वर्ष का बाईसवाँ सप्ताह, इतवार - वर्ष A

📕पहला पाठ

नबी येरेमियस यहाँ बताते हैं कि नबी का कार्य कितना कठिन है। लोग सत्य नहीं सुनना चाहते हैं और नबी का अपमान तथा उपहास करते हैं। फिर भी येरेमियस ईश्वर का वचन घोषित करते रहते हैं, क्योंकि वह उसके अन्दर एक धधकती आग के समान है, जिसे वह नहीं दबा पाते हैं।

नबी येरेमियस का ग्रंथ 20:7-9

"ईश्वर का वचन मेरे अपमान का कारण बन गया है।"

हे प्रभु ! तूने मुझे प्रलोभन दिया और मैं बहक गया। तूने मुझे मात कर दिया और मैं हार गया हूँ। मैं दिन भर हँसी का पात्र बना रहता हूँ, सब के सब मेरा उपहास करते हैं। जब-जब बोलता हूँ तो मुझे चिल्लाना और हिंसा तथा विध्वंस की घोषणा करनी पड़ती है। ईश्वर का वचन मेरे लिए निरन्तर अपमान तथा उपहास का कारण बन गया है। जब मैं सोचने लगा, "मैं उसे भुलाऊँगा, मैं फिर कभी उसके नाम पर भविष्यवाणी नहीं करूँगा", तो उसका वचन मेरे अन्दर एक धधकती आग-सा बना, जो मेरी हड्डी-हड्डी में समा गयी है। मैं उसे दबाते दबाते थक गया हूँ और अब मुझ से नहीं रहा जाता।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 62:2-6,8-9

अनुवाक्य : मेरी आत्मा तेरे लिए तरसती है।

1. हे ईश्वर ! तू ही मेरा ईश्वर है। मैं तुझे ढूँढ़ता रहता हूँ। मेरी आत्मा तेरे लिए तरसती है। जल के लिए सूखी सन्तप्त भूमि की तरह मैं तेरे दर्शनों के लिए लालायित हूँ।

2. मैं तेरे पवित्र मंदिर में तेरा सामर्थ्य और तेरी महिमा देखना चाहता हूँ तेरा प्रेम प्राणों से भी अधिक वांछनीय है, मेरा कंठ तेरी स्तुति करता रहेगा।

3. में जीवन भर तुझे धन्य कहूँगा और हाथ जोड़ कर तुझ से प्रार्थना करता रहूँगा। तू मेरी आत्मा को तृप्त कर देता है। मैं उल्लसित हो कर तेरी महिमा का बखान करता हूँ।

4. तू सदा ही मेरा सहारा रहा है। मैं तेरे पंखों की छाया में सुखी हूँ। मेरी आत्मा तेरे लिए तरसती है। तेरा दाहिना हाथ मुझे सँभालता रहता है।

📘दूसरा पाठ

सन्त पौलुस रोमियों से अनुरोध करते हैं कि वे इस संसार के अनुकूल नहीं बनें, बल्कि ईश्वर की सन्तति होने के नाते सब कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें।

रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 12:1-2

"एक जीवन्त बलि के रूप में अपने को ईश्वर के प्रति अर्पित करें।"

भाइयो ! मैं ईश्वर की दया के नाम पर अनुरोध करता हूँ कि आप मन तथा हृदय से उसकी उपासना करें और एक जीवन्त, पवित्र तथा सुग्राह्य बलि के रूप में अपने को ईश्वर के प्रति अर्पित करें। आप इस संसार के अनुकुल न बने, बल्कि सब कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें। इस प्रकार आप जान जायेंगे कि ईश्वर क्या चाहता है और उसकी दृष्टि में क्या भला, सुग्राह्य तथा सर्वोत्तम है।

प्रभु की वाणी।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! हे प्रभु ! बोल, तेरा दास सुन रहा है। तेरे ही शब्दों में अनन्त जीवन का संदेश है। अल्लेलूया !

सुसमाचार येसु के शिष्य अन्य यहूदियों की तरह समझते थे कि मसीह एक साधारण राजा की तरह इस पृथ्वी पर राज्य करेंगे। येसु उन्हें स्पष्ट शब्दों में अपने दुःखभोग के विषय में कहते हैं और इस पर बल देते हैं कि जो अपना क्रूस उठा कर उनका अनुसरण नहीं करेगा, वह उनका शिष्य नहीं बन सकता।

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 16:21-27

"यदि कोई मेरा अनुसरण करना चाहे, तो वह आत्मत्याग करे।"

येसु अपने शिष्यों को यह समझाने लगे कि मुझे येरुसालेम जाना होगा, नेताओं, महायाजकों और शास्त्रियों की ओर से बहुत दुःख उठाना, मार डाला जाना और तीसरे दिन जी उठना होगा। पेत्रुस येसु को अलग ले गया और उन्हें यह कह कर समझाने लगा, "ईश्वर ऐसा न करे। प्रभु ! यह आप पर कभी नहीं बीतेगी।" इस पर येसु ने मुड़ कर पेत्रुस से कहा, "हट जाओ, शैतान ! तुम मेरे रास्ते में बाधा बने रहे हो। तुम ईश्वर की बातें नहीं, बल्कि मनुष्यों की बातें सोचते हो।" इसके बाद येसु ने अपने शिष्यों से कहा, "यदि कोई मेरा अनुसरण करना चाहे, तो वह आत्मत्याग करे और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले। क्योंकि जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता है, वह उसे खो देगा और जो मेरे कारण अपना जीवन खो देता है, वही उसे सुरक्षित रख सकेगा। मनुष्य को इस से क्या लाभ यदि वह सारा संसार प्राप्त कर ले लेकिन अपना जीवन गँवा दे। अपने जीवन के बदले मनुष्य दे ही क्या सकता है? क्योंकि मानव पुत्र अपने स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा सहित आयेगा और वह प्रत्येक मनुष्यों को उसके कर्म का फल देगा।"

प्रभु का सुसमाचार।