तुम लोग मेरी यह बात सुनो, तुम जो दिन-हीन को रौंदते हो और देश के गरीबों को समाप्त कर देना चाहते हो, तुम कहते हो, "अमावस का पर्व कब बीतेगा, ताकि हम अपना अनाज बेच सकें? विश्राम का दिन कब बीतेगा, ताकि हम अपना गेहूँ बेच सकें? हम अनाज की नाप छोटी कर देंगे, रुपये का वजन बढ़ायेंगे और तराजू को खोटा बनायेंगे। हम चाँदी के सिक्के से दरिद्र को खरीद लेंगे और जूतों की जोड़ी के दाम पर कंगाल को। हम गेहूँ का कचरा तक बेच देंगे।" प्रभु शपथ खा कर कहता है - "तुम लोगों ने जो कुछ किया, मैं वह सब याद रखूँगा"।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्यः प्रभु की स्तुति करो ! वह दरिद्रों को ऊपर उठाता है। (अथवा : अल्लेलूया !)
1. प्रभु के सेवको ! स्तुति करो ! प्रभु के नाम की स्तुति करो। धन्य है प्रभु का नाम, अभी और अनन्त काल तक
2. प्रभु सभी राष्ट्रों का शासक है। उसकी महिमा आकाश से भी ऊँची है। हमारे प्रभु-ईश्वर के सदृश कौन? वह उच्च सिंहासन पर विराजमान हो कर स्वर्ग और पृथ्वी, दोनों पर दृष्टि रखता है
3. वह धूल में से दीनों को और कूड़े पर से दरिद्रों को ऊपर उठाता है। वह उन्हें शासकों के साथ बैठाता है, अपनी प्रजा के शासकों के साथ ही ।
मैं सब से पहले यह अनुरोध करता हूँ कि सभी मनुष्यों के लिए, विशेष रूप से राजाओं तथा अधिकारियों के लिए, अनुनय-विनय, प्रार्थना, निवेदन तथा धन्यवाद अर्पित किया जाये, जिससे हम भक्ति तथा मर्यादा के साथ निर्विघ्न तथा शांत जीवन बिता सकें । यह उचित भी है और हमारे मुक्तिदाता ईश्वर को प्रिय भी है, क्योंकि वह चाहता है कि सभी मनुष्य मुक्ति प्राप्त करें और सत्य जान जायें। क्योंकि केवल एक ही ईश्वर है और ईश्वर तथा मनुष्यों के केवल एक ही मध्यस्थ हैं, अर्थात् येसु मसीह, जो स्वयं मनुष्य हैं और जिन्होंने सबों के उद्धार के लिए अपने को अर्पित किया है। उन्होंने उपयुक्त समय पर इसके सम्बन्ध में अपना साक्ष्य दिया है। मैं सच कहता हूँ, झूठ नहीं बोलता; मैं इसी का प्रचारक तथा प्रेरित, गैर-यहूदियों के लिए विश्वास तथा सत्य का उपदेशक नियुक्त हुआ हूँ। मैं चाहता हूँ कि सब जगह पुरुष, बैर तथा विवाद छोड़ कर, उदारपूर्वक हाथ ऊपर उठा कर प्रार्थना करें।
प्रभु की वाणी।
अल्लेलूया, अल्लेलूया ! धन्य है वह राजा, जो प्रभु के नाम पर आते हैं। स्वर्ग में शांति ! सर्वोच्च स्वर्ग में महिमा ! अल्लेलूया !
येसु ने अपने शिष्यों से कहा,
[ "किसी धनवान् का एक कारिन्दा था। लोगों ने उसके पास जा कर कारिन्दा पर यह दोष लगाया कि वह आपकी सम्पत्ति उड़ा रहा है। इस पर स्वामी ने उसे बुला कर कहा, 'मैं तुम्हारे विषय में क्या सुन रहा हूँ? अपनी कारिन्दगरी का हिसाब दो, क्योंकि तुम अब से कारिन्दा नहीं रह सकते'। तब कारिन्दा ने मन-ही-मन यह कहा, 'मैं क्या करूँ? मेरा स्वामी मुझे कारिन्दगरी से हटा रहा है। मिट्टी खोदने का मुझ में बल नहीं; भीख माँगने में मुझे लज्जा आती है । हाँ, अब समझ में आया कि मुझे क्या करना चाहिए, जिससे कारिन्दगरी से हटाये जाने के बाद लोग अपने घरों में मेरा स्वागत करें ।' उसने अपने मालिक के कर्जदारों को एक-एक करके बुला कर पहले से कहा, 'तुम पर मेरे स्वामी का कितना ऋण है?" उसने उत्तर दिया, 'सौ मन तेल' । कारिन्दा ने कहा, 'अपना रुक्का लो और बैठ कर पचास लिख दो' । फिर उसने दूसरे से पूछा, 'तुम पर कितना ऋण है?' उसने कहा 'सौ मन गेहूँ' । कारिन्दा ने उस से कहा, 'अपना रुक्का लो और अस्सी लिख दो' । स्वामी ने बेईमान कारिन्दा को सराहा कि उसने चतुराई से काम किया है। क्योंकि इस संसार की संतान आपसी लेन-देन में ज्योति की संतान से अधिक चतुर है। "और मैं तुम लोगों से कहता हूँ, झूठे धन से अपने लिए मित्र बना लो जिससे उसके समाप्त हो जाने पर वे लोग परलोक में तुम्हारा स्वागत करें।]
जो छोटी-से-छोटी बातों में ईमानदार है, वह बड़ी बातों में भी ईमानदार है, और जो छोटी-से-छोटी बातों में बेईमान है, वह बड़ी बातों में भी बेईमान है। यदि तुम झूठे धन में ईमानदार नहीं ठहरे, तो तुम्हें सच्चा धन कौन सौंपेगा? और यदि तुम पराये धन में ईमानदार नहीं ठहरे, तो तुम्हें तुम्हारा अपना धन कौन देगा? कोई भी सेवक दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि वह या तो एक से बैर और दूसरे से प्रेम रखेगा, या एक का आदर और दूसरे का तिरस्कार करेगा । तुम ईश्वर और धन-दोनों की सेवा नहीं कर सकते ।"
प्रभु का सुसमाचार।