वर्ष का चौबीसवाँ सप्ताह, इतवार - वर्ष C

📕पहला पाठ

इस्राएली मूसा के नेतृत्व में मिस्र से भाग गये थे। उन्होंने अपनी आँखों से ईश्वर के चमत्कार देखे थे। फिर भी वे भटक गये और मूर्तिपूजा करने लगे। मूसा ने अपने भाइयों की ओर से ईश्वर से क्षमा माँगी और परमदयालु ईश्वर ने अपनी प्रजा को दण्ड देने का विचार छोड़ दिया ।

निर्गमन-ग्रंथ 32:7-11,13-14

"प्रभु ने अपनी प्रजा को दण्ड देने की जो धमकी दी थी, उसका विचार छोड़ दिया।"

प्रभु ने मूसा से कहा, "पर्वत से उतरो, क्योंकि तुम्हारी प्रजा, जिसे तुम मिस्र से निकाल लाये हो, भटक गयी है। उन लोगों ने शीघ्र ही मेरा बताया हुआ मार्ग छोड़ दिया। उन्होंने अपने लिए ढली हुई धातु का बछड़ा बना कर उसे दण्डवत् किया और उसे बलि चढ़ा कर कहा, 'हे इस्राएल, यही तुम्हारा ईश्वर है। यही तुम्हें मिस्त्र से निकाल लाया है'।" प्रभु ने मूसा से कहा, "मैं देख रहा हूँ कि वे लोग कितने हठधर्मी हैं। मुझे उनका नाश करने दो। मेरा क्रोध भड़क उठेगा और उनका सर्वनाश करेगा । तब मैं तुम्हारे द्वारा एक महान् राष्ट्र उत्पन्न करूँगा।" मूसा ने अपने प्रभु-ईश्वर का क्रोध शांत करने के उद्देश्य से कहा, "हे प्रभु ! यह तेरी प्रजा है, जिसे तू सामर्थ्य तथा भुजबल से मिस्त्र से निकाल लाया है। इस पर तू कैसे क्रोध कर सकता है ! अपने सेवकों को, इब्राहीम, इसहाक और याकूब को याद कर; तूने शपथ खा कर उन्हें यह प्रतिज्ञा की है, मैं तुम्हारी सन्तति को स्वर्ग के तारों की तरह असंख्य बनाऊँगा और अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तुम्हारे वंशजों को यह समस्त देश दूँगा और वे सदा के लिए इसके उत्तराधिकारी हो जायेंगे।" तब प्रभु ने अपनी प्रजा को दण्ड देने की जो धमकी दी थी, उसका विचार छोड़ दिया ।

📖भजन : स्तोत्र 50:3-4,12-13,17,19

अनुवाक्य : "मैं उठ कर अपने पिता के पास जाऊँगा ।"

1. हे ईश्वर ! तू दयालु है, मुझ पर दया कर । तू दयासागर है, मेरा अपराध क्षमा कर । मेरी दुष्टता पूर्ण रूप से धो डाल, मुझ पापी को शुद्ध कर

2. हे ईश्वर ! मेरा हृदय फिर शुद्ध कर और मेरा मन सुदृढ़ बना। अपने सान्निध्य से मुझे दूर न कर और अपने पवित्र आत्मा को मुझ से न हटा

3. हे प्रभु ! तू मेरे होंठ खोल दे और मेरा कंठ तेरा गुणगान करेगा। मेरा पश्चात्ताप ही मेरा बलिदान होगा । तू पश्चात्तापी दीन-हीन हृदय का तिरस्कार नहीं करेगा ।

📘दूसरा पाठ

सन्त पौलुस ने अपने सहयोगी तिमथी को दो पत्र दिये। यहाँ पहले पत्र का एक अंश पढ़ कर सुनाया जा रहा है, जिस में सन्त पौलुस ईश्वर को धन्यवाद देते हैं और अपने प्रति ईश्वर की दया का वर्णन करते हैं।

तिमथी के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 1:12-17

“येसु मसीह पापियों को बचाने के लिए संसार में आये ।"

मैं हमारे प्रभु येसु मसीह को धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने मुझे बल दिया है और मुझे विश्वास के योग्य समझ कर अपनी सेवा में नियुक्त किया है। मैं तो पहले ईश-निन्दक, अत्याचारी और अन्यायी था; किन्तु मुझ पर दया की गयी है, क्योंकि अविश्वास के कारण मैं यह नहीं जानता था कि मैं क्या कर रहा हूँ। मुझे हमारे प्रभु का अनुग्रह प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुआ और साथ ही वह विश्वास और प्रेम, जो हमें येसु मसीह द्वारा मिलता है। यह कथन सुनिश्चित और नितान्त विश्वसनीय है कि येसु मसीह पापियों को बचाने के लिए संसार में आये, और उन में से मैं सर्वप्रथम हूँ। मुझ पर इसीलिए दया की गयी है कि येसु मसीह सब से पहले मुझ में अपनी सम्पूर्ण सहनशीलता प्रदर्शित करें और उन लोगों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करें जो अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए विश्वास करेंगे । युगों के अधिपति, अविनाशी, अदृश्य और अतुल्य ईश्वर को युगानुयुग सम्मान तथा महिमा ! आमेन !

प्रभु की वाणी।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! हे पिता ! हे स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु ! मैं तेरी स्तुति करता हूँ; क्योंकि तूने राज्य के रहस्यों को निरे बच्चों के लिए प्रकट किया है। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

आज के पहले पाठ का विषय है इस्राएलियों के प्रति ईश्वर की दया। दूसरे पाठ में सन्त पौलुस अपने प्रति ईश्वर की दया की चरचा करते हैं। प्रस्तुत सुसमाचार में येसु पापियों के प्रति ईश्वर की दया के विषय में दृष्टान्त सुनाते हैं।

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 15:1-32

[ कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है ]
"एक पश्चात्तापी पापी के लिए स्वर्ग में आनन्द मनाया जायेगा ।"

येसु का उपदेश सुनने के लिए नाकेदार और पापी उनके पास आया करते थे। फ़रीसी और शास्त्री यह कह कर भुनभुनाते थे, "यह मनुष्य पापियों का स्वागत करता है और उनके साथ खाता-पीता है"। इस पर येसु ने उन को यह दृष्टान्त सुनाया, "यदि तुम्हारे एक सौ भेड़ें हों और उन में से एक भी भटक जाये, तो तुम लोगों में कौन ऐसा होगा जो निन्यानबे भेड़ों को निर्जन प्रदेश में छोड़ कर न चला जाये और उस भटकी हुई को तब तक न खोजता रहे, जब तक वह उसे नहीं पाये? पाने पर वह आनन्दित हो कर उसे अपने कंधों पर रख लेता है, और घर आ कर अपने मित्रों और पड़ोसियों को बुलाता है और उन से कहता है, 'मेरे साथ आनन्द मनाओ, क्योंकि मैंने अपनी भटकी हुई भेड़ को पा लिया है'। मैं तुम से कहता हूँ, उसी प्रकार निन्यानबे धर्मियों की अपेक्षा, जिन्हें पश्चात्ताप की आवश्यकता नहीं है, एक पश्चात्तापी पापी के लिए स्वर्ग में अधिक आनन्द मनाया जायेगा । "अथवा कौन स्त्री ऐसी होगी जिसके पास दस सिक्के हों और उन में से एक भी खो जाये, तो बत्ती जला कर और घर बुहार कर सावधानी से तब तक न खोजती रहे, जब तक वह उसे नहीं पाये? पाने पर वह अपनी सखियों और पड़ोसिनों को बुला कर कहती है, 'मेरे साथ आनन्द मनाओ, क्योंक मैंने खोया हुआ सिक्का पा लिया है'। मैं तुम से कहता हूँ, उसी प्रकार ईश्वर के दूत एक पश्चात्तापी पापी के लिए आनन्द मनाते हैं"।

[ येसु ने कहा, "किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। छोटे ने अपने पिता से कहा, 'पिता जी ! सम्पत्ति का जो भाग मेरा है, मुझे दे दीजिए' । और पिता ने उन में अपनी सम्पत्ति बाँट दी। थोड़े ही दिनों बाद छोटा बेटा अपनी समस्त सम्पत्ति एकत्र कर किसी दूर देश चला गया और वहाँ उसने भोग-विलास में अपनी संपत्ति उड़ा दी । जब वह सब कुछ खर्च कर चुका, तो उस देश में भारी अकाल पड़ा और उसकी हालत तंग हो गयी। इसलिए वह उस देश के एक निवासी का नौकर बन गया, जिसने उसे अपने खेतों में सूअर चराने भेजा । जो फलियाँ सूअर खाते थे, उन्हीं से वह अपना पेट भरना चाहता था, पर कोई भी उसे उन में से कुछ नहीं देता था । तब वह होश में आया और सोचने लगा, मेरे पिता के घर कितने मजदूरों को जरूरत से ज्यादा रोटी मिलती है और मैं यहाँ भूखों मर रहा हूँ। मैं उठ कर अपने पिता के पास जाऊँगा और उन से कहूँगा, 'पिता जी ! मैंने स्वर्ग के विरुद्ध और आपके प्रति पाप किया है। मैं आप का पुत्र कहलाने योग्य नहीं रहा। मुझे अपने मजदूरों में एक जैसा रख लीजिए' । तब वह उठ कर अपने पिता के घर की ओर चल पड़ा। वह दूर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया और दया से द्रवित हो उठा । उसने दौड़ कर उसे गले लगा लिया और उसका चुम्बन किया। तब पुत्र ने उस से कहा, 'पिता जी ! मैंने स्वर्ग के विरुद्ध और आपके प्रति पाप किया है। मैं आपका पुत्र कहलाने योग्य नहीं रहा' । परन्तु पिता ने अपने नौकरों से कहा, 'जल्दी अच्छे से अच्छे कपड़े ला कर इसे पहनाओ और इसकी उँगली में अँगूठी और इसके पैरों में जूते पहनाओ । मोटा बछड़ा भी ला कर मारो। हम खायें और आनन्द मनायें; क्योंकि मेरा यह बेटा मर गया था और फिर जी गया है, यह खो गया था और फिर मिल गया है।' और वे आनन्द मनाने लगे । उसका जेठा लड़का खेत में था। जब वह लौट कर घर के निकट पहुँचा, तो उसे गाने-बजाने और नाचने की आवाज सुनाई पड़ी। उसने एक नौकर को बुलाया और इसके विषय में पूछा। इसने कहा, 'आपका भाई आया है और आपके पिता ने मोटा बछड़ा मारा है, क्योंकि उन्होंने उसे भला-चंगा वापस पाया है'। इस पर वह क्रुद्ध हो गया और उसने घर के अन्दर जाना नहीं चाहा। तब उसका पिता बाहर आया और उसे मनाने लगा। पर उसने अपने पिता को उत्तर दिया, 'देखिए, मैं इतने बरसों से आपकी सेवा करता आ रहा हूँ। मैंने कभी आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया । फिर भी आपने कभी मुझे बकरी का बच्चा तक नहीं दिया, ताकि मैं अपने मित्रों के साथ आनन्द मनाऊँ । पर जैसे ही आपका यह बेटा आया, जिसने वेश्याओं के पीछे आपकी सम्पत्ति उड़ा दी है, आपने इसके लिए मोटा बछड़ा मार डाला है।' इस पर पिता ने उस से कहा, 'बेटा, तुम तो सदा मेरे साथ रहते हो और जो कुछ मेरा है, वह तुम्हारा है। परन्तु आनन्द मनाना और उल्लसित होना उचित ही था; क्योंकि तुम्हारा यह भाई मर गया था और फिर जी गया है, यह खो गया था और फिर मिल गया है'।"]

प्रभु का सुसमाचार।