सामन्तों ने राजा से कहा, "येरेमियस को मार डाला जाये। वह येरुसालेम की हार की भविष्यवाणी करता है और इस प्रकार शहर में रहने वाले सैनिकों और सारी जनता की हिम्मत तोड़ता है। वह प्रजा का हित नहीं, बल्कि अहित चाहता है"। राजा सिदकीया ने उत्तर दिया, "वह आप लोगों के वश में है। राजा आप लोगों के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता"। इस पर वे येरेमियस को ले गये और उन्होंने उस को रक्षा-दल के प्रांगण में स्थित राजकुमार मलकीया के कुएँ में डाल दिया। उन्होंने येरेमियस को रस्सी से उतार दिया। कुएँ में पानी नहीं था, उस में केवल कीच था और येरेमियस कीच में धँस गया। एवेदमेलेक ने राजमहल से निकल कर राजा से कहा, "हे राजा ! हे मेरे स्वामी ! उन लोगों ने नबी येरेमियस के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया – उन्होंने उन को कुएँ में डाल दिया। वह वहाँ मर जायेंगे"। इस पर राजा ने एवेदमेलेक एथियोपी को यह आदेश दिया, “यहाँ के तीन आदमियों को अपने साथ ले जाओ और इस से पहले कि येरेमियस मर जाये उन्हें कुएँ में से खींच निकालो"।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु ! मेरी सहायता कर।
1. मैं कब से प्रभु पर भरोसा रखता आ रहा हूँ? अभी उसने झुक कर मेरी पुकार सुनी है।
2. उसने मुझे मृत्यु के गर्त से, दलदल के कीच से निकाल लिया। उसने मेरे पैर चट्टान पर टिका कर मुझे दृढ़ कदमों से आगे बढ़ने दिया।
3. उसने मुझे एक नया गीत, हमारे ईश्वर का स्तुतिगान सिखाया है। बहुत से लोग यह देख कर प्रभु पर श्रद्धा तथा भरोसा रखेंगे।
4. हे प्रभु ! मैं दरिद्र और निस्सहाय हूँ। मेरी सुधि लेने की कृपा कर। तू ही मेरा सहायक और उद्धारक है। हे मेरे ईश्वर ! तू विलम्ब न कर।
जब विश्वास के साक्षी इतनी बड़ी संख्या में हमारे चारों ओर विद्यमान हैं, तो हम हर प्रकार की बाधा दूर कर, अपने को उलझाने वाले पाप को छोड़ कर और येसु पर अपनी दृष्टि लगा कर, धैर्य के साथ उस दौड़ में आगे बढ़ते जायें, जिस में हमारा नाम लिखा गया है। येसु हमारे विश्वास के प्रवर्तक हैं और उसे पूर्णता तक पहुँचाते हैं। भविष्य में प्राप्त होने वाले आनन्द के हेतु उन्होंने क्रूस का कष्ट स्वीकार किया और उसके कलंक की कोई परवाह नहीं की। अब वह ईश्वर के सिंहासन के दाहिने विराजमान हैं। कहीं ऐसा न हो कि आप लोग निरुत्साह हो कर हिम्मत हार जायें, इसलिए आप उनका स्मरण करते रहें, जिन्होंने पापियों का इतना अत्याचार सह लिया। अब तक आप को पाप से संघर्ष करने में अपना रक्त नहीं बहाना पड़ा है।
प्रभु की वाणी।
अल्लेलूया, अल्लेलूया ! हे प्रभु! हमें सद्बुद्धि प्रदान कर जिससे हम तेरे पुत्र की शिक्षा ग्रहण करें। अल्लेलूया!
