वर्ष का चौबीसवाँ सप्ताह, इतवार - वर्ष A

📕पहला पाठ

प्रवक्ता दो बातों की चेतावनी देते हैं। ईश्वर बदला लेने वाले को दण्ड देगा और जो दूसरों को माफ़ नहीं करता, ईश्वर भी उसे माफ़ नहीं करेगा। आगे चल कर येसु ने भी इस शिक्षा पर बल दिया और स्वयं अपने अत्याचारियों के लिए प्रार्थना की ।

प्रवक्ता-ग्रंथ 27:33-28:7

"अपने पड़ोसी का अपराध क्षमा कर दो और विनय करने पर तुम्हारे पाप क्षमा किये जायेंगे ।"

विद्वेष और क्रोध घृणित हैं, तो भी पापी दोनों किया करता है। ईश्वर बदला लेने वाले को दण्ड देगा और उसके पापों का पूरा-पूरा लेखा रखेगा। अपने पड़ोसी का अपराध क्षमा कर दो। और विनय करने पर तुम्हारे पाप क्षमा किये जायेंगे । यदि कोई अपने मन में दूसरों पर क्रोध बनाये रखता हो, तो वह प्रभु से दया की आशा कैसे कर सकता है? यदि वह अपने भाई पर दया नहीं करता, तो वह अपने पापों के लिए क्षमा कैसे माँग सकता है? निरा मनुष्य होते हुए भी यदि वह बैर बनाये रखता हो, तो उसे अपने पापों की क्षमा कैसे मिल सकती है? अंतिम बातों का ध्यान रखो और बैर रखना छोड़ दो। विकृति तथा मृत्यु का ध्यान रखो और आज्ञाओं का पालन करो। आज्ञाओं का ध्यान रखो और अपने पड़ोसी से बैर न रखो । सर्वोच्च ईश्वर के विधान का ध्यान रखो और दूसरों के अपराध क्षमा कर दो।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 102:1-4,9-12

अनुवाक्य : प्रभु दया तथा अनुकम्पा से परिपूर्ण है, वह सहनशील है और अत्यन्त प्रेममय ।

1. मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे, मेरा सर्वस्व उसके पवित्र नाम की स्तुति करे। मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे और उसके वरदानों को कभी नहीं भुलाये ।

वह मेरे सभी अपराध क्षमा करता और मेरी सारी कमज़ोरी दूर करता है। वह मुझे, सर्वनाश से बचाता और प्रेम तथा अनुकम्पा से मुझे सँभालता है

3. उसका क्रोध समाप्त हो जाता है और सदा के लिए नहीं बना रहता है। वह न तो हमारे पापों के अनुसार हमारे साथ व्यवहार करता और न हमारे अपराधों के अनुसार हमें दण्ड देता है

4. आकाश पृथ्वी के ऊपर जितना ऊँचा है उतना महान् है अपने भक्तों के प्रति प्रभु का प्रेम । पूर्व पश्चिम से जितना दूर है, प्रभु हमारे पापों को हम से उतना दूर कर देता है।

📘दूसरा पाठ

सन्त पौलुस का कहना है कि मसीह हमारे लिए मर गये और हमारे लिए जी उठे यही कारण है कि हम भी, चाहे जीते रहें या मर जायें, प्रभु के ही हैं। इसलिए हमें मसीह की तरह दूसरों की सेवा करते हुए जीवन बिताना चाहिए ।

रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 14:7-9

"हम चाहे जीते रहें या मर जायें, हम प्रभु के ही हैं।"

हम में से न तो कोई अपने लिए ही जीता है और न अपने लिए ही मरता है। यदि हम जीते रहते हैं तो प्रभु के लिए जीते हैं और यदि मर जाते हैं तो प्रभु के लिए मरते हैं। इस प्रकार हम चाहे जीते रहें या मर जायें, हम प्रभु के ही हैं। मसीह इसलिए मर गये और जी उठे कि वह मृतकों तथा जीवितों, दोनों के प्रभु हो जायें ।

प्रभु की वाणी।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! धन्य है वह राजा जो प्रभु के नाम पर आते हैं। स्वर्ग में शांति सर्वोच्च स्वर्ग में महिमा ! अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

येसु ने कितनी ही बार हमें यह चेतावनी दी है कि यदि हम दूसरों को माफ़ नहीं करेंगे तो ईश्वर भी हमें माफ़ नहीं करेगा । हमें अपने भाई को एक बार नहीं, सात बार तक नहीं, बल्कि सत्तर-गुणा सात बार तक माफ़ करना है यह हमारे प्रभु येसु का आदेश है।

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 18:21-35

"मैं तुम से नहीं कहता - सात बार तक, बल्कि सत्तर-गुना सात बार तक ।"

पेत्रुस ने पास आकर येसु से कहा, "प्रभु ! यदि मेरा भाई मेरे विरुद्ध अपराध करता जाये, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूँ? सात बार तक?" येसु ने उत्तर दिया, "मैं तुम से नहीं कहता - सात बार तक, बल्कि सत्तर-गुना सात बार तक । "यही कारण है कि स्वर्ग का राज्य उस राजा के सदृश है, जो अपने सेवकों से लेखा लेना चाहता था। जब वह लेखा लेने लगा, तो उसका लाखों रुपये का एक कर्जदार उसके सामने पेश किया गया। अदा करने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं था, इसलिए स्वामी ने आदेश दिया कि उसे, उसकी पत्नी, उसके बच्चों और उसकी सारी जायदाद को बेच दिया जाये और ऋण अदा कर लिया जाये । इस पर वह सेवक उसके पैरों पर गिर कर अनुनय-विनय करने लगा, 'मुझे समय दीजिए और मैं आप को सब चुका दूँगा'। उस सेवक के स्वामी को तरस आया और उसने उसे जाने दिया और उसका कर्ज माफ़ कर दिया। जब वह सेवक बाहर निकला तो वह अपने एक सह-सेवक से मिला, जो उसका लगभग एक सौ दीनार का कर्जदार था। उसने उसे पकड़ लिया और उसका गला घोंट कर कहा, 'अपना कर्ज़ चुका दो' । सह-सेवक उसके पैरों पर गिर पड़ा और यह कह कर अनुनय-विनय करने लगा, 'मुझे समय दीजिए और मैं आप को चुका दूँगा।' परन्तु उसने नहीं माना और जा कर उसे तब तक के लिए बंदीगृह में डलवा दिया जब तक वह अपना कर्ज़ न चुका दे। यह सब देख कर उसके दूसरे सह-सेवक बहुत दुःखी हो गये और उन्होंने स्वामी के पास जा कर सारी बातें बता दीं। तब स्वामी ने उस सेवक को बुला कर कहा, 'रे दुष्ट सेवक ! तुम्हारी अनुनय-विनय पर मैंने तुम्हारा वह सारा कर्ज माफ़ कर दिया था; तो जिस प्रकार मैंने तुम पर दया की, क्या उसी प्रकार तुम्हें भी अपने सह-सेवक पर दया नहीं करनी चाहिए थी?' और स्वामी ने क्रुद्ध हो कर उसे तब तक के लिए जल्लादों के हवाले कर दिया जब तक वह कौड़ी-कौड़ी न चुका दे। यदि तुम में हर एक अपने भाई को पूरे हृदय से क्षमा नहीं करेगा तो मेरा स्वर्गिक पिता भी तुम्हारे साथ ऐसा ही करेगा।"

प्रभु का सुसमाचार।