वर्ष का बाईसवाँ सप्ताह, इतवार - वर्ष B

📕पहला पाठ

मूसा ने यहूदियों से अनुरोध किया कि यदि वे ईश्वर के दिये हुए नियमों का पालन करें, तो ईश्वर द्वारा प्रतिज्ञात देश तक पहुँच सकेंगे। यदि हम मसीह द्वारा दिये हुए नियमों का पालन करेंगे, तो निश्चय ही अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।

विधि-विवरण ग्रंथ 4:1-2,6-8

"मैं जो आदेश तुम लोगों को दे रहा हूँ, तुम उन में कुछ भी नहीं बढ़ाना। प्रभु की आज्ञाओं का पालन करो।"

जब वे उन सब आदेशों की चर्चा सुनेंगे, तो बोल उठेंगे, 'उस महान् राष्ट्र के समान समझदार तथा बुद्धिमान् और कोई राष्ट्र नहीं है'। क्योंकि ऐसा महान् राष्ट्र कहाँ है, जिसके देवता उसके इतने निकट हैं, जितना हमारा प्रभु-ईश्वर तब हमारे निकट होता है, जब-जब हम उसकी दुहाई देते हैं? और ऐसा महान् राष्ट्र कहाँ है, जिसके नियम और रीतियाँ इतनी न्यायपूर्ण हैं जितनी यह सम्पूर्ण संहिता जिसे मैं आज तुम लोगों को दे रहा हूँ?"

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 14:2-5

अनुवाक्य : हे प्रभु ! कौन तेरे शिविर में प्रवेश कर पायेगा?

1. हे प्रभु ! कौन तेरे पवित्र पर्वत पर निवास करेगा? जिसका आचरण निर्दोष है, जो सदा सत्कार्य करता और जो हृदय से सत्य बोलता है।

2. जो अपने भाई को नहीं ठगता और अपने पड़ोसी की निन्दा नहीं करता, जो विधर्मी को तुच्छ समझता और प्रभु-भक्तों का आदर करता है।

3. जो किसी भी कीमत पर अपने वचन का पालन करता है, उधार दे कर व्याज नहीं माँगता और निर्दोष के विरुद्ध घूस नहीं लेता - जो ऐसा आचरण करता है, वह कभी भी विचलित नहीं होता।

📘दूसरा पाठ

ईश्वर ने अपने पुत्र को भेज कर हमें सत्य की शिक्षा प्रदान की है। हम यह शिक्षा ग्रहण भी कर चुके हैं। लेकिन उसे ग्रहण करने से हमारा कर्त्तव्य पूरा नहीं हो जाता है। हमें अब सब समय उस शिक्षा पर चलना चाहिए जिससे हम सन्त याकूब के परामर्श के अनुसार वचन के श्रोता ही नहीं, बल्कि उसके पालनकर्त्ता भी बन जायें।

सन्त याकूब का पत्र 1:17-18,21-22,27

"वचन के पालनकर्त्ता बन जाइए।"

सभी उत्तम दान और सभी पूर्ण वरदान ऊपर से हैं और नक्षत्रों के उस सृष्टिकर्त्ता के यहाँ से उतरते हैं, जिस में न तो कोई परिवर्तन है और न परिक्रमा के कारण कोई अंधकार। उसने अपनी ही इच्छा से सत्य की शिक्षा द्वारा हम को जीवन प्रदान किया, जिससे हम एक प्रकार से उसकी सृष्टि के प्रथम फल बन जायें। इसलिए आप लोग नम्रतापूर्वक ईश्वर का वह वचन ग्रहण कीजिए, जो आप में रोपा गया है और आपकी आत्माओं का उद्धार करने में समर्थ है। आप लोग अपने को धोखा नहीं दें; वचन के श्रोता ही नहीं, बल्कि उसके पालनकर्त्ता भी बन जायें। पिता-परमेश्वर की दृष्टि में शुद्ध और निर्मल धर्माचरण यह है विपत्ति में पड़े हुए अनाथों और विधवाओं की सहायता करना और अपने को संसार के दूषण से बचाये रखना।

प्रभु की वाणी।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! हमारे प्रभु येसु मसीह का पिता हमारे मन की आँखों को ज्योति प्रदान करे जिससे हम देख सकें कि उसके द्वारा बुलाये जाने के कारण हमारी आशा कितनी महान् है। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

येसु ने बहुत-से अवसरों पर फ़रीसियों तथा शास्त्रियों के पाखण्ड का विरोध किया। फ़रीसी कर्मकाण्ड के बाहरी नियमों का पालन तो करते थे, किन्तु उनका हृदय शुद्ध नहीं था। येसु ने हृदय की निष्कपटता और शुद्धता पर बल दिया।

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 7:1-8,14-15,21-23

"तुम लोग मनुष्य की चलायी हुई परम्परा बनाये रखने के लिए ईश्वर की आज्ञा टाल देते हो।"

फ़रीसी और येरुसालेम से आये हुए कई शास्त्री येसु के पास इकट्ठे हो गये वे यह देख रहे थे कि उनके शिष्य अशुद्ध याने बिना धोये हुए हाथों से रोटी खा रहे हैं। पुरखों की परम्परा के अनुसार फ़रीसी और सभी यहूदी बिना हाथ धोये भोजन नहीं करते। बाज़ार से लौट कर वे अपने ऊपर पानी छिड़के बिना भोजन नहीं करते और वे बहुत-से अन्य परम्परागत रिवाजों का पालन करते हैं – जैसे प्यालों, सुराहियों और काँसे के बर्तनों का शुद्धीकरण। इसलिए फ़रीसियों और शास्त्रियों ने येसु से पूछा, "आपके शिष्य पुरखों की परम्परा के अनुसार क्यों नहीं चलते? वे क्यों अशुद्ध हाथों से रोटी खाते हैं?" येसु ने उत्तर दिया, "इसायस ने तुम ढोंगियों के विषय में ठीक ही भविष्यवाणी की है। जैसा कि लिखा है- ये लोग मुख से मेरा आदर करते हैं, परन्तु इनका हृदय मुझ से दूर है। ये व्यर्थ ही मेरी पूजा करते हैं; और जो शिक्षा ये देते हैं, वह है मनुष्य के बनाये हुए नियम मात्र। तुम लोग मनुष्य की चलायी हुई परम्परा बनाये रखने के लिए ईश्वर की आज्ञा टाल देते हो"। येसु ने बाद में लोगों को फिर अपने पास बुलाया और कहा, "तुम लोग, सब के सब, मेरी बात सुनो और समझो। ऐसा कुछ भी नहीं है जो बाहर से मनुष्य में प्रवेश कर उसे अशुद्ध कर सके; बल्कि जो मनुष्य में से निकलता है, वही उसे अशुद्ध कर देता है। क्योंकि बुरे विचार भीतर से ही, अर्थात् मनुष्य के मन से निकलते हैं। व्यभिचार, चोरी, हत्या, परगमन, लोभ, विद्वेष, छल-कपट, लम्पटता, ईर्ष्या, झूठी निन्दा, अहंकार और मूर्खता, ये सब बुराइयाँ भीतर से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध कर देता है"।

प्रभु का सुसमाचार।