येसु ने अपने शिष्यों से कहा, "मैं पृथ्वी पर आग ले कर आया हूँ और मेरी कितनी अभिलाषा है कि यह अभी धधक उठे ! मुझे एक बपतिस्मा लेना है और जब तक यह पूरा न हो जाये, मैं कितना व्याकुल हूँ ! “क्या तुम लोग समझते हो कि मैं पृथ्वी पर शांति ले कर आया हूँ? मैं तुम से कहे देता हूँ, ऐसा नहीं है। मैं फूट डालने आया हूँ। क्योंकि अब से यदि एक घर में पाँच व्यक्ति होंगे, तो उन में फूट होगी। तीन दो के विरुद्ध होंगे और दो तीन के विरुद्ध। पिता अपने पुत्र के विरुद्ध होगा और पुत्र अपने पिता के विरुद्ध। माता अपनी पुत्री के विरुद्ध होगी और पुत्री अपनी माता के विरुद्ध। सास अपनी बहू के विरुद्ध होगी और बहू अपनी सास के विरुद्ध।"
प्रभु का सुसमाचार।
नबी येरेमियस विरोध के प्रतीक बन गए थे। एक तरफ तो वह ईश्वर के कड़वे संदेश को राजा और लोगों को सुनाने के लिए मजबूर थे, वहीं दूसरी ओर लोग ऐसे सच्चे और कड़वे संदेश को सुनने के लिए तैयार नहीं थे। राजा झूठे नबियों की बात मानकर नबी येरेमियस पर अत्याचार करता है। लोग भी नबी से नाराज होकर उनसे नफरत करते हैं। नबी येरेमियस यह परेशानी उठाना नहीं चाहते थे, वह वहाँ से भाग जाना चाहते थे, लेकिन ईश्वर उन्हें मजबूर कर देते हैं। नबी कहते हैं - “जब मैं सोचता हूँ, मैं उसे भुलाऊँगा, मैं फिर कभी उसके नाम पर भविष्यवाणी नहीं करूँगा, तो उसका वचन मेरे अंदर एक धधकती आग जैसा बन जाता है, जो मेरी हड्डी हड्डी में समा जाती है। मैं उसे दबाते दबाते थक जाता हूँ, और अब मुझसे नहीं रहा जाता।” (येर 20:9)। इस कारण नबी येरेमियस को सबसे दुखी और शोषित नबी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने सभी नबियों में शायद सबसे अधिक अत्याचार सहा। प्रभु का वचन जो आग बनकर नबी येरेमियस की हड्डियों में धधक रहा था, प्रभु येसु उसी आग को लेकर पृथ्वी पर आए हैं। यह आग बुराई को जला देती है, मन को शुद्ध करती है। प्रभु चाहते हैं कि यह आग जल्दी से जल्दी धधक उठे, सभी लोग बुराई के विरुद्ध उठ खड़े हों। जिसके अंदर यह आग कुंद पड़ जाती है, बुझ जाती है वह किसी भी बुराई का विरोध नहीं कर सकते। ऐसा संभव नहीं है कि दुनिया में सभी लोग अच्छे हों, या फिर सभी लोग सिर्फ बुरे हों। वास्तव में अक्सर कुछ लोग अच्छे रास्ते पर चलते हैं, और कुछ लोग गलत रास्ते पर चलते हैं। और अच्छे लोगों की जिम्मेदारी है कि वे बुराई के रास्ते पर चलने वाले लोगों का विरोध करें, उन्हें सही रास्ते पर लाने का प्रयास करें। और जब ऐसा होगा तो जाहिर है कि आपस में फूट पड़ेगी। हो सकता है ये दोनों तरह के लोग एक परिवार में ही एक साथ हों। इसलिए प्रभु के आने से वह आग फैल जाएगी और लोगों में अशान्ति हो जाएगी। क्या हमारे अंदर भी प्रभु की वह आग धधकती है?
✍फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर)The prophet Jeremiah became a symbol of opposition. On one hand, he was compelled to deliver God’s harsh message to the king and the people, yet on the other hand, the people were not willing to hear such a true and bitter message. The king, following the words of false prophets, persecuted Jeremiah. The people too, angered by him, came to hate him. Jeremiah did not want to bear this trouble; he wanted to run away from it, but God constrained him. The prophet says, “Whenever I say, ‘I will not mention Him or speak any more in His name,’ His word is in my heart like a burning fire, shut up in my bones. I am weary of holding it in; indeed, I cannot.” (Jeremiah 20:9). For this reason, Jeremiah is called the most sorrowful and afflicted of prophets, for perhaps among all the prophets, he endured the greatest persecution. The word of the Lord, which burned like fire in the bones of the prophet Jeremiah, is the very same fire that the Lord Jesus came to bring to the earth. This fire burns away evil and purifies the heart. The Lord desires that this fire blaze quickly, so that all may rise against evil. Whoever lets this fire within them grow dim or go out will not be able to oppose any form of evil. It is impossible for everyone in the world to be good, or for everyone to be entirely evil. In reality, some people walk on the right path while others follow the wrong path. It is the responsibility of the good to oppose those walking on the path of evil and to try to bring them onto the right path. When this happens, division is bound to arise. It is possible that both kinds of people may even be found within the same family. That is why, with the coming of the Lord, this fire will spread, and unrest will arise among people. Does the Lord’s fire also burn within us?
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior)
साधारणतः हम देखते हैं कि प्रभु येसु की छवि एक शांतिप्रिय एवं परहित की भावना से ओत-प्रोत की छवि है। जो भी निराश, परेशान व्यक्ति प्रभु येसु के पास आया, उनका हृदय उसके प्रति करुणा से भर गया। उन्होंने दूसरों की बीमारियों को दूर किया, उनके दुःख-दर्द और कष्टों को मिटाया और आपसी प्रेम और भाईचारे का सन्देश दिया। लेकिन आज के सुसमाचार में हम प्रभु येसु के मुख से बड़े अजीब शब्द सुनते हैं। प्रभु येसु कहते हैं,- “मैं पृथ्वी पर आग लेकर आया हूँ, और मेरी कितनी अभिलाषा है कि यह अभी धधक उठे” (लूकस 12:49)। उसके बाद के शब्द और भी अधिक डरावने हैं - “क्या तुम लोग समझते हो कि मैं पृथ्वी पर शान्ति लेकर आया हूँ? मैं तुमसे कहता हूँ, ऐसा नहीं है। मैं फूट डालने आया हूँ।” (लूकस 12:51) क्या ऐसे भड़काऊ शब्द प्रभु येसु के मुख से शोभा देते हैं? यदि हम प्रभु के इन शब्दों को गहराई से नहीं समझेंगे तो हम भ्रमित और गुमराह हो सकते हैं।
सन्त मत्ती के सुसमाचार 13:24-30 में हम जंगली बीज का दृष्टान्त सुनते हैं, जिसमें फसल का स्वामी चाहता है और आदेश देता है कि ‘कटनी तक दोनों तरह बीजों, अर्थात् अच्छे और जंगली बीजों को साथ-साथ बढ़ने देना है। (देखें मत्ती 13:29) और इसी अध्याय के पद संख्या 36-43 में हम उपरोक्त दृष्टान्त का अर्थ स्वयं प्रभु येसु से सुनते हैं, जिसमें प्रभु येसु अपने शिष्यों को समझाते हुए कहते हैं कि “खेत संसार है; अच्छा बीज राज्य की प्रजा है; जंगली बीज दुष्टात्मा की प्रजा है; बोने वाला बैरी शैतान है...” (मत्ती 13:38-39अ)। अर्थात् ईश्वरीय राज्य की प्रजा और दुष्टात्मा या शैतान की प्रजा, इस संसार में दोनों साथ-साथ बढ़ते हैं। अथवा सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो इस संसार में दोनों तरह के लोग- अच्छे और बुरे, साथ-साथ आगे बढ़ते हैं, लेकिन समय आने पर ईश्वर उन्हें अलग-अलग करेंगे, और उनका एक दूसरे से अलग-अलग होना बहुत ज़रूरी है।
हम आज की दुनिया में देखते हैं कि लोगों के मन में अच्छाई और बुराई का अन्तर बहुत कम होता जा रहा है। अक्सर लोग अच्छाई और बुराई में अंतर नहीं कर पाते हैं, और अच्छाई को छोड़कर बुराई का साथ देने लग जाते हैं। आप कल्पना कीजिए कि आपके ऊपर दुनिया के सारे लोगों को बुराई से बचाने की जिम्मेदारी है, और ऐसे में आप पाते हैं कि अच्छे लोग बुरे लोगों में शामिल होते जा रहे हैं। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, वैसे-वैसे अच्छाई और बुराई का अंतर ख़त्म होता जा रहा है, तो ज़रूर आपको लगेगा कि आप जल्द से जल्द अच्छे लोगों को बुरे लोगों से अलग कर दें। प्रभु येसु भी इस दुनिया में वही करने आये हैं - अच्छे और बुरे लोगों को एक दूसरे के विरुद्ध करने।
सन्त लूकस के सुसमाचार 3:16 में हम पढ़ते हैं, सन्त योहन बप्तिस्ता कहते हैं कि “मैं तो तुम लोगों को जल से बप्तिस्मा देता हूँ; परन्तु एक आने वाले हैं जो मुझसे अधिक शक्तिशाली हैं... वह तुम लोगों को पवित्र आत्मा और आग से बप्तिस्मा देंगे।” प्रभु येसु पवित्र आत्मा और आग के द्वारा इस संसार को शुद्ध करना चाहते हैं। आगे सन्त योहन इंगित करते हैं कि “वह हाथ में सूप ले चुके हैं, जिससे वह अपना खलिहान ओसा कर साफ करें, और अपना गेहूँ अपने बखार में जमा करें...”(लूकस 3:17)। इसलिए प्रभु येसु हमसे कहते हैं कि “मैं पृथ्वी पर आग लेकर आया हूँ”। यही आग हमें शुद्ध करती है, यही आग अच्छे और बुरे लोगों को अलग-अलग करती है, तीन को दो के विरुद्ध और दो को तीन के विरुद्ध, पिता को पुत्र के विरुद्ध और पुत्र को पिता के विरुद्ध, माता, पुत्री, सास-बहु आदि को एक दूसरे के विरुद्ध करती है, क्योंकि अच्छे बीज और बुरे बीज हमेशा एक साथ नहीं रह सकते।
हम अपने मन में झाँककर देखें, क्या हम उस आग से पवित्र किये जाने के लिये तैयार हैं? क्या हमारे मन में बुराई और अच्छाई के प्रति स्पष्ट अन्तर है या नहीं? क्या प्रभु येसु के इस कार्य में हमारी कोई भूमिका हो सकती है? क्या हम प्रभु येसु के साथ हैं या संसार के साथ हैं? इन सब बातों को समझने के लिए प्रभु हमें आशीष दें। आमेन।✍ -फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)