वर्ष का पच्चीसवाँ सप्ताह, इतवार - वर्ष B

📕पहला पाठ

प्रज्ञा ग्रंथ में विधर्मी एक ईश्वर-भक्त की निन्दा करते हैं। वे उस पर अत्याचार करते तथा उसको प्राणदण्ड देने का विचार करते हैं। यह सब शास्त्रियों द्वारा येसु के अपमान का पूर्वाभास है।

प्रज्ञा ग्रंथ 2:12,17-20

"हम उसे घिनावनी मृत्यु का दण्ड दिलायें ।"

विधर्मी आपस में कहते थे, ’हम धर्मात्मा के लिए फंदा लगायें, क्योंकि वह हमें परेशान करता है और हमारे आचरण का विरोध करता है। वह हमें संहिता भंग करने के कारण, फटकारता है और हम पर अपनी परम्पराओं को त्याग देने का अभियोग लगाता है। हम यह देखें कि उसका दावा कहाँ तक सच है; हम यह पता लगायें कि अंत में उसका क्या होगा। यदि वह धर्मात्मा ईश्वर का पुत्र है, तो ईश्वर उसकी सहायता करेगा और उसे उसके विरोधियों के हाथ से छुड़ायेगा। हम अपमान और अत्याचार से उसकी परीक्षा लें, जिससे हम उसकी विनम्रता जान जायें और उसका धैर्य परख सकें। हम उसे घिनौनी मृत्यु का दण्ड दिलायें, क्योंकि उसका दावा है कि वह सुरक्षित ही रहेगा"।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 53:3-6,8

अनुवाक्य : प्रभु मेरे जीवन का आधार है।

1. हे ईश्वर ! अपने नाम द्वारा मुझे बचा; अपने सामर्थ्य से मुझे न्याय दिला। हे ईश्वर ! मेरी प्रार्थना सुनने और मेरे शब्दों पर ध्यान देने की कृपा कर

2. घमंडी मुझे घेरते हैं और कुकर्मी मुझे मारना चाहते हैं। वे ईश्वर की उपेक्षा करते हैं

3. अब ईश्वर स्वयं मेरा सहायक है, प्रभु मेरे जीवन का आधार है। मैं सारे हृदय से तुझे बलिदान चढ़ाऊँगा। मैं तुझे धन्य कहूँगा, क्योंकि तू भला है।

📘दूसरा पाठ

जब तक मनुष्य अपने स्वार्थ, ईर्ष्या तथा अन्य वासनाओं का दमन नहीं करते, तब तक समाज में लड़ाई-झगड़े होते रहेंगे। जब तक हम मसीह की आज्ञाओं पर नहीं चलते, हमारे बीच अशांति बनी रहेगी।

सन्त याकूब का पत्र

"धार्मिकता शांति के क्षेत्र में बोयी जाती है और शांति स्थापित करने वाले उसका फल प्राप्त करते हैं।"

जहाँ ईर्ष्या और स्वार्थ है, वहाँ अशांति और हर तरह की बुराई भी पायी जाती है। किन्तु ऊपर से आयी हुई प्रज्ञा सब से पहले निर्दोष है, और वह शांतिप्रिय, सहनशील, विनम्र, करुणामय, परोपकारी, पक्षपातहीन और निष्कपट भी है। धार्मिकता शांति के क्षेत्र में बोयी जाती है और शांति स्थापित करने वाले उसका फल प्राप्त करते हैं। आप लोगों में द्वेष और लड़ाई-झगड़ा कहाँ से आता है? क्या इसका कारण यह नहीं है कि आपकी वासनाएँ आपके अन्दर लड़ाई करती हैं? आप अपनी लालसा पूरी नहीं कर सकते और इसलिए हत्या करते हैं। आप जिस चीज की ईर्ष्या करते हैं, उसे नहीं पा सकते हैं और इसलिए लड़ते-झगड़ते हैं। आप प्रार्थना नहीं करते हैं, इसलिए आप लोगों के पास कुछ नहीं है। जब आप माँगते भी हैं, तो इसलिए नहीं पाते हैं कि अच्छी तरह से प्रार्थना नहीं करते। आप अपनी वासनाओं की तृप्ति के लिए धन की प्रार्थना करते हैं।

प्रभु की वाणी।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं - "मेरी भेड़ें मेरी आवाज पहचानती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरा अनुसरण करती हैं"। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

येसु मसीह 'अपनी सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने और बहुतों के उद्धार के लिए अपने प्राण देने' आये हैं। उनका अनुकरण करते हुए हमें भी अपने भाइयों, विशेष रूप से दरिद्र तथा निस्सहाय लोगों की सेवा करनी चाहिए।

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 9:30-37

"मानव पुत्र पकड़वा दिया जायेगा। यदि कोई पहला होना चाहे, तो वह सब का सेवक बने ।"

येसु और उनके शिष्य वहाँ से चल कर गलीलिया पार कर रहे थे। येसु नहीं चाहते थे कि किसी को इसका पता चले, क्योंकि वह अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे। येसु ने उन से कहा, "मानव पुत्र मनुष्यों के हवाले कर दिया जायेगा। वे उसे मार डालेंगे और मार डाले जाने के बाद वह तीसरे दिन जी उठेगा"। शिष्य यह बात नहीं समझ पाते थे, किन्तु येसु से प्रश्न करने में उन्हें संकोच होता था । वे कफ़रनाहूम आये । घर पहुँच कर येसु ने शिष्यों से पूछा, "तुम लोग रास्ते में किस विषय पर विवाद कर रहे थे?" वे चुप रह गये, क्योंकि उन्होंने रास्ते में इस पर वाद-विवाद किया था कि हम में सब से बड़ा कौन है। येसु बैठ गये और बारहों को बुला कर उन्होंने उन से कहा, "यदि कोई पहला होना चाहे, तो वह सब से पिछला और सब का सेवक बने"। उन्होंने एक बालक को शिष्यों के बीच खड़ा कर दिया और उसे गले लगा कर उन से कहा, "जो मेरे नाम पर इन बालकों में से किसी एक का स्वागत करता है, वह मेरा ही स्वागत करता है और जो मेरा स्वागत करता है, वह मेरा नहीं, बल्कि उसका स्वागत करता है, जिसने मुझे भेजा है"।

प्रभु का सुसमाचार।