वह रोटी खाये, तो वह सदा जीवित रहेगा। जो रोटी मैं दूँगा, वह संसार के जीवन के लिए अर्पित मेरा मांस है"। इस पर यहूदी आपस में यह कह कर वाद-विवाद कर रहे थे, "यह हमें खाने के लिए अपना मांस कैसे दे सकता है?" इसलिए येसु ने उन से कहा, "मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ यदि तुम मानव पुत्र का मांस नहीं खाओगे और उसका रक्त नहीं पियोगे, तो तुम्हें जीवन प्राप्त नहीं होगा। जो मेरा मांस खाता और मेरा रक्त पीता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त होता है, और मैं उसे अंतिम दिन पुनर्जीवित कर दूंगा; क्योंकि मेरा मांस सच्चा भोजन है और मेरा रक्त सच्चा पेय। जो मेरा मांस खाता और मेरा रक्त पीता है, वह मुझ में निवास करता है और मैं उस में। जिस तरह जीवन्त पिता ने मुझे भेजा है और मुझे पिता से जीवन मिलता है, उसी तरह जो मुझे खाता है, उस को मुझ से जीवन मिलेगा। यही वह रोटी है, जो स्वर्ग से उतरी है। यह उस रोटी के सदृश नहीं है, जिसे तुम्हारे पूर्वजों ने खाया था। वे तो मर गये, किन्तु जो यह रोटी खायेगा, वह अनन्त काल तक जीवित रहेगा।

प्रभु का सुसमाचार